दामाद बेटा तो बहू बेटी क्यों नहीं बन सकती – मुकेश कुमार

दोस्तो यह कहानी है एक मध्यम वर्गीय परिवार में रहने वाली आरती की जिसने मायके को भूलाकर ससुराल को ही अपना घर बना लिया था लेकिन ससुराल वाले उसे अपने परिवार का सदस्य मानने को तैयार ही नहीं थे उनके लिए तो घर के हर महत्वपूर्ण फैसले में बेटी और दामाद की सलाह महत्वपूर्ण थी ।  घर के हर छोटे से छोटे फैसलों में उनकी राय ली जाती थी। दामाद को बेटे से बढ़कर मान दिया  जाता था लेकिन उसी घर में आरती भी बहु थी  फिर आरती बेटी क्यों नहीं बन सकी तो आइए पढ़ते हैं यह खूबसूरत सी कहानी ‘दामाद बेटा तो बहू बेटी क्यों नहीं बन सकती।”  

अगले महीने आरती के देवर अरविंद की शादी थी।  घर में सब शादी की तैयारी में लगे हुए थे।  क्योंकि परिवार की यह आखिरी शादी थी इसीलिए सब लोग चाहते थे कि इस शादी को बहुत ही धूम धाम से किया जाए।  देवर भी एक कंपनी में चार्टर्ड अकाउंटेंट था तो दहेज में भी खूब सारे रुपए मिल रहे थे।  इसलिए आरती की सास-ससुर दिल खोलकर खर्चा कर रहे थे। 



रसोई में खाना बनाने से पहले आरती सास से जरूर पूछती थी कि आज खाने में क्या बनेगा उन्हीं के अनुसार रोजाना घर में खाना बनता था।  आज सुबह भी आरती अपनी सास  के कमरे में पूछने के लिए  गई कि आज खाने में क्या बनेगा।  आरती की सास सुधा जी ने कहा,  “बहू आज खाना दो आदमियों के लिए एक्स्ट्रा बनाना क्योंकि दोपहर में तुम्हारी ननंद और उसके पति नरेश जी आ रहे हैं।   अब बेटे की शादी में दिन ही कितने रह गए हैं हम लोग सोच रहे हैं कि आज शाम को बाजार चल कर होने वाली बहू के सारे गहने आज ही खरीद लें। 

आरती, जी मम्मी कह कर वहां से किचन की तरफ चली गई। 

 आरती सब्जी काटते हुए अपने मन में यही सोच रही थी जैसे नरेश जी इस घर के दामाद हैं वैसे ही मैं भी तो इस घर की बहू हूं लेकिन मेरी शादी के भी 5 साल हो गए लेकिन  इस घर के किसी भी मामले में  मेरी सलाह नहीं ली जाती है बल्कि मुझे सिर्फ बता दिया जाता है कि ऐसा हो गया।  वही नरेश जी से ऐसे सलाह ली जाती है जैसे वह घर के दामाद नहीं बल्कि वही इस घर के मालिक हैं उन्ही के पैसों से यह घर चलता है।  घर में एक छोटा सा भी काम करना हो जैसे कि अगर दिवाली में घर में पुताई  भी कराना हो तो यह पूछा जाता है कि कौन से कलर इस्तेमाल किया जाए। मेरी इस घर में अहमियत ही क्या है ऐसा लगता है कि मैं इस घर की बहू नहीं सिर्फ नौकरानी बनकर रह गई हूं।  सब की इच्छाओं के ख्याल रखना सबके मन पसंद का खाना बनाना।  यही मेरा दिनचर्या हो गया है।  मुझसे तो मम्मी जी ने एक बार भी नहीं कहा कि बहू तुम भी साथ चल लेना। 

 मेरी सासू मां दामाद जी के आगे तो मेरे पति रत्नेश जी का भी कोई वैल्यू नहीं करती थी।  और रत्नेश जी को भी इस बात से कभी प्रॉब्लम नहीं था वह तो अपने मां पिता के इतने आज्ञाकारी पुत्र हैं कि उन्हें सही गलत समझ ही नहीं आता।  जब अपना ही खोटा सिक्का हो तो किस से शिकायत किया जाए। 



