कुछ नहीं – विजया डालमिया

नीला आज सारे काम जल्दी जल्दी करके बार-बार घड़ी देख रही थी। हर टिक -टिक के साथ उसके दिल के धक-धक भी बढ़ते जा रही थी ।…”ओ माय गॉड 5:00 बज गए पता नहीं कब निलेश आ जाए दोस्तों को लेकर”। उसने एक लंबी साँस ली और फटाफट बर्तन साफ करने में जुट गई।…” कमबख्त महरी को भी अभी ही छुट्टी लेनी थी और नीलेश वह तो यह कभी सोचते ही नहीं कि महरी नहीं है तो काम कितना बढ़ जाएगा ।

बस सुना दिया फरमान, यह जानने के बावजूद भी कि मुझे कमर दर्द बढ़ जाएगा उसने जरा भी देर नहीं लगाई यह कहने में कि …”आज शाम मेरे चार दोस्त घर पर आ रहे हैं। हम डिनर साथ में करेंगे “।वह उसका चेहरा देखते ही रह गई ।यह बातें सोचते सोचते नीला का मन खिन्न हो गया। पर नीलेश का गुस्सा याद आते ही उसके हाथों में तेजी आ गई।

 उसने काम निपटा कर घर पूरा व्यवस्थित किया और फ्रेश होने चली गई ।फ्रेश होने के बाद उसने खुद को निहारा। आईने में देखते-देखते वह खुद को तलाशने लगी। पर वह पहले वाली नीला उसे कहीं नजर नहीं आई। कहाँ तो वह चुलबुली, स्मार्ट और सुंदर नीला जिसके पीछे लाइन लगी रहती थी लड़कों की उसकी एक झलक पाने के लिए। उससे बात करने के लिए तरसते थे सब। 

उसे याद आया कॉलेज का एक वाक्या जब टीचर्स डे पर उसने क्रीम कलर की रेड बॉर्डर वाली, हल्की जरी की साड़ी पहनी थी। गले में सिंपल नेकलेस ।हाथों में गोल्ड की चूड़ियाँ उसे बेहद खूबसूरत बना रही थी। थोड़ा सा काजल लगाते ही उसकी आँखें और कजरारी दिखने लगी थी। हल्की सी लिपस्टिक लगाकर जब आईने में उसने खुद को निहारा तो आईना जैसे कह उठा…. “तुम्हें ,सिर्फ तुम्हें हक है इतनी खूबसूरत दिखने का” और उसके पतले होठ मुस्कुरा उठे ।तभी मम्मी की आवाज कानों में आई। वह जैसे ही बाहर निकली वे उसे देखते ही रह गई ।

आगे बढ़कर उसकी नजर उतारते हुए एक काला टीका लगा दिया व कहने लगी ….”मेरी लाडो इतनी बड़ी हो गई ” यह कहते हुए उनकी आँखों में आँसू झिलमिलाने लगे ।वजह वह समझ गई थी इसी इसीलिए तुरंत कहा …”क्या मम्मी आप भी ना “अच्छा लेट हो रहा है चलती हूँ “।कहकर कॉलेज के लिए निकल पड़ी। कॉलेज पहुँचते से ही उसकी खास फ्रेंड रितु जो सैंडविच खा रही थी वो उसके हाथों से गिर पड़ा व मुँह खुला का खुला रह गया ।




….”आज तो तू एंबुलेंस साथ लेकर चल। ना जाने कितनों को घायल करेगी”। रितु ने जैसे ही यह कहा वह शरमा गई ।पर आज …….वह फिर से वर्तमान में आ गई ।देखा तो बालों में सफेदी। आँखों के नीचे काले घेरे। चेहरा भी मुरझाया व थका -थका नजर आ रहा था । आँखें जिनके लिए वह हमेशा सुनती आई थी कि…” इन आँखों की मस्ती के मस्ताने हजारों हैं” एकदम निस्तेज व सूनी हो चुकी थी। पर क्यों? क्या इसकी वजह कहीं ना कहीं वह खुद नहीं थी?

