खुशी – संगीता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi :

” सुनो सरला एक बहुत अच्छी खबर है !” जितेंद्र जी दरवाजे से ही चिल्लाते हुए बोले।

” अरे ऐसी क्या खबर है जो आपको अंदर आने का सब्र भी नही हो रहा ?” सरला जी रसोई से निकलते हुए बोली।

” अरे भाग्यवान बात ही ऐसी है ! अपनी खुशी के लिए एक एन आर आई लड़के का रिश्ता आया है वो अपने सिन्हा साहब है ना उनकी बहन का लड़का है अमेरिका मे रहता है  ।” जितेंद्र जी खुश होते हुए बोले।

” पर बेटी को इतना दूर भेजोगे मिलने को भी तरस जाएंगे !” सरला जी ने शंका जाहिर की।

” अरी भाग्यवान आजकल क्या देश क्या परदेस सब बराबर हो गये है जब मिलना हो आना जाना कौन सा मुश्किल बस जेब मे पैसा होना चाहिए !” जितेंद्र जी ने कहा ।

जब खुशी को इस रिश्ते की बताई गई तो पहले पहल उसे भी इतना दूर जाने का सोच अजीब सा लगा पर उसके पिता द्वारा विदेशी जिंदगी का जो खांचा खींचा गया उसको देखते हुए उसने हाँ कर दी । तय समय पर सिन्हा जी अपनी बहन और विदेश मे रहते अपने भांजे साथ आये और पढ़ी लिखी खूबसूरत किन्तु संस्कारी खुशी एक नजर मे आरुष को भा गई और चट मँगनी पट ब्याह हो गया। आरुष जोकि एक महीने की छुट्टी पर आया था उसके लौटने का समय भी आ गया और वो ये कहते हुए वापिस लौट गया कि जल्द ही वीजा की प्रक्रिया पूरी कर वो खुशी को अमेरिका बुला लेगा । खुशी आरुष के जाने से दुखी तो थी पर इस उम्मीद मे कि जल्द ही वो भी आरुष के पास विदेशी धरती पर होगी दिन काटने लगी। 

वक़्त बीतता गया पर खुशी के वीजा की प्रक्रिया पूरी नही हुई या ये कहो कि आरुष ने की ही नही । दिन महीने मे बदले तो खुशी और उसके माता पिता को चिंता हुई चिंता तो आरुष के माता पिता को भी हुई क्योकि उन्होंने तो अपने बेटे का विवाह खुशी से करवाया ही इस उम्मीद से था कि कुछ समय बाद शायद बहू बेटे को अपने देश लौटा लाये पर यहां तो बहू के बेटे के पास जाने के आसार ही नजर नही आ रहे थे। 

जितेंद्र जी ने जब सिन्हा साहब और आरुष के माता पिता से बात की तो वो लोग भी शर्मिंदा थे एक तो अमेरिका मे आरुष कहाँ रहता है ये भी किसी को पता नही था और फोन उसने बंद कर दिया था । वक्त बीतता जा रहा था पर आरुष की तरफ से कोई उम्मीद नजर नही आ रही थी मतलब खुशी के साथ धोखा हुआ था । खुशी इस धोखे से टूटने लगी थी कि उम्मीद की एक किरण नज़र आई आरुष की तरफ से एक खत के रूप मे पर उसपर तो भारत का पता था ।

जब पत्र खोला गया उसमे आरुष ने साफ लिखा था कि वह अमेरिका मे लीज़ा के साथ लिव इन मे रहता था जो उसके भारत आने से पहले उससे अलग हो गई थी लेकिन भारत से लौटने पर पता लगा कि वो गर्भवती है । उसने आरुष पर शादी के लिए दबाव डाला और आरुष ने उससे शादी कर ली इसलिए वो खुशी को इस रिश्ते से आज़ाद करता है । अगर खुशी या उसके माता पिता उसपर कोई कार्यवाही करते है तो ये उनके लिए ही अच्छा नही होगा क्योकि मामला दो देशो का है । ये खत एक भारतीय दोस्त के जरिये भेज रहा हूँ जिससे आप लोग मुझ तक ना पहुँच सके।

सकते मे आ गये सभी आरुष का खत पढ़कर उसने खत के साथ तलाक के कागज़ भी भेजे थे । सभी को आरुष पर गुस्सा आ रहा था पर कर कोई कुछ नही सकता था क्योकि ऐसे केस तो सालों खिंच जाते है । जितेंद्र जी और सरला जी बेटी को देख परेशान थे परेशान तो आरुष के माता पिता भी थे किन्तु कोई कुछ नही कर पाया और खुशी अब विवाहित से तलाकशुदा बन गई। 

