शून्य सी होती ज़िंदगी  –  गीतू महाजन

संदीप कमरे में बैठा शून्य में देख रहा था।ना जाने कितने घंटों से वो इसी अवस्था में बैठा हुआ था।अभी कुछ घंटे पहले ही तो वह अपनी पत्नी शिवानी की का अंतिम संस्कार कर के आया था।उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि तकदीर उसके साथ ऐसा मज़ाक करेगी।हां.. मज़ाक ही तो लग रहा था उसे यह सब क्योंकि उसने कभी शिवानी के बारे में इतना संजीदा होकर सोचा ही कहां था। शिवानी से उसकी शादी को लगभग आठ साल ही हुए थे। शिवानी का रिश्ता उसकी बुआ जी लेकर आई थी और उसने देखते ही शिवानी को पसंद भी कर लिया था।वो थी ही इतनी खूबसूरत और बातचीत करने का ढंग भी उसका बहुत अच्छा था।ऐसा..कि वह सीधे संदीप के दिल में उतर गई थी। देखते ही देखते शादी का दिन नज़दीक आ गया था और शिवानी संदीप की दुल्हन बन ससुराल की देहरी लांघ गई थी। कुछ ही वक्त में शिवानी ने संदीप के माता-पता और छोटी बहन को अपने मधुर व्यवहार से अपना मुरीद बना लिया था।

सारा परिवार शिवानी के गुण गाते नहीं थकता था। संदीप के चाचा चाची भी उसके मधुर व्यवहार के कायल हो चुके थे और शिवानी के आने से दोनों परिवारों में जो प्यार था वह और गाढ़ा होता जा रहा था।शिवानी की सास इस सब का श्रेय अपनी बहू को ही देती थी।शिवानी के सास ससुर ने कभी उस पर कोई रोक टोक नहीं लगाई थी और संदीप की छोटी बहन भी अपनी भाभी के इर्द-गिर्द सदा घूमती रहती। शिवानी को सारे परिवार का साथ और प्यार मिल रहा था। वक्त अपनी गति से गुज़रता जा रहा था।

शिवानी और संदीप की शादी को लगभग 2 साल हो चुके थे और शिवानी एक बेटे की मां भी बन चुकी थी।शिवानी का सारा वक्त अब बच्चे और परिवार में ही बीत जाता था।यूं तो कहने को सारे शिवानी के साथ थे पर यह बात सिर्फ शिवानी ही जानती थी कि वह अंदर से खुद को भरा पूरा परिवार के होने के बावजूद अकेला महसूस करती। इसका कारण था संदीप का शिवानी को अपना वक्त ना दे पाना।संदीप अपने व्यापार को बढ़ाने में इतना व्यस्त होता जा रहा था कि उसे वक्त का ध्यान ही नहीं रहता।ना उसके घर आने का कोई वक्त था और ना ही जाने का। शिवानी कई बार रात रात भर उसका इंतज़ार करती।कई बार तो रात को खाने पर उसका इंतज़ार करते हुए भूखे ही सो जाती। अगर शिवानी उसको वक्त ना देने का उलाहना देती तो संदीप खीझकर उत्तर देता,” कितनी बार तुम्हें कहा है कि मैं अपना व्यवसाय देखूं या तुम्हें इधर-उधर घुमाता रहूं।तुम क्या चाहती हो कि मैं तुम्हारे पल्लू के साथ बंध कर बैठ जाऊं और सारा काम धंधा ठप कर दूं”।



शिवानी उसका यह उत्तर सुनकर चुप कर जाती। भक्तों के साथ साथ जैसे शिवानी ने अपनी इस दिनचर्या से समझौता कर लिया था।उसका सारा वक्त तो घर परिवार और बच्चे में निकल जाता लेकिन उसे पति का वक्त भी तो चाहिए था जो कि बिल्कुल ना के बराबर था। एक दिन शिवानी ने संदीप को कहा भी,” तुम अपने नोटों के शून्य बढ़ाने में लगे रहो।तुम्हें उस दिन पता चलेगा जिस दिन तुम्हारी बीवी का जीवन शून्य हो जाएगा”। संदीप हर बार की तरह इस बार भी खीझ उठा और बोला,” किस चीज़ की कमी है तुम्हें..आखिरी इन नोटों से ही तो सारी सुख सुविधाएं मिल रही हैं।यह नौकर चाकर, यह गाड़ी, यह बंगला आखिर कहां से आया है…पता है तुम्हें..इन नोटों के शून्य से ही।अगर मैं इस शून्य को बढ़ाने में अपना वक्त नहीं दूंगा तो इतनी बेहतर ज़िंदगी क्या जी पाओगी तुम..कभी सोचा है तुमने”, और यह कहकर वह अपनी फैक्ट्री के लिए निकल गया। शिवानी को इस बार उसके उत्तर से बहुत सदमा सा लगा।

