जीवन का सच
“सच में मैं तंग आ चुकी हूं नीलू, लगता है कहीं भाग जाऊं या फिर कुछ कर लूं। कितना भी कर लूं इन लोगों के लिए इनकी तसल्ली ही नही होती। क्या क्या न किया मैने इनके लिए पर इन्होंने क्या किया मेरे साथ, मेरे गहने तक रख लिए, कहीं आना जाना नही सारा दिन बस गधे के समान जुटे रहो। एक कप चाय का भी मैं अपनी मर्जी से नहीं बना सकती । सच्ची छह सालों में इन लोगों ने मुझे खून के आंसू रूला दिए हैं । अब तो लगता है कि ईश्वर से बोलूं कि हैं ये लोग कभी सुखी…..” अभी मेरी बात पूरी भी नही हुई थी कि नीलू ने एकदम मेरे मुंह पर अपने हाथ रख दिया। मैं अवाक रह गई । ” कुछ भी बुरा मुंह से मत निकालना अनु। अभी तुम गुस्से में हो पर शांति से काम लो। ये दिन भी निकल जायेंगे। सब दिन एक जैसे नहीं होते।” “ये तुम कह रही हो नीलू, अपना समय भूल गई क्या ? क्या क्या नही गुजरा तुम्हारे साथ? शायद तुम भूल गई कि एक बार रो रोकर तुम मेरे सामने ही कह रही थी कि घिसट घिसट कर मरेंगे ये…” ” हां….कहा था याद है मुझे अनु, इसीलिए अब तुम्हे रोक रही हूं। जो गलती मैने की है मैं नही चाहती वो तुम भी करो। कहते है ना ईश्वर आपकी हर इच्छा पूरी करता है बस अपनी इच्छा भी साथ में जोड़ देता है । मेरी सास तीन साल तक बिस्तर पर पड़ी रही। बेड सोर हो गए थे, ऊपर नीचे तक नलियां लगी हुईं थी । ना दिन का पता होता होता था न रात का बस सांसों के उतार चढ़ाव से पता चलता था कि हां अभी हैं। पर भुगत कौन रहा था मैं और पतिदेव। अब इतने पत्थर दिल हम दोनों ही ना थे कि उन्हें उनके हाल पर छोड़ देते। पर जब तक वो रहीं, चाहे अब वो कहने सुनने की सीमा से परे थीं पर सांसे तो थी ना। हमारी जिंदगी ही जैसे थम सी गई थी। न कहीं आना जाना, ना कोई तीज त्योहार की खुशी, ना कहीं जाने का उत्साह बस एक बंधी बंधाई जिंदगी जी रहे थे हम। पिताजी की याद है ना तुम्हें, उन्हे बस अपने से मतलब होता था मेरी हर ख्वाहिश पूरी होनी चाहिए बस इसी भागा दौड़ी में दिन बीत रहे थे। और फिर एक दिन मैं जब बैठी हुई सब बातों का लेखा जोखा कर रही थी कि कहां मुझसे क्या गलत हुआ और बिजली सी कौंधी दिमाग में कि यही सब की कामना तो की थी मैंने इनके लिए … ईश्वर ने पूरी की पर कैसे…साथ में मैं भी तो घिसट रही हूं। तब समझ में आया कि ईश्वर से किसी के लिए भी चाहे वो तुम्हारा दुश्मन ही क्यों न हो, बददुआ मत मांगो। दुख देना, सुख देना ऊपर वाले के हाथ में है तो फिर हम उससे मांग कर अपने लिए क्यों कांटे बो देते हैं। इसीलिए तुम्हे भी कह रही हूं बस यही बोलो ईश्वर जो तुम्हे मंजूर हो, जो सबके लिए अच्छा हो वही कर” कहते हुए नीलू रोने लगी और मैं किंकर्तव्यविमूढ़ हो गई । कानों में नीलू की आवाज गूंज रही थी कि किसी के लिए भी बददुआ मत मांगो ये न हो तुम्हारी इच्छा पूरी हो जाए पर फिर खून के आंसू तुम्हे ही पीने पड़ें।
