झींक झींक – पुष्पा कुमारी “पुष्प”

निर्मल जी के घर में उनकी बेटी के विवाह की तैयारियां चल रही थी।

आज पति-पत्नी दोनों कुछ जरूरी सामान की मार्केटिंग कर बाजार से अभी-अभी घर लौटे थे।

निर्मल जी अभी बरामदे में लगे सोफे पर बैठे ही थे कि सामान भीतर रखने गए निर्मल जी की पत्नी शोभा घबराई हुई सी कमरे से बाहर आई..

“गहनों का डब्बा वाला पैकेट गायब है!”

“यह क्या कह रही हो!”.

निर्मल जी के तो मानो होश ही उड़ गए..

“अरे ठीक से देखो!.वही किसी झोले में पड़ा होगा।”

यह कहते हुए निर्मल जी कमरे में रखे सामान की ओर भागे।

सारे सामान को एक-एक कर निकाल हर एक झोले का मुआयना करने के बावजूद निर्मल जी को भी वह गहनों का डब्बा कहीं नहीं मिला।

“कहीं गहनों का डब्बा ज्वेलरी की दुकान नहीं तो नहीं छूट गया?”

सुधा ने खुद को सांत्वना देना चाहा लेकिन निर्मल जी ने यह कहते हुए उनकी बात को एक सिरे से नकार दिया कि,..

“मैंने खुद अपने अपने हाथों से गहने का डब्बा पैकेट सहित झोले में रखा था तो फिर भला दुकान में कैसे छुट सकता है?”

“अब क्या करें जी?. अभी तो उन गहनों के रुपए भी देने बाकी हैं।” सुधा घबराई।

असल में ज्वेलरी की दुकान वाले विनोद जी निर्मल जी के जान पहचान वाले थे इसलिए बेटी के विवाह के लिए गहने उन्होंने उधार ही ले लिए थे यह कहते हुए कि,..


घर पहुंचते ही रुपए भिजवाता हूंँ! लेकिन अब उन्हें खुद नहीं पता कि वह गहने कहां चले गए?

“मुझे लगता है कि,.वह गहने उस ऑटो में ही छूट गए!.जिसमें हम अपनी गली के मोड़ तक आए थे।” सुधा ने आशंका जताई।

“तुम सही कह रही हो!.लेकिन उस ऑटो ड्राइवर को अगर वह गहने मिल भी जाए तो वह उसे हम तक पहुंचाएगा कैसे?. उसे क्या पता कि इस गली में हमारा घर कौन सा है?”

“आप भी कैसी बातें कर रहे हैं जी!. आपको लगता है कि जो किराए के पांच रुपए छोड़ने को कहने पर फजीहत कर रहा था वह लाखों के गहने वापस करने आएगा?”

“यह बात भी तुम सही कह रही हो!. लेकिन अब हम करे तो करे क्या?.उसके ऑटो का नंबर तो भी तो हम नहीं जानते ताकि पुलिस में गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखा सके!”

निर्मल जी और सुधा परेशान हो अपना सर पकड़ बैठ गए।

तभी निर्मल जी के मोबाइल की घंटी बज उठी। मोबाइल के स्क्रीन पर ज्वेलरी दुकान वाले विनोद जी का नंबर डिस्प्ले हो रहा था।

“लो!. गहने के रुपयों का तगादा करने के लिए दुकान से विनोद जी का फोन भी आ गया।”

निर्मल जी के माथे की शिकन बढ़ गई थी।

उनका एक मन हुआ कि फोन डिस्कनेक्ट होने का इंतजार करें लेकिन कहीं रिश्ता विनोद जी से रिश्ता ना खराब हो जाए यह सोचकर निर्मल जी ने फोन रिसीव कर लिया..

“हेलो निर्मल जी!. मैं विनोद बोल रहा हूंँ,. आप घर तो पहुंच गए होंगे ना?”

“जी पहुंच तो गया हूंँ!. लेकिन”..

“लेकिन-वेकिन छोड़िए कृति जी!.गहनों के रुपए लेकर आप जल्दी से मेरी दुकान पर आ जाइए।”

“क्यों भाई साहब?.कोई बात हो गई क्या?”

“आप पहुंचिए!.मैं आपका इंतजार कर रहा हूँ।”

यह कहते हुए विनोद जी ने फोन डिस्कनेक्ट कर दिया।

“अब क्या करूं सुधा?”


“चलिए!. मैं भी चलती हूँ!”

यह कहते हुए सुधा भी निर्मल जी के साथ विनोद जी से मिलने उनके ज्वेलरी की दुकान पर जाने के लिए घर से निकल पड़ी।

ज्वेलरी की दुकान पर पहुंचते ही सबसे पहले सुधा और

निर्मल जी की नजर उस ऑटो ड्राइवर पर पड़ी जिसके ऑटो के किराए में पांच रुपए कम करवाने की वजह से उनकी अच्छी खासी झड़प हो गई थी।

निर्मल जी से नजरें मिलते ही उस अधेड़ उम्र के ऑटो ड्राइवर ने आगे बढ़कर निर्मल जी के हाथ में उनका खोया पैकेट थमा दिया..

“साहब!.आपका यह पैकेट मेरे ऑटो में ही रह गया था।”

उस गरीब ऑटो ड्राइवर की इमानदारी देख निर्मल जी और सुधा हैरान थे लेकिन ज्वेलरी की दुकान वाले विनोद जी ने बताया कि ऑटो ड्राइवर गहनों के पैकेट पर लिखे मेरे दुकान के पते पर आया था इसलिए मैंने आपको फोन किया।

विनोद जी द्वारा उस ऑटो ड्राइवर से यह पूछने पर कि,..”क्या लाखों के गहने देखकर भी तुम्हारा ईमान नहीं ड़ोला?”

ऑटो ड्राइवर ने उन्हें जवाब दिया..

“साहब मेरी भी एक बेटी है!. मैं दिन रात मेहनत कर उसकी खुशियां खरीदने के लिए पाई-पाई जोड़ता हूंँ,.और अपनी बेटी की खुशियां खो जाने पर एक बाप पर क्या बीतती है ये मैं भी जानता हूंँ।”

उस ऑटो ड्राइवर की बातें सुन सुधा भावुक हो उठी और

निर्मल जी ने उस ऑटो ड्राइवर को ईनाम में कुछ रुपए देना चाहा लेकिन उस ऑटो ड्राइवर ने यह कहते हुए रुपए लेने से इंकार कर दिया कि,.

“साहब अगर कुछ देना ही चाहते हैं तो बस इतना कर दीजिएगा कि,.किसी की मेहनत के रुपए देते वक्त उससे झींक-झींक मत कीजिएगा।”

पुष्पा कुमारी “पुष्प”

पुणे (महाराष्ट्र)

 

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