 कई बार अपने ससुराल वालों का इस तरह से परायो जैसा व्यवहार देखकर आरती का मन बहुत दुखी हो जाता था क्योंकि उसने अपने ससुराल को अपने मायके से भी ज्यादा तवज्जो देती थी।  कई बार उसकी मां कहती थी कि बेटी 10-15 दिन के लिए मायके आ जा।  लेकिन यही सोचकर मायके सिर्फ एक-दो दिन के लिए जाती थी कि ससुराल में उसके सास-ससुर का ख्याल कौन रखेगा उसके पति के लिए नाश्ता और लंच कौन बनाएगा। 

दोपहर होते ही घर के बाहर कार की  हॉर्न  सुनाई दिया। आरती ने खिड़की से नीचे देखा तो ननंद और नंदोई ही थे। उसने जाकर दरवाजा खोला। आरती की ननंद उसके पति से 10 साल बड़ी थी इसीलिए अपनी ननद और जीजाजी को पैर छूकर प्रणाम किया।  लेकिन उसकी ननद ने इस तरह से व्यवहार किया जैसे आरती उसकी भाभी ना होकर इस घर की नौकरानी हो।  उसने  आरती की  हाल-चाल भी नहीं पूछी और सीधे अपनी  मां के कमरे में चली गई । 

लेकिन नरेश जी ने आरती का हालचाल पूछा और बाहर ही सोफे पर बैठ गए।  थोड़ी देर में आरती ने उन्हें पानी और चाय पिलाया। 

थोड़ी देर बाद दरवाजे की बेल बजी आरती ने सोचा अब कौन आ गया उसने जाकर दरवाजा खोला तो देखा कि उसका पति दरवाजे पर खड़ा है।  आरती ने आश्चर्य से पूछा अरे आप इतने समय क्या कोई खास बात है क्या?

रत्नेश ने बताया अरे तुम्हें पता नहीं है क्या आज छोटे भाई की होने वाली पत्नी के लिए ज्वेलरी खरीदने बाजार जाना है ,माँ ने  तो सुबह ही मुझे कहा था लंच बाद आने के लिए मैं तुम्हें कहना ही भूल गया था। चलो तुम भी जल्दी से तैयार हो जाओ लंच करने के बाद ही घर से निकल जाएंगे। 

रत्नेश भी घर में आकर अपने दीदी और जीजा को नमस्ते किया। कुछ देर बाद सब ने मिलकर एक साथ ही लंच किया। 

लंच करने के बाद सभी लोग मार्केट जाने के लिए तैयार हो जाते हैं रत्नेश अपनी पत्नी को आवाज देता है आरती और कितना देर लगाओगी  तैयार होने में, जल्दी से चलो भाई लेट हो रहा है।  आरती की सास ने अपने बेटे रत्नेश से पूछा, “बेटा आरती  कहां जा रही है।”  रत्नेश ने 1 टूक में जवाब दिया, “कहां जा रही है मां जहां हम सब जा रहे हैं।” आरती की सास सुधा जी ने कहा, बेटे बहू को साथ  जाने की कोई जरूरत नहीं है तुम्हारे जीजाजी और दीदी तो है ही ना।  फिर बाजार से आते आते भी लेट हो जाएगा।  अगर बहू घर में रहेगी तो रात का खाना तो बना कर रखेगी।” 



आरती अपने कमरे से निकलने वाली थी तब तक अपनी सास की कड़क आवाज सुनकर वहीं रुक गई उसने जब सुना कि उसकी सास सुधा जी नहीं चाहती हैं कि वह उनके साथ बाजार जाए वह वहीं से अपने कमरे में वापस लौट गई और बिस्तर पर जाकर लेट गई ना चाहते हुए भी उसकी आंखों से आंसुओं की बूंदें झरने की तरह बहने लगे। 

रत्नेश ने अपनी मां से कहा, “मां क्या हो गया अगर आरती हमारे साथ चली जाएगी तो इस घर की आखिरी शादी है।  फिर वह भी तो इस घर की बहू है। आरती को भी हमें साथ लेकर चलना चाहिए।” 

सुधा जी ने अपने बेटे रत्नेश से कहा, “बेटा क्या यह शादी की आखिरी खरीदारी है अरे आज तो बेटी और दामाद चले जाएंगे अभी तो बहुत सारा सामान खरीदना है बहू और तुम जाकर खरीदते रहना किसने रोका है।  अब तुम्हारे भाई को तो फुर्सत है नहीं कि आकर अपनी शादी की शॉपिंग करें उसकी शॉपिंग तुम दोनों मिलकर कर देना। 

