काश!! सही वक्त पर अपनों का साथ मिला होता –  शीनम सिंह

“मां ये कार्ड किसके यहां से आया है” टेबल पर पड़े इन्विटेशन कार्ड को हाथ में लेते हुए तनु बोली.

“बेटा,मेरी वो सहेली है ना!! कुसुम उसकी रिटायरमेंट पार्टी है,उसी का कार्ड है परिवार सहित बुलाया है.”

“ओह कुसुम आंटी की रिटायरमेंट है.. मां ये वही हैं ना जो आपके साथ दफ़्तर में काम करती थी??”

“हां ये उम्र में मुझसे थोड़ी बड़ी थी,लेकिन हम दोनों एक ही पोस्ट पर काम करते थे वही दोस्ती हुई थी….”

उमा जी को बीच में टोकते हुए उनकी सास बोली,” आज तेरी मां भी रिटायर होती अगर इसने नौकरी ना छोड़ी होती,इसने अपना आराम देखा और नौकरी छोड़ दी”

मां की बात सुन आलोक जी भी बोले,” सही कहा मां!!! उस समय अगर उमा ने नौकरी ना छोड़ी होती तो आज जीवन कुछ और ही होता,शायद बच्चें और अच्छे स्कूलों कॉलेजों में जा पाते, बड़ा घर होता,घर में पैसे की भी कोई कमी नहीं होती,अब एक कमाने वाला और 4 बैठकर खाने वाले हो तो इस महंगाई में कैसे काम चलेगा.”

 

पिता को बोलते देख मुकुल भी बोला,”मां क्यों छोड़ दी थी आपने नौकरी??काश!! आपने उस वक्त ये गलत फैंसला ना लिया होता तो आज मेरा और तनु का भविष्य बहुत ही अच्छा होता,आज आप भी रिटायर होते और हम सब पार्टी करते,कितना गर्व महसूस होता हमें”

सबकी बातें सुन उमा जी कुछ देर के लिए अतीत के गलियारों में खो गई,वो सरकारी विभाग में क्लर्क थीं,शादी और बच्चें होने के बाद भी उन्होंने अपनी नौकरी जारी रखी,घर और ऑफिस की जिम्मेदारी वो बखूबी निभा रही थी,लेकिन उन्हें ना तो पति का साथ मिलता और ना ही सासु मां का।कई बार इस विषय पर उन्होंने अपने पति से खुलकर बात करने की कोशिश थी।लेकिन आलोक बाबू की अपनी ही दुनिया थी और वो यारों दोस्तों के साथ मस्त रहते थे।घर में क्या चल रहा है,कैसे चल रहा है इस बात से उन्हें कोई सरोकार नहीं था, उमा जी की सुबह 5 बजे शुरू होती,घर के सारे काम करने के बाद वो दोनों बच्चों को अपनी मां के पास छोड़कर जाती और दफ़्तर से आते समय बच्चों को अपने संग ले आती,आते ही फिर से काम में जुट जाती,बहुत थक जाती थीं लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और मेहनत करती गईं.
एक समय के बाद उमा जी के माता पिता की तबियत खराब रहने लगी,अब उमा जी के पास मदद के लिए कोई नहीं था और लंबे समय से लगातार भाग दौड़ करने से उमा जी का शरीर भी थक गया था,घुटनों और कमर ने दर्द ने उन्हें जकड़ लिया था इसीलिए उन्होंने परेशान होकर नौकरी छोड़ दी
कभी साथ न देने वाले पतिदेव और सासु मां इस बात से खफा थे क्योंकि अब उमा घर में पैसे नहीं ला रही थी, उमा कई बार अपना पक्ष रख चुकी थी,लेकिन किसी को उसकी तकलीफ़ ना दिखती,एक समय के बाद उमा ने कान और मुंह कर लिए,वो बस चुपचाप घर के कामों में लगी रहती और खुद को घर परिवार व बच्चों में व्यस्त कर लिया.

 




समय के साथ बच्चें बड़े हो गए,बेटा मुकुल एम.टेक के अंतिम वर्ष में था और तनु एमएससी कर रही थीं,कुल मिलाकर जिंदगी ठीक चल रही थी
लेकिन वक्त बेवक्त अब भी उन्हें नौकरी छोड़ने का उलाहना दे दिया जाता था

आज घर पर उमा जी की सहेली कुसुम की रिटायरमेंट पार्टी का बुलावा आया तो उमा थोड़ी मायूस थी,वो यहीं सोचे जा रही थी कि जैसे कुसुम को परिवार का सहयोग मिला वैसा उन्हें भी मिला होता तो आज वो एक अच्छे मुकाम पर होती,दिल की सारी ख्वाहिशें पूरी कर पाती और वो खुलकर अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जी पाती