शिप्पी नारंग
नई दिल्ली
खून के आंसू
राघव अभी एक महीना पहले ही इस सोसाइटी मे आया था इतने दिनों मे वो यूँ तो सोसाइटी के लोगो को नही जान पाया था पर ठीक उसके घर के सामने वाले घर मे रहने वाली विपुल जी से थोड़ी बहुत राम राम हो जातीे थी। आज उसकी छुट्टी थी वो अपने कमरे मे सोया था की बाहर शोर हुआ। उसने खिड़की से झाँक कर देखा।
” साहब पचास रूपए हुए और आप बीस दे रहे है बस !” एक रिक्शा वाला विपुल जी से बोल रहा था।
” इतना काफी है लेना है ले वरना जा यहां से !” विपुल जी चिल्ला कर बोले । रिक्शा वाला बेचारा काफी देर गिड़गिड़ाने के बाद उदास सा बीस रूपए ले चला गया।
” नही नही मैं इसके पच्चीस रूपए से ज्यादा नही दूँगा देना हो तो दे वरना सोसाइटी का गेट तेरे लिए बंद हो जायेगा !” अगली सुबह विपुल जी एक तरबूज वाले से झगड़ रहे थे। राघव अक्सर देखता था विपुल जी को हर गरीब से मोल भाव करते।
” विपुल जी एक बात कहूँ …किसी गरीब की खून पसीने की कमाई मार उसे खून के आँसू रुलाना बहुत बड़ा गुनाह है जिसकी शायद कोई माफ़ी नही !” ये बोल राघव ने गरीब तरबूज वाले को सौ का नोट दे दिया।
विपुल जी के लिए उस तरबूज को उठाना मुश्किल हो रहा था अब क्योकि उसके साथ किसी गरीब की आहों और राघव के एहसान का बोझ भी लद गया था।
वाह क्या सोच है मेरे देश के लोगो की
गरीब का बीस रुपया भी महंगा लगता है
और जीभ के स्वाद को तृप्त करने के लिए
500 रूपए का पिज़्ज़ा भी सस्ता लगता है।
आपकी दोस्त
संगीता अग्रवाल ( स्वरचित )
खून के आंसू बहाना
वृद्धाश्रम के दरवाजे पर रोज एक कार आकर लगती थी। उस कार में से एक नौजवान उतरता और एक बुढ़ी महिला के पास जाकर बैठ जाता। एक आध घंटे तक दोनों के बीच कुछ वार्तालाप चलती फिर वह उठकर चला जाता। यह प्रक्रिया अनवरत चल रही थी। धीरे-धीरे सबको पता चल गया कि बुढ़ी महिला उस नौजवान की माँ हैं।
आज फिर वह सुबह से आकर बैठा था और बार -बार माँ के पैर पकड़ माफ़ी मांग रहा था। दूर बैठे वृद्धाश्रम के गेट कीपर को रहा नहीं गया वह एक बुजुर्ग से बोला-” लोग कहते हैं कि औलाद की नीयत बदल जाती है पर यहाँ का दृश्य तो कुछ और ही कह रहा है। “
बुजुर्ग ने कहा-” ऐसा नहीं है भाई कि जो तुम्हारी आँखें देख रही हो वह सही हो। कोई बात तो जरूर होगी तभी लोग वृद्धाश्रम के दरवाजे तक आते हैं। “
जब वह चला गया तो दरबान उस बुजुर्ग महिला के पास पहुंचा। हाल- चाल पूछने के क्रम में वह पूछ बैठा- -“ताई आपसे मिलने जो लड़का आता है वह आपका बेटा है न!”
बुढ़ी थोड़ी सकुचाते हुए हाँ में सिर हिलाकर चुप हो गईं। दरबान आगे बात बढ़ाते हुए बोला -“ताई बड़ा भला है आपका बेटा। कितनी मिन्नतें करता है। क्या आपको यहां से ले जाना चाहता है?”