खुद को कमरे मे समेंट लिया था खुशी ने ना किसी से मिलती ना बात करती । जितेंद्र जी और सरला जी उसके दुख मे दुखी थे । यूँही तीन महीने बीत गये। 

” बेटा ऐसे कैसे चलेगा खुद को किस बात की सजा दे रही हो तुम ?” एक दिन सरला जी बेटी से बोली। 

” क्या करूँ तो मम्मी लोगो के ताने सुनती रहूँ !” दुखी खुशी बोली।

” जिंदगी मे आगे बढ़ो बेटा जो हुआ उसे हादसा समझ भूल जाओ वरना मैं खुद को कभी माफ़ नही कर पाऊंगा !” जितेंद्र जी दुखी स्वर मे बोले। 

माता पिता की खुशी के लिए खुशी ने फिर से नौकरी शुरु कर दी । धीरे धीरे खुशी के जख्म भरने लगे तो उसके माता पिता ने उसकी दूसरी शादी की सोची और लड़के की खोज शुरु हुई । 

” सुनो भाग्यवान अपनी खुशी के लिए एक रिश्ता आया है लड़का मुंबई का है तुम खुशी को तैयार करो दूसरी शादी के लिए क्योकि जीवन यूँही अकेले नही कटता !” एक दिन जितेंद्र जी पत्नी से बोले !

” ठीक है मैं खुशी से बात करती हूँ वैसे भी दिल्ली से मुंबई दूर कितना है पर इस बार लड़के के बारे मे सारी जानकारी निकाल लीजियेगा !” सरला जी बोली।

खुशी से जब सरला जी ने बात की तो उसने इंकार कर दिया शादी के लिए क्योकि अब उसे शादी पर भरोसा ही नही रह गया था । किन्तु खुशी के माता पिता ने उसपर दूसरी शादी का दबाव बनाया , अपनी उम्र और समाज की दुहाई दी और अंत मे इमोशनल ब्लैकमेल किया जिससे हार कर खुशी ने हां कर दी हालांकि वो बिल्कुल भी शादी के पक्ष मे नही थी वो भी दूसरे शहर और एक दम अजनबी लड़के से पर माँ बाप के कारण उसे झुकना पड़ा । हालाँकि वो ये भी सोचती थी कि क्या एक लड़की के लिए शादी इतनी जरूरी होती है कि माँ बाप उसे किसी के भी पल्ले बाँध देते है। 

फिर से वही सब हुआ जो पहली शादी के समय हुआ । लड़के वाले खुशी को देखने आये और पसंद भी कर गये। खुशी ने भी माँ बाप के कहने पर स्वीकृति दे दी वैसे भी  हमारे समाज मे लड़की कितनी पढ़ी लिखी , सामर्थ्य वान क्यो ना हो पर शादी उसके लिए बहुत जरूरी होती है भले वो एक शादी के धोखे से उभरी भी ना हो। इस बार धड़कते दिल से खुशी तरुण जो कि खुद भी तलाकशुदा था की दुल्हन बनकर मुंबई आ गई । खुशी ने इस बार नौकरी नही छोड़ी बल्कि अपना तबादला मुंबई वाली ब्रांच मे करवा लिया। 

शुरु शुरु मे सब अच्छा था , तरुण खुशी का ख्याल रखता था वैसे भी यहाँ केवल तरुण और खुशी थे तरुण के माता पिता अपने पैतृक निवास पर रहते थे। लेकिन धीरे धीरे तरुण के बारे मे ऐसा बहुत कुछ खुशी को पता लगा जिसे सुनकर खुशी के पैरो तले जमीन निकल गई क्योकि खुशी एक बार फिर धोखे का शिकार हुई थी । तरुण एक ऐसा भंवरा था जिसे एक फूल पर बैठना ही पसंद नही था यही वजह थी कि उसका पहले भी तलाक हुआ था। इसके साथ ही तरुण को पार्टी , शराब का भी शौक था ।अब क्योकि उसका खुशी से भी मन भरने लगा था तो वो अपनी पुरानी दिनचर्या मे लौटने लगा था । देर से घर आना वो भी शराब मे धुत साथ ही अक्सर उसके कपड़ो से लेडीज परफ्यूम की खुुशबू आती थी । 

