जीने का मकसद (भाग – 1) : लतिका श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : सच है मुसीबत कभी अकेले नहीं आती ना जाने उसे भी कई संगी साथियों के साथ ही आना रास आता है…! प्रत्यूष की जिंदगी भी ठीक ठाक चल रही थी..बस एक ही अड़चन थी या यूं कहें कि मुसीबत थी कि उसे अभी तक नौकरी नहीं मिल पाई थी और पिता जी रिटायर होने वाले थे … मध्यमवर्गीय परिवार  में पिता के रिटायरमेंट से पहले बेटे की नौकरी ना लग पाना सबसे बड़ी मुसीबत हो जाती है..!!सारे नाते रिश्तेदारों के उलाहने चैन नहीं लेने देते थे ।

लेकिन इन सबके बीच भी पिता जी हमेशा उत्साहित करते रहते थे अरे प्रत्यूष तू चिंता मत करना रिटायरमेंट के बाद भी मुझे तगड़ी पेंशन मिलेगी तू अभी अपनी आगे की पढ़ाई जारी रख जब अच्छी तेरे मनमाफिक नौकरी  मिलेगी तभी करना …अपनी पूरी कोशिश करते रहना बस किसी की बातों की तरफ ध्यान मत देना…. ! पिताजी के ये वाक्य प्रत्यूष को संबल देते थे संभाल लेते थे….!

मुसीबत तब शुरू हुई जब पिताजी रिटायर हो गए और उससे बड़ी मुसीबत तब जब रिटायरमेंट के दो ही महीने बाद अचानक हार्ट अटैक पड़ने से उनका निधन हो गया …. पिताजी का असमय साथ छोड़ जाना मां की तबियत बहुत ज्यादा खराब कर गया…!!प्रत्यूष को यूं लगा मानो इससे बड़ी मुसीबत उसकी जिंदगी में और कोई नहीं हो सकती..!!

किसी भी तरह कोई नौकरी पाना अपने पैरों पर खड़े होना अब प्रत्यूष को आंदोलित करने लगा था…!!

आज भी समय तो अपनी रफ्तार से ही चल रहा था लेकिन प्रत्यूष की बाइक की रफ्तार समय की रफ्तार को पकड़ने की असफल कोशिश करती तेज से तेज होती जा रही थी…. इतनी मुश्किल से यह इंटरव्यू का कॉल आया था… आज ही सुबह अचानक मां की तबियत खराब हो गई उन्हें डॉक्टर को दिखाने ले गया तो डॉक्टर ने उन्हें एडमिट करने की बात कह दी .. असहाय अकेला प्रत्यूष विवश हो गया ..मुसीबत पे मुसीबत ..!!यह इंटरव्यू भी उसे हाथ से जाता नजर आने लगा था तभी मां ने उसे हिम्मत दी थी बेटा तू इंटरव्यू के लिए जा मेरी चिंता बिलकुल मत कर यहां हॉस्पिटल में तो डॉक्टर हैं सब सुविधा है ये सब मेरा ध्यान रखेंगे..!

.. बस इतनी ही देर में मानो समय ने उसे पीछे छोड़ने की ठान ली थी पर उसकी भी जिद थी इंटरव्यू देने की… इतनी मुश्किलात से मिली नौकरी वह भी इसी शहर में ..वह छोड़ना नहीं चाहता था … शहर की व्यस्ततम सड़क पर तेजी से दौड़ती उसकी बाइक भी मानो उसके दिल की बात सुन रही थी और उसे पूरा करने के लिए सजीव हो उठी थी रफ्तार तेज हो चली थी किसी भी तरह इंटरव्यू पर पहुंचने की होड़ मच गई थी… कि अचानक सामने से आती स्कूल बस से टक्कर हो गई और उसकी बाइक तत्क्षण ही निर्जीव हो गई थी।

आंख खुली थी हॉस्पिटल में …. दर्द इतना था कि आंख खोलना भी असहनीय हो उठा था. …

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लतिका श्रीवास्तव

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