लालच बनी मुसीबत – गीता वाधवानी : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi :  “और नाटक में एक सुंदर पात्र निभाने के लिए तीसरा इनाम जाता है दसवीं कक्षा के छात्र अतुल को।” अतुल तालियों की गड़गड़ाहट सुनकर फूला नहीं समा रहा था। वह  पुरस्कार प्राप्त करने के लिए स्टेज की तरफ भागा। यह पुरस्कार प्राप्त करने के बाद गांव के एक छोटे से स्कूल में पढ़ने वाले अतुल को लग रहा था कि वह आसमान में उड़ रहा है और वह दुनिया का सबसे अच्छा कलाकार है। 

उसके माता-पिता और भाई-बहन भी बहुत खुश थे। 

अतुल आगे पढ़ना चाहता था। एक दिन वह अपने दोस्त विनोद के घर गया। विनोद के मामा जी आए हुए थे। अतुल ने विनोद से कहा-“ऐसा लग रहा है तेरे मामा जी को मैंने कहीं पर देखा है।” 

विनोद ने खुश होकर कहा-“हां मेरे मामा जी टीवी सीरियल में काम करते हैं।” 

अतुल की आंखें खुशी के मारे चौड़ी हो गई। और वह भाग कर मामा जी के पास गया। विनोद ने अपने मामा जी को अतुल के पुरस्कार प्राप्त करने की बात बताई। मामा जी टीवी सीरियल में छोटे-मोटे रोल करते थे लेकिन बच्चों के सामने खुद को बहुत ही महत्वपूर्ण कलाकार बता रहे थे और बातों बातों में सबको बता रहे थे कि मैं कितने बड़े-बड़े कलाकारों और डायरेक्टर्स को जानता हूं। मेरी फिल्म इंडस्ट्री में बहुत जान पहचान है। दोनों बच्चे उनसे प्रभावित हो चुके थे और खासकर अतुल। 

अतुल ने उनसे पूछा-“मामा जी, अगर मैं शहर आ जाऊं तो क्या मुझे टीवी सीरियल में काम मिलेगा?” 

मामा जी-“हां हां क्यों नहीं बेटा, मैं दिलवाऊंगा काम, तुम भी तो मेरे भांजे जैसे हो। काम की कोई कमी नहीं और साथ में पैसा भी।” 

अतुल तो दिन में सपने देखने लगा। घर जाकर उसने अपने माता-पिता को सब कुछ बताया, तब उन्होंने एक्टिंग करने के लिए साफ मना कर दिया और अतुल को समझाया कि यह सब कहने की बातें हैं। कोई किसी की मदद नहीं करता। यह सब बातें भूलकर पढ़ाई में ध्यान लगाओ और कुछ बनाकर दिखाओ। 

लेकिन अतुल के दिमाग में मामा जी बस चुके थे। थोड़े दिनों बाद अतुल ने बैग में दो-चार कपड़े घर वालों से छुपा कर डाले और  कुछ रुपए वह कई दिनों से जोड़ कर रख रहा था वह भी बैग में रख लिए। घर वालों से कहा कि स्कूल में आज रंगारंग कार्यक्रम के कारण देर हो जाएगी आप चिंता मत करना। ऐसा कहकर वह स्कूल जाने की बजाय गांव छोड़कर शहर मुंबई की तरफ भाग गया। 

मामा जी ने एक कार्ड उसे दिया था। वह उसे पते पर पहुंचा। वहां पर कोई नहीं रहता था। अब अतुल को समझ में नहीं आ रहा था कि वह कहां जाए और क्या करें। घर से भाग कर वह बहुत पछता रहा था। 

उधर उसके घर वाले रात हो जाने पर परेशान थे वह उसे ढूंढ रहे थे। इधर अतुल के पास फुटपाथ पर सोने के अलावा कोई चारा नहीं था। 2 दिन बीतते-बीतते खाने पीने के कारण उसके पैसे खत्म हो चले थे। शाम का समय था वह पैदल मुंबई के स्लम एरिया की तरफ घूम रहा था। 

तभी घूमते घूमते उसकी नजर कूड़ेदान के पास पड़े एक पैकेट पर गई। उसे लगा कि इसमें जरूर कुछ होगा। दूसरे लोगों से नजर बचाते हुए उसने वह पैकेट उठाकर अपने थैले में डाल लिया। एक खाली और सुनसान जगह देखकर वह वहां आराम से बैठ गया और उस पैकेट को खोलने लगा। 