उमा अपने विचारों के गलियारे में खोई थी तभी बेटे ने आवाज़ दी तो वो वर्तमान में लौटी
पतिदेव अभी भी अतीत का रोना लेकर बैठे थे,पति की बातें सुन उनके अंदर का जवालामुखी फूट पड़ा और वो आज खुद को रोक ना सकी वो बोली,” कुसुम खुशकिस्मत थी जो उसे एक अच्छी सास और साथ देने वाला जीवनसाथी मिला,वो दोनों उसकी तरक्की की सीढ़ी बन गए, उन दोनों के सहयोग से कुसुम की ज़िंदगी आसान हो गई और वो सफलता के मुकाम पर चढ़ती गई,लेकिन मेरा नसीब तो आप लोग जानते हैं ताने देने वाली सास और एक लापरवाह पति मिला,जिसने कभी साथ तो नहीं दिया फिर भी उसे शिकायतें बहुत हैं,मेरी नौकरी जाने का सबसे बड़ा कारण आप लोग हैं… इसीलिए मुझे दोष देना बंद करें…. और मुकुल तुम.. कम से कम तुम तो समझो,मुझे लगता था मेरी औलाद मुझे समझेगी लेकिन तुम तो अपनी दादी और पिता के नक्शे कदम पर चल पड़े, मैंने तुम्हें अच्छी परवरिश देने के लिए क्या कुछ नहीं किया,अपने सारे सपने,सारी उम्मीदें,सारी ख्वाहिशें सब पीछे छोड़ दी और बच्चों के उज्जवल भविष्य को अपना एकमात्र लक्ष्य समझ लिया और आज तुम्हें अपनी मां पर गर्व करने के लिए कारण नहीं मिल रहा हैं??? क्या मां का मां होना ही गर्व का विषय नहीं हैं??

 

एक औरत की तो जिंदगी कठिन हैं नौकरी करती हैं तो लोग कहते हैं इसे पैसे की पड़ी है अपने घर परिवार और बच्चों पर ध्यान नहीं देती और नौकरी छोड़ दो तब भी ताना मिलता हैं कि तुम कमाती नहीं हो,क्या पैसे कमाना ही सब कुछ होता हैं,इतने वर्षों से जो मैं आप लोगों के लिए करती आई हूं उसका कोई मोल नहीं???”



इतना बोल उमा जी वही सोफे पर बैठ गई,बोलते बोलते उनकी सांस फूलने लगी थी
बेटी तनु ने आगे बढ़कर उन्हें पकड़ा और सभी को अच्छी झाड़ लगी,सबको नज़रे झुक गई और सभी ने आगे बाद उमा जी से माफ़ मांग ली
आलोक जी बोले,” माफ़ कर दो उमा.. मेरी नादानियों के कारण तुम्हारी पता नहीं कितनी ख्वाहिशें अधूरी रह गई और मुझे इसका अहसास तक नहीं हुआ लेकिन आज मेरी आंखे खुल गई है सब कुछ तो ठीक नहीं कर सकता लेकिन कोशिश करूंगा कि आप के बाद तुम्हें कोई तकलीफ ना हो अब तुम जो चाहे जैसा चाहे कर सकती हो मन में कोई अधूरी ख्वाहिश है तो बता दो इस बार उसे पूरा करने में पूरा सहयोग दूंगा”
ख़ुद को संभालते हुए उमा जी बोली,” अब तो उम्र निकल गई ,अब क्या करूंगी,लेकिन आगे पढ़ने की इच्छा जरूर मन में हैं और मेरी सबसे बड़ी ख्वाहिश यह है कि मेरे प्यार और समर्पण को मेरा परिवार समझे बात बात के लिए मुझे कटहरे में खड़ा ना करें और मुझ पर सवालों की झड़ी ना लगाएं मैंने इस घर और परिवार को अपना जीवन दिया हैं, उस बात का कम से कम मान रख लिया जाएं ”

 

सभी को अपनी गलती समझ आ गई,इस दिन के बाद तनु और मुकुल अपनी मां की ढाल बन गए,वो पूरी कोशिश करते कि उनकी मां आप जिंदगी खुशीपूर्वक जी सकें,आलोक जी ने भी अपना व्यवहार सुधार लिया और सासु मां ने पुरानी बातों को लेकर ताने देना छोड़ दिया
उमा जी ने फिर से पढ़ाई शुरू कर दी और वो अब मन में छुपी और दबी ख्वाहिशों को फिर से पूरा कर रही हैं।

 
#वक्त
स्वरचित व मौलिक 

शीनम सिंह

 

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