कोशिशें बाकी हैं अभी…! – लतिका श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : “हेलो… हां बेटी कैसी है क्या खाना मिला आज हॉस्टल में ..!फिर नहीं खाया आज खाना बेटा ये तो गलत है ऐसे रोज रोज खाना नही खाओगी तो पढ़ाई कैसे कर पाओगी ….मीरा भाभी अपनी बेटी प्रीति से मोबाइल पर बात कर रही थी

मम्मा एकदम गंदा खाना है यहां का हॉस्टल भी एकदम गंदा है मुझे नही रहना यहां मम्मा मुझे नही करनी कोई पढ़ाई वढ़ाई आप पापा को बोलो मुझे यहां से ले जाएं मेरा दम घुट रहा है यहां… उधर से प्रीति की बात सुनकर तो भाभी के होश उड़ गए थे।

कैसी बातें कर रही है प्रीति बेटा  अभी अभी वहां गई है कुछ दिन देख लो आखिर और भी तो बच्चे हैं वहां… वे कैसे रह रहे हैं वहां पर ….सुनो …सुनो …चुप रहो और मेरी बात सुन लो अभी मैं तुम्हारे पापा से कुछ नही कहूंगी वह वैसे ही दिन रात बिसनेस में व्यस्त रहते हैं दुनिया भर के टेंशन हैं उनके पास ऐसी  तुम्हारी बात सुनकर और भी टेंशन में आ जाएंगे फिर उन्हे ब्लड प्रैशर बढ़ जायेगा अभी तुम एडजस्ट करो धीरे से सब ठीक हो जायेगा….ठीक है ….और भाभी ने फोन रख दिया था मुझे महसूस हुआ था की उधर से प्रीति फिर भी कुछ और कह रही थी लेकिन भाभी सब कुछ सुन कर भी जैसे अनसुना करना चाह रही थीं।

अरे भाभी प्रीति वहां परेशान है और उसकी समस्या सुनने समझने के बजाय आपने फोन रख दिया…. मुझसे नही रहा गया

आखिर कलेजे के टुकड़ों को बाहर पढ़ने भेजो तो खुद अपना कलेजा बाहर आने लगता है तिस पर अगर बाहर बच्चे को कोई परेशानी हो वह दुखी हो तब तो किसी भी कीमत  पर चैन नहीं आता।

मुझे चैन नहीं आ रहा था।

अरे संजना प्रीति को तो हमेशा कोई ना कोई समस्या बनी रहती है जब घर में थी तब भी हमेशा दुखी रहती थी …”मेरी सब सहेलियां बाहर पढ़ने जा रही है एक मैं ही हूं जो नही जा रही हूं मम्मा आप को भी अपनी बेटी की पढ़ाई से कोई मतलब नहीं है पापा को बोलिए ना मेरा एडमिशन भी बाहर करवा दें मुझे भी हॉस्टल में रहना है हॉस्टल लाइफ की बात ही अलग है …पीछे पड़ी रही मेरे।

हमारे घर में लड़कियों को बाहर हॉस्टल में रख कर पढ़ाने की बात कहना मतलब खानदान के रीति रिवाजों परंपरो से विद्रोह करना जैसा था इसलिए मैं चाह कर भी हिम्मत नही कर पा रही थी।

मम्मा देखो मेरा सिलेक्शन कितने बड़े कॉलेज के लिए हुआ है मेरा रिजल्ट आया है…..अब तो मैं इसी कॉलेज में जाऊंगी पढ़ने आप पापा से बात कर ही लेना आज वरना मैं आपसे कभी बात नही करूंगी ..एक दिन बहुत उल्लसित होते हुए प्रीति ने मुझे अपना रिज़ल्ट दिखाते हुए बताया तो मैं बहुत उत्साह में आ गई मैं भी कभी कॉलेज पढ़ने नही गई थी मन के अंदर अपनी बेटी की प्रतिभा और पढ़ने के प्रति ललक देख  कर खुश हो जाती थी।

मैने प्रीति के पापा से दूसरे ही दिन मौका देख कर  प्रिती के कॉलेज एंट्रेंस एग्जाम में सिलेक्शन की बात बताई और  बाहर कॉलेज पढ़ने जाने देने की बात कही शायद प्रीति की किस्मत अच्छी थी कि उसके पापा बिल्कुल नाराज नही हुए बल्कि प्रीति को बुलाकर शाबाशी देने लगे और भावुक होकर कह उठे मेरी बेटी मेरा नाम रोशन करेंगी देख लेना मेरे खानदान में आज तक जो काम किसी ने नहीं किया वह अब मै अपनी बेटी के लिए करूंगा तू इसी कॉलेज में पढ़ने जायेगी बेटा मैं तेरे दादा दादी को मना लूंगा ।मैं इस बात का कोई पछतावा नहीं रखना चाहता कि अपनी बेटी की पढ़ने की इच्छा पूरा नहीं कर पाया…. कल ही चलते है तैयारी कर लेना।

