नई माँ – पूजा गुप्ता | Real Life Story In Hindi

ग्रीष्म ऋतु की शाम वैसे भी विरक्त और तन्हा और अकेली होती है, लेकिन उस शाम प्रचंड लू के थपेड़ों ने छह बजे के बाद भी शाम को काफी गर्म और उजाड़ बना रखा था। बिना कारण के खिड़की के पास में खड़ा अक्षय दूर थके हारे डूबते सूरज को निहार रहा था। उसने कभी स्वप्न में भी नहीं सोचा था कि उसे अपने ही घर में इस तरह के एकाकीपन का सामना करना पड़ेगा। 

वो अपने मम्मी-पापा की इकलौता  संतान था। मम्मी-पापा दोनों उसे बेहद प्यार करते थे, पर वह मम्मी से ज्यादा पापा का दुलारा था। पापा उसकी हर बात का ख्याल रखते। घर पर रहते तो उसके आस-पास ही मंडराते रहते। जब अक्षय कभी बीमार हो जाता पापा-पापा की ऐसी रट लगाता कि सैकड़ों काम छोड़ उसके पापा को छुट्टियां लेकर उसके पास रहना पड़ता। बड़ा होने पर भी उसके हर काम में पापा-पापा करने से मम्मी अक्सर खीज जाती थी। 

“कभी तो कोई काम अपनी मर्जी से किया करो। हर समय जब देखो पापा-पापा ही बुलाते रहते हो।” 

लेकिन वह कहाँ समझने वाला था? पापा तो उसके आदर्श गुरु और अभिन्न मित्र थे। वही पापा आज उसके लिए इतने बेगाने हो गए थे कि पूरा एक हफ्ता गुजर जाने के बाद भी दो-चार औपचारिक के बातों के सिवाय उन दोनों के बीच अन्य कोई बातें नहीं हुई थी। पापा कुछ पूछते भी तो वह चुप और एकदम निराश हो जाता। उसकी निराशा के आगे उसके पापा भी विवश थे। ये सब घटित हो रहा था उस मम्मी के इस दुनियां से चले जाने के बाद, जिनके जिंदा रहते कभी वह उनका मूल्य समझ नहीं पाया। सहज ही उपलब्ध मां का प्यार, अब दुर्लभ बन जाने से उसे तरसा रहा था, तड़पा रहा था। 

अचानक उसकी नजरें नीचे बगिया में बैठी उन शकुंतला देवी पर गई जो उसकी मां कही जाती थी और जिनके कारण पिता-पुत्र में युद्ध की स्थिति आ खड़ी हुई थी। दोनों के रिश्ते अलग होने के कगार पर पहुंच गए थे। 




पापा विष्णु कांत चाहते थे कि अक्षय शकुंतला देवी को अपनी मां का दर्जा दे, लेकिन उसने भी ठान लिया था कि वे चाहे कितनी भी कोशिश कर ले, वह शकुंतला देवी को अपनी मां की जगह कभी नहीं देगा, उसके पापा या किसी और के कहने मात्र से रिश्ते नहीं बन जाएंगे। रिश्ते को बनाने और निभाने के लिए आपसी विश्वास और भावनात्मक लगाव का होना बहुत जरूरी है और उसे नहीं लगता कि इस जन्म में वह अपनी इस माँ के साथ कोई ऐसा रिश्ता बना पाएगा। 

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अचानक उसके मन में अपनी मम्मी नंदा देवी की स्मृति मुखर होने लगी और ना चाहते हुए भी वह उसका मन अतीत के गलियारों में फिर भटकने लगा। वह दस वर्ष का था, जब डॉक्टरों ने जांच पड़ताल के बाद उसकी मम्मी को कैंसर बताया था, जो अंतिम अवस्था में था। डॉक्टरों के अनुसार ज्यादा से ज्यादा वे कुछ महीनों की मेहमान रह गई थी। अचानक इस सूचना से पिता-पुत्र दोनों स्तब्ध रह गए। यह वेदना दोनों के लिए असहनीय थी, फिर भी अपने दिल की वेदना को अक्षय पापा के साथ-साथ अपनी मम्मी से छुपाने का भरसक कोशिश करता रहा, लेकिन इस जानलेवा बीमारी की बात ज्यादा दिनों तक उनसे छुपी नहीं रह स्की। इस खबर ने मम्मी को मानसिक रूप से पूरी तरह तोड़ दिया था। एक दिन बर्दास्त करते-करते वो जिंदगी की लड़ाई हार गई और स्वर्ग सिधार गई। 