बुढ़ी महिला ने एक बार फिर हाँ में सिर हिलाया। तब तक कुछ और बुजुर्ग महिला पुरुष उन दोनों के इर्द-गिर्द आकर खड़े हो गए।
एक बुजुर्ग ने अपने को अनुभवी साबित करते हुए कहा-” कहते हैं कि औरत वसुधा की तरह धैर्यवान होती है। लेकिन आपको देखकर ऐसा नहीं लगता है। “
बुजुर्ग महिला सबकी बातें सुन रही थी पर किसी को कोई जबाव नहीं दिया ।
एक ने कहा-” अब जमाना बदल गया है भाई सहनशीलता बीते दिनों की बात हो गई अब महिला और पुरुष में कोई अन्तर नहीं है। सबको आजादी चाहिए। किसी को माँ बाप से और किसी को अपने बच्चों से! “
पुरुष की अंतिम वाक्य सुनकर बुजुर्ग महिला की आँखें भर आईं। फिर भी कुछ नहीं बोला उन्होंने।
अगले दिन फिर कार आकर खड़ी हो गई वृद्धाश्रम के दरवाजे पर। इस बार उस नौजवान के साथ एक महिला अपने गोद में एक छोटे बच्चे को लेकर खड़ी थी। दोनों एक साथ सामने मिन्नतें करने लगे। महिला ने अपने बच्चे को उनकी गोद में रख दिया और पांव पकड़ कर गिड़गिड़ाते हुए बोली-” माँजी हम दोनों को माफ कर दीजिये और अपने घर चलिये। आपको अपने पोते की कसम!”
दरबान को रहा नहीं गया बोला-” बेटा तुम्हारी माँ नहीं जाना चाहती तो क्यूँ जबरदस्ती ले जाना चाहते हो। तुम लोग जैसे औलाद भगवान सबको दे। वर्ना आजकल के बच्चे जानबूझकर माँ बाप को वृद्धाश्रम में छोड़ जाते हैं। “
इस बार बुजुर्ग महिला का धर्य टूट गया आंखों से आंसुओं की धारा बह चली। अपने आंचल से आंसुओं को रोकते हुए बोलीं-” आप शायद नहीं जानते दरबान जी! पति के दुनिया से जाते ही मेरा सारा जमा पूंजी इनलोगों ने ले लिया। रोज एक रोटी के लिए मुझे घन्टों इंतजार करना पड़ता था। खड़ी खोटी सुनाकर रात -रात भर खून के आंसू रुलाया है इनलोगों ने। अंत में मुझे घर से चले जाने को कहा। आप सब बताईये की मैं कहां जाती। आज भी कोई माफी मांगने नहीं आये हैं ये लोग दरअसल इन्हें बच्चे को सम्भालने के लिए एक आया चाहिए इसीलिए यह नाटक आपके सामने दिखा रहे हैं।”
स्वरचित एंव मौलिक
डॉ अनुपमा श्रीवास्तवा
मुजफ्फरपुर, बिहार
खून के आंसू” – बीना शर्मा
ये जो ऊपर वाला है ना कभी भी हिसाब में गड़बड़ी नहीं करता
निर्मला आज सुबह से ही नहा धोकर मंदिर में पूजा करके नए कपड़े पहन कर अपने बेटे बहु के साथ उनके नए मकान में जाने के लिए तैयार बैठी थी बेटे का मकान बनवाने के लिए उन्होंने अपने गहने बेचकर जो पूंजी मिली थी सब बेटे को यही सोचकर थमादी थी कि बुढ़ापे में आराम से शहर में बेटे बहु के साथ रहेंगे परंतु, यह क्या बेटे बहू तैयार होकर गाड़ी में बैठ गए उन्होंने निर्मला और अपने पापा से एक बार भी नहीं कहा कि आप भी हमारे साथ नए घर में चलो शायद बेटे बहू जल्दबाजी में मुझसे और अपने पापा से साथ चलने के लिए कहना भूल गए होंगे यह सोच कर निर्मला खुशी से बेटे के पास गई और उससे चहकते हुए बोली” बेटा हम दोनों भी चले।”
