भास्कर राव त्रिवेदी जी इलाहाबाद उच्च न्यायालय में जज के पद पर आसीन थे, उनकी ईमानदारी ही उनकी दौलत थी, उनके कार्यकाल के दौरान ही उन्हें करोड़ों रुपए की रिश्वत के ऑफर मिले होंगे उनको, फिर भी कभी कोई उनको सच्चे फ़ैसले से नहीं डिगा पाया, छोटा सा परिवार था उनका, पतिव्रता पत्नी सुलक्षणा और आज्ञाकारी पुत्र अरविंद, बस इन्हीं में त्रिवेदी जी अपना भविष्य देखते रहते, वह बहुत ईमानदार और स्पष्ट स्वभाव के थे, इसलिए उनके अधीनस्थ जूनियर स्टाफ और अधिकारी वर्ग भी उनसे हमेशा खुश रहते थे।
उनके पास एक बड़े राजनैतिक दल के नेता “धीरेन्द्र पाटिल” जी का हजारों करोड़ रुपए के एक बड़े घोटाले पर मुकद्दमा “फ़ैसले” के लिए लंबित था। धीरेन्द्र पाटिल जी ने पहले तो जज साहब त्रिवेदी जी करोड़ों रुपए की रिश्वत देने पेशकश कि, जब भास्कर राव त्रिवेदी जी नहीं माने, तो सर्वोच्च न्यायालय में पदोन्नति का लालच दिया और बच्चे अरविंद के भविष्य को सुनहरा करने का भी लालच दिया पर जब इन सब से भी जज साहेब को प्रभावित नहीं कर पाए, तो अपने गुंडों के माध्यम से जान कि धमकी देने कि कोशिश की,
परंतु धीरेंद्र पाटिल के इस तरह धमकाने से यह मामला मीडिया की नज़र में आ गया, अंत में पाटिल जी हारकर ने अपने राजनैतिक रसूख का इस्तेमाल करके जज साहब त्रिवेदी जी से केस ट्रांसफर कराकर, अपने प्रिय जज के पास भेजने की अंतिम कोशिश भी की, पर या तो धीरेन्द्र पाटिल जी की किस्मत ख़राब थी, या उनकी पार्टी के मुखिया का पाटिल को ही किनारे लगाकर राजनैतिक रोटी सेंकने का कोई पैतरा, जज त्रिवेदी जी को ही पाटिल जी के घोटाले पर अंतिम फ़ैसला देना निश्चित हो चुका था।
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सारे सबूत, गवाह, इलेक्ट्रॉनिक मनी ट्रांजिक्शन, बरामद किए कुछ रुपए और एंटी करप्शन ब्यूरो के ईमानदार अधिकारियों के बयान, सब कुछ पाटिल जी के ख़िलाफ़ ही गया। जज साहब त्रिवेदी जी ने पाटिल को सश्रम 10 वर्ष के करावास, की सज़ा सुनाई, उनकी पत्नी और बच्चों बच्चों सहित सभी नजदीकी रिश्तेदारों और मित्रों की संपति की जांच कर कुर्क करने का आदेश दे दिया।
मीडिया में जज साहब त्रिवेदी जी की ईमानदारी और साहस की खूब प्रशंसा हुई, उधर धीरेन्द्र पाटिल पूरे दस वर्ष के करावास अवधि के दौरान हर पल जज भास्कर राव त्रिवेदी जी से अपने अपमान का बदला लेने की सोचता रहता था।
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दस वर्ष बाद जब धीरेंद्र पाटिल जेल से रिहा हुआ तो उसने त्रिवेदी जी के बारे में पता लगाया … उसे मालूम हुआ कि त्रिवेदी जी तो रिटायर हो गए हैं, उनका बेटा अरविंद त्रिवेदी नोएडा शहर में डिप्टी कलेक्टर बन गया है, जिसकी जल्द ही अब शादी होने वाली है, वह अपने माता पिता के साथ सुख से रह रहा है।
यह अपने राजनैतिक कैरियर को तबाह करने वाले न्यायाधीश त्रिवेदी के सुखी परिवार को देख कर पाटिल के सीने में सांप लौट गया, चूँकि इन दस वर्षो में भ्रष्टाचार के आरोपों कारण धीरेंद्र पाटिल का अपनी ही पार्टी में वजूद ख़तम हो गया था, उसके बेटा नागेन्द्र पाटिल छोटा मोटा ठेकेदारी का काम करके अपनी रोजी रोटी चलाता था, इस सबसे जो भी थोड़ा बहुत पैसा मिलता था उसी से नागेन्द्र और उसकी बीबी बच्चों का भरण पोषण हो रहा था। धीरेन्द्र पाटिल के व्यवहार से तंग आकर उसकी बीबी सरिता भी अपने मायके चली गई थी, कुल मिलाकर पाटिल का पूरा भविष्य ही अंधकारमय हो गया था।