उसके पापा नंदा देवी के जाने से से पूरी तरह टूट कर बिखर गए। मम्मी के बाद उसकी देखभाल पापा के कंधों पर आ गई। लेकिन उन दोनों के जीवन का सूनापन बढ़ता जा रहा था। हर समय चेहरे पर थकान और उदासी की गहरी लकीरे पापा को असमय ही बूढ़ा बना रही थी। उस छोटी सी उम्र में भी वह पापा के दुःखों को भरसक कम करने की कोशिश करता। उनके पास ही सोता। फिर भी वह महसूस करता है कि भले ही पापा उसके पास लेटे रहते हो पर निष्प्राण शरीर की तरह उनका मन तो कहीं न कहीं टूट चुका था। 




धीरे-धीरे जीवन की भागदौड़ और बदलते समय ने दोनों को बहुत कुछ सामान्य बना दिया था। देखते-देखते पंद्रह साल गुजर गए। वह कई परीक्षाओं को पास कर डॉक्टर की पढ़ाई करके दिल्ली आ गया। जहां नए माहौल में अपनी डॉक्टरी में वह पूरी तरह रम गया। उधर रायपुर में उसके पापा भी कॉलेज के विद्यार्थियों के साथ शिक्षा के कामों में पूरी तरह व्यस्त हो गए थे। 

कभी-कभी मां की यादें उसे पूरी तरह बिखेर देती  थी। फिर भी अब जीवन पूरी तरह सामान्य हो चला था। अक्षय घर लौटने की तैयारी ही कर रहा था कि पापा का एक पत्र उसे मिला, उसमें उन्होंने लिखा था वह किसी शकुंतला देवी से शादी कर चुके हैं, जो अब उसकी मां है। 

पत्र पढ़ते ही अक्षय गुस्से से सुलग उठा। घृणा और दुख के आवेग से कांपते अपने शरीर का संतुलन बनाना उसके लिए मुश्किल हो रहा था। अपनी सिसकियों को अपने अंदर जप्त कर जाने कब तक वह यूं ही निःशब्द रोता रहा। पापा का फोन बार-बार आता रहा पर एक बार भी वह उनसे बात नहीं कर पाया। अपनी विवशता को गठरी में बांध फोन बंद कर सोने की कोशिश करने लगा, पर रात भर मां की यादों मे वो बिलख-बिलख कर रोता रहा। 

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गर्मी की छुट्टियां शुरू हो गई थी हॉस्टल करीब करीब खाली हो गया था। काफी सोच-विचार के बाद मन में घृणा, दुख और प्रतिशोध को दिल में दबाकर वह घर के लिए निकल पड़ा था। घर पहुंचते ही दरवाजे पर उसका सामना ४२-४६ वर्षीया महिला से हो गया। जो पूर्ण व्यक्तित्व सादगी और शालीनता से भरी दिखाई दे रही थी। देखते ही वह समझ गया यही उसकी नई मां शकुंतला देवी है। ना जाने क्यों उन्हें देखते ही उसका सारा गुस्सा और प्रतिशोध की भावना मन में अदृश्य हो गई। 




रामू काका से अक्षय का परिचय पा, जो सहजता और आत्मीयता उसके व्यवहार में दिखा, उसमें सौतेलेपन की कोई झलक नहीं दिखाई दी। रामू काका को उसका सामान अंदर रखने और चाय बना लाने के लिए वह जैसे ही उसकी तरफ मुड़ी अक्षय यह सोच कर कि कहीं अपनी इस सौतेली मां के सामने में कमजोर न पड़ जाए, अपने गुस्से को अपनी चुप्पी से प्रकट करता अपना सामान उठाएं कमरे में आ गया। 