यह सुनकर बेटा शातिर हंसी हसते हुए बोला” मम्मी आप यहीं पर रहो अभी मकान पूरा नहीं बना है जब पूरा बन जाएगा तब मैं आपको और पापा को शहर ले जाऊंगा” यह कहकर वह गाड़ी स्टार्ट करके शहर की ओर रवाना हो गया था बेटे की बात सुनकर निर्मला खून के आंसू रो दी थी यह देख कर उसके पति बोले” रोती क्यों है? तुमने भी तो मम्मी पापा के साथ ऐसा ही किया था जब तुम वर्षों पहले मेरे साथ यहां नए मकान में रहने के लिए आई थी पापा ने उस वक्त अपनी जमीन बेच कर हमें पैसे इसलिए दिए थे कि बुढ़ापे में वह दोनो हमारे साथ रहेंगे परंतु, जब मकान बनकर तैयार हो गया और मम्मी पापा हमारे साथ नये मकान में चलने के लिए उतावले थे तभी तुमने मम्मी से यह झूठ कहकर साथ चलने से इनकार कर दिया था “कि अभी आप दोनों का कमरा बना नहीं है जब बन जाएगा हम आप दोनों को नए मकान में ले जाएंगे हमारे मकान में कमरे तो बहुत सारे थे परंतु ,तुम उन्हें अपने साथ रखना नहीं चाहती थी इसलिए तुमने उनके कमरे का बहाना लेकर झूठ बोला उस वक्त मम्मी पापा का दूखी चेहरा देखकर मैं बहुत दुखी हुआ था दुखी मन से मैंने तुम्हें बहुत समझाया था परंतु, तुमने मुझे तलाक की धमकी देकर चुप रहने पर मजबूर कर दिया था।”
बेचारे दोनों अपने कमरे की बाट देखते देखते स्वर्ग सिधार गए परंतु,उनका कमरा आज तक नहीं बना ये जो ऊपर वाला है ना कभी भी हिसाब में गड़बड़ी नहीं करता जो जैसा कर्म करता है वह वैसा ही फल भोगता है तुमने मम्मी पापा को खून के आंसू रूलाए आज तुम्हारा बेटा तुम्हें खून के आंसू रूला गया है “पति की बात सुनकर निर्मला अपनी गलती पर शर्मिंदा हो गई थी।
बीना शर्मा
बस अब और खून के आंसू नहीं रुलायेगा तू बहू को – मीनाक्षी सिंह
अंदर से जोर जोर से बहू के रोने की आवाज आ रही थी ,खिड़की से झांककर देखा रमेशजी (ससुर ) और मधुजी (सास ) ने तो
गिड़गिड़ाने लगे -छोड़ दे बहू को नीरज (बेटा ) ! मर जायेगी वो और कितना मारेगा उसे बेल्ट से ! मधुजी सिस्कियां भरती हुई बोली !
माँ जी ,पापा जी बचा लिजिये ,मुझे मार डालेंगे ये ! तब तक कमरे में सोया पांच साल का मासूम पोता जय उठा ! पापा को रोकने लगा – क्यूँ मारते हो मेरी मम्मी को रोज ! मैं तुम्हे मार ड़ालूंगा ! छोटा सा मासूम बच्चा अपनी माँ की ऐसी हालत नहीं देख पा रहा था ! पर जैसे ही उसके बाप ने उसे गुस्से से लाल आँखों से पलट कर देखा तो बेचारा जय सहम गया ! जल्दी से दरवाजा खोल बाहर आया ! अपने दादू से चिपक गया !
तभी जल्दी से मधुजी और रमेशजी ने नीरज के हाथ से बेल्ट ली ! पता नहीं आज 65 वर्षीय रमेशजी में कहाँ से इतनी ताकत आ गयी ! उसी बेल्ट से अपने बेटे पर प्रहार करने लगे – कितनी बार बहू से कहाँ इस हैवान को छोड़कर चली ज़ा ,क्यूँ सह रही हैँ इतनी तकलीफ ,पर बहू को ऊपर वाले ने पता नहीं किस मिट्टी का बनाया हैँ वो अपने बेटे और हम दोनों असहाय लोगों की खातिर यह सोचकर सहती रही – शायद उसकी पूजा का फल उसे मिल जायें – ये राक्षस सुधर जायें ! पर अब नहीं ! रमेशजी बेटे पर प्रहार करते हुए दहाड़ते रहे !