इस बार खुशी को तरुण से ज्यादा अपने माता पिता पर गुस्सा आ रहा था पहली बार का धोखा इसने अपनी किस्मत समझ स्वीकार कर लिया था पर दुबारा से उसे दलदल मे भेजने वाले उसके माता पिता ही थे जिन्होंने बिना किसी जांच पड़ताल के उसका रिश्ता कर दिया और उसके ना चाहते हुए भी उसको फिर से शादी के लिए मजबूर किया। 

शुरु मे खुशी ने तरुण को सुधारने की बहुत कोशिश की पर उसपर कोई असर नही हो रहा था । खुशी को समझ नही आ रहा था वो क्या करे । वो कोई फैसला करती उससे पहले ही तरुण की एक हरकत ने उसके होश उड़ा दिये। असल मे एक दिन ऑफिस से आ खुशी ने देखा तरुण ने दोस्तों के साथ घर पर ही शराब की महफिल सजाई हुई है जिसमे कुछ पुरुष और महिलाये शामिल थे। जिसे देख खुशी को गुस्सा आया पर वो चुपचाप अपने कमरे मे जा पार्टी खत्म होने का इंतज़ार करने लगी ।

” सुनो चलो बाहर चलो मेरे सारे दोस्त तुमसे मिलने ही तो आये है !” थोड़ी देर बाद तरुण आकर बोला।

” मुझे नही मिलना तुम्हारे शराबी दोस्तों से उन्हे जल्दी से यहाँ से चलता करो फिर मुझे तुमसे बात करनी है तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई यूँ मेरे घर मे ये सब करने की !” खुशी गुस्से मे बोली।

” देखो खुशी ये हमारी सोसाइटी का एक हिस्सा है और तुम्हे इसका हिस्सा बनना पड़ेगा मेरे दोस्तों ने आज एक बहुत अच्छा प्लान बनाया है !” तरुण खुश होते हुए बोला। 

” कैसा प्लान ?” शंकित निगाहो से खुशी ने उसे देखते हुए पूछा। 

” आज की रात हम लोग पत्नी बदलेंगे बड़ा मजा आएगा चलो तुम भी !” शराब की अधिकता मे तरुण को होश नही था वो क्या कह रहा है। 

” दिमाग़ खराब है तुम्हारा शर्म नही आती ऐसी बात करते हुए पत्नी हूँ तुम्हारी कोई खिलौना नही जो किसी को खेलने को सौंप दोगे तुम !” खुशी गुस्से मे चिल्लाती हुई बोली उसकी आवाज बाहर तक आ रही थी। 

” तुम तो ऐसे कर रही हो जैसे बहुत सती सावित्री हो उस एन आर आई से क्या तुमने मजे नही लिए और जब उसका मन भर गया तो तुम्हे छोड़ भाग गया । चलो अब ज्यादा नाटक मत करो !” तरुण बेहयाई से बोला और उसका हाथ पकड़ उसे खींचने लगा ।

” तड़ाक … थू है तुम जैसे मर्दो पर जिनके लिए औरते बस खिलौना है नही चाहिए मुझे तुम जैसे आदमी का साथ !” ये बोल खुशी ने नशे मे झूमते तरुण को धक्का दे दिया और खुद अपना पर्स उठा पिछले दरवाजे से बाहर निकल गई । पीछे तरुण के चिल्लाने और गालियों की आवाजे आ रही थी पर खुशी को कुछ नही सुन रहा था उसे तो जल्द से जल्द यहां से दूर जाना था क्योकि अगर इस घर मे वो और रही तो उसकी अस्मत का सौदा खुद उसका पति कर देगा । 

जब खुशी तरुण से काफी दूर आ गई तब उसने अपने साथ काम करने वाली एक दोस्त को फोन किया तो महिला हॉस्टल मे रहती थी । उसने खुशी को फ़ौरन टैक्सी पकड़ उसके पास आने को कहा। खुशी के आने पर जब सब बाते उसकी दोस्त रीमा को पता लगी तो उसने किसी तरह उसके वही रुकने का इंतज़ाम करवाया । अगले दिन रीमा उसे वकील के पास ले गई और तलाक के बारे मे बात की वकील ने तो खुशी को तरुण के खिलाफ केस करने की भी हिदायत दी किन्तु खुशी इस कदर हताश हो चुकी थी कि वो बस जल्द से जल्द तरुण से छुटकारा चाहती थी। 