 

मेरी और प्रीति की खुशी का ठिकाना ही नहीं था।

प्रीति के दादा जी बिलकुल तैयार नहीं थे दादी ने भी खूब ताने मारे कि नाक कटा ले लड़की को बाहर पढ़ने भेज रहा है इससे अच्छा तो कुएं में धकेल दे देख लेना तेरी नाक ऊंची नही करेगी बल्कि ऐसा कटाएगी कि हम सब कही मुंह दिखाने लायक नही रहेंगे..!

मां अगर इसकी जगह मेरा बेटा होता तब भी क्या तुम उसे बाहर नहीं जाने देती वैभव ने पूछा था।

राम राम ….बेटा होता तब ना!! जब बेटा है ही नही तो कल्पना काहे कर रहा है।सुन बेटा लड़का लड़की के बीच जो अंतर सदियों से चला आ रहा है वह तेरे मानने या ना मानने से खत्म नहीं हो जायेगा लड़की को घर की हद में ही रखना चाहिए बाहर जाकर इनके पंख निकल आते हैं और ये अपनी सीमा भूल जाती हैं।लडको का तो अधिकार बनता है बाहर जाकर पढ़ने का उन्हे बाहर भेजने में कोई खतरा नहीं होता वही तो खानदान का नाम बढाते हैं …..

नहीं दादी मैं भी आप सबका अपने पापा का नाम रोशन ही करूंगी ऐसा कुछ भी नही करूंगी जिससे मेरे पापा की नाक कटे या उन्हें सबके सामने नीचा देखना पड़े…..दादी की बात बीच में ही काटते हुए प्रीति ने कहा था और पापा के पास आकर बैठ गई थी मानो अपने पापा को बेटी पर भरोसा करने और एक मौका देने के लिए हिम्मत भरा आश्वासन दे रही हो।

और पापा ने भी बहुत गर्व से बेटी की ओर देखते हुए अपना विश्वास जताया था।

वाह बहुत अच्छा किया भाईसाहब ने …..मेरे मुंह से अनायास ही निकल गया था।

हां संजना वाकई मुझे भी अपने पति पर बहुत गर्व अनुभव हो रहा था मेरी उम्मीद से बढ़कर और घरवालों के विरोध झेल कर इनका ये निर्णय मुझे गहरी संतुष्टि और प्रसन्नता दे गया था….

इसीलिए प्रीति को भी हॉस्टल जाने से पहले बहुत समझा बुझा कर विदा किया था कि

” बेटा चाहे कुछ भी हो जाए अपने पापा का विश्वास खंडित मत होने देना कुछ ऐसा कर दिखाना जिससे तेरे पापा को घरवालों से लड़कर लिए अपने निर्णय पर पश्चाताप ना करना पड़े .. हर तरफ से ध्यान हटा कर सिर्फ अपने रिजल्ट और कैरियर पर केंद्रित रहना देख  मैने ही तेरे पापा से तुझे बाहर भेजने की वकालत की है मेरा सिर ना झुकाना ।

इतनी मेहनत मशक्कत के बाद और भारी फीस भर कर इसके पापा प्रीति का एडमिशन कितने उत्साह से करवा कर आए हैं जब से आए हैं कितने खुश रहते हैं प्रीति की तारीफ हर आने जाने वाले से करते रहते हैं मुझसे भी हमेशा कहते रहते हैं ईश्वर ने हमें लड़की के रूप में लड़का ही दिया है एक दिन पूरा खानदान देख लेगा कि मेरी बेटी ने बेटे से बढ़ के काम किया है …..मैं इस दिन का बेसब्री से इंतजार कर रहा हूं मीरा…!

