क्या तुम बर्दाश्त कर लेते – बीना शर्मा

“मेरी मम्मी भी तो आपकी मम्मी जैसी  है यदि मैं भी तुमसे तुम्हारी मम्मी के बारे में ऐसा ही कह देती तो जब वे बीमार हुई थी यदि उस वक्त में आपकी बात मानने से इंकार कर दे देती तब क्या तुम बर्दाश्त कर लेते? सोच लो आज आपकी ना सुनकर मुझे बेहद दुख हो रहा है कहीं ऐसा ना हो बाद में तुम्हें अपनी बात पर सोचकर पछतावा हो इसलिए मना करने से पहले एक बार सोच तो लेते” ललिता  अपने पति ललित से बोली कुछ समय पहले ही ललिता की शादी धूमधाम से ललित के साथ हुई थी ललित अपनी मम्मी सरोजिनी से बेहद प्यार करता था कुछ दिनों पहले बाथरूम में नहाते वक्त अचानक पैर फिसल  जाने के कारण उनके पैर में चोट लग गई थी जिसकी वजह से वह चलने फिरने से बिल्कुल लाचार हो गई थी।

तब ललिता ललिता  से बोला” मम्मी के  खाने-पीने और दवाई का पूरा ध्यान रखना डॉक्टर ने इन्हें कुछ दिन आराम करने को बोला है क्या पता इन्हें कब किसी चीज की जरूरत पड़ जाए? इसलिए तुम्हें हर वक्त मम्मी के पास रहना है ध्यान रखना मम्मी की सेवा में कोई कमी ना रह जाए “तब ललित के कहने पर ललिता अपनी सास का पूरा ख्याल रखती थी उन्हें एक वक्त भी अकेला नहीं छोड़ती  थी उन्हें नाश्ता ,खाना ,दूध फल और दवाई सब बिस्तर पर ही देती थी और उनकी हर इच्छा का तुरंत पालन करती थी ललिता की सेवा भावना के कारण ही उसकी सास के पैर की चोट कुछ दिनों में ही ठीक हो गई थी और वे पहले की तरह ही चलने फिरने लगी थी।




ललित वैसे तो ललिता से बेहद प्यार करता था उसे कभी किसी चीज की कमी नहीं होने देता था परंतु, उसमें एक कमी थी वह जब भी उसे अपने साथ कहीं चलने को कहती वह तुरंत मना कर देता था। तब पति की आदत जानकर वह बुरा नहीं मानती थी इसलिए वह अपने काम खुद कर लेती थी उस पर ज्यादा निर्भर नहीं रहती थी। परंतु कभी-कभी उसे ललित की कही बात बुरी लग जाती थी थोड़ी देर पहले उसकी मम्मी को दिल का दौरा पड़ा तो वह उन्हें देखने के लिए बेचैन हो उठी थी जब उसने ललित से अपने मायके जाने को कहा तो वह बोला “मेरे पास वक्त नहीं है तुम्हारे साथ जाने को मुझे ऑफिस में बहुत सारे काम रहते हैं तुम अकेली चली  जाओ ललिता चाहती तो वह कैब बुक करके  अकेले अपनी मम्मी को देखने जा सकती थी परंतु उसकी मम्मी कुछ दिन पहले ललित को बेहद याद कर रही थी और ललिता से कह रही थी कि किसी दिन ललित के साथ मुझसे मिलने आ जा इसलिए वह ललित से अपने साथ चलने के लिए बोल रही थी, परंतु ,ललित के उसके साथ चलने के लिए इनकार करने पर उसे ललित की यह बात अच्छी नहीं लगी।”

” पतिदेव यदि मैं भी आपकी मां के बारे में ऐसा कह देती तो क्या आप बर्दाश्त कर लेते? वक्त तो मेरे पास भी नहीं था जब मम्मी को चोट लगी थी दिन भर घर में झाड़ू पोछा बर्तन कपड़े नाश्ता खाना बनाने में सारा वक़्त गुजर जाता था परंतु, आप के कहने पर मैंने सुबह जल्दी उठकर घर का काम करने के साथ-साथ मम्मी का पूरा ध्यान रखा था क्योंकि सास भी तो मां जैसी होती है जिसकी वजह से ही मम्मी जल्दी ठीक हो गई थी यदि मैं भी आपसे ऐसे ही बोल देती  कि मेरे पास मम्मी के लिए वक्त नहीं है तब आपको कैसा लगता?




मैंने अपनी सास की मम्मी की तरह सेवा की लेकिन आपने तो मेरे साथ चलने से भी इंकार कर दिया सास भी मां के जैसी ही होती है जैसी मेरी मां वैसी तुम्हारी मां मैंने अपनी मम्मी और तुम्हारी मम्मी में कभी फर्क नहीं किया ऑफिस तो तुम 9:00 बजे जाते हो और अभी तो सिर्फ 6:00 ही बजे हैं तब तक आप उनसे मिलकर वापस भी आ जाएंगे आपको कौन सी उनकी सेवा करनी है सिर्फ उनसे मिलकर ही तो आना है” ललिता की बातें सुनकर ललित को अपनी बातों पर पछतावा हो रहा था वह  पश्चाताप भरे स्वर में ललिता से बोला” तुम जल्दी से तैयार हो जाओ हम अभी मम्मी को देखने चलते हैं अब जब भी तुम कहोगी मैं तुम्हारे साथ मम्मी को देखने जरूर चलूंगा यदि उन्हें मेरी किसी सेवा की जरूरत हुई तो मैं जरूर करूंगा वह भी तो मेरी मम्मी जैसी ही है” ललित की बात सुनकर ललिता के चेहरे पर मुस्कान आ गई थी वह जल्दी से अस्पताल जाने के लिए तैयार होने लगी थी।

दोस्तों  अक्सर हमारे समाज में ऐसा होता है जब बहू अपनी सास को मां के समान प्यार और सम्मान देती है परंतु, पति अपनी सास का इतना सम्मान नहीं करता जितना अपनी  मम्मी का करता है बहुत कम पति ऐसे होते हैं जो अपनी सास को मां के जैसा प्यार और सम्मान देते हैं पति की ऐसी सोच गलत है उन्हें भी अपनी सास को मां के समान प्यार और सम्मान देना चाहिए जरूरत पड़ने पर उनकी सेवा भी करनी चाहिए तभी पति पत्नी का रिश्ता मजबूत और खुशहाल रहता है नहीं तो कभी कभी भेदभाव करने के कारण रिश्तों में दरार भी पड़ जाती है।

#पछतावा 

बीना शर्मा

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