जी ,मेरी परवरिश में ही शायद कोई कमी रह गयी तभी एक ही बेटा वो भी हाथ से निकल गया ! कब गलत संगत में पड़ गया ! रोज का शराब पीना ,बहू को गलत काम के लिए घसीटकर ले जाना ,छोटे से मासूम को भी नहीं छोड़ता ये पापी ! उसे भी मार मारकर सुखा दिया हैँ ! मधुजी अपनी साड़ी से अपना मुंह दबाती हुई बोली !
पर अब नहीं मधु ,अब ये पापी हमारी फूल सी बहू को खून के आंसू नहीं रुलायेगा ! बुढ़ा ज़रूर हो गया हूँ पर अभी भी अपने परिवार को पालने की ताकत रखता हूँ ! निकल जा कमीने इस घर से ! दुबारा इस घर में पैर मत रखना ! रमेश जी ने धक्का देकर अपने एकलौते बेटे को घर से बाहर निकाल दिया !
दोनों बुढ़े माँ बाप किसी तरह खुद को संभालते हुए एक दूसरे को पकड़ सिस्कियां भरते रहे ! बहू भी आकर दोनों के पैर पड़ गयी ! मधु जी ने बहू को उठा सीने से लगा लिया !
पूरा मोहल्ला रमेशजी और मधु जी के फैसले पर अाश्चर्य में पड़ गया ! एक 80 वर्षीय बुढ़िय़ां भीड़ से निकलकर आयी और जोर से ताली बजाती हुई बोली – काश इतनी हिम्मत मैने भी की होती तो शायद आज मेरी बहू फांसी पर ना झूलती !
उस दिन की बात है और आज की ! मधुजी ,रमेशजी बहू पोते के साथ रह रहे हैँ और अपनी बहू रूपी बेटी के लिए एक योग्यवर की तलाश कर रहे हैं !
मीनाक्षी सिंह की कलम से
खून के आँसू रुलाना – रश्मि सिंह
दीप्ति-दीदी मुझे यहाँ से ले जाओ, रोज़ रोज़ ताने सुन सुनकर मैं थक गई हूँ, मेरी कोख नहीं ठहरती तो इसमें मेरी क्या गलती। यहाँ सब सौरभ (दीप्ति का पति) की दूसरी शादी का सोच रहे है दीदी मुझे इसमें भी दिक़्क़त नहीं है पर सौरभ मुझसे तलाक़ ना ले।
शैली (दीप्ति की दीदी)-तुम पागल हो क्या अपने पति की दूसरी शादी से तुम्हें कोई एतराज़ नहीं, अगर कोई कमी सौरभ में होती तो क्या तुम दूसरी शादी कर लेती।
दीप्ति-पर दीदी रोज़ रोज़ खून के आंसू बहाने से अच्छा है इस समस्या का कुछ हल मिल जाए।
शैली (दीप्ति की दीदी)-हाँ तो इसका एक हल किसी बच्चे को गोद लेना भी है।
दीप्ति-दीदी, मम्मी नहीं मानेंगी कि कौन सी जात, कुल और नक्षत्र का है।
शैली उस वक़्त बात को विराम देकर फ़ोन रख देती है और अपनी कोख में पल रहे 6 महीने के बच्चे पर हाथ फ़ेरकर कहती है क्यों ना तू अपनी मासी माँ की गोद को भर दे।
शैली (फ़ोन पर)-दीप्ति, मेरी बहन तेरी सभी समस्याओं का निवारण हो गया, तू माँ बनने वाली है।
दीप्ति-दीदी क्यों जले पर नमक छिड़क रही।
शैली-सच में जो मेरी कोख में पल रहा है वो तेरी संतान होगी, अब तो तेरी सासु माँ को भी कोई दिक़्क़त नहीं होगी।
दीप्ति-ये क्या कह रही हो दीदी, जीजा जी को गये कितने दिन हुए है, उनके जाने के बाद अब ये संतान ही तो आपका सहारा है।
शैली-तू तो मेरी बीमारी का जानती ही है कब इस दुनिया को अलविदा कह दूँ कुछ पता नहीं, पर मेरे जाने के बाद बच्चे को तो मम्मी पापा दोनों का प्यार मिलेगा।
