“कांच की चूड़ियाँ” – सुरेश कुमार गौरव : Moral Stories in Hindi

प्रसंग: यह कहानी बिहार के एक छोटे गाँव धरमपुर की है, जहाँ आज भी बेटियों को “पराया धन” और “बोझ” माना जाता है। लेकिन एक लड़की और उसकी माँ मिलकर इस सोच को बदलने की कोशिश करती हैं।

मुख्य पात्र: सुनीता: आठवीं कक्षा में पढ़ने वाली होशियार और स्वाभिमानी लड़की।

मीना देवी: उसकी माँ, जिसने स्वयं बहुत कुछ सहा, लेकिन बेटी के लिए नई राह बनाना चाहती है।

रामलाल: उसका पिता – एक रूढ़िवादी किसान, बेटियों को बेकार मानने वाला।

मास्टर श्यामनंदन: गाँव के विद्यालय के प्रधानाध्यापक, जिनका बेटियों की शिक्षा में विश्वास है।

कथावस्तु: धरमपुर गाँव में जब भी किसी घर में बेटी जन्म लेती, तो घर में सन्नाटा छा जाता। सुनीता का जन्म भी ऐसे ही सन्नाटे में हुआ था। लेकिन माँ मीना ने उसे सीने से लगाकर कहा था – “मेरी बिटिया कांच की नहीं, इस्पात की चूड़ियाँ पहनेगी।”

समय बीतता है। सुनीता पढ़ाई में अव्वल रहती है। लेकिन गाँव की पंचायत और रामलाल को यह खटकता है – “लड़की को ज्यादा पढ़ा लिखा दिया, तो उड़ जाएगी हाथ से…”

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मीना रोज चुपचाप खेतों में काम करके सुनीता की फीस भरती है। वह जानती है – “अगर मेरी बेटी पढ़ गई, तो धरमपुर की हर बेटी का रास्ता खुलेगा।”

एक दिन पंचायत में फैसला होता है कि 15 साल की सुनीता की शादी कर दी जाए। मास्टर श्यामनंदन मीना को समझाते हैं, “आप चाहें तो मैं ज़िला अफसर से बात कर सकता हूँ। लड़की की पढ़ाई बंद नहीं होनी चाहिए।”

मीना रातभर नहीं सोती। सुबह होते ही वह रामलाल के सामने खड़ी होती है –

“अगर हमारी बिटिया को ब्याहने की ज़िद करोगे, तो मैं भी साथ चली जाऊंगी – लेकिन बेटी की किताबें छोड़कर नहीं, अपनी हिम्मत लेकर।”

रामलाल स्तब्ध था। पहली बार उसकी पत्नी इतने दृढ़ स्वर में बोली थी। गाँव की औरतें यह दृश्य देख रही थीं — किसी की आँखें चमक उठीं, किसी के भीतर चिंगारी फूटी।

परिणाम: मीना की हिम्मत रंग लाती है। पंचायत झुकती है। सुनीता की पढ़ाई जारी रहती है। पाँच वर्षों बाद वही लड़की धरमपुर की पहली “बेटी प्रखंड विकास पदाधिकारी BDO अफसर” बनती है।

गाँव के मंदिर में आज सुनीता के नाम से एक पुस्तकालय खुला है — “कांच की नहीं, इस्पात की चूड़ियाँ!”

कथासार:यह कहानी केवल सुनीता की नहीं, हर उस बेटी की है जो तिरस्कार की छाया में जन्म लेकर भी उम्मीद की रौशनी बन जाती है। और हर मीना की, जो घर की देहरी से समाज की चौपाल तक बदलाव लाती है।

@सुरेश कुमार गौरव प्रधानाध्यापक, उ.म.वि.रसलपुर, फतुहा, पटना-803201 (बिहार)

आवासीय संपर्क: सिमली सहादरा रामधनी रोड, मालसलामी, पटना सिटी, पटना (बिहार)

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