लिपट गई – कंचन श्रीवास्तव

भरपूर पति का प्यार, सुख सुविधा,मिलने के बाद भी राधा के चेहरे पर वो चमक नहीं है जो एक नई नवेली ब्याहता स्त्री के चेहरे पर होना चाहिए और अब तो साल के भीतर ही एक बेटा भी हो गया,और कहते हैं ना कि बेटियां कितना भी बढ़ती उम्र के साथ मां बाप के लिए करें पर बेटे के होने की खुशी पति के साथ साथ लोगों की नज़रों में भी स्त्री का मान सम्मान बढ़ा देता देता है।

वहीं यहां भी था, पर बरही की पूजा में से सज धज कर बैठी राधा के चमकते मुख मंडल से उदासी झलक रही थी। जिसे सिर्फ़ मां ने महसूस किया और जब ऐसा महसूस हुआ तो उन्होंने मौका पाकर पूछने की सोची।

फिर जब देर रात सब अपने अपने चले गए तो बेटी और नाती के पास ही लेटी सरला ने उसके इस उदासी का कारण जानना चाहा।

इस विश्वास के साथ कि वो उससे कुछ भी नहीं छिपाएंगी।और वैसे भी वो दोनों मां बेटी कम दोस्त ज्यादा है एक दूसरे की।

क्योंकि अपने जीवन में शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक सभी विषयों पर बढ़ती उम्र के साथ खुलके चर्चा करती आई है और मां ने भी बेझिझक सभी पर खुलके साथ दिया।




पर ये क्या छोटी से छोटी बात साझा करने वाली बिटिया कुछ छिपाना सीख गई। हां छिपाना। तभी तो लगा बिटिया सयानी हो गई।

पर उसकी पारखी नज़र कैसे नहीं भांप पाई।

शायद कमी कहीं उसी में थी।तभी तो इतना बड़ा फैसला उसने ले लिया और इसे भनक तक न लगी।

खैर बार बार कई बार ,कसम देकर पूछने पर उसने दिल में छुपे दर्द को बताया।

कि शादी तय होने के एकाध साल पहले ही मेरे जीवन में एक लड़का आया।उसका व्यवहार कुछ खास नही रहा थोड़ा जिद्दी,थोड़ा गुस्सेल वगैरा वगैरा पर दिल की पसंद रहा , और कुछ रूकते हुए परेशान मत हो सब ठीक हो जाएगा यहां रवि भी बहुत केयरिंग है लोग बहुत अच्छे हैं  फिर भी उसे मन से हटा नही पा रही।

सच मां अब मुझे ऐसा महसूस हो रहा कि स्त्री सचमुच अपना पहला प्यार भुला नहीं पाती

चाहे कितनी भी सुख सुविधा और प्यार करने वाला पति मिल जाए।

कहते हुए मां के गले से लिपट गई।

 

स्वरचित 

कंचन श्रीवास्तव आरज़ू

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