ख़ुशी के दिन – मीनाक्षी सिंह : Moral Stories in Hindi

यार मिनी…. मेरा तो जी खट्टा हो गया हैं माँ जी से … मन ही नहीं करता कि उनकी सेवा करूँ ,, उन्हे अच्छे से खाने पीने को दूँ .. उनका ख्याल रखूँ … कई बार तो वो आवाज लगाती रहती हैं पर वो पुरानी बातें याद कर खून खौल जाता हैं…अनसूना कर देती हूँ…बुरा तो लगता हैं पर क्या करूँ.. उनका उस समय किया गया  मुझसे रुखा व्यवहार दिल को अंदर तक  कचोट देता हैं… तू तो सब जानती हैं यार …

हां रागिनी … मुझे सब याद हैं कैसे जब तू ब्याह के आयी इस घर में, तेरी छोटी सी भूल य़ा चूक को भी जीजा जी और तेरे ससुरजी  तक बढ़ा चढ़ाकर बताती थी और तब तक बात को खिंचती रहती थी जब तक वो लोग तुझे दो चार खरी खोटी ना सुना ले.. बेचारे जीजा जी नौकरी से इतने महीनों बाद तेरे पास आतें थे.. उनके कान भर भरकर तुम दोनों में मन मुटाव पैदा करती थी.. हर बात तेरी ननदों को और पड़ोसियों को बताती थी… तेरे बेटे और बेटी के जन्म पर भी हाथ नहीं हिलाया तेरी सास ने…

बस बैठी बैठी देखती रहती थी और तुझे खरी खोटी सुनाती रहती हैं… कभी बच्चों को काम के समय गोद नहीं लिया… तू वहीं रसोई में बच्चों को बैठा खाना बनाती थी… सारे घर के काम करती थी…उसके बाद भी हर चीज में कमियां निकालती थी…

मुझे अच्छे से याद हैं कैसे तेरा नन्दन खौलते दूध से जल गया था… सभी से कहां कि तू सो  रही थी इसलिये ऐसा हो गया.. जीजा जी ने उस दिन तो गुस्से में तुझे थप्पड़ भी मार दिया था जबकि तू छत पर कपड़े सुखाने गयी थी और नन्दन को वहीं सास के पास खेलने को छोड़ गयी थी  यह सोचकर कि भले ही गोद में ना ले पर देखती तो रहेगी… उन्होने तो उसकी तरफ देखा तक नहीं.. कब बेचारा  रसोई में चला गया और चिमटे से उसने दूध का खौलता भगोना अपने ऊपर गिरा लिया था…

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पता है मिनी… मेरे नन्दन के जले के दाग अभी तक नहीं गए हैं… 25 साल का हो गया तब भी.. बेचारा आधी बाजू का तो कोई कपड़ा पहनता ही नहीं… और तू वो बात कैसे भूल सकती हैं जब मैं पेट से थी… मेरी माँ भी नहीं थी जो मायके से घी के ल्ड्डू भेज देती… कैसे माँजी ने दिखा दिखाकर घी के ल्ड्डू बनाये और मेरी ननद को कनस्तर भर भिजवा दिये… मुझे देखने तक ना दिये… दुख नहीं होता मुझे.. आखिर मेरा भी कुछ हक हैं इस घर पर .. ब्याह कर आयी थी यहां… बोलते बोलते रागिनी रोने लगी…

रो मत यार.. पूरा जीवन तेरा रो रोकर ही गया हैं.. अब तो तेरे ख़ुशी के दिन आयें हैं… तेरे दोनों बच्चें अच्छी नौकरी से लग गए हैं… नन्दन के लिए लड़की भी मिल गयी हैं… जीजा जी भी खूब प्यार करते हैं तुझसे… रही बात सास कि तो उन्हे उनके कर्मों का फल ईश्वर ने दे दिया हैं… 55 साल की उम्र में ही लकवा मार गया… तेरे ससुर जी भी उसके बाद इसी दुख में चले गए… पर फिर भी तू कुछ भी कहे इतने सालों से सास के बेड पर होने के बावजूद इतने  खट्टेपन के बाद भी तू गुस्से में ही सही उनकी दिन रात सेवा करती हैं…

और क्या मैने नहीं देखा जब भी उनकी सांस उखड़ती हैं तू बांवरी सी हो जाती हैं कि कहीं उन्हे कुछ हो ना जायें … देख रागिनी जो हो गया सो हो गया.. पुरानी बातें छोड़कर जो थोड़े बहुत दिन बचे हैं उनके पास  ,, उनकी सेवा कर लें…. कैसी भी हो हीरा जैसा बेटा अपने ज़िगर का टुकड़ा तो उन्ही का दिया हुआ हैं तुझे ज़िसकी वजह से तू राज कर रही हैं… तेरे  नन्दन की बहू आने दे देखना कितना बुरा लगेगा तुझे जब नन्दन तुझसे थोड़ा दूर हो जायेगा…

तभी सासू माँ के कराहने की आवाज आयी… रागिनी आंसू पोंछ दौड़ती हुई गयी… सासू माँ को उठाकर उन्हे दवाई दी, पानी पिलाया … सास ने अपने दोनों हाथ उसके सर पर रख दिये.. रागिनी ने सास को गले लगाया…. उन्हे आराम से तकिये के सहारे लिटा दिया… और वहीं बैठी रही.. मिनी यह देख चेहरे पर मुस्कान लिए अपने घर की ओर रवाना हो गयी…

मीनाक्षी सिंह की कलम से

आगरा

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