खाली लिफ़ाफ़ा – सुधा शर्मा

“कहाँ  खो गए आप?”पूछा सुमि ने।’ क्या कहता उससे?उसके अलावा कहीं मन लगता है  क्या?’ पहली बार चाची के घर मेरी कविताएँ सुनने आई थी, तब देखा था मैंने उसे।तब ही मेरे मन को भा गई थी वह।न जाने कितनी गहराई थी उसकी आँखों में कि मै डूबता चला गया ।सहमी सी, सकुचाई सी, सादगी की प्रतिमूर्ति ।उसके व्यक्तित्व में ऐसी कशिश थी कि मै चाह कर भी अपना मन उसकी ओर से नहीँ हटा पा रहा था ।कविता सुनते समय वह बहुत भावुक हो गयी थी।उस दिन मन चाह  रहा था कि बस मै सुनाता रहूँ और वह सामने बैठी रहे। तभी बाहर से कर्कश आवाज सुनाई दी,”क्या बात है? घर नहीं आना है क्या? ” और वह सहम कर एकदम बाहर भाग गई । 

   चाची से पता चला बहुत बड़े घर में बडी  हुई ।बंगला,गाडियाँ नौकर चाकर सब कुछ था।कान्वेंट में पढी थी, खूब अच्छी अंग्रेजी बोलती थी। पर जाने कैसी विडम्बना रही कि ऐसे घर ब्याही।न घर ,  न वर कुछ भी तो उसके लायक नहीं ।    

जितना उसके बारे मे जानता उतना ही मन उसकी ओर खिंचता चला जा रहा था ।

मै अपने शहर आ गया पर अपना मन वहीं छोड़ आया ।

अब बार बार उस शहर उसके घर  जाने लगा । वो




सामने होती तो उसे देख जी नहीं भरता। अब वह भी मेरे मन की भावनाओं को समझती थी । मेरी कवितायेँ उसके मन को छूने  लगीं थी।उसे भी मेरा   इन्तजार रहता।एक बार  चाची ने बताया कि इसकी एक बड़ी बहन है ।रमा नाम है उसने अभी तक शादी नहीं की है।तू करेगा  बात  चलाऊँ ।  मेरे मन को तो सुमि भा  गई थी ।

एक दिन उसने बताया कि  अनेक तरह के जुल्म, मार पीट से परेशान हो उसकी माँ पति का घर छोड़कर  आगयी, नयी जिंदगी शुरू कर दी ।         वो जल्दी ही दुनिया छोड़ गयी और इसका जीवन तहस नहस हो गया ।

मै सुमि के लिए बहुत कुछ  करना चाहता था । क्या मै  इसको इस नर्क से छुटकारा नहीं  दिला सकता । कैसे मै इसके जीवन मे खुशी ला सकूँगा?     

   सुमि  मेरी होगी  इसके जैसे सुन्दर हमारे बच्चे,,,, एक दम मुझे जैसे किसी ने जोर का झटका दिया । क्या फिर वही कहानी दोहराई

जा रही  है?  मै उसका घर  ,  सम्मान, प्रतिष्ठा  सब कुछ दांव पर लगा कर क्या उसे सुख दे पाऊंगा सुखी रह पाऊँगा।  खाली लिफ़ाफ़े सा भटक रहा था मैं ।यह खाली लिफ़ाफ़ा रमा को ही समर्पित मुझे क्षमा करना सुमि !     

 मौलिक स्वरचित सुधा शर्मा

 

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