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धीरेन्द्र पाटिल के “कुटिल दिमाग” ने काम करना चालू कर दिया, वह अपनी योजना अनुसार एक दिन शाम को त्रिवेदी जी के बेटे अरविंद, जो की अब उस शहर का डिप्टी कलेक्टर बन चुका था, से उसके ऑफिस में जाकर मिलता है, और उससे कहता है ” बेटा अरविंद मैं वहीं पाटिल हूं जिसे तुम्हारे पिता ने भ्रष्टाचार के आरोप में जेल में भिजवाया था, मेरी सजा पूरी होने के बाद में पिछले हफ्ते ही रिहा हुआ हूं, तब से ही मै तुम्हे ढूंढ़ रहा था।
मै तुम्हें एक राज की बात बताना चाहता हूं, उसके बाद मै तुम्हारी जिन्दगी से हमेशा के लिए चला जाऊंगा।
डिप्टी कलेक्टर अरविंद ने अपनी युवा अवस्था में ही नेता पाटिल के भ्रष्टाचार के बारे में सुना था और इस बाबत उसके पिता के साहसिक फ़ैसले के बारे में भी न्यूज पेपर में पढ़ा था। वह भी अपने पिता भास्कर राव त्रिवेदी जी की तरह ही इस पाटिल से मन ही मन नफ़रत करता था। फिर भी उत्सुकता वश उसने पाटिल से कहा कि बोलिए आप क्या राज़ की बात कहना चाहते हैं।
पाटिल अपनी ऑंखों में बनावटी प्यार लाकर बोला कि बेटा तुम्हें बुरा तो बहुत लगेगा परन्तु मैं फिर भी बताना चाहता हूँ कि दर असल तुम मेरे बेटे हो, तुम्हारे पिता के जज होने के बाद से वो तुम्हारी माँ को ज्यादा ध्यान नहीं दे पाते थे, इसलिए तुम्हारी माँ और मेरे बीच संबंध बन गए और तुम उसी का नतीज़ा हो।
अरविंद के कानों में ये शब्द पिघले हुए शीशे की तरह गिर रहे थे। वह गुस्से से आग बबूला होकर पाटिल पर हाथ उठा ही देता, पर तभी उसे अपने पद कि मर्यादा का ख्याल आया और उसने पाटिल तो तुरंत अपने ऑफिस से जाने को कह दिया। जाते जाते पाटिल ने अरविंद के कान भरते हुए कहा कि मुझे पता है कि तुम्हें मेरी बात बुरी लगेगी, पर मैं सच कह रहा हूं, यक़ीन न हो तो अपना “डीएनए टेस्ट” करवा लो, दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा, और हां, जब तुम यह साबित कर लोगे कि तुम मेरे ही बेटे हो, मै तुम्हें अपने “स्विस बैंक” के
अकाउंट में छुपा कर रखे रुपयों में से 100 करोड़ रुपए देकर, अपने पिता के फर्ज से मुक्ति पा सकूंगा। इतना कहकर पाटिल अरविंद के ऑफिस से बाहर निकल आया, वह अरविंद के तमतमाते चहरे को देखकर समझ चुका था कि उसकी कुटिल चाल कामयाब हो चुकी है। अब बाकी का काम तो अरविंद कि बेवकूफी ही करने वाली है।
इधर अरविंद ऑफिस से घर जाते जाते इसी उधेड़बुन में था, कि वह कैसे घर में इस बारे में बात करे, क्या पाटिल सच बोल रहा है, अगर वह झूठ बोल रहा होता तो “डीएनए” टेस्ट की बात क्यों करता? यही सोचते सोचते कार से धीरे धीरे घर की और जा रहा था।
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कुटील चाल (भाग-2) – अविनाश स आठल्ये : Moral stories in hindi
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अविनाश स आठल्ये
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