Moral Stories in Hindi : ” सुनो कल वो कानपुर वाले फूफा जी है न….. अरे वही जो चाची के फूफा जी… जो हमारी शादी में नहीं आ पाये थे… वो कल आ रहे “राघव ने मुझे यानि राधिका को हैरान देख,अपनी बात पूरी की।
जब से राधिका यहाँ आई है रिश्ते उसे खिचड़ी के समान लग रहे…., जब तक एक रिश्ता समझती, दूसरा रिश्ता सामने आ जाता..।
“अब ये चाची कौन सी सगी है, ससुर जी के चचेरे भाई की पत्नी है, भाई नहीं रहा तो ससुर जी ने उन्हें अपने घर में शरण दी। पहले संयुक्त परिवार में यही होता, असली -नकली रिश्तों का पता ही नहीं चलता, जो संपन्न है वो सबको साथ लेकर चलता।
अभी दो महीने पहले ही राधिका की शादी राघव से हुई थी, राधिका छोटे परिवार से थी,इतना रिश्तेदारों का आना -जाना उसके घर में नहीं था। पिता का टूरिंग जॉब होने से घर -गृहस्थी का सारा भार माँ के ऊपर ही था..।अतः उसके घर रिश्तेदारों का आना -जाना कम था।
रिश्तों के गणित को समझने और ताल -मेल बैठाने की कोशिश में राधिका थोड़ी चिड़चिड़ी हो गई थी…। राघव भी जब देखो उसे ही माँ की तरह समझाते रहते, उसकी परेशानी नहीं समझते…।
विदा के समय माँ ने कहा था “बेटा, यही वो समय है जब तुम थोड़े से प्यार और धैर्य से रिश्तों को बना सकती हो, अगर अभी चूक गई तो फिर मुश्किल होती है, कोशिश करना बनाने की तोड़ने की नहीं…., मै तो रिश्ते के जोड़ -घटाव में सफल नहीं हुई,लेकिन मेरी इच्छा है तू सबसे जोड़ कर रखना “।
ससुराल उसके मायके से विपरीत है, ये वो समझ चुकी थी, मायके में बस खून के रिश्तों को ही महत्व मिलता था, लेकिन ससुराल में दूर दराज के रिश्ते जिनका दूर -दूर तक नाता नहीं होता वो भी आ जाते..।कभी -कभी तो इतनी भीड़ देख उसे बहुत कोफ्त होती, पूरा मछली बाजार लगता है,..।अपने कमरे के अलावा कहीं प्राइवेसी नहीं है…।
कभी चाची का भाई तो कभी बुआ की जिठानी तो, कभी नन्द की नन्द… मतलब कोई न कोई रिश्तेदार हमेशा यहाँ बना रहता,हाँ, एक बात बड़ी अच्छी थी, सबको समान सम्मान मिलता था, चाहे बेटी की ससुराल के लोग हो या बहुओं के मायके के….।
राधिका को अभी कोई काम नहीं दिया गया…।रसोई तो सास और चाची सास संभाल लेती है मदद के लिये एक सहायिका भी है,।
राधिका की माँ रश्मि जी कई बार राधिका को टोक चुकी है,” तू भी कुछ काम में हाथ बटाया कर, अभी नई है इसलिये तेरी सास तुझे संकोच में नहीं कह पाती होंगी, पर इसका ये मतलब तो नहीं कि तू उनके प्यार का गलत फायदा उठा…। “
राधिका माँ की बातों पर ध्यान न देती, उसे लगता सब काम तो हो रहा.., आराम से सो कर उठती, सुबह की चाय सारा परिवार एक साथ पीता, सिर्फ राधिका देर से उठने की वजह से अपने कमरे में अकेले चाय पीती।
एक दिन रश्मि ने फोन किया तो राधिका ने राघव की शिकायत करते कहा “देखो न माँ, राघव मुझे बिल्कुल प्यार नहीं करते, ऑफिस से आने के बाद भी बाहर के हुल्लड़ में शामिल रहते, उनको ये भी नहीं दिखता मै कमरे में इंतजार करती रहती हूँ “
. “तो तू ही क्यों नहीं उस हुल्लड़ में शामिल हो जाती, इतनी अच्छी ससुराल मिली है अपने को भाग्यवान मान… भरा पूरा कुनबा है कभी अकेलापन नहीं लगेगा,मैंने तेरी तरह अकेली रहने की ख्वाहिश की थी, देख आज अकेली ही हूँ, तू ये गलती मत करना..”। माँ ने समझाया।
..”तुम ही शामिल हो… मुझे इतना हुल्लड़ पसंद नहीं है,मै सिर्फ अपने पति का साथ चाहती हूँ, किसी और रिश्ते का नहीं “राधिका ने बेरुखी से कहा और फोन रख दिया…।
अगले दिन सुबह राधिका की नींद खुली तो राघव गायब था, पता चला फूफा जी को लेने स्टेशन गया है। राधिका का मुँह सूज गया, आज तय कर ली वो राघव से अपनी नाराजगी जता कर रहेगी …।