दीप्ति-दीदी मैं आपको बता नहीं सकती कि आपने क्या कह दिया मुझसे। दुनिया की सारी ख़ुशियाँ दे दी मुझे।
दीदी मैं आपको थोड़ी देर में कॉल करती हूँ सौरभ को तो ये ख़ुशख़बरी सुना दूँ।
आज एक साथ दो माएँ खुश थी, एक संतान को पकड़ और एक संतान को देकर।
स्वरचित एवं अप्रकाशित।
रश्मि सिंह
लखनऊ।
खून के आँसू रुलाना – के कामेश्वरी
सुरेश चंद्र जी की मृत्यु की खबर पूरे फ़्लैट में आग की तरह फैल गई थी । सब की जुबान पर एक ही बात थी कि कितने अच्छे इन्सान थे । वे रोज़ मंदिर जाते थे । अपने जन्मदिन पर मंदिर के पुजारियों को कपड़े बाँटते थे और तो और ज़रूरतमंदों की सहायता करते थे,तभी तो ईश्वर ने उनको इतनी अच्छी मौत दी है ।
हाँ देखिए तो सुबह ही वॉकिंग करते हुए मुझे दिखाई दिए अब दुनिया में नहीं रहे ।
उनकी पत्नी ने बताया था कि उन्होंने नाश्ता किया और पत्नी से जूस माँगी और वह जब जूस लेकर आई थी तो वे गुजर गए थे उनकी साँसें रुक गई थी ।
जितने लोग उतनी बातें । कहते हैं कि मरे हुए व्यक्ति की सब तारीफ़ ही करते हैं ।
पत्नी सरस्वती के पास आकर भी सबने कहा आपके पति तो बहुत ही अच्छे थे । इतने दयालु और मन में भक्ति भावना से परिपूर्ण व्यक्तित्व वाले व्यक्ति तो बहुत ही कम देखने को मिलते हैं । आप खुशनसीब हैं कि ऐसे महान व्यक्ति के साथ जीवन बिताने का अवसर मिला है ।
सरस्वती ने सबको आँसू भरी आँखों से देखा और सोचा आप लोग कितने भोले भाले हो ।जो सुरेश चंद्र की तारीफ़ करते हुए नहीं थक रहे हो ।
मुझसे पूछो कि वह किस तरह का इंसान है । मैंने कितने जुल्म सहे हैं । उसके साथ ज़िल्लत भरी ज़िंदगी गुजारी है । नफ़रत भरी आँखों से सुरेश चंद्र के पार्थिव शरीर को देखते हुए सोचती है कि इस आदमी ने तो मेरा जीवन ही नरक बना दिया था । इसने मुझे और मेरे बच्चों को खून के आँसू रुलाया था ।
वह महानता की आड़ में एक भेड़िया था ।
पचयासी साल की उम्र में भी उसने लाखों रुपये औरतों में लुटाए थे । उसे अपना पुरुष होने का घमंड था । उसकी इन हरकतों से मैं वाक़िफ़ होती तब तक लाखों रुपये पानी में डूब गए थे । वह तो बच्चों को सही समय पर जानकारी मिल गई थी तो जल्दी से उनके बैंक अकाउंट को सील कर उन पर पाबंदी लगा दी थी ।
मैंने इस आदमी की डर से अपनी बेटी की उन्नीस साल में ही करा दी थी ।उसे समझाया कि बेटी शादी के बाद पढ़ लेना ।अपने पिता को तो तुम जानती ही हो ना ।उसने मेरी बात का मान रखा और शादी कर ली इसलिए आज वह खुश है । मेरे बेटे को तो इस आदमी ने बेबात पर डाँटकर मारकर ढीठ बना दिया था और वह पिता के अत्याचार न सह सकने के कारण घर से भाग गया था ।
आज जब सब उस व्यक्ति की तारीफ़ कर रहे थे तो सरस्वती के चेहरे पर उदासी नहीं मुस्कान आ गई थी।
उसे लग रहा था कि मेरे जीवन में जो ग्रहण लगा था वह आज छूट गया है । अब अच्छे से सर धोकर नए जीवन की शुरुआत करूँगी ।
स्वरचित
