खुशकिस्मत – ममता भारद्वाज  : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : चारो तरफ खुशी का वातावरण है। आज किशनजी और दयाजी के विवाह की पचासवीं सालगिरह मनाई जा रही थी । पूरा होटल दुल्हन की तरह सजा था । शहर के सभी गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।दयाज़ी  कीमती सारी और आभूषण पहन कर नववधू की तरह सजी हुई बहुत ही सुंदर लग रही थी। मुख पर छाई सौम्यता उनके आकर्षण में चार चांद लगा रही थी।

हर कोई आकर उन्हें बधाई दे रहा था और उनके भाग्य को सराह रहा था कि ये कितनी किस्मत की धनी हैं।ये बात हैं भी सही क्योंकि ये पल भाग्यशाली लोगो को ही मिलते हैं।  हर कोई आकर उन्हें बधाई दे रहा था और कह रहा था कि आप कितनी भाग्यशाली है जो आपको ऐसे बेटे और बहुएं मिले।सारी व्यवस्था उनके दोनों बेटे और बहए ही देख रहे थे।

ये सब देखकर और सुनकर दयाजी अतीत के गलियारों में पहुंच गई।अब तक की सारी जिंदगी उनके मस्तिष्क में चलचित्र की भांति चलने लगी कि कैसे निम्न मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मी  वह वो बेटी थी जिसे जन्म के समय ही मां को खो देने के कारण उन्हें भाग्यहीन माना जाता था। उन्हें हर शुभ कार्य से दूर रखा जाता था।सयुंक्त परिवार होने के कारण    

ताई और दादी ने उसे पाला। दादी को तो उससे लगाव था पर ताई के लिए वो हमेशा एक अनचाहा बोझ थी जिसे वो समाज और परिवार के कारण उठा रही थी।जब तक दादी रही तब तक फिर भी ठीक था ।दादी के स्वर्ग सिधारने के बाद तो ताई के उस बिन मां की बच्ची पर अत्याचार बढ़ गए। अब सारा दिन वो काम करती बदले में ताई दो समय का रूखा सूखा पड़ा हुआ खाना दे देती।

अपना पीछा छुड़ाने के लिए एक बहुत ही गरीब घर का लड़का  जो थोड़ा लंगड़ा कर चलता था उससे विवाह कर दिया। अपना भाग्य समझ कर दयाजी पति के घर आ गई । दयाजी के पति किशनजी के पास दो बीघा बंजर जमीन थी । उपजाऊ जमीन न होने के कारण वो दुसरो के खेतो में काम करते थे। किशनजी बहुत ही मेहनती थे। दयाजी बहुत ही समझदारी से अपनी गृहस्थी चलाती थी ।

कभी कभी कम आमदनी होने के कारण उन्हें भरपेट खाना भी नहीं मिलता था।पर कहते हैं ना कि भगवान के घर देर है पर अंधेर नही।किशनजी की को बंजर जमीन पड़ी थी वो सरकार ने बिजलीघर बनाने के लिए पांच गुना ज्यादा दाम पर खरीद ली। मेहनती तो किशन जी थे ही , उन्होंने अपना खुद का छोटा सा व्यवसाय आरंभ कर दिया।  धीरे धीरे उनका व्यवसाय बढ़ने लगा ।

गृहस्थी भी बढ़ी,दो प्यारे प्यारे बच्चे भी हो गई। बच्चे बड़े हुए उन्होंने अपने पिता का कारोबार में हाथ बढ़ाना आरंभ कर दिया। पिता और पुत्रो ने मिलकर कारोबार का इतना बढा दिया कि अब किशनजी की गिनती शहर के धनी व्यक्तियों में होने लगी।

इस सारी सफलता और संपन्नता का श्रेय किशनजी अपनी पत्नी को देते थे वो मानते थे कि दया के आने के बाद ही उनकी किस्मत बदली है।दया के संतोषी और प्रेरणादायक व्यवहार के कारण ही उन्हें सफलता मिली हैं।जो दया जन्म से बदकिस्मत मानी जाती थी वो अब उनके लिए बहुत ही भाग्यशाली बन गई थी।

 दयाजी बैठी हुई या सब सोच रही थी ,तभी उनके पति ने उनका हाथ पकड़ा और कहा कि कहां खो गई। दयाजी वर्तमान में वापिस आई और पति की तरफ भीगी आंखों से देखा। उन्होंने भगवान को ऐसा पति और बच्चे देने के लिए धन्यवाद दिया।

  भगवान पर पूरा भरोसा रखकर सच्ची लगन और मेहनत से यदि कार्य किया जाए तो देर सबेर किस्मत साथ अवश्य देती है।

ममता भारद्वाज 

#किस्मत

 

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