उसका चाय नाश्ता रामू काका उसके कमरे में ही ले आए। जब तक वह नहा धोकर बाहर आया, उसके पापा भी आ गए। जैसे ही उन्हें अक्षय के आने का पता चला, बिना एक पल गंवाये वो उसके कमरे में जा पहुंचे। उनके चेहरे पर वही चिर-परिचित मुस्कुराहट थी, जैसे कहीं कुछ बदला ही ना हो। पर अक्षय के अंदर तो एक उथल-पुथल मची हुई थी। पापा का चरण स्पर्श करते हुए पहली बार उसके हाथ कांप रहे थे और आंखें छलक आई थी। उसकी नम और आहत नजरों की शिकायतों ने पापा तो भी कहीं गहरे तक आहत कर दिया था। वह उसकी पीठ थपथपाते उसके करीब आकर बैठ गए। अब तक बना संयम बांध तोड़कर वह निकला। अचानक ही वह पापा के कंधे पर सिर रखकर फूट-फूटकर रो पड़ा। उसके पापा की आंखें भी भर आई थी। थोड़ी देर तक रो लेने के बाद जब अक्षय का मन हल्का हो गया, पापा ने अपनी बातें शुरू की, “तुम यह कैसे बच्चों-सा बर्ताव कर रहे हो? तुम्हारी नई मां के आ जाने से तुम्हारे लिए यहां कुछ भी नहीं बदला है, ना तुम्हारे पापा और ना ही तुम्हारा यह घर। मैंने तो इस सूनसान घर को फिर से हरा-भरा करने की कोशिश की है। इस शादी से तुम्हारी मां की यादें मिटी नहीं है, वह तो मरने के बाद भी इस घर के कण-कण से जुड़ी हुई है। 




पापा कुछ देर के लिए रुके, वह मौन साधे प्रतिक्रियाविहीन बैठा रहा। “यह सही है कि किसी अपने के इस दुनियां से चले जाने पर उसकी जगह कोई दूसरा नहीं ले सकता। फिर भी कोई किसी के जीवन में कितना ही सुंदर स्थान क्यों ना रखता हो, उसके चले जाने से जिंदगी नहीं रुकती। मैं यह नहीं कहता कि अतीत की सुखद यादों को मिटा सिर्फ वर्तमान को ही जियो, पर हमेशा ही कोई आदमी अतीत से चिपका, दुनियां की खुशियों से दूर अकेलेपन भरी जिंदगी नहीं जी सकता। 

सहसा ही वह बीच में बोल उठा था, “पापा पूरे पचास की उम्र में आप… लोग क्या कहेंगे? 

” जिसे तुम पापा की विलासिता और निर्लज्ज मर्यादाहीन आचरण समझ शर्मसार हो रहे हो, दरअसल ऐसी कोई बात है ही नहीं। दुनियां के साथ चलने और अपने सुख-दुख बांटने के लिए हर आदमी को एक भावनात्मक साथ और सहारे की जरूरत होती है। तुमने कभी सोचा तुम्हारी मां को खो देने और तुम्हारे अपनी ही दुनियां में रच-बस जाने के कारण मैं कितना अकेला और असहाय हो गया हूं? वैसे भी इस शादी को करने का फैसला, एक तो जीवन का अकेलापन दूर करना और दूसरा जो सबसे बड़ा कारण था, वह था मृत्युशैया पर पड़े एक वृद्ध व्यक्ति को मुक्ति प्रदान करना।” 

” मैं तो आज तक यही समझता रहा कि तुम मुझे सबसे ज्यादा जानते हो, पर मेरे द्वारा उठाए गए इस कदम ने तुम्हें ही मुझसे दूर कर दिया। मैं सब कुछ सहन कर सकता हूं, पर तुम से दूरी नहीं।”

