कुछ बंधन तोड़े से भी नहीं टूटते – मुकेश कुमार

राजू अपने दादा जी को सुपरस्टार दिलीप कुमार का अपने मोबाइल से फोटो दिखाते हुए कह रहा था, “दादा जी आप बिल्कुल इनके जैसे लगते हो।”

राजू रोजाना अपने दादाजी के साथ ही मैथ पढ़ता था, जब उसका पढ़ाई में मन नहीं लगता था तो वह कुछ ना कुछ बहाने कर अपने दादाजी को पटाने की कोशिश करता था और दादा जी भी समझ जाते थे कि आज राजू का पढ़ने का मन नहीं है।

राजू के दादाजी एक सरकारी विद्यालय में मैथ के अध्यापक थे और अभी हाल ही में रिटायर हुए थे। पिछले साल ही राजू के दादी का भी देहांत हो चुका था तो अब राजू के दादा अपने बेटे-बहू और पोते के साथ रहने के लिए लखनऊ आ गए थे।

राजू के दादा नरेंद्र जी अपने बेटे बहु के साथ रहने तो आ गए थे लेकिन बहु पहले अकेले रहती थी तो तो दोपहर में पड़ोस की सहेलियां बुलाकर इधर उधर की बातें किया करती थी। लेकिन जब से नरेंद्र जी यानि उसके ससुर आ गए थे यह सब बंद हो गया था। नरेंद्र जी के आ जाने से उनकी बहू अपने आप को कैद में महसूस करने लगी थी। उनका यहां रहना उसे पसंद नहीं था लेकिन उनको रखना इनकी मजबूरी थी। क्योंकि उनके रिटायरमेंट के पैसे जो लेने थे और हर महीने जो पेंशन मिलेगा वह भी तो उनके बेटे और बहू ही रखेंगे लालच की वजह से वह अपने ससुर को कुछ नहीं कहती थी। एक कहावत है कि दूध देने वाली गाय का लात भी बर्दाश्त की जाती है।



संडे का दिन था नरेंद्र जी का बेटा अमित अपने पापा का पैर दबा रहा था और अपने पापा से कह रहा था, “पापा मैं और आपकी बहु सोच रहे हैं कि क्यों ना हम अपना फ्लैट खरीद लें कब तक आखिर किराए के घर पर रहते रहेंगे जो आपके रिटायरमेंट के पैसे मिले हैं और कुछ कम पड़ेगा तो आपके पेंशन से लोन ले लेंगे।

नरेंद्र जी ने अपने बेटे से कहा, “देखो बेटा यह सब तुम्हारा ही है बस मेरे रिटायरमेंट के पैसे में से 2 लाख रुपये अपनी छोटी बहन को दे दो। बाकी इस पैसे का जो तुम दोनों को ठीक लगे वह करो मेरी अब जिंदगी कितने दिन की है।

तभी नरेंद्र जी की बहू अपने ससुर से बोली, “पापा दीदी तो वैसे ही अमीर हैं उनको पैसे की क्या जरूरत है जीजा जी तो सरकारी इंजीनियर हैं लाख रुपए तनख्वाह और ऊपर की कमाई अलग है। यह तो प्राइवेट नौकरी करते हैं कैसे भी करके मुश्किल से घर का गुजारा चलता है वह तो आपकी पेंशन है कि कोई तकलीफ नहीं होता है” नहीं तो राजू का एडमिशन भी सरकारी स्कूल में कराना पड़ जाएगा।

अमित अपने पिताजी से कहा, “ठीक है पिताजी आप दीदी को 2लाख दे दीजिए मुझे कोई एतराज नहीं है।”

उसी मोहल्ले में एक प्रॉपर्टी डीलर से बात करके अमित ने एक फ्लैट खरीद लिया। अगले सप्ताह वहां पर शिफ्ट होने वाले थे।

