किसी के घर सोच समझ कर खाओ –  मधु वशिष्ट

आशा जी हमारी कॉलोनी के सबसे ज्यादा चुस्त-दुरुस्त और मिलनसार महिला है। मुझे तो इस कॉलोनी में आए हुए केवल 6 महीने हो गए हैं। 4 महीने पहले पड़ोस की मीना भाभी ने  मुझे सोसाइटी की किट्टी में भी ज्वाइन करवा दिया था।

किट्टी ज्वाइन करने से पहले भी मीना भाभी मुझे एक बार आशा जी के घर कीर्तन में भी ले गई थी। तब तो मैं किसी को भी नहीं जानती थी लेकिन आशा जी ने कीर्तन के बाद समोसे इत्यादि बहुत सा सामान मंगवा कर रखा हुआ था। वह सबको खाने के लिए बहुत जिद कर रही थी। क्योंकि मैं अधिकतर तला भुना नहीं खाती थी लेकिन फिर भी उनके आग्रह को मैं टाल नहीं सकी और मैंने भी कीर्तन के बाद समोसे इत्यादि ले लिए लेकिन क्योंकि बहुत सा सामान झूठा ना बचे इसलिए मैं अपना खाया हुआ आधा समोसा और गुलाब जामुन एक पॉलिथीन में पैक करवा कर अपने घर ले आई थी।

उसके बाद दो-तीन बार आशा जी का भी मेरे घर पर आना हुआ और मैंने भी उनके स्वागत में खाने पीने की कोई कमी तो नहीं रखी।

जी नहीं पाठकगण यकीन कीजिए मैं अच्छी मेहमाननवाज़ हूं और मैं बिना वजह अपनी तारीफ नहीं कर रही अपितु मेरे मन को बहुत ठेस पहुंची है सिर्फ वही आपके साथ सांझा कर रही हूं।

 



कुछ समय पहले हम सब महिलाएं सोसाइटी के क्लब हाउस में बैठी हुई थीं। यूं ही जब बात चली तो मैं भी उनकी बातों में शामिल हो गई थी। किट्टी की बातें और इधर-उधर की बहुत सी बातें हो रही थी। सोसाइटी की बहुत सी महिलाएं जिनके बारे में मैं जानती भी नहीं थी सब के बारे में कुछ ना कुछ बातें हो ही रही थी। तभी आशा जी का भी जिक्र आया।

मैंने मुस्कुराते हुए सब को बताया कि आशा जी को तो मैं सोसाइटी में सबसे पहले ही जानी थी। मीना जी के साथ उनके कीर्तन में ही मेरा जाना हुआ था। वह बहुत अच्छी हैं वह हर काम में बेहद सुघड़ है। उनके घर में हुए कीर्तन में बहुत आनंद आया था। अबकी किट्टी भी तो उनके ही घर में है।

मेरी यह बात सुनकर सामने रहने वाली मिसेस भाटिया मूंह बिचकाते हुए बोली, किट्टी में उसके घर तो खाने का भी धर्म नहीं है। मेरा तो मन कर रहा है कि केवल पैसे ही पहुंचा दूं। मैंने हैरान होकर कहा क्यों? वह तो सब कुछ बहुत अच्छा अरेंज करती हैं फिर भला ऐसा क्यों?



तभी मिसेज भसीन मेरी तरफ देख कर बोली आप तो अभी आई है ना और आपको पता नहीं है, इन्होंने कीर्तन करा था और सबको खिलाया भी था बाद में पूरी सोसाइटी में वह यह कहती हुई घूम रही थी कि मैंने खाने का बहुत सामान मंगवाया था लेकिन कीर्तन में आई औरतों को खाने का ढंग भी नहीं था। औरतों ने खुद खाया तो खाया बाकि खाने का सामान पैक करके अपने घर भी लेकर के चली गई। मिसिज़ भसीन बोली मेरा तो व्रत था इसलिए मैंने तो वहां कुछ  खाया भी नहीं था। मैंने तो आशा को बिल्कुल स्पष्ट कह दिया था तो वह बहुत शर्मिंदा हुई।

अब शर्मिंदा होने की बारी मेरी थी। मैंने सफाई सी देते हुए कहा कि इतना अधिक तला भुना तो मैं भी नहीं खाती वह तो उन्होंने जबरदस्ती की थी तो मैंने एक समोसा वगैरा ले लिया था लेकिन तभी पीछे से शालू भाभी बोली हां हमें पता है, तुम मीना के साथ चली गई थी, वह कह रही थी उसके बाद तो मैं ना तो कुछ सफाई देने पाई और ना ही कुछ बोल पाई।

पाठकगण आज के समय केवल औपचारिकता ही निभाई जाती हैं यह मेरी समझ में आ गया था।  अब मैं किसी के भी घर में बहुत सोच समझकर ही जाती हूं सच पूछो तो उसके बाद मुझे किट्टी में भी सबके घर खाने में अजीब ही लगता था क्योंकि सोसाइटी की औरतों के साथ क्लब हाउस में बैठकर सब की सब बातों के बारे में चर्चा होती थी। वह तो मुझे मालूम चल गया था कि कुछ भी करो बुराई मिलना तो निश्चित ही है इसलिए उसके बाद मैंने भी फालतू की अड़ोस पड़ोस की औपचारिकताएं निभाने की बजाए अपने पेंटिंग के शौक को ही जागृत किया और मैं फेसबुक व्हाट्सएप के बहुत से ग्रुपों के माध्यम से पेंटिंग्स में अच्छा खासा नाम भी कमा चुकी हूं और अब मेरी बहुत सी पेंटिंग्स बिकने भी लगी हैं। मैं उपहार में भी सबको पेंटिंग्स से ही देती हूं अब कोई मेरे बारे में आगे या पीछे क्या बातें करते हैं मुझे यह ना तो सुनने का समय है और ना ही कोई जानने का शौक।

पाठकगण इस बारे में आपका क्या ख्याल है? कमेंट में बताइए। ब्लॉग पढ़ने के लिए धन्यवाद पसंद आने पर लाइक फॉलो और शेयर करना ना भूलें।

 मधु वशिष्ट 

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