के कामेश्वरी
निरूपम न्याय – गीता वाधवानी
सामूहिक बलात्कार की पीड़िता के गरीब माता-पिता जज साहब के सामने हाथ जोड़कर ,न्याय की गुहार लगा रहे थे। अपनी बेटी की शारीरिक और मानसिक हालत देखकर वे खून के आंसू रो रहे थे। जज साहब ने स्वयं भी उसकी हालत का जायजा लिया था।
जज साहब ने सारे सबूत उन सातों वहशी दरिंदों के खिलाफ पाए। उन्होंने कहा-“सारे सबूतों को देखते हुए इन सातों को फांसी की सजा नहीं दी जा सकती। (इतना सुनते ही उन सातों के बीच खुशी की लहर दौड़ गई) जज साहब ने आगे कहा-इन सब को पुलिस की निगरानी में ऑपरेशन द्वारा नपुंसक बना दिया जाए और स्त्री हार्मोन के इंजेक्शन लगाए जाएं।”
इतना सुनते ही अपराधियों के होश उड़ गए और वे चिल्लाने लगे-” जज साहब दया कीजिए, हमें फांसी दे दीजिए।”
जज साहब सोच रहे थे कि अब तुम जब तक जीवित रहोगे खून के आंसू रोते रहोगे क्योंकि तुम इसी लायक हो और शायद इस न्याय से दूसरे लोग भी सबक ले सकें। जनता इस निरुपम न्याय पर तालियां बजा रही थी।
स्वरचित काल्पनिक गीता वाधवानी दिल्ली
कुंठित मानसिकता – विभा गुप्ता
” बहू, पवन को तुम ही खाना खिला देना, छोटी की तबियत ठीक नहीं है।” कामिनी देवी ने अपनी बड़ी बहू सुनयना को आदेश दिया तो दिनभर के काम से थकी सुनयना ने बुझे मन से कहा, ” जी, माँजी ” और रसोई का काम समेटने लगी।
सुनयना जब से इस घर में दुल्हन बनकर आई है, कामिनी देवी ने कभी उससे सीधे मुॅंह से बात नहीं की।उसके काम में कमी निकालना उनकी आदत थी।उसे बहुत बुरा लगता था, वह सास को प्रसन्न करने की हर कोशिश करती लेकिन कोई फ़ायदा नहीं होता। तब ससुर उसे समझाते कि तुम्हारी दादी सास ने तुम्हारी सास को बहुत परेशान किया था,उन्हें खून के ऑंसू रुलाये थें इसीलिए वो थोड़ी चिड़चिड़ी हो गईं हैं।धीर-धीरे सब ठीक हो जाएगा।
घर में छोटी बहू भी आ गई लेकिन कामिनी देवी का अपनी बड़ी बहू के साथ पहले जैसा ही व्यवहार रहा।छोटी बहू के साथ तो वो बहुत मीठा बोलती, उसे आराम कहने को कहती और छोटी का काम भी सुनयना के सिर पे मढ़ देती जो सुनयना के लिए बहुत दुखदायी होता।आज भी उन्होंने उसे कहा कि तुम्हारा देवर पवन देर से आयेगा, तुम ही खाना खिला देना तो वह चाहकर भी मना नहीं कर पाई। एक सड़क दुर्घटना में सुनयना के पति और ससुर की मृत्यु हो गई।अब तो कामिनी देवी यही कहती रहती कि मेरे पति और बेटे को खा गई, सुनकर सुनयना को असीम पीड़ा होती, वह रोती रहती तो उसका बेटा कहता, ” माँ, मैं आपके सब दुख दूर कर दूॅंगा।।
समय बीतता गया लेकिन सुनयना की दिनचर्या में कोई परिवर्तन नहीं आया। ढ़लती उम्र में काम के बोझ से वह बीमार रहने लगी तब एक दिन उसका बेटा कड़े शब्दों में कामिनी देवी से बोला, ” दादी, आपने मेरी माँ को बहुत परेशान किया है लेकिन अब नहीं, मैं उन्हें अपने साथ ले जा रहा हूँ। “