दोपहर में राधिका झपकी ले रही थी, मोबाइल की घंटी बज उठी, पता चला रश्मि जी सीढ़ियों से गिर गई थी, बहुत देर तक किसी को पता न चला, क्योंकि रश्मि जी अड़ोस -पड़ोस में किसी से ज्यादा व्यवहार नहीं रखती..वो तो काम वाली आई तब पड़ोसी को रश्मि जी के गिरने का पता चला…। राधिका के पिता शहर से बाहर थे और भाई दूसरे शहर मे …। रिश्तेदारों से रश्मि जी ने कभी कोई सम्बन्ध नहीं रखा, खून के रिश्ते के नाम पर,सिर्फ पति कि एक बहन थी , सास -ससुर के जाने के बाद से उसने भी आना बंद कर दिया।
राधिका घबरा कर रोने लगी,समझ नहीं पा रही थी किससे बताये, कौन उसके दर्द को समझेगा….,किसी काम से गुजरती चाची सास ने रोने की आवाज सुनी तो राधिका के कमरे में आ रोने का कारण पूछा…।
“चाची मुझे मायके जाना है…”रोते हुये राधिका बोली..।
“इसमें रोने की क्या बात, शाम को राघव के साथ चली जाना “चाची सास ने कहा..।
..”चाची जी माँ अकेली है और सीढ़ियों से गिर गई, कैसे होगी उनकी देखभाल ” राधिका ने कहा।
.”क्या, समधन जी गिर गई, तूने पहले क्यों नहीं बताया,कह चाची गुस्से में बाहर चली गई…।
“राधिका तू तैयार हो जा, और माँ को अस्पताल ले जा, मै राघव को बोलती हूँ वो वहाँ पहुंचेगा और तुम यहाँ से जल्दी चली जाओ..”सासु माँ ने कहा।
“पर माँ मै कैसे जाऊ, मुझे तो गाड़ी चलानी नहीं आती “राधिका ने परेशान होते कहा।
“मै ले चलूँगा बहुरानी, तुम चिंता क्यों करती हो “बुजुर्ग फूफा जी बोले।
फूफा जी के संग गाड़ी में बैठ राधिका और उसकी चाची सास जब राधिका के घर पहुंचे तो रश्मि जी दर्द से कराह रही थी… तुरंत उनको सहारा देकर गाड़ी में बैठा कर अस्पताल ले गये।
वहाँ डॉ. ने एक्स रे कर बताया गिरने से पैर की हड्डी टूट गई, दो महीने का प्लास्टर लगेगा..।
“मै प्लास्टर लगा देता हूँ, आप लोग पैसे जमा कर दें “डॉ. ने कहा तब राधिका को याद आया हड़बड़ी में वो बिना बैग लिये आ गई…।
तब तक राघव भी आ गया और पैसे जमा कर दिया। रश्मि जी के पैर में प्लास्टर चढ़ गया…। उनको कार में बैठा दिया। कार जब राधिका के ससुराल की तरफ मुड़ी तो राधिका ने कहा “मम्मी को घर छोड़ देते..”
“बहू रानी तुम तो अपने घर जा रही हो और तुम्हारी मम्मी भी बेटी के घर रहेंगी कुछ दिन तक “कम बोलने वाली सासु माँ ने कहा तो राधिका उनके गले लग गई…।अपनी सोच पर उसे शर्म आने लगी, वो भी सिर्फ अपना सोचती थी, जबकि माँ कई बार उसे समझाती थी…। आज अपनों ने ही सब कुछ संभाल लिया..।, चाची,राघव की सगी चाची नहीं है,इसलिये राधिका थोड़ा उनसे दूरी रखती थी।
पर आज समझ में आया, करीबी रिश्ता होना यानि खून का रिश्ता होना जरुरी नहीं, जब दिल का रिश्ता मजबूत होता है तो बाकी चीज बेमानी हो जाती है।
रिश्तों की खिचड़ी उसे अब भाने लगी, वो जान गई, खिचड़ी में हर चीज का महत्व होता है…जैसे उस दिन आये फूफा जी घर में न होते तो राधिका समय पर माँ को अस्पताल नहीं ले जा पाती।रिश्ते निभाने में थोड़े कष्ट जरूर हो सकते,पर अपनों की ताकत, हर तूफान का सामना करने में सक्षम होती है।
अगले दिन से सुबह की चाय में एक कप और चेयर और शामिल हो गई…. जी हाँ राधिका की….।
रिश्ते समझना और सहेजना जो सीख गई वो।
रश्मि जी ने भी बरसों बाद इकलौती ननद को बुला वो नफरत और अलगाव के आग को प्रेम की छींटे दे शांत किया।
दोस्तों रिश्ते खून के ही अच्छे होते, जरुरी नहीं, रिश्ते दिल के होने चाहिए,।जो भी रिश्ते हो उसे सहेजने का प्रयत्न करें, बिखेरने का नहीं…।
—-संगीता त्रिपाठी
#खून के रिश्ते
Bahut hi uttam. Shikshaprad
Absolutely