माँ ने पराया कर दिया – सोनिया कुशवाहा

“सुनो, मम्मी का फोन आया है वो घर आ रही हैं। मैं उनको लेने बस स्टैंड जा रहा हूँ। तुम डिनर की तैयारी कर लेना। ” नमन ने हड़बड़ी मे फ़ोन करके बताया। नमन से बात करने के बाद मधु सोच में डूब गई। ऐसे अचानक मांजी आ रही हैं! बिना कुछ बताए!! इतने सालों से तो उन्होने यहाँ का रुख तक नहीं किया। तो आज कैसे? 

अपने बच्चों से कब तक नाराज रहती शायद माँ का प्यार उमड़ आया होगा।सारी शंकाओं को किनारे करते हुए मधु ने अपने मन को समझा ही लिया।

एक घंटे बाद नमन मांजी के साथ घर पहुँचा।

‘प्रणाम माँ जी!’ मधु ने पैर छूने की कोशिश की।

 ‘हाँ ठीक हैं, खुश रहो!’ माँ जी ने झटक दिया। आँखो में आंसू लिए मधु खाने की तैयारी में जुट गई।

अगले दिन सुबह शकुंतला देवी ने बेटे को बुला कर कहा ,” तुम जो भी कमाते हो अपने लायक तो पर्याप्त कमा ही लेते हो। रहने के लिए सरकारी मकान भी मिला हुआ है। मैं चाहती हूँ  गाँव का मकान और जमीन तुम मेरे नाम पर कर दो।”

“माँ सब आपका ही तो है ऐसी बात क्यूँ बोल रही हो, वो तो मकान पर लोन लेने के कारण ही सब अपने नाम किया था। आप तो सब जानती हो।”नमन ने अचरज से पूछा।

 

” हाँ मेरा ही है इसीलिए बोल रही हूँ कि तुम उससे मुक्त हो जाओ। मैं खुद संभाल लूँगी। मैं अपने जीते जी सारी प्रोपर्टी का बंटवारा करना चाहती हूँ।”

नमन कुछ बोलने को हुआ ही था कि मधु ने हल्के से नमन का हाथ दबा कर रोक दिया। दो तीन दिन बीतने के बाद शकुंतला देवी ने सारे कागजात नमन के सामने रख दिए। नमन ने भी एक नजर पत्नी की ओर देखा और सिग्नेचर कर दिए। शकुंतला देवी को जो चाहिए था मिल गया था। बिना किसी लाग लपेट के अगले ही दिन बस पकड़ कर वो वापिस चली गई।



 

नमन शायद माँ की मंशा समझ चुका था। इसलिए जबसे शकुंतला देवी गई थी वो बुझा सा रहता। दिल का बोझ जब बर्दाश्त से बाहर हो गया तो नमन मधु के आगे टूट गया।

“बीस साल का था मैं, जब पिताजी चल बसे। बिल्कुल बेसहारा हो गए थे हम। बस एक कमरे का मकान और बाकी खाली पड़ा प्लॉट था वो जहां आज तुम दो मंजिला मकान देखती हो। मैंने दिन रात एक करके पढ़ाई की तब जाकर यह नौकरी मिली। कभी खुद के बारे में नहीं सोचा। दो छोटी बहनो को अपने बेटी समान समझ पढ़ाया लिखाया उनकी शादी की। कोई कुबेर का खजाना नहीं था मेरे पास। चंद रुपये जो तनख़्वाह के मिलते उसे सबसे पहले बहनों के हॉस्टल भेजता कि कहीं कोई कमी ना रह जाए।

 अपना गुजारा कैसे चलाया उसका मत पूछो। फिर मकान बनाने के लिए लोन लिया। सालों तक पेट काट काट कर उसका लोन चुकाया। बहनों की शादी की उम्र हुई तो अपनी पीपीएफ से पैसा निकाल उनको ब्याह दिया। मेरा आज और कल सब कर्ज़ में डूबा था लेकिन मैं कभी घबराया नहीं। सोचा ये मेरी ही तो जिम्मेदारी है। एक भरोसा भी था कि वर्तमान तो नौकरी के भरोसे चल ही रहा है और भविष्य के लिए अपना गाँव का मकान है ही। इतने सब त्याग के बदले मुझे माँ की नफरत नसीब हुई है। सिर्फ इसलिए क्यूँकि मैंने अपनी पसंद से शादी की। क्या इतना बड़ा गुनाह कर दिया मैंने? 32 की उम्र में खुद के लिए जीवन साथी ढूंढ़ लिया तो माँ ने पराया कर दिया। मेरी नौकरी को कैश करके तगड़ा दहेज लेना चाहती थी वो। लेकिन अपनी आधी उम्र तनाव में बिताने के बाद मैं जीवन से कोई ओर समझौता नहीं करना चाहता था। मैंने अपना फैसला माँ को सुना दिया। माँ उसी पल इतनी कठोर हो गई कि तुम्हारे इतने अच्छे व्यवहार ही नहीं पोतियों के जन्म से भी नहीं पिघली। उन्होने कभी पलट कर मेरी ओर नहीं देखा। मैं फिर भी अपने फर्ज़ निभाता रहा। अब कुछ सालो से लोन की किश्त और बच्चों की पढ़ाई का खर्च बढ़ने के कारण मैं माँ की ज्यादा सहायता नहीं कर पाता हूँ।माँ को मकान का किराया मिलता है। पिताजी की पेंशन भी आती है। जानता हूँ उनका गुजर बसर अराम से हो जाता है।”



 

नमन एक ही साँस में सब बोलता जा रहा था। एक लंबी साँस लेकर आँखो में आई नमी को छुपाते हुए नमन ने आगे कहा, “अगर मेरा शक सही है तो मेरे बच्चों का भविष्य तो अंधकार में चला गया। मैं सारी उम्र जिनके पीछे भागा उन्ही रिश्तों ने इतनी गहरी चोट दी है।” 

” आप क्यूँ फिक्र करते हैं जी… हमारे बुढ़ापे के लिए तो आपको पेंशन मिलेगी ही। बस थोड़ा थोड़ा जोड़ कर एक जमीन की भी व्यवस्था कर लेंगे। छोड़िए ये चिंता।” मधु ने नमन का होसला बढ़ाया। 

” किस युग में जी रही हो। अब कोई पेंशन नहीं मिलती पगली। और लोन चुकाने के बाद हाथ में बचता ही क्या है।”नमन ने उदास स्वर में कहा।

कुछ दिन बाद ही माँ ने सारी जमीन दोनों बेटियों के नाम पर कर दी। दोनों बहनें भी फूली नहीं समा रही थी। किसी ने भी बड़े भाई की परिस्थिति नहीं समझी।

नमन ने नज़रें नीची किए मधु से पूछा, “तुम दुखी तो नहीं हो ना? “

” जब दिल में ही जगह नहीं बची, तो मकान में जगह लेकर हम करते भी क्या। आप फिक्र ना करें, मुझे कोई दुख नहीं। आप भी कोई बात अपने मन में मत रखिए। आपने जो किया वो आपका फर्ज़ था। हमेशा पूत ही कपूत नहीं होते।आपने अपने पुत्र होने का फर्ज़ निभा दिया। “

इधर नमन और मधु फिर से जुट गए थे अपने भविष्य को सुरक्षित बनाने में।

सोनिया कुशवाहा।

 

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