कामिनी देवी अकड़ कर बोलीं, ” ले जा, मेरे लिए तो छोटी बहू ही सब कुछ है।” सुनयना के जाने के बाद अब वे छोटी बहू से यह उम्मीद करने लगी कि वह घर संभालेगी लेकिन छोटी बहू को क्लब-पार्टी से फुर्सत कहाँ।एक दिन काम की थकान से चूर कामिनी देवी ने छोटी बहू से चाय बनाने को कहा तो उसने दो टूक शब्दों में जवाब दिया, ” घर के काम करना आपकी ज़िम्मेदारी है, मेरी नहीं। ” सुनकर वे अवाक् रह गईं।उन्हें अहसास हुआ कि कुंठित भावना से ग्रसित होकर उन्होंने अपनी बड़ी बहू को खून के ऑंसू रुलाए थें, उसी का परिणाम है कि आज छोटी बहू उन्हें खून के ऑंसू रुला रही है।
विभा गुप्ता
खून के आँसू रुलाना” – ऋतु अग्रवाल
“मम्मी जी! अब तो रोहन की शादी को कुल दस दिन ही रह गए हैं।पापा-मम्मी कब से बुला रहे हैं।जबकि इकलौती बहन होने के नाते मुझे शादी की तैयारियों में हाथ बँटाना चाहिए था पर पापा के बार-बार बुलाने के बाद भी मैं वहाँ नहीं जा पाई। पापा मुझे लेने भी आए पर आपने मना कर दिया पर अब मैं अपने मायके जाना चाहती हूँ और फिर मुझे अपनी भाभी की मुँह दिखाई के लिए तोहफ़ा भी तो खरीदना है। आप मुझे उसके लिए रुपये दे दीजिए। मंयक ने आपसे पैसे लेने के लिए बोला है।” बात खत्म करते-करते साक्षी की आँखों में आँसू आ गए।
“देखो, साक्षी!पहली बात तो यह है कि हमारे यहाँ मायके में तोहफ़े दिए नहीं जाते बल्कि मायके वाले अपनी बेटी और उसके ससुराल वालों को उपहार देते हैं तो उपहार के लिए रुपए तो तुम भूल जाओ और क्या मायके की रट लगा रखी है,भाई की शादी है तो इतने दिन पहले जाने की क्या जरूरत है?” सावित्री चिड़चिड़ा गई
“पर तब से तो आप यही कह रही थी कि आठ-दस दिन पहले चली जाना। फिर अब क्यों मना कर रही हैं आप? और भाभी के लिए मैं बिना उपहार लिए जाऊँगी तो वहाँ सब को कैसा लगेगा?” साक्षी रो पड़ी।
“मुझसे ज़बान लड़ाती है। कह दिया न कि सगाई वाले दिन मयंक के साथ चली जाना और तेरे फटीचर मायके वालों के लिए पैसे नहीं है मेरे पास, समझी! जा, जाकर घर का काम निपटा।”सावित्री की आवाज बाहर तक जा रही थी।
साक्षी की रुलाई फूट पड़ी।
“बस माँ! मैं आज तक साक्षी को ही समझाता रहा पर आप इस हद तक कठोर हो जाओगी, मुझे नहीं पता था। मेरी चुप्पी के कारण ही आपने साक्षी को खून के आँसू रुला दिया। माँ! मेरी शादी में तो आपने दीदी को एक महीने पहले बुला लिया था और दीदी के लाए उपहार भी आप सबको खुश हो-हो कर दिखा रही थीं। फिर साक्षी के साथ ऐसा व्यवहार क्यों? वो तो मैं एक ज़रूरी फाइल की वजह से वापस आया था तो मुझे वास्तविकता का मालूम पड़ा। साक्षी! तुम अपना बैग पैक करो मैं तुम्हें आज ही तुम्हारे मायके ले चलता हूँ और तुम्हारी भाभी के लिए रास्ते में तुम्हारा पसंदीदा उपहार भी ले लेंगे।मेरे होते तुम्हें अब कभी खून के आँसू नहीं रोने पड़ेंगे ” मयंक ने ऑफिस बैग एक तरफ रखते हुए कहा।
मौलिक सृजन
ऋतु अग्रवाल
मेरठ