कुछ वक्त मेरे लिए भी – मनप्रीत मखीजा

“सलोनी…उठो सलोनी…. सलोनी क्या हुआ तुम्हे!” विजय पिछले चंद मिनटों से अपनी पत्नी सलोनी को बेहोशी से बाहर लाने की कोशिश कर रहा है। सलोनी पर कोई असर न होता देख विजय ने डॉक्टर को फोन किया। चेकअप के बाद डॉक्टर ने विजय से बात की।

“क्या उम्र है आपकी पत्नी की!”

“जी…., यही कुछ बत्तीस साल। “

“और कितना कमा लेते हैं आप!”

“जी!! ये क्या पूछ रही हैं आप!”

“इसलिये पूछ रही हूँ कि जितना भी कमा रहे हैं आप, उन सबकी कोई कीमत नहीं। “

“मैं समझा नहीं डॉक्टर, आप ऐसा क्यूँ कह रही हैं!”

“मिस्टर विजय, क्या आप जानते हैं कि आपकी पत्नी पिछले छह महीनों से डिप्रेशन की दवाइयां ले रही हैं?”

“क्या!!!”

विजय के शॉकिंग रिएक्शन से डॉक्टर सब समझ गई।

“माफ कीजिये मिस्टर विजय , लेकिन आप भी उन मर्दो में से है जिन्हें बाहर की दुनिया की पूरी खबर होती है लेकिन अपने घर में क्या चल रहा है ये पता नहीं होता। राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय सभी मसलों और मुद्दों पर आप नजर गढ़ाए रहते है लेकिन अफसोस एक निगाह अपनी पास बैठी पत्नी पर डालना भी जरूरी नहीं समझते।”

“आप क्या कहना चाहती हैं डॉक्टर!”

“आप अब भी नहीं समझ रहे! आप अपने काम में और बाहरी दुनिया में इतने मशगूल हो चुके है कि अपनी पत्नी सलोनी को टेकन फ़ॉर ग्रांटेड लेने लगे है आप। उसकी हँसी, खुशी, दर्द, आँसू ….ये सब कुछ उसे जताने या दिखाने क्यूँ पड़ते है । क्या आप उसके बिन कहे सब नहीं समझ सकते। “

“सलोनी जब इस शहर में आपके साथ आई थी तो उसका कोई दोस्त नहीं था।वो सिर्फ आपके भरोसे अपने भरे पूरे ससुराल को छोड़ आ गई। और यहाँ आकर आप अपनी दुनिया में मस्त हो गए। आप भूल ही गए कि सलोनी के प्रति आपकी कुछ भावनात्मक जिम्मेदारी भी बनती है। उसे आपके साथ की, वक़्त की बहुत जरूरत थी। भाषा अलग होने ली वजह से वो यहाँ के लोगो के साथ घुल मिल नहीं पाई। आप से भी खुलकर नहीं कह पाई कि उसे आपका वक़्त चाहिए। अकेली हो गई थी वो। 



रात रात भर सोती नहीं थी। दिन में भी सामने दीवार पर टँगी तस्वीर ताकती रहती।  छह महीने पहले , अचानक मेरी गाड़ी के सामने आ गई । सड़क पर चलते हुए जाने कौन सी दुनिया में थी। बस, तभी से मैंने उसके चेकअप किये और पता चला कि उसे डिप्रेशन है। उसे काउंसलिंग की जरूरत थी लेकिन उससे भी ज्यादा आपके साथ की। आज सलोनी का ब्लड प्रेशर बहुत लो हो गया था इसलिए अचानक बेहोशी आ गई। अब भी वक़्त है मिस्टर विजय,  सलोनी को वक़्त दीजिए । पैसा तो इंसान फिर भी कमा सकता है लेकिन, किसी का साथ बहुत मुश्किल से मिलता है। इससे पहले कि सलोनी का अकेलापन उसे दीमक की तरह खोखला कर दे, प्लीज़ सम्भल जाइये। “