जाते जाते सुधा जी ने अपनी बहू को समझा कर गई कि रात के खाने में कढ़ी-चावल, छोले और पराँठे  बना कर रखना। बेटा रत्नेश ने बात को बढ़ाना अच्छा नहीं समझा वह जानता था कि मां जो सोच लेती है वही करती ही  है। 

अगली सुबह घर में बैठकर सब लोग नाश्ता कर रहे थे।  नाश्ते के दौरान ही  सुधा जी ने अपने पति विक्रम जी  से कहा,  घर की दीवारें किस कलर से पुताई  करवाना  है यह भी फाइनल कर ही लेते हैं। 

तभी दामाद नरेश जी ने बताया कि एक ऐप आता है आप उसमें घर की पिक्चर खींचकर अपलोड कर दीजिए और और अपने अनुसार कलर  चुज  कर हम यह देख सकते हैं कि हमारे घर पर कौन सा कलर अच्छा लग रहा है। 

फिर क्या था थोड़ी देर में सब लोग ने अपनी राय देनी शुरू कर दी  कि कौन सी कलर घर पर ज्यादा अच्छा लग रहा है।  बहु आरती भी किचन से आकर देखने लगी और उसने कहा  मम्मी जी अगर यह पिंक वाला कलर इस्तेमाल करें तो  घर देखने में बहुत ही घर सुंदर लगेगा।  आरती का इतना बोलना था कि सास सुधा जी ने कहा बहु तुमसे किसी ने राय मांगा है जो आकर बीच में टपक पड़ी तुम किचन में ही अच्छी लगती हो जाओ जाकर लंच की तैयारी करो। 



 इस बार आरती को नहीं रहा गया। मम्मी जी मैं भी इस घर की सदस्य हूं मेरा भी हक है घर के सही या गलत फैसलों में अपनी राय देना।  मैं कुछ नहीं बोलती हूं इसका मतलब यह नहीं है कि कोई भी मुझे कुछ भी बोल दे।  मैं आपको माँ जैसी समझकर मान देती हूं।  लेकिन आपको लगता है कि अपने अपने बेटे के लिए बहू नहीं बल्कि एक नौकरानी लेकर आई है।  मैंने तो शादी के बाद अपने ससुराल को ही अपना घर मान लिया लेकिन आप सब को जब  भी मौका  मिलता है मुझे परायेपन का एहसास करा दिया जाता है।  मैं इस घर में सिर्फ घर के काम करने और खाना बनाने के लिए नहीं हूं अगर आपको यही सब करना था तो आपको अपने बेटे के लिए बहू नहीं बल्कि एक नौकरानी ही ढूंढना चाहिए था।  घर के किसी भी काम के लिए बहुत याद आती है लेकिन सलाह मशवरा करने के लिए बेटी दामाद याद आते हैं। 

 पहली बार आरती को सब लोग इतना बोलते हुए सुन रहे थे और सब चुप थे तभी आरती का पति रत्नेश  पहली बार अपनी पत्नी की तरफ से बोल पड़ा।  “मां आरती ने कुछ गलत नहीं कहा है यह तो ठीक कह रही है।  हम नहीं कह रहे हैं कि दीदी और जीजा जी की आप इज्जत मत करो लेकिन कम से कम अपनी बहू आरती की  बेइज्जती भी तो मत करो।  मुझे भी कई बार ऐसा लगता है यह घर मेरा नहीं बल्कि दीदी और जीजाजी का है कोई भी काम करने से पहले इन से ही सलाह ली जाती है। 

हम यह भूल जाते हैं की बहू किसी दूसरे के घर से आकर हमारे घर को स्वर्ग बना रही होती है हमारे घर के लिए उसने अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया होता है।  लेकिन बहू की त्याग को कोई नहीं समझता। 

 इतने में रत्नेश के दीदी बोल पड़ी मां तुम क्या हमें इस घर में  बेइज्जती  करने के लिए बुलाई थी।  हम यहां जबर्दस्ती  तो नहीं आए थे तुमने बुलाया तभी आए थे।  अब हम यहां एक पल के लिए नहीं रुकेंगे रत्नेश की दीदी और जीजाजी वहां से उठे और चल दिए। 

दोस्तों आजकल घरों में परिवारिक कलह होने का एक मुख्य कारण यह भी है कि हम अपने घर में बेटे और बहू को उतनी प्राथमिकता नहीं देते हैं जितने कि अपनी बेटी और दामाद को। 

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