अभी बीस दिन भी तो नहीं बीत पाए हैं उसे कॉलेज गए और ऐसी बहकी बहकी बातें…. पढ़ाई छोड़कर घर वापिस आने का रोना लेकर बैठ गई है… संजना मैं इस लड़की का क्या करूं सच में बच्चों को ज्यादा सिर नही चढ़ाना चाहिए ……अरे घर से बाहर निकलो तो घर जैसा खाना कैसे मिलेगा ….इतने  नखरे करने थे तो हॉस्टल गई ही क्यों है..!! यही घर पर रहती और खाना ही खाती रहती…मीरा भाभी के स्वर में खीझ स्पष्ट झलक रही थी।

लेकिन भाभी मेरी सलाह है कि आप भाईसाहब से जल्दी ही ये चर्चा कर के प्रीति को यहीं घर ले आइए समय बहुत खराब चल रहा है वहां वह अकेले हैं परेशान है आपने भी बात नही सुनी कहीं कुछ कर ना बैठे फिर पश्चाताप करते रहना …मैने अपने भीतर का डर उजागर कर ही दिया।

 

लेकिन संजना…कैसे बताऊं उसके पापा को कि उनकी बेटी वापिस घर आना चाहती है कैसे कहूं कि उन्होंने जो भरोसा उस पर किया था वह टूट गया उनकी खुशी को एक पल में ही नष्ट कर दूं!!! नहीं संजना मेरी हिम्मत नही हो रही है मैं कुछ नहीं बताऊंगी उसके पापा को ….रहने दो प्रीति को वहीं वह खुद ही एडजस्ट कर लेगी ऐसे उसके कहने पर रोने पर हम लोग ध्यान देंगे और   बार बार दौड़ लगा के उसके पास जाते रहेंगे तो वह खुद क्या सीख पाएगी…!

किसके क्या सीखने की बात हो रही है …..अचानक वैभव आ गए तो मीरा चुप सी हो गई….

जी कुछ नहीं ऐसे ही

नहीं कोई तो बात है मीरा तुम लोग चिंतित दिख रहे हो वैभव ने मेरी ओर देखते हुए पूछा।

जी वो प्रीति का फोन आया था

अच्छा प्रीति का !! हां कैसी है वह सब ठीक है ना!!

खाना अच्छा नहीं लग रहा है उसे हॉस्टल का

हां तो भाई अब घर जैसा खाना वहां कहां हंसते हुए वैभव ने कहा।

नहीं वह वहां रहना ही नहीं चाहती कह रही थी आकर मुझे यहां से ले जाओ सहमते हुए मीरा ने बात कह ही दी।

क्या कह रही थी आकर ले जाओ ….रहना ही नहीं चाहती…..खाना इतना खराब लग रहा है उसे!!तुमने क्या कहा!अचानक वैभव स्वर गंभीर हो गया था।

अरे नकचड़ी आदत है उसकी आज ऐसा कह रही थी कल अपने आप रहना सीख जायेगी अब बाहर तो काफी कुछ एडजस्ट करना ही पड़ेगा

तब तक वैभव ने प्रीति को फोन लगा दिया।

मीरा को लगा वैभव गुस्से में हैं और डांटेंगे ।

अभी रहने दीजिए मैने उसे समझा दिया है की पापा को जब फुर्सत मिलेगी तुम्हारे पास आ जायेंगे

हेलो हां बेटा सुन ……अरे तू रो रही है क्या…!ना बेटी बिलकुल चिंता मत करना मैं कल सुबह ही तेरे पास पहुंच जाऊंगा अपना सब समान पैक कर लेना ठीक है हां हां बिलकुल चिंता मत करना अरे अपनी बेटी के लिए मैं हमेशा फ्री हूं कल मिलते हैं बेटा..!वैभव ने कहते हुए फोन रख दिया था।

मीरा तुम भी साथ में चलो जल्दी से कुछ कपड़े रख लो एक घंटे बाद ट्रेन है वैभव  काफी गंभीरता से कहते हुए तेजी से चेंज करने चले गए।

हकबकाई सी मीरा को संजना ने संभाला भाभी ठीक तो कह रहे हैं भैया मैं तो पहले ही डर रही थी आप लोगों को वहां तुरंत जाना ही चाहिए।

नहीं संजना मुझे डर है इनकी खामोशी कल क्या रंग लायेगी!!

ट्रेन में भी वैभव अत्यधिक गंभीर और चुप ही रहे  ये देख कर मीरा का दिल कांप रहा था ….पछता रही थी कि इस सिरफिरी लड़की को बाहर भेजने की पैरवी उसने क्यों की थी…!!

सुबह ही वे लोग हॉस्टल पहुंच गए थे।

पापा आप मुझसे नाराज़ तो नही हैं ….देखते ही सबसे पहली बात  प्रीति ने यही कही थी।

अरे बिलकुल नहीं बेटा अच्छा किया तुमने हमे बुला लिया तू तो बिलकुल तैयार बैठी है चलो चल कर तुम्हारे विभाग प्रमुख से मिल लेते हैं तुम्हे यहां से ले जाने के संबंध में  ….!