उसके सास ससुर ने भी संदीप को समझाने की कोशिश की कि वह अपना थोड़ा सा वक्त शिवानी को दिया करे पर संदीप ने उनकी बातों पर भी ध्यान नहीं दिया।शिवानी का मन अब हर बात से उचटने लगा था।घंटों वह अकेले बैठे कुछ ना कुछ सोचती रहती.. ना अपने सास-ससुर से कोई बात करती और ना ही अपनी ननद से। उसकी ननद उसे बाज़ार ले जाकर घुमाने फिराने की कोशिश करती ताकि उसका मन बदल जाए पर शिवानी उसके साथ भी जाना नहीं चाहती।धीरे-धीरे ऐसे लग रहा था जैसे कोई गम शिवानी को खाए जा रहा था।अपने बच्चे पर भी शिवानी ध्यान नहीं देती थी।दादा-दादी ही उसे संभाल रहे थे।संदीप को इन सब बातों से कोई लेना-देना नहीं था।मां के कहने पर संदीप ने उन्हें शिवानी को डॉक्टर को दिखाने की सलाह दी और डॉक्टर को दिखाने पर डॉक्टर ने भी यही कहा कि यह तन का नहीं मन का रोग है।



शिवानी के सास ससुर को उसकी चिंता होने लगी थी। शिवानी धीरे-धीरे बिल्कुल रोगी बनती जा रही थी।उसकी सास ने उसका मन बदलने के लिए थोड़े दिन उसे मायके जाने की सलाह दी पर शिवानी नहीं मानी तो उसकी सास ने उसकी मम्मी पापा को बुला भेजा।शिवानी की हालत देखकर उसके माता-पिता भी चिंतित हो गए और वह उसे अपने साथ ले जाना चाहते थे पर शिवानी बिल्कुल नहीं मानी और हार कर वे लोग वापिस चले गए। शिवानी की मां का रोज़ फोन आता और वह उसे समझाती पर जैसे शिवानी पर किसी भी बात का कोई असर नहीं हो रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे शिवानी ने जीने की चाही छोड़ दी हो।किसी की सलाह पर मनोवैज्ञानिक को भी दिखाया गया पर शिवानी की जैसे अंदर से जीने की इच्छा ही खत्म होती जा रही थी। धीरे-धीरे शिवानी ने बिस्तर पकड़ लिया था और अब संदीप को भी उसकी चिंता होने लगी थी और वह शिवानी के साथ कुछ वक्त बिताने लग पड़ा था..लेकिन अब क्या हो सकता था।

वह बीता हुआ वक्त तो शिवानी को लौटा नहीं सकता था और देखते ही देखते शिवानी ने एक दिन इस दुनिया से विदा ले ली थी। आज शिवानी का अंतिम संस्कार करते हुए संदीप फूट-फूट कर रो रहा था।उसके दिमाग में शिवानी की बातें घूम रही थी कि वह अपने नोटों के शून्य बढ़ाने में लगा रहा और यह बात सोच सोच कर खुद को कोस रह था और सोच रहा था कि सच में आज अपने नोटों से अपनी बीवी को वापिस नहीं ला सकता। तभी कमरे का दरवाज़ा खुला..उसकी मां उसके लिए खाना लेकर आई थी।मां को देखकर संदीप उनसे लिपट कर फूट-फूट कर रोने लग पड़ा।आज इस वक्त उसे लग रहा था कि जैसे उसका जीवन भी शून्य हो गया हो।

#वक्त

#स्वरचित

गीतू महाजन।

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