लौह कन्या – गोमती सिंह

सरोजनी एक सार्वजनिक उद्यम में कार्यरत थी ।वह प्रातः 8 भजे जल्दी जल्दी तैयार होने के बाद निकल पड़ी अपनें कार्य पर ।उसकी बाइक सड़क पर दौड़ने लगी। 35 वर्षीय सरोजनी को स्कूटी  चलाने का काफी तजुर्बा था ।वह सड़क पर यातायात के नियमों का पालन करते हुए ही जा रही थी ।लेकिन ट्रेफिक की वजह से संतुलन बिगड़ गया और वह गिर कर वहीं बेहोश हो गई ।

           जब कोई आम आदमी मुसीबत में होता है तो लोग उसके पास जाने से डरते हैं।

        ‘ ऐसा कहते हैं पास नहीं जाना पुलिस केस दर्ज हो जाएगा। ‘

           और वाकई आमलोगों को परेशान करने के लिए ही तो सारे नियम कानून बनें हैं।सत्ताधारी या किसी पैसे वाले विशिष्ट लोग तो नियमों की धज्जियां उड़ाते रहते हैं।

           इसी कानून के डर से सरोजनी की मदद करने के लिए कोई आगे नहीं आ रहे थे।

       मगर सरोजनी की उम्र अभी काफी लंबी थी , तभी तो एक मानव के मसीहा को उस पर दया आ गई।  और वह उसे अपनी कार की सीट पल लेटाकर उसे हास्पीटल ले गया।

          धीरे-धीरे जब सरोजनी को होश आया तब वह धीरे से बड़बड़ाते हुए बोली -“नन्ही, पानी देना बेटी ।”

      फिर धीरे से जब वह आँखें खोली तो देखी कोई अपरिचित ब्यक्ति पानी लेकर खड़ा था। 

      वह मन ही मन स्थिति को समझने का प्रयास करनें लगीं।  तभी तथाकथित ब्यक्ति ने अपना परिचय देते हुए कहा-” मेरा नाम नीरज है , आपकी स्कूटी  दुर्घटना ग्रस्त हो गई थी , मैं वहीं से गुजर रहा था , “इंसानियत के नाते आपको हास्पीटल में भर्ती करा दिया ।”सरोजनी अब सब कुछ समझ  गई । मन हो मन ही मन कहा ” ओह ! माई गॉड।” मैं तो ड्यूटी जा रही थी। ” उसने अपनी घड़ी देखी तो 10 बज रहे थे ।



         सरोजनी नें कृतज्ञता जाहिर करते हुए कहा-” बहुत धन्यवाद नीरज , भैया। “

नीरज ने कहा-” इसमें धन्यवाद जैसी कोई बात नहीं है बहन, इंसानियत के नाते ये मेरा फर्ज था ।”

       नीरज सरोजनी को ध्यान से देखने लगा वह बेबी पिंक की सफेदरंग की बेलबूटे वाली साड़ी पहनी हुई थी। कमर तक लटकती लंबी चोटी थी , गोरे-गोरे गाल पर काले-काले बाल बिछरे हुए थे जो इस स्थिति में भी उसकी सुन्दरता को बयान कर रहे थे । उसके श्रृंगार में कहीं कोई सुहाग चिन्ह नहीं दिख रहे थे।  जिसे देखकर नीरज ने कहा-” अगर मेरा अनुमान गलत नहीं है तो आपका विवाह नहीं हुआ है  । आप अर्धचेतना में जिस नन्ही का नाम ले रही थीं वह कौन है।”इतना सुनते ही सरोजिनी के कान खड़े हो गए। वह अपने ऊपर ज़्यादा ‘शक ‘न  जाए इस लिए खुद ही बताने लगी कि -:उसकी पड़ोसन का चौथा गर्भ था ”  गर्भ परिक्षण कराने के बाद  पता चला कि तीन लड़कियो के बाद गुर्भ मे चौथी लड़की थी ।अभी भी अधिकांश लोगों के मन में एक पुत्र संतान होने की मानसिकता नहीं गई है । इसीलिए  उसके माता-पिता; कुछ और नहीं …सिर्फ दहेज की सुरषा के भय से गर्भपात कराने की ठान  लिए थे ।इस बात की जानकारी जब सरोजनी को मिली तब उसने अपने पड़ोसन से गर्भ की लड़की को याचना कर के मांग ली थी ।बच्ची के पैदा होने के 10-12 दिनों बाद सरोजनी ऊस बच्ची को आपने पास ले आई थी । इस तरह उस बच्ची को माँ के रूप में सरोजनी मिली ।

         बदलते परिवेश की द्रुतगामिता में वह उसी द्रुतगति से शामिल हो गई थी।

     उसने कन्या-भ्रूण की रक्षा करते हुए, संकोच, झिझक, शर्म जैसे काले धब्बों को बहुत पीछे छोड़ दिया।  नैतिकता अंर सच्चरित्र को अपना आदर्श मानकर वह ” लौह-कन्या के रूप में उभर रही थी ।



         उस अविवाहित लडकी को कन्या भ्रूण की रक्षा हेतु माँ का संबोधन मिलने से रत्तीभर संकोच नहीं था । वह गर्व से बता रही थी नीरज भैया ! नन्ही मेरी वही मुंहबोली बेटी है । जिसके लिए मैने जिंदगी भर कूवांरी रहते हुए उसकी रक्षा, पालन पोषण करने का प्रण लिया है। 

    सरोजनी ने आगे कहा- नीरज भैया मैं समाज में देखती आ रही हूँ ;लोग अपनी पीढ़ी  अपना वंश , अपना नाम चलाने के लिए लोग पुत्र संतान को महत्व देते हैं । या सबसे बड़ी वजह ये है। दहेज़ की सुरषा के भय से कन्या भ्रूण की हत्या करा देते हैं ।जबकि हम अपनी पुत्रियों को उसके माता-पिता के संस्कारों से सुसज्जित कर उसके पिया के घर, ससुराल को पुष्पित, पल्लवित करनें हेतु विधि-विधान से विवाह संस्कार करा कर शुभ आशीर्वाद सहित भेजते हैं। पुत्रियां मायका-ससुराल दोनों को अपने संस्कारों से महकाती हैं। जिस पर हमें गर्व करना चाहिए। लेकिन लानत है ऐसे समाज को जो कन्या भ्रूण की हत्या करा देते हैं।

      सरोजनी की उक्त बातें सुनकर नीरज भी बेहद चिंतित मुद्रा में आ गए और एक आह भरी आवाज़ के साथ  नीरज ने कहा-” हाँ दीदी!ये घोर अन्याय है पाप है । अपना पता बताइए दीदी मैं आपको घर छोड़ देता हूँ। “ठीक है चलिए छोड़ दीजिए। 

        फिर आधे घंटे के सफर के बाद सरोजनी का घर आ गया।  उसने अपने नीरज भैया को घर अंदर आने का बहुत आग्रह किया लेकिन उसने अपनी ब्यस्तता बताते हुए फिर कभी आने का वादा किया और समाज की उभर रही इस महान “लौह-कन्या” को मन ही मन सलाम करते हुए अपनी राह चले गए।

    ।।इति।।

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    -गोमती सिंह

        छत्तीसगढ़

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