सारा सामान पैक हो गया लेकिन नरेंद्र जी का सामान पैक नहीं हुआ, नरेंद्र जी बोले, “बेटा मेरा सामान भी अपने बैग में रख दो।”

अमित बोला, “पापा मैंने और आपकी बहू ने यह फैसला किया है कि आप यही रहिए क्योंकि वह फ्लैट चार मंजिल ऊपर है आप को आने-जाने में तकलीफ होगी, वैसे ही आपको गठिया का प्रॉब्लम है इसका किराया हम देते रहेंगे और फिर फ्लैट भी कोई ज्यादा दूर नहीं है दो गली छोड़कर ही तो है आपको खाना राजू की मां पहुंचा दिया करेगी और फिर आपको भी जब मन करें आपका ही घर है आ जाइएगा।”



नरेंद्र जी चाह कर भी कुछ नहीं कह सके वह गांव से शहर आए थे कि अपने बेटे बहू और पोते के साथ रहेंगे लेकिन यह क्या बेटा तो अपने साथ ही नहीं रखना चाहता। आज उन्हें अपनी पत्नी राखी की बहुत याद आ रही थी अगर वह जिंदा होती तो कम से कम जिंदगी आराम से कट जाती।

शुरू के दिनों में तो बहु टाइम से खाना पहुंचा दिया करती थी फिर कुछ दिनों के बाद नाश्ते के समय ही दोपहर का खाना भी पहुंचा देती थी अपने ससुर से बोल दी कि पापा जी आजकल टाइम नहीं मिल पा रहा है आपके पोते राजू का एग्जाम चल रहा है उसको एक्स्ट्रा तैयारी करवानी पड़ रही है।

नरेंद्र जी बोले, “बहू राजू को यही क्यों नहीं भेज देती हो मैं उसे मैथ पढ़ा दिया करूंगा।” बहू बोली, “नहीं पिताजी उसकी पढ़ाई गांव की पढ़ाई से बिल्कुल ही अलग है उसके लिए तो हमने घर पर ही एक ट्यूशन टीचर रखा हुआ है वही पढ़ाता है।”

राजू अपने दादा जी से बहुत प्यार करता था वह कई बार छुप छुप के अपने दादा जी से मिलने के लिए आ जाया करता था। जिस दिन राजू आता नरेंद्र जी का मन बहल जाता था। वह कई बार सोचते कि अपने बेटे बहू के घर चले जाएं लेकिन उनको पता था की बहू को मेरा साथ पसंद नहीं है इसीलिए अकेले किराए के घर में ही रहते थे।

बेटा भी संडे के संडे मिलने के लिए आ जाया करता था। और औपचारिकता वश अपने पिताजी से कहता पापा आप संडे को आ क्यों नहीं जाते मन भी लग जाएगा वह भी आपका ही घर है आप ही के पैसे से खरीदा गया है।

धीरे-धीरे नरेंद्र जी काफी कमजोर हो गए थे और बीमार भी रहने लगे थे उन्हें अकेलापन खाए जा रहा था।

आज उनके पोते राजू का टेंथ बोर्ड का रिजल्ट आने वाला था नरेंद्र जी को विश्वास था कि उनका पोता बहुत अच्छे नंबर लाएगा उन्होंने एक दुकान से अपने पोते राजू की मनपसंद काजू की बर्फी खरीदा और लेकर अपने बेटे बहू के घर गए। घर गए तो देखें कि उनका बेटा अमित और बहू राजू को खूब डांट रहे हैं। क्योंकि राजू 10th में फेल हो गया था।

राजू अपने मम्मी पापा से कह रहा था कि मैं कह रहा था कि मुझे दादाजी के पास पढ़ने के लिए जाने दो वह बहुत अच्छा मैथ पढ़ाते हैं लेकिन आप लोगों ने नहीं जाने दिया। लेकिन इस बार कुछ भी हो जाए मैं दादा जी के साथ ही पढ़ूँगा।