बोलते बोलते उनका गला रुंध गया। अक्षय की आँखों से अश्रुधारा बह रही थी, पापा का वात्सल्य और प्यार उसके लहूलुहान छाती पर जैसे मरहम लगा दिया। फिर भी दोनों पिता-पुत्र के बीच शांति छाई रही। 

” सुनो बेटा अब तुम आराम करो, शेष बातें बाद में करेंगे।” इतना बोलने के साथ ही पापा उठकर वहां से चले गए थे।

रात को दो बजे तक अक्षय यूं ही करवटें बदलता रहा। उसकी आँखों से नींद लगभग गायब हो चुकी थी। दूसरे दिन अक्षय देर से उठा। जब हाथ-मुंह धो कर नीचे आया तो रामू काका से पता चला कि उसके लिए खाना बना टेबल पर रख उसकी नई मां और पापा दोनों कॉलेज चले गए हैं।




वह खाना खाने बैठा तो सारे खाने उसके पसंद के बने थे। उसने अभी खाना ही शुरू ही किया था कि रामू काका उसके बगल में आ खड़े हुए। “एक बात कहूं बेटा? इसे छोटा मुंह और बड़ी बात मत समझना। यह जो तुम्हारी नई मां है शकुंतला बिटिया, बड़े अच्छे स्वभाव की है। मैं इसे बचपन से ही जानता हूं। यह रमन बाबू की इकलौती बेटी थी जो बड़े कपड़े व्यापारी थे। ये तो जन्म से ही दुर्भाग्यपूर्ण जीवन जीती आई है। छह साल की थी, जब मां स्वर्ग सिधार गई। शादी हुई तो महीना भर बाद ही एक दुर्घटना में पति की मौत हो गई। ससुराल वालों ने अभागन कह कर मायके पहुंचा दिया। तब से यह अपने पिता के पास ही रह रही है। यही उसने अपनी अधूरी पढ़ाई पूरी की। शुरू से ही कुशाग्र बुद्धि तो थी ही, पढ़ाई समाप्त करते-करते तुम्हारे पिताजी के कॉलेज में ही उसे नौकरी मिल गई। 

पहले तो उसके पिता ने उसकी दूसरी शादी के लिए नहीं सोचा, लेकिन जब लंबे समय तक बीमार रहने के बाद उन्हें अपना अंतिम समय स्पष्ट नजर आने लगा, तब सभी आने-जाने वालों के आगे बेटी की शादी के लिए मिन्नते करने लगे। जब तुम्हारे पिताजी इंसानियत के नाते उन्हें देखने गए तो उनका हाथ पकड़ अपनी बेटी से शादी कर लेने के लिए मिन्नतें करने लगे। एक मरते हुए आदमी की अंतिम इच्छा का अनादर तुम्हारें पिता नहीं कर सके और यह शादी उन्हें करनी पड़ी। मेरा तुम से अनुरोध है कि शकुंतला बिटिया को मां के रूप में अपना लो, बड़े दुःख से जीवन जी है। आगे तुम्हारी इच्छा, तुम खुद समझदार हो।” 




रामू काका की बातें खत्म होते ही वह बिना कोई प्रतिक्रिया व्यक्त किए वहां से चुपचाप चला गया। 

एक दिन वह घर के मंदिर में बैठा रहा। अचानक जलता हुआ दीपक जाने कब उसकी कमीज के कोने से जलने लगा। वो चिल्ला-चिल्ला कर मदद की गुहार लगाने लगा वह जलन से तड़प उठा। उसकी चीख सुनते ही उसकी नई मां पल भर में दौड़ती आ गई। स्थिति का आभास होते ही वह बुरी तरह घबरा गई। इससे पहले कुछ अनहोनी होती वो भाग कर सामने पड़े कालीन को उठा कर अक्षय के ऊपर डाल कर आग बुझा देती है और उसकी कमीज हटा देती है और जल्दी से अपना आंचल फाड़ कर ठंडे पानी में भिगो उसके  शरीर पर लपेट देती है रामू काका को मरहम लाने के लिए बोल वह अक्षय का हाथ थामे एक तरह से खींचती हुई मंदिर से बाहर ला उसके शरीर के घाव पर दवा लगाने लगती है। साथ ही उसे डांटते भी जा रही थी। वह चाह कर भी उसका विरोध नहीं कर पा रहा था। ना जाने क्यों उनका वात्सल्य रूपी स्पर्श और डांट उसे अपनी मम्मी की याद दिला गई। 