तरुण के पास जब तलाक का नोटिस गया तब उसने खुशी को फोन कर पहले उससे माफ़ी मांगी , फिर उसने उसे धमकाने की भी कोशिश की किन्तु खुशी डरी नही उसने तरुण से साफ कहा या तो स्वेच्छा से तलाक दे दो या फिर पुलिस कंप्लेन को तैयार रहो यहां खुशी ने रीमा के कहने पर एक झूठ भी बोल दिया कि उसके पास उस रात की रिकॉर्डिंग है जिसके बल पर तरुण को सजा भी हो सकती है। 

इधर खुशी का कोर्ट मे केस गया उधर उसके माता पिता का फोन आया उसके पास और उसे घर वापसी की हिदायत दी। 

” नही मम्मी पापा अब मैं वापिस नही आउंगी आप सोच लीजिये आपने अपनी बेटी का कन्या दान नही किया बल्कि उसका तर्पण किया है ।” खुशी बोली।

” क्या बकवास कर रही हो चुपचाप घर आ जाओ वरना दुनिया बात बनाएगी कि शायद लड़की मे कमी थी जो दूसरी बार भी रिश्ता टूट गया !” खुशी की माँ बोली।

” मम्मी बात तो दुनिया मेरे वहाँ आने पर भी बनाएगी दुनिया कि मुझे परवाह नही मेरे माता पिता ने ही जब मेरे बारे मे नही सोचा तो दुनिया क्या सोचती है मुझे फर्क नही पड़ता !” खुशी बोली।

” तुम्हारे भले की सोच कर शादी की थी हमने अब हमें क्या पता था वो ऐसा होगा !” जितेंद्र जी बोले।

” पापा मैने बोला था नही करनी मुझे शादी पर आप लोगो ने जबरदस्ती मुझे इस नर्क मे धकेला क्यो नही आपने तरुण के बारे मे सारी जानकारी निकाली । क्या मैं बोझ थी पर मैं तो खुद अपने पैरो पर खड़ी थी ना और अगर बोझ थी तो वो बोझ आप उतार चुके अब मेरी परवाह मत कीजिये मैं अपना खुद देख लूंगी !” खुशी ने ये बोल फोन काट दिया। खुशी के माता पिता पछता रहे थे क्यो नही दूसरी शादी मे उन्होंने सही से जांच पड़ताल की। क्यो उन्होंने खुशी की बात नही मानी क्यो उसपर शादी के लिए दबाव बनाया। कम से कम बेटी पास मे तो थी अब जाने कैसे वो खुद को संभाल रही होगी वो तो बेटी के पास भी नही जा सकते उससे माफ़ी मांग पश्चाताप भी नही कर सकते क्योकि खुशी ने खुद मना कर दिया । 

कोर्ट मे तरुण ने खुशी की धमकी से डरकर उसे तलाक दे दिया अब खुशी आजाद थी उसे पुरुष जात से नफरत सी हो गई थी वो रीमा के साथ ही हॉस्टल मे रहने लगी नौकरी उसकी चल ही रही थी। खुशी के माता पिता ने उसे मनाने की बहुत कोशिश की पर वो अब लौटने को तैयार नही हुई । 

धीरे धीरे चार साल बीत गये रीमा भी शादी करके चली गई। अचानक उसके ऑफिस मे एक नए मैनेजर आये जो बहुत मृदुभाषी थे सभी स्टाफ उनकी बहुत इज्जत करता था । धीरे धीरे खुशी को पता लगा वो मैनेजर जिनका नाम राकेश है वो विधुर है उनकी एक छह साल की बेटी भी है । एक बार राकेश ने अपनी बेटी के जन्मदिन पर सारे स्टॉफ को घर पर आमंत्रित किया जहाँ खुशी ने राकेश की बेटी पीहू को देखा तो उसके मन मे भी मातृत्व हिलोरे मारने लगा उसने पीहू से बहुत सारी बाते की माँ के प्यार को तरसती पीहू को भी खुशी का साथ बहुत अच्छा लग रहा था। जाते वक्त उसने खुशी से उसका नंबर ले लिया ।

अब पीहू जब तब खुशी को फोन कर देती और उससे प्यारी प्यारी बाते करने लगती । जब राकेश को इस बारे मे पता लगा तो उसने खुशी से इसके लिए माफ़ी मांगी। 

” माफ़ कीजिये मिस खुशी वो असल मे पीहू बिन माँ की बच्ची है ना तो जरा सा प्यार पा पिघल जाती है आपको बेवजह तंग कर रही है वो मैं उसे मना कर दूंगा आपको कॉल कर परेशान ना करे।” 