पैकेट को खोलते ही उसमें से एक मोबाइल निकला, जिसे देखते ही अतुल बहुत खुश हो गया और सोचने लगा कि इसे बेचकर कुछ पैसे मिल जाएंगे। तभी उसने दूसरा पैकेट देखा। उसने दूसरा पैकेट भी  खोला। उसे पैकेट को खोलते ही डर के मारे उसकी चीख निकल गई और वह वहीं पर बेहोश हो गया। 

थोड़ी देर बाद जब उसे होश आया, तब उसने देखा कि वह पुलिस स्टेशन में है। अपनी ऐसी हालत देखकर वह रोने लगा। 

इंस्पेक्टर साहब ने उसे ज़ोर से डांटा। “पहले चोरी करता है, लोगों के खून करता है और बाद में रोकर दिखाता है। यह रोने का नाटक बंद कर, वरना डंडे मार मार कर तेरी चमड़ी उधेड़ दूंगा।” 

अतुल डर के मारे थर-थर कांप रहा था। वह सोच रहा था कि बेकार में पैकेट उठकर मैंने लालच में आकर मुसीबत मोल ले ली। 

उसने इंस्पेक्टर से कहा-“अंकल, मैंने कोई चोरी नहीं की और ना ही मैंने कोई खून किया है। कूड़ेदान के पास मुझे एक पैकेट मिला था। लालच में आकर मैंने उसे उठा लिया, उसमें से मोबाइल निकाला और दूसरे पैकेट में से किसी की कटी हुई उंगलियां निकली। वह खून से लटपट उंगलियां देखकर डर के मारे मैं बेहोश हो गया। अंकल, मैं तो यहां सीरियल में काम ढूंढने आया था। मैं तो यहां का नहीं हूं। 2 दिन पहले ही आया हूं।” 

इंस्पेक्टर साहब उसकी बात ध्यान से सुन रहे थे। वह एक अच्छे इंसान थे। उन्हें अतुल की बातों में सच्चाई नजर आ रही थी। कटी हुई उंगलियां फॉरेंसिक लैब में भेज दी गई थी और मोबाइल किसका है जानकारी निकाली जा रही थी। 

इंस्पेक्टर साहब को लगा कि अगर मैं इसका साथ नहीं दूंगा तो बेकार में इस बच्चे की जिंदगी खराब हो जाएगी। उन्होंने अतुल से उसके घर का पता पूछा और उसके स्कूल का पता लगाकर, स्कूल के फोन नंबर पर बात की और स्कूल से उसके घर वालों का मोबाइल नंबर लिया क्योंकि अतुल को कोई मोबाइल नंबर याद नहीं था। 

उन्होंने फोन करके अतुल के घर वालों को बुलाया और उनसे अकेले में बात करके अतुल के बारे में पूरी तसल्ली की उसके बाद उन्होंने अतुल को प्यार से समझाया”अतुल बेटा, तुमने सब कुछ सच बोला, इसीलिए मैं तुम्हें तुम्हारे घर वालों के साथ वापस भेज रहा हूं। अब तुम घर जाकर अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो और इन बेकार की बातों में मत आओ। पढ़ लिख कर कुछ बनाकर दिखाओ। बेशक तुम एक्टिंग करना चाहते हो, करो लेकिन अपनी पढ़ाई लिखाई पूरी करने के बाद और माता-पिता की आज्ञा लेकर। ऐसे घर से भाग कर नहीं। यह तो अच्छा हुआ कि तुम गलत हाथों में नहीं पड़े, वरना तुम्हारी पूरी जिंदगी बर्बाद हो जाती।” 

अतुल ने आगे बढ़कर इंस्पेक्टर साहब के पैर छू लिए और अपनी पढ़ाई पर ध्यान देने का वादा करते हुए अपने घर वालों के साथ अपने गांव वापस लौट गया। 

   इंस्पेक्टर साहब ने उस मोबाइल के साथ उंगलियां काटकर फेंकने वाले का पता लगा लिया था दरअसल वह एक मानसिक रोगी था जिसे लोगों की उंगलियां काटने में बेहद मजा आता था और वह हर बार लालच में किसी को फसाने के लिए जानबूझकर चोरी का मोबाइल साथ में रखता था। मोबाइल की लालच में कभी ना कभी कोई ना कोई मुसीबत मोल ले ही लेता था। 

स्वरचित अप्रकाशित गीता वाधवानी दिल्ली

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!