नरेंद्र जी अपने बेटे अमित और बहु से बोले, “मुझ पर भरोसा रखो बहू अगर इस बार राजू अपने क्लास में 90% नंबर नहीं लाया तो फिर मुझे कहना।” अब राजू अगले दिन से ही अपने दादाजी के पास पढ़ाई करने जाने लगा वो अब पूरे दिन दादाजी के पास ही रहता।

अपने पोते के आने से नरेंद्र जी का मन भी लगने लगा अब वह पहले से निरोग हो चुके थे। राजू को यह पता था कि उसकी मम्मी दादाजी को रात की बची हुई सब्जी देती है। वह कई बार अपनी मम्मी से इस बारे में बोला था लेकिन वह डांट देती थी। राजू ने अपनी तरकीब निकाली वह क्या करता था रास्ते में अपना टिफिन अपने दादाजी के टिफिन से बदल देता था और अपना वाला खाना दादा जी को खिला देता था और उनका खाना खुद खा जाता था।



ऐसे करके 1 साल कैसे बीत गए पता भी नहीं चला और दोबारा से राजू ने टेंथ का एग्जाम दिया और इस बार उसने पूरे क्लास में टॉप किया।

राजू के मम्मी पापा बहुत खुश थे राजू की मम्मी अपने ससुर जी को गंवार समझती थी वह भूल गई थी कि वह भी एक मैथ के अध्यापक थे सिर्फ गांव में रहने से कोई गंवार नहीं हो जाता है उसके ससुर जी के पढ़ाये हुए बच्चे आज डॉक्टर, इंजीनियर और आईएएस हैं।

अमित राजू से बोला, “बेटा आज मैं तुमसे बहुत खुश हूं बोलो तुम्हें क्या चाहिए आज जो मांगोगे मैं मना नहीं करूंगा तुमने पूरे स्कूल में टॉप किया है।”

राजू ने कहा, “पापा एक बार सोच लो इंकार तो नहीं करोगे।” अमित बोला, “मेरे बेटे मांग कर तो देख”

राजू बोला, “पापा मैं जो चीज आपसे मांगना चाहता हूं वह है तो बहुत कीमती या कहूं तो अनमोल है लेकिन फिर भी आप चाहे तो खरीद सकते हैं ।” अमित बोला, “तुम नाम तो बताओ।”

राजू ने कहा, “पापा मैं दादा जी को मैं हमारे घर में रखना चाहता हूँ।” अपने बेटे के मुंह से अपने पिता के प्रति प्यार देखकर अमित की आंखों से आंसू बहने लगा बल्कि अमित की आंखों से ही नहीं उसकी पत्नी के आंखों से भी आंसू बहने लगा कि जिस पिता को हम दोनों इग्नोर कर रहे हैं हमारा बेटा उनसे कितना प्यार करता है।

हमें लगता था उनके साथ रहकर गंवार बन जाएगा लेकिन उसने पूरे स्कूल में टॉप किया है।

उसी समय राजू और उसके माता-पिता नरेंद्र जी के पास गए और उन्होंने नरेंद्र जी से माफी मांगा और उनको अपने साथ ही अपने घर लेकर आए।

दोस्तों कुछ बंधन ऐसे होते हैं जिसे चाह कर भी आप तोड़ नहीं सकते ऐसे ही हमारे घर के बुजुर्ग होते हैं उनका हमारे घर के छोटे बच्चों से एक अटूट रिश्ता बन जाता है जिसे तोड़ना इतना आसान नहीं है हमें लगता है कि हमारे बच्चे बुजुर्गों के साथ रहेंगे तो पुराने ख्यालात के हो जाएंगे लेकिन ऐसा नहीं हमारे बच्चे हमारे बुजुर्गों से संस्कार सीखते हैं सभ्यता और संस्कृति के बारे में जानते हैं हमारे बुजुर्ग अनमोल धरोहर हैं इनका इज्जत कीजिए क्योंकि आप जैसा करते हैं आपके आने वाली पीढ़ी भी आपके साथ वैसा ही करती है।

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