पछतावा – डॉ अनुपमा श्रीवास्तवा

” कहां हो सुधा?”

अमन का फोन है लो बात कर लो” सुधा को हाथ में मोबाइल देते हुए रमेश जी ने कहा ।सुधा सिंक में बर्तन साफ कर रही थी। बेटे का  नाम सुनते ही जल्दी से पल्लू में हाथ पोछा और लपक कर पति के हाथ से मोबाइल ले लिया।

“हाँ बेटा बोल कैसा है तू?”

रमेश जी हंसते हुए बोले-” अरे भाई थोड़ा सब्र करो अभी रिंग ही हो रहा है ।बेटे का नाम सुनते ही पागल हो जाती हो।”

“माँ हूँ मैं! बाप नहीं जो अपने जज्बात को दबा कर रखूं समझे। “

“अच्छा ठीक है भाई ! लेकिन जब माँ- बेटे का आपस में  बात करने से मन भर जाये तो थोड़ा बाप पर भी दया करना कुछ जरूरी बात करना है उससे।” कहते हुए रमेश जी किचन से बाहर निकल आए ।

सुधा आराम से कुर्सी पर बैठ गई और बेटे से कुशल- मंगल पूछने लगी। उधर से अमन एक ही रट लगाए बैठा था कि माँ कब आ रही है…

कब आ रही है।  न खुद तुम आ रही हो और न मुझे छुट्टी मिल पाता है कि मैं आ जाऊँ तुम्हारे पास।  कितने महीने हो गये तुम्हारे हाथ की लिट्टी चोखा खाये हुए और तुम्हारे साथ बैठकर बातें किए हुए। बेटे की बात सुनकर सुधा की आँखें भर आई । उसने पल्लू से आंखों को  पोछा और सहज होने का प्रयास करने लगीं  संयोग था कि आजकल वाली मोबाइल तब नहीं थी नहीं तो माँ की आँखों में आंसू देख अमन  खुद को रोक नहीं पाता और चाहे जैसे भी हो वह माँ के पास पहुंच जाता।

सुधा ने फोन पर ही बेटे के माथे  की तरह प्यार से चूमते हुए कहा बेटा तू फिक्र मत कर अबकी तुम्हारे पिताजी से लड़ाई कर के मैं तुमसे मिलने जरूर आऊंगी।

“माँ तुम सिर्फ दिलासे देती हो आती तो हो नहीं…।”

सुधा ने बेटे को आश्वस्त कर फोन पति को पकड़ा दिया। कुछ देर चुप रहने के बाद सुधा ने पूछा-” क्या बातें हुईं बेटे से? “

अरे,  उसे कुछ जरूरी समान खरीदना है पढाई से संबंधित इसीलिए थोड़े पैसे चाहिए थे।

“हाँ तो भेज दीजिये। जरूरी है तभी तो मांग रहा होगा न!और हाँ भेजना क्या है इस बार हम मिलने जायेंगे तो उसे हाथों हाथ पैसे दे देंगे। “

सुधा हमारे मिलने से ज्यादा जरूरी है उसे पैसे भेजना। तुम्हें पता तो है ही की मेरे पास कोई कुबेर का खजाना नहीं है। अभी जाने की जिद छोड़ दो फिर कभी देखा जायेगा।




सुधा अपने पति की आमदनी जानती थी। घर गृहस्थी के बाद जो भी पैसे बचते उसे वे अमन की पढ़ाई के लिए बचा कर रखते थे। बेटे की हर जरूरतों को वे पूरी करने की कोशिश करते थे। बेटे को किसी भी सूरत में महसूस नहीं होने देते थे कि उसके खर्चे ज्यादा हैं। सुधा मन मसोस कर रह गई। ऐसे ही कितनी बार उसने अपने बच्चे से मिलने की अपनी इच्छाओं को समेट लिया था।

लेकिन चलो कोई मलाल नहीं था बेटे की पढाई पूरी हो चुकी थी और वह एक अच्छा इंजीनियर बन गया था। अब पैसों की कमी नहीं होती थी उसे। उसने पिता को मना कर दिया था कि अब वे पैसे ना भेजें।

पिछली बार जब वह घर आया था तो उसने माँ को कहा था कि-” माँ अब मैं  सेटल हो गया हूँ।तुम  कोई कंजूसी नहीं करोगी , और जब भी तुम्हारा मुझसे मिलने का जी करे बस एक कॉल करना सारा इंतजाम कर दूँगा।

“अच्छा ठीक है बेटा पहले एक अच्छी सी बहू लाकर तेरा घर तो बसा दूँ फिर बहू को देखने के बहाने बार तेरे पास आऊंगी।”

सुधा ने सैकड़ों ल़डकियों में से एक सुंदर सलोनी सी लड़की देखकर बड़े प्यार से बेटे की शादी कर दी। कुछ दिन रहने के बाद बहू ने पति के पास जाने की इच्छा जाहिर की।  सुधा ने ही दबाव डालकर उसे बेटे के साथ भेज दिया और आश्वस्त किया कि वह उनलोगों के पास आती रहेंगी।

तीन  महीने पहले की ही बात है अचानक से माँ ने फोन किया कि बेटा  मैं तुम्हारे पिताजी के साथ वहां आना चाहती हूँ। संयोग से अमन ने पत्नी के साथ कहीं बाहर घूमने का प्रोग्राम बना लिया था सो माँ को मना कर दिया। सुधा मन मसोस कर चुप हो गई ।

कुछ दिन बाद अमन ने माँ को दादी बनने की खुशखबरी दी। सुधा को खुशी का ठिकाना नहीं था। उसने कहा -“बेटा तू चिंता मत करना। बहू को कहना कोई भारी काम ना करे मैं आ जाऊँ क्या?”