उस दिन के बाद से वे भले ही चुप रहता था, पर वह उनके प्रेम, अपनेपन और निश्चल स्वभाव का कायल हो गया था। उसे आए हुए पूरे दो हफ़्ते गुजर गये थे। इस दौरान वह हमेशा देखता कि खाली समय में उसकी नई मां खामोशी से उदास बैठी अनंत आकाश में चाँद को निहारती रहती। पापा भी उससे सहमे रहते और देर रात को घर लौटते। 

अक्षय को लगा घर में जो एक चुप्पी छाई है उसका जिम्मेदार कहीं ना कहीं वह खुद ही है। अपनी मम्मी को वह खुद भी बहुत प्यार करता था। उन्हें भूलना उसके लिए आसान नहीं था। वो सुखी था किसी ना किसी तरह। फिर क्यों चाहता है कि पापा उसकी मम्मी की यादों को सीने से लगाए अपने जीवन की उदासियों और आंसुओं में अकेलेपन के दंश को सहते रहे। पचास की उम्र कोई जीवन का अंतिम पड़ाव नहीं होता। पापा को भी तो खुशी-खुशी जीने का हक है। 

उसने खिड़की से झांक कर नीचे देखा तो अभी भी उसकी नई मां आकाश में नजरें गड़ाए उदास होकर चाँद को देख रही थी। उन्हें देख पहली बार उसका मन पछतावा से भर उठा। क्या कमी है उसकी नई मां में? क्या गलती है उनकी, जो वह इस कदर उनका विरोध कर, सबको तनाव में डाले हुए हैं? उनके प्रति मन में प्रति आक्रोश की श्रृंखलाएं जैसे किसी चट्टान से टकराकर बिखर गई। वह बिना समय गवाएं नीचे आ गया उनके पास जाकर बैठ गया। फिर धीरे से बोला “सॉरी मम्मी क्या अब तक की गई मेरी सारी नादानियों के लिए मुझे क्षमा कर मुझे पश्चात्ताप करने का मौका देंगी? मैं आपके साथ बहुत गलत व्यवहार करते रहा, मुझे बहुत पछतावा हो रहा है कि मैं आपकी भावनाओं और प्यार को समझ नहीं पाया। मम्मी मुझे माफ कर दो।” 

उसके व्यवहार से अचंभित, और आनंद मिश्रित स्निग्ध दृष्टि से नई मां उसे निहारने लगी। उनका मलीन चेहरा खुशी से खिल उठा। अक्षय के कम्पित हाथों को थामते ही कई दिनों से मन में उमड़ते-घुमड़ते आंसू आंखों से बहने लगे। उनके आंसू पोंछ थोड़ी ही देर में अपनी बातों से अक्षय ने अपनी नई मां से अच्छी दोस्ती कर ली। जब उसके पापा घर आए तो दोनों मां-बेटे को दोस्तों की तरह घुल-मिल कर बातें करते देख पहले तो आश्चर्यचकित हुए, फिर धीरे से वह भी शामिल हो गए उनके बीच। वर्षों बाद उस घर में घर के सदस्यों की हंसी और खुशीं से घर की दीवारें दिवाली के दियें की तरह जगमगा उठी थी।

#पछतावा

स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित, अप्रसारित कहानी) 

पूजा गुप्ता

मिर्जापुर (उत्तर प्रदेश)

2 thoughts on “नई माँ – पूजा गुप्ता | Real Life Story In Hindi”

  1. बहुत सुन्दर स्टोरी ह्रदय स्पर्शी 👌👌🙏👏👏👏❤️☺️

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