डॉक्टर के जाने के बाद विजय अवाक रह गया। उसने उसी दिन से सब याद करना शुरू किया जब विजय के ट्रांसफर के बाद वो और सलोनी इस शहर में शिफ्ट हुए थे। एक के बाद एक करके, विजय को अपनी सारी गलतियों का एहसास हो रहा था। नाश्ते के वक़्त सलोनी रसोई में होती ताकि विजय को उसका मनपसंद गरमा गरम नाश्ता सर्व कर सके। ऑफिस टाइम में तो विजय एक मैसेज भी नहीं करता था सलोनी को। और कभी उससे पूछा भी नहीं कि उसने कुछ खाया भी या नही! 

डिनर पर भी विजय चैट करने में ही बिजी रहता। सलोनी के हिस्से तो बस वो अंतरंगी पल ही आते, जिसमें भी विजय की मर्जी ही सर्वोपरि थी। इस वक़्त विजय को अपने आप पर बहुत गुस्सा आ रहा था और घिन्न भी, आखिर एक सामान से ज्यादा क्या कीमत जानी विजय ने अपनी नमू की!  

बिस्तर पर सलोनी दवाई के नशे में सो रही थी और उसे इस हालत में देख विजय बहुत पछता रहा था। सलोनी के नजदीक जाकर उसके सिर पर हाथ फेरा तो उसके सिरहाने के नीचे एक डायरी मिली, शायद सलोनी की ही हो ये सोचकर विजय ने पढ़ना शुरू किया। पहले पन्ने पर ही लिखा था …..काश ।

अगले पन्ने पर विजय के नाम कई चिट्ठियां थी। कई कविताएं भी, जिनमें से एक थी…



काश कभी तुम यूँ ही छू लो

मेरे कोमल गालों को

काश कि फुर्सत से सहलाओ

मेरे रेशमी बालों को

जैसे पहले देखा करते थे मुझे

एक ख़्वाहिश आँखों में भरकर

एक झलक पाने को मेरी

रहते थे तुम हर पल तत्पर

वो दिन भी कितने हसीन थे

जब हम एक दूजे से अनजान थे

दिल में खिल रही थी प्यार की कली

खुशबू से महक रही थी मोह्हबत की गली

ऐ काश….

कि तुम फिर उस गली में आओ

तुम्हारी जिंदगी महकाने का फिर से

 

मुझे शुक्रिया कह जाओ

क्यूँ उलझे हैं जीवन की परेशानियों में हम तुम

काश कि इक दिन सब कुछ भुलाकर

एक दूजे में हो जाये गुम

रोज देखती हूँ ख्वाब मैं ये

कि किसी शाम को तुम सुकून से मेरे पास आओ

हाथ में काम का बोझ न हो बस,

एक महकता गजरा ले आओ

आकर मेरे पास कभी तो दो पल गुनगुनाओ

तुम्हारी आँखों के प्रेम के सागर में

कभी तो मुझे भी डुबाओ

ऐ काश……कभी तुम भी वो नजर रख पाते

मेरी किताबी आँखों को कभी तो दिल से पढ़ पाते

ऐ काश….तुम दिल से सोच पाते

ऐ काश …..तुम दिल से सोच पाते

इसे पढ़कर विजय की आँखों का नम होना लाज़मी था। उसकी हँसती मुस्कुराती नमू के गुमसुम होने की वजह अब विजय समझ चुका था। विजय ने तय कर लिया कि इसके आगे वो अपनी नमू को अकेलेपन की राह पर भटकने नहीं देगा। विजय ने सलोनी का हाथ अपने हाथ में लिया और आगे बढ़कर सलोनी के माथे को चूम लिया।  सलोनी अब तक होश में आ चुकी थी और विजय , जाग चुका था।

©मनप्रीत मखीजा

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