” नही सर पीहू तो बहुत प्यारी बच्ची है मुझे भी उससे बात करके बड़ा अच्छा लगता है वैसे भी इस शहर मे कोई अपना तो है नही पीहू की बातो से अपनेपन का एहसास होता है !” खुशी ने कहा। 

खुशी का व्यवहार और पीहू का उसके प्रति लगाव राकेश को बहुत पसंद आ रहा था। अब तो पीहू जिद करके कभी कभी खुशी से मिलने ऑफिस भी आ जाती थी । राकेश को धीरे धीरे खुशी की गुजरी जिंदगी के बारे मे पता लगा जिसे सुन राकेश को खुशी से सहानुभूति हो गई। समय बीतता रहा खुशी और पीहू को मिले छह महीने हो चले थे दोनो अब बहुत करीब आ गई थी। इधर राकेश के दिल मे भी खुशी के लिए जगह बनने लगी थी । अपनी बेटी के लिए दूसरी शादी ना करने की कसम भी टूटती सी प्रतीत हो रही थी उसे। 

” खुशी जी मुझे आपसे एक जरूरी बात करनी है !” दो महीने सोच विचारने के बाद एक दिन राकेश ने खुशी से ऑफिस मे कहा। 

” जी कहिये !” खुशी बोली।

” अभी नही ऑफिस के बाद आप मेरे साथ कैफे मे चलिए !” राकेश ने कहा । खुशी हैरानी से राकेश को देखने लगी पर चुंकि राकेश का व्यवहार बहुत अच्छा था इसलिए वो मान गई । 

कैफे मे राकेश ने अपनी गुजरी जिंदगी  , अपनी पत्नी यहाँ तक की अपनी कसम के बारे मे भी खुशी को बताया और उससे शादी की मंशा जाहिर की !

” सर आप मेरे बारे मे कुछ नही जानते मुझे शादी जैसे शब्द से ही नफरत हो गई है !” एक एक शब्द चबाते हुए खुशी बोली।

” सब जानता हूँ मैं और समझता भी हूँ दो दो असफल शादियों के बाद ये नॉर्मल है फिर भी आप अगर एक बार मेरी बात पर ठंडे दिमाग़ से विचार कीजियेगा मेरे लिए ना सही पीहू के लिए ही सही मैं आपसे वादा करता हूँ मैं आपके मन से पिछली सारी कड़वाहट मिटा दूंगा। और फिर भी अगर आप इंकार करती है तो मुझे कोई दिक्कत नही ना इससे आपकी और पीहू की दोस्ती मे कोई फर्क आएगा क्योकि अभी मैने पीहू से कोई बात नही की है !” राकेश मुस्कुरा कर बोला। थोड़ी देर बाद राकेश ने खुशी हो उसके हॉस्टल के बाहर छोड़ दिया।

खुशी असमंजस मे थी अपनी पिछली जिंदगी को ध्यान मे रखते हुए उसका दिमाग़ उसे शादी की इजाजत नही दे रहा था इतना सब सहने के बाद उसका किसी पुरुष पर विश्वास का मन नही था उसने रीमा से अपने मन की बात और राकेश की कही बातो का जिक्र किया। उसने भी खुशी की मनः स्थिति देखते हुए उसे ठंडे दिमाग़ से सब सोचने को कहा क्योकि वो भी नही चाहती थी कि खुशी की जिंदगी मे अब कोई परेशानी आये।

इसी असमंजस मे पंद्रह दिन बीत गये खुशी ने राकेश को कोई जवाब नही दिया तो उसने खुशी का इंकार समझ चुप्पी साध ली। खुशी इन पंद्रह दिनों मे पीहू से भी नही मिली ना ज्यादा बात हुई उनके बीच।  आज पीहू की तबियत खराब थी तो राकेश ऑफिस नही आया था । बुखार की हालत मे पीहू खुशी का नाम ले रही थी । तो राकेश ने मजबूरी मे पीहू की नैनी से खुशी को फोन करवाया। ऑफिस के बाद खुशी पीहू को देखने चली गई पीहू खुशी को देख बीमारी मे भी चहक उठी। 

” माफ़ कीजियेगा खुशी जी वो पीहू बहुत जिद कर रही थी आपसे मिलने की इसलिए आपको परेशान करना पड़ा मुझे !” राकेश ने खुशी से माफ़ी मांगते हुए कहा।