 उसे याद आया वह दिन जब नीलेश ने उसे पहली बार देखा और पलकें झपकाना ही भूल गया। निशब्द रहकर भी उसकी आँखें बहुत कुछ कह गई । फिर तुरंत ही चट मंगनी और पट ब्याह। सुहागरात के दिन निलेश ने उसकी तारीफ में इतनी शायरियाँ बोली कि वह उसकी कायल हो गई। उसे लगा जैसे वह इस दुनिया की सबसे लकी है जिसे इतना अच्छा पति कम प्रेमी मिला। उसने तभी अपने आप से एक वादा कर लिया कि वह भी हर हाल में हमेशा निलेश को खुश रखेगी। बस यही गलत हो गया। धीरे-धीरे वह सिर्फ काम  में  ही सिमटकर रह गई क्योंकि निलेश के यहाँ आने जाने वालों का तांता लगा रहता था ।नतीजतन वह सब को अटेंड करना, खाना बनाना, अच्छे से खिलाना,घर को संभालना इन सब में इस कदर उलझ कर रह गई कि खुद पर ध्यान देना ही भूल गई। 

जब भी निलेश उसकी आँखों में झाँकता  तो वहाँ उसे मस्ती की जगह थकान दिखती। बातें करना चाहता तो नीला के पास कभी भी टाइम ही नहीं होता। कहीं चलने को कहता तो वह इंकार कर देती यह कहकर कि कल चलेंगे। धीरे-धीरे निलेश उससे उदासीन सा हो चला। उसके प्यार की जगह चिड़चिड़ेपन ने ले ली ।अब वह बात-बात पर नीला को डांटने लगा। 

 कुछ दिनों से तो निलेश उससे बिल्कुल भी बात नहीं कर रहा था। उसके लिए जैसे वह होकर भी नहीं थी। और आज यह बात ।नीला सोच रही थी कि वह कहाँ गलत थी ।वह तो नीलेश की खुशी के लिए ही यह सब कर रही थी।सोचकर वह भीतर ही भीतर बिखर गयी। खैर …..आज खुद वह  समझ रही थी कि सिर्फ काम ही सब कुछ नहीं होता ।तभी आज फिर उसने अपने आप से एक वादा किया। बहुत दिनों बाद उसने नीलेश की पसंद की साड़ी पहनी। परफ्यूम भी वही लगाया जो उसे बेहद पसंद था । आँखों में काजल ,होठों पर हल्की सी लिपस्टिक और बालों को एक नया लुक दे दिया। 




जैसे ही वह तैयार हुई दरवाजे पर दस्तक होते ही पहले की ही तरह उसके दिल की धड़कनें बढ़ गई ।चेहरे पर मुस्कान लिए जैसे ही उसने दरवाजा खोला निलेश उसे फिर से निशब्द होकर देखता ही रह गया। तभी उसके दोस्तों ने चुटकी ली….. “अमा यार लैला-मजनू हमें भी अंदर आने दोगे या “……सुनते ही नीला शर्मा गई। 

वह शाम नीला के लिए यादगार बन गई क्योंकि नीलेश के दोस्तों में उसकी फ्रेंड रितु भी थी जिसने आश्चर्य और खुशी से आगे बढ़कर उसे गले लगा लिया और कहने लगी …. “अरे हीरोइन तू यहाँ?क्या बात है? नीलेश अब समझ में आया तुम्हारी हमारे प्रति बेरुखी का राज। जिसके पास चाँद हो वह भला सितारों को क्यों देखेगा”। निलेश कुछ कह नहीं सका। रितु ने फिर कहना जारी रखा …. “हमारी कॉलेज की ब्यूटी क्वीन थी ये।

 सच बहुत लकी हो तुम जो तुम्हें यह डायमंड मिला। पता है कितनों के दिल टूटे थे जब इसकी शादी हुई। सॉरी नीला मैं तुम्हारी शादी में नहीं आ पाई थी इसलिए नीलेश को पहचान नहीं सकी”। नीलेश एक अपराधी सा खड़ा -खड़ा नीला को देख रहा था। आज उसे नीला बेहद खूबसूरत दिख रही थी। फिर वही प्यार उसकी आँखों में उमड़ आया। नीला भी नई नवेली दुल्हन की तरह शरमा गई। खाना खाने के बाद सब चाय पी रहे थे ।सिर्फ नीलेश कॉफी पीता था। गलती से वह कप रितु ने उठा लिया ।पर जैसे ही उसे कॉफी की खुशबू आई उसने गहरी नजरों से निलेश को देखा और कहा….” थैंक गॉड मैंने कॉफी जूठी नहीं की”। नीला ने कहा…” क्या हुआ”? रितु ने कहा… “कुछ नहीं और मुस्कुरा कर अपनी आँखों की नमी को छुपा लिया।

सबसे गहरा शब्द जिसे हर कोई नहीं समझ सकता। वह है….” कुछ नहीं”

अब ना ही एतबार एतराज भी नहीं।

आसमानों में भी होती है साजिशें

सारी बातें इस जमीन की ही नहीं।

विजया डालमिया

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