अमन ने हंसते हुए कहा-“माँ तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं है तुम्हारी बहू की छोटी बहन और माँ आ रहीं हैं।तुम बच्चे के जन्म के समय पापा के साथ आना। “

“सुधा ने अपने मन को समझा लिया। रमेश जी खीझ कर बोले-” अजीब बात है पहले नहीं आने के लिए तुम्हें नसीहत देता था और अब तुम जाने के लिए तैयार होती हो तो रोक देता है।”




सुधा जी  बेटे का पक्ष लेते हुए बोली -”  ठीक ही तो कह रहा है बेचारा वह नहीं चाहता है कि मैं परेशान हो जाऊँ। इसीलिए बहू ने माँ को बुला लिया है। मैं जाऊँगी न जब पोता या पोती आने वाली होगी। “

एक दिन जब वह पूजा पाठ करने में लगी थी तभी रमेश जी भागे हुए आए और बोले सुधा मैं दादा बन गया!”

सुधा मारे खुशी के उछल गई और बोली आप ऐसे क्यूँ कह रहे हैं जी मैं भी तो दादी बन गई चलिए जल्दी जल्दी समान पैक करने में मदद कीजिए हमें जाना होगा ना। “

“कहां जाने की तैयारी करोगी सुधा, बहू अपने माता-पिता के पास मायके में है। डिलेवरी वहीं हुई है। अब जब समधी समधन बुलावा भेजेंगे तभी तो हम वहां जाएंगे न।”-रमेश जी ने मायूस होकर कहा ।

सुधा एकदम से शिथिल हो गई। उसने कुछ नहीं बोला। उसके अंदर कुछ चटकता सा महसूस हुआ लेकिन जाहिर नहीं होने दिया और रमेश जी से नजरें चुराते हुए पूजा घर में चली गई।

समय बीता अमन पत्नी और बच्चे के साथ गाँव आया। सुधा बहुत खुश थी। कम ही दिन में उसे  अपने पोते से लगाव हो गया था। उनके जाने का भी समय आया सुधा की इच्छा थी कि वह  पोते के साथ जाती पर बेटे या बहू ने साथ चलने के लिए एक बार भी नहीं कहा और चले गए।

एक हूक सी उठ गई थी सुधा के मन में । सुधा की तबीयत खराब रहने लगी थी। रमेश जी ने कहा भी कि बेटे के पास चलते हैं पर सुधा ने न जाने  क्यूँ मना कर दिया।

अमन ने अपना नया फ्लैट ले लिया और  माँ को फोन कर कहा -” माँ तुम आना चाहो तो यहां आ सकती हो। कहो तो टिकट  भेज दूँ?”

सुधा ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी तब वह पिता से पूछ बैठा-” “पिताजी मेरे फ्लैट लेने से माँ खुश नहीं है क्या?”

वह कुछ  बोलीं नहीं!

  पिताजी यहां जगह ही जगह है। जितने दिन चाहे माँ यहां रह सकती है।”

“बेटा तेरी माँ को तुम्हारे बड़े फ्लैट में नहीं तेरे दिल में जगह चाहिए थी। उसकी बहुत इच्छा थी तेरे पास जाने की  लेकिन तुमनें हर बार उसे रोका । अब तो तेरे पास वह क्या ही जायेगी। “




“क्यूँ पिताजी?”

महीने दिन पहले उसे अटैक आया था। बच तो गई। पर बेचारी अब चल फिर नहीं सकती है। किस्मत ने उसे कमरे तक सीमित कर दिया है ।

“क्या कहा… माँ को अटैक आया था!आपने मुझे बताया भी नहीं!”

“तूने सुना ही कहां!”

फोन पर मेरे बोलने से पहले ही तुमने ऑफिस  जल्दी जाने की बात कह फोन रख दिया था ।

अमन पिता की बात सुनकर स्तब्ध रह गया। आप यह क्या कह रहे हैं ? माँ को अटैक आया था ! और मुझे  पता भी नहीं। यह कहते हुए पश्चात्ताप से उसकी आवाज भर्रा गई।

रमेश जी ने गहरी सांस लेते हुए कहा -” बेटा अब पछताने से क्या लाभ ! माँ के लिए तुम्हारे पास  दो पल नहीं थे। 

अपनी  सारी इच्छाओं को न्यौछावर कर तुम्हें वहां तक पहुंचा दिया। हमें कोई पछतावा नहीं है हमने माँ -बाप होने का फर्ज निभाया है। तुम जहां रहो आबाद रहो।

स्वरचित एंव मौलिक

डॉ अनुपमा श्रीवास्तवा

मुजफ्फरपुर, बिहार

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