पापा की बात सुनते ही प्रीति चौंक सी गई क्यों क्यों जाना है सर से मिलने …..!!नहीं नहीं मुझे किसी से नहीं मिलना पापा बस यहां से चलिए क्या करेंगे आप उनसे मिल कर पापा..!!

पर मुझे तो मिलना है मेरी फीस शायद मुझे वापिस मिल जाए और बेटा उनकी परमिशन तो लेनी पड़ेगी सूचित तो करना पड़ेगा ऐसे कैसे बिना किसी को बताए  यहीं से तुझे लेकर घर चला जाऊं..!! हंसते हुए वैभव ने कहा तो प्रीति बड़ी मुश्किल से तैयार हो गई।

मीरा के मुंह से तो आवाज ही नहीं निकल रही थी बस वह प्रीति को बहुत नाराजगी से देख रही थी …!

प्रीति क्लास में रेगुलर नहीं रहती है और असाईनमेंट्स भी ठीक से नही कर पाती है अभी क्लास टेस्ट हुए थे जिसमे इसके मार्क्स सबसे कम है टॉप बॉटम है ये…..प्रोफेसर समीर ने उनकी तरफ प्रीति की मार्किंग शीट बढ़ाते हुए कहा जिसे देखते ही प्रीति का चेहरा फक्क हो गया था …यह वैभव ने तुरंत भांप लिया था प्रीति वहां से उठकर जाने लगी थी तभी वैभव ने उसका हाथ पकड़ कर अपने पास बिठा लिया था।

 

सर मुझे अपनी बेटी के टॉप या बॉटम से कोई फर्क नहीं पड़ता वह यहां आई है घर से बाहर मां बाप से दूर रह कर हिम्मत की है पढ़ाई करने की मेरे लिए यही बहुत है फिर अभी तो शुरुआत है हां ये सही है कि वह पढ़ाई में शुरू से बहुत अच्छी रही है इसलिए उसका निराश होना स्वाभाविक है पढ़ाई में पिछड़ते जाने के कारण ही शायद वह क्लास में भी रेगुलर नहीं रह पाती होगी  लेकिन वह एक हिम्मती लड़की है इतनी जल्दी हार नहीं मानती मार्क्स का क्या है आज कम आए हैं तो कल बढ़ जायेंगे …….वैभव की बातें मानो प्रीति पर जादू का असर कर रही थीं

पापा क्या सच में मेरे इतने पूअर मार्क्स से आप नाराज नही हैं मैने तो आपकी नाक कटा दी पापा दादी ठीक बोलती थी मैं बाहर भेजने लायक हूं ही नहीं….प्रीति की आत्मग्लानी दिल की दबी असली व्यथा फूट फूट कर आंसुओं में बाहर आने लगी….आप अभी भी मुझसे नाराज़ नहीं है पापा मैं क्लास में सबसे फिसड्डी आई हूं ….मैं आगे भी कुछ नहीं कर पाऊंगी इसीलिए मुझे घर ले चलिए …….आपके पैसे बर्बाद कर दिए मैंने…!!

 

अरे सुन मेरी रानी बेटी मैंने तुझे यहां पढ़ने भेजा है ज्ञान अर्जित करने भेजा है अगर इन पंद्रह  बीस दिनों में तूने एक भी नई बात सीख ली है तो तेरा यहां आना मेरे लिए सार्थक है मैने तुझे मार्क्स की रेस लगाने नहीं भेजा है इसमें नाक कटाने जैसी कोई बात नही है ना ही कोई शर्म की बात है कम से कम तूने यहां आकर नवीन परिवेश में अकेले जूझकर इतने दिन काटे और भले कम है लेकिन मार्क्स तो हैं जो ये सिद्ध करते हैं तूने अपनी तरफ से कोशिश  की है बस इसी बात का संतोष है मुझे …..तुझे यहां भेजने पर कोई पछतावा नहीं है बेटा हम इंसान हैं आगे बढ़ने के हर अवसर का लाभ उठाने की कोशिश करना ही हमारे हाथ में है वही तूने किया…..चल अब तेरे हॉस्टल वार्डन से भी मिल लेते हैं खाना भी खाकर देख लें और मेस की बाकी फीस भी भर देते हैं वैभव ने हंसते हुए आश्वस्त मुस्कान से कहा तो

प्रीति अपने पापा से लिपट पड़ी नहीं पापा अब मुझे घर वापिस नही जाना ना ही आप लोगो को हॉस्टल जाने की जरूरत है ..!!

