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कर्मफल – family story in hindi

बचपन में सभी बच्चे गुड्डे गुड़िया का खेल खेलते हैं और उसमें मम्मी पापा भी जरूर बनते हैं शायद ही कोई ऐसा होगा जिसने बचपन में गृहस्थ बनने की इस नकल का आनंद न लिया हो यह अनुभूति इतनी प्यारी होती है कि आज भी याद करके चेहरे पर बरबस मुस्कान आ ही जाती है। 

एक बात और भी है कि उस उम्र में दूसरों के मम्मी पापा बहुत अच्छे लगते हैं क्योंकि वह किसी भी बात पर न तो रोक टोक करते हैं और न ही डांटते हैं जबकि अपने मम्मी पापा सारे दिन हिदायतें ही देते रहते हैं यह बाल मनोविज्ञान है जो बड़े होने के बाद समझ में आता है कि अपने तो अपने होते हैं।

सर्दियों के दिन थे मैं छत पर धूप सेक रही थी तभी पड़ोस वाली छत पर बच्चों की आवाजें सुनाई दीं झांक कर देखा तो चार पांच बच्चे खेल रहे थे। वे सभी इस बात पर झगड़ रहे थे कि दक्ष के पापा का रोल कौन करेगा यानि हर कोई दक्ष के पापा यानि राठौर साहब बनना चाहता था क्योंकि समाज़ में बहुत लोकप्रिय होने के साथ ही साथ बहुत मृदुभाषी भी थे वह यह देखकर मन बहुत खुश हुआ। 

इस दृश्य ने मुझे अतीत में पहुंचा दिया करीब 35 साल पहले भी यही दृश्य था और उस खेल में मैं भी शामिल थी पर तब आज के राठौर साहब यानि सौरभ के पिता जी की भूमिका कोई निभाने को तैयार नहीं होता था। सौरभ भी उस खेल का एक पात्र होता था प्यारा सा सीधा- सादा मासूम पर हमेशा अजीब सी उदासी घेरे रहती उसे कुछ बातें समय के साथ समझ में आती हैं और उसकी उदासी की वजह भी अब समझ में आई मुझे इतने सालों बाद। 

सौरभ के पापा बहुत ही अन्तर्मुखी स्वभाव के व्यक्ति थे उन्हें कभी किसी ने शायद ही हँसते मुस्कुराते देखा हो.. हाँ गुस्सा करते दांत पीसते हुए जरूर हमेशा नज़र आते वो सौरभ उनका प्यार पाने के लिए तरसता ही रहता पर उन्होंने शायद ही कभी सोचा हो कि बच्चों के लिए पिता का प्यार जताना कितना जरूरी होता है लेकिन उसकी माँ जरूर उस पर भरपूर प्यार लुटातीं उनके लिए उनके बच्चे ही उनकी दुनियाँ थी एक औरत किस तरह बच्चों का दिल रखती है यह कोई उन्हें देखता तो जान पाता। 




एक दिन घर में कोई सब्जी नहीं थी और पतिदेव नाराज़.. अब बच्चों का पेट तो भरना ही था तो उन्होंने पहले दिन बनाई लौकी के छिलके उठाकर रख लिये थे शायद उन्हें इस बात का अंदेशा था कि कल न जाने क्या हाल हो और उन्होंने उन छिलकों में बेसन मिला कर इतनी स्वादिष्ट सब्जी बनाई कि मैं उंगलियाँ चाटती रह गई। मैं जब भी उनके पास जाती वो मुझे खाने का जरूर पूछती और मैं झट से खाने बैठ जाती वो मुझे बहुत प्यार करती थी और मैं भी उनका बहुत सम्मान करती थी। 

जब सौरभ बड़ा हुआ तो आंटी ने स्कूल जॉइन कर लिया और सौरभ ने भी ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया सबसे बड़ी बात जो आंटी ने सौरभ और उसके बड़े भाई गौरव के मन में पल्लवित की वह यह थी कि किसी भी हाल में उन्हें अपनी पढ़ाई जारी रखनी है और इसका परिणाम भी आने वाले समय में दिखाई देने लगा। 

पिता के स्वभाव के विपरीत दोनों ही बेटे बहुत मिलनसार, व्यवहारिक, सरल हृदय और सामाजिक कार्यों में बढ़ चढ़ कर भाग लेने वाले निकले आये दिन सामाजिक आयोजनों की तस्वीरों में उनका फोटो अखबार की शोभा बढ़ाने लगा था उनकी पत्नी भी हर कार्य में उनके साथ होती जो पीड़ा आंटी ने झेली थी आज अपने बच्चों को इस मुकाम पर देखकर सब भूल गई थी जो लोग उनके अतीत के संघर्षों से परिचित नहीं थे वो अब उनके खुशहाल परिवार की लोग मिसाल देने लगे थे। 

यह आंटी के धैर्य,लगन और मेहनत के कर्मफल ही थे जो समय आने पर अपना प्रभाव दिखा रहे थे आज बच्चे उनकी तरह आदर्श पिता का रोल निभाने के लिए उत्सुक थे सच कहते हैं कि समय बदलता भी है और कर्मों का हिसाब भी करता है अच्छे कर्मों का अच्छा फल और बुरे का बुरा। 

इसलिए ऐसे कर्म करिये कि आने वाली पीढ़ी के लिए आपके कर्म सर उठाकर जीने का कारण बनें और आपको अपने किये पर कभी पछताना न पड़े। 

 #पछतावा

स्वरचित एवं अप्रकाशित

कमलेश राणा

ग्वालियर

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