” कोई बात नही सर बच्ची है !” खुशी केवल इतना बोली।  थोड़ी देर बाद खुशी वापिस जाने को उठी तो पीहू रोने लगी और खुशी से वहीं रुकने की जिद करने लगी खुशी और राकेश ने इसे बहुत समझाया पर वो कुछ सुनने को तैयार नही हुई अंत मे राकेश ने उसे डांट दिया तो रोते रोते खुशी बेहोश हो गई । आनन फानन मे उसे अस्पताल लेकर भागे ।

पीहू की ऐसी हालत देख खुशी की आँख मे भी आंसू आ गये और वो पीहू के पास से एक मिनट को नही हटी। थोड़ी देर मे पीहू को होश आ गया और कुछ घंटो बाद राकेश और खुशी उसे लेकर घर चल दिये । रास्ते मे राकेश ने खुशी को उसके हॉस्टल छोड़ने की पेशकश की पर खुशी पीहू को अकेला छोड़ने को तैयार नही हुई और राकेश के घर आ गई । राकेश ने पीहू को उसके कमरे मे लिटा दिया खुशी उसके सिरहाने बैठी थी। दवाई के कारण पीहू को नींद आ गई थी पर खुशी की आँख मे नींद नही थी। 

” क्यो ठुकरा रही है तू एक सुहानी जिंदगी को जिसमे तुझे एक जीवनसाथी के साथ साथ तेरे मातृत्व को पूर्ण करने को एक बच्ची भी मिल रही है !” अचानक उसके दिल ने कहा।

” दो बार असफल शादी का दंश झेलने बाद क्या ये संभव है कि किसी तीसरे का हाथ थामा जाये क्या एक औरत अकेले नही रह सकती !” उसके दिमाग़ ने कहा।

” तो क्यो तू पीहू से मिलने आई क्यो यहाँ रुकी है छोड़ दे उसे और राकेश को उनके हाल पर जब उनसे तेरा कोई सम्बन्ध नही तो क्यो तू उन्हे अपनी आदत डाल रही है जा लौट जा !” दिल ने कहा। 

” इंसानियत भी कोई चीज है पीहू बीमार है तो ऐसे मे कैसे उसे अकेला छोड़ा जा सकता है जैसे ही पीहू ठीक होगी ये लौट जाएगी !” दिमाग़ बोला।

” पर पीहू फिर बीमार हुई तो क्या खुशी के बिना वो बिन माँ की बच्ची रह पायेगी अब क्या उसे खुशी मे अपनी माँ नही नजर आती होगी । कल को खुशी के बिन पीहू को कुछ हो गया तो । राकेश कैसे जी पायेगा उस बच्ची के बिना जिसके लिए उसने दूसरी शादी का भी ख्याल निकाल दिया था मन से !” दिल बोला।

“नही नही पीहू को कुछ नही होगा , मेरी बच्ची को कुछ नही होगा !” अचानक खुशी चिल्ला उठी और अपने ख्यालो से बाहर आई । उसकी आवाज सुन राकेश दौड़ा आया। 

” आप ठीक तो है खुशी जी !” वो बोला।

” राकेश जी मैं पीहू की माँ बनने को तैयार हूँ मैं पीहू को ऐसे नही छोड़ सकती !” बच्ची को खुद से चिपटा खुशी बोली। 

” खुशी जी आप ये फैसला दबाव मे मत लीजिये और अगर आप मन से ये फैसला ले रही है तो मैं आपसे वादा करता हूँ आप सिर्फ पीहू की माँ ही नही बनेगी यहां आपको मेरी पत्नी होने के भी सभी अधिकार मिलेंगे !” राकेश बोला। 

पीहू के ठीक होते ही एक छोटे से कार्यक्रम मे खुशी और राकेश का विवाह हो गया जिसके खुशी के माता पिता भी सम्मिलित हुए थे । विवाह के बाद जैसा राकेश ने वादा किया था वही किया भी उसने अब खुशी ना केवल एक प्यार करने वाले पति की पत्नी है बल्कि एक प्यारी सी बेटी की माँ भी है । आखिर खुशी की जिंदगी मे खुशी आ ही गई थी । विवाह के छह महीने बाद भी अपनी चहकती बेटी को देख खुशी के माता पिता का पश्चाताप भी कुछ हद तक कम हो गया है। 

आपकी दोस्त 

संगीता अग्रवाल 

#पश्चाचाप

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!