क्यों खाना खराब है यही तो तेरी शिकायत थी हमे भी देखने दे कितना खराब है यहां का खाना जिसने तेरे पढ़ने के सपने को भी चूर चूर कर दिया और हमे सारा काम छोड़कर यहां आना पड़ गया……पहली बार मीरा की आवाज गूंज उठी थी।

नहीं मां मैं खाना खराब होने के कारण नहीं वरन मार्क्स खराब आने के कारण पढ़ाई से पलायन कर रही थी लेकिन पापा की बातो से मुझे फिर से हिम्मत आ गई है..पहली बार प्रीति के चेहरे पर मुस्कान आई थी।

बेटा तुझे जितनी कोशिश करना हो कर…. ताकि बाद में थोड़ी कोशिश और कर लेती इसका पछतावा ना हो….लेकिन मार्क्स की चिंता मत करना अच्छे आ गए तो भी ठीक बुरे आ गए तो भी ठीक तेरे पापा तेरे साथ हमेशा खड़े हैं मेरी बेटी घर से बाहर अकेले रह कर पढ़ाई करने की हिम्मत कर रही है तो हम भी उसके साथ हर क्षण हर कदम पर हिम्मत देने के लिए खड़े हैं बेटा दुनिया का क्या है तू कितना भी अच्छा कर लेगी तब भी जिसको बुराई करना है वो कमी ढूंढ ही लेगा ….तेरा मुकाबला तो खुद तुझसे है तेरी खुद की सामर्थ्य से है …जो असीमित है मैं जानता हूं …और जब भी तुझे लगे की अब मैं सारी कोशिश कर चुकी अब मुझसे नही हो पाएगा…मुझे  घर जाना है तो मुझे बता देना मैं तुरंत आ जाऊंगा …वैभव ने कहा तो जैसे प्रीति फिर से जी उठी थी और हां पापा अभी मेरी कोशिशें बची हैं दृढ़ता से कह अपना सामान लेकर वापिस हॉस्टल की तरफ चली पड़ी थी

और वैभव और मीरा की ट्रेन वापिस घर की ओर चल पड़ी थी।

एक बात पूछूं मीरा ने  ट्रेन में बैठते ही वैभव से पूछा

घर में आपने फोन पर प्रीति से बात करते हुए तुरंत अपने आने  की बात क्यों कह दी थी यही सब जो यहां आकर समझाया वहीं घर से कह क्यों नहीं दिया था ।

अरे मेरी भोली श्रीमती जी सुनिए

खानदान की इज्जत पापा की इज्जत आदि आदि का इतना दबाव मेरी बेटी सह नहीं पाई व्यक्ति जब दबाव में या तनाव में रहता है तब वह सरल तम कार्यों को भी गलत कर देता है वही प्रीति के साथ वहां जाकर हुआ

मैं तुम्हारी बात सुनकर तत्काल समझ गया था मेरी हिम्मती बेटी के घर आने की जिद खराब खाने की वजह से नहीं हो सकती जरूर इसके टेस्ट में बहुत  कम मार्क्स आए होंगे या और कोई वजह होगी ..इसलिए यहां आकर असलियत जानना चाहता था…तुरंत आने की बात इसलिए भी कही ताकि आज कल की हवा के अनुसार पापा की उम्मीदों पर पहले ही टेस्ट में पानी फेरने के अपराधबोध से ग्रस्त या और कोई भी वजह से अनजाने में वह कोई गलत कदम ना उठा ले ….फिर हमारे हाथ पश्चाताप करने के सिवाय कुछ और ना लगता….बल्कि हम लोगो के आने की राह देखते मन में ढांढस रखे

और वो आते समय ट्रेन में इतनी गंभीरता से चुपचाप क्या प्रीति को हॉस्टल भेजने के अपने निर्णय पर पश्चाताप कर रहे थे मीरा ने बीच में ही पूछ लिया

देखो मीरा डाट डपट कर घर ले आना कोई समाधान नहीं है और ना ही इस बात से डरते रहना कि कहीं वह कोई गलत कदम ना उठा ले …. मुझे बेटी को यहां भेजने का पछतावा नहीं हो रहा था बल्कि पश्चाताप इस बात का हो रहा था कि मैंने अपनी बेटी को मुसीबतों से समस्याओं से तनावों से जूझना नही सिखाया ….मेरी बेटी को इतना मजबूत होना चाहिए कि जिंदगी में आने वाली समस्याओं से जूझ सके लड़ सके हर चुनौती का सामना करने लायक बन सके ना की मुसीबतों से घबरा कर पलायन कर जाए..!!

मीरा मंत्रमुग्ध सी एक लड़खड़ाती हुई बेटी के कदमों को जिंदगी की जमीन पर मजबूती से जमाते पिता की बातें सुन रही थी……….!!

लतिका श्रीवास्तव

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