जाने कहां गये वो दिन -डा.मधु आंधीवाल

धीरे धीरे गुम होगया बचपन

कभी नहीं भूल पायेगे उम्र होगयी पचपन,

 एक ऐसा बिषय लिखो तो पूरा उपन्यास लिख जाये क्योंकि अब बच्चों के बच्चे भी बहुत बड़े हो गये पर मै तो अब भी अपने बीते दिनों को जीवन्त करती हूँ । शादी को 50 साल पूरे होगये वह बात दूसरी है कि शादी 15 साल की उम्र में होगयी । जब गुड़िया खेलने के दिन थे उसी समय दुल्हन बना दी ।

किस्मत अच्छी थी कि पतिदेव हालांकि वह भी 22 साल के थे पर उसी समय डिग्री कालिज में लेक्चरार की पोस्ट पर नियुक्त हुये सोने में सुहागा वह भी मायेके के शहर में । अब शरारत कम नहीं थी बस थोड़ी पैरो में पायल पहन ली । पढाई नहीं छोड़ी क्योंकि मां का हाथ था और उच्च शिक्षा लेली । कालिज की शरारत की शिकायते पति के कानों तक पहुँचती थी बस अन्तर था वह साइंस विभाग में थे और मैं आर्ट विभाग में ।

उस समय संयुक्त शिक्षा में लड़कियां बहुत कम होती थी जब मैने बी.एड किया तो मात्र हम10 लड़कियां थे और लड़के  50 पर सब लड़को के ऊपर हावी रुतवा था कि पतिदेव इसी कालिज में हैं। एक बार एक लड़के ने प्रेम पत्र किताब में रख कर देदिया ‌। हमने दूसरे दिन स्माइल देदी । अपनी सारी मित्रों को बता दिया प्रोग्राम बनाया कि अलीगढ़ नुमायश लगी है मै इसको वहाँ बुलाती हूँ तुम सब आजाना ।

वह आतुर था बात करने को अच्छा स्मार्ट बन्दा था अब स्मार्ट तो हम भी थे वह कालिज के पीछे पहुँचा थोड़ा घबड़ाया हुआ । हमने उससे पूछा पत्र क्यों लिखा तो बोला बहुत सुन्दर हो मैने कहा शादी शुदा हूँ बोला प्यार यह नहीं देखता । दूसरे दिन नुमायश में मिलने का वायदा करके अलग हो गये ।



      दूसरे दिन नुमायश में मै पहुँची वह इन्तजार कर रहा था बोला घूमते हैं चलो जैसे ही घूमना शुरू किया सहेलियो की पलटन आगयी मैने अनजान बन कर कहा अरे तुम लोग कैसे सब बोली हम भी नुमायश देखने आये हैं तुम्हारे साथ ही घूमेंगे ।

बस उसकी हालत खराब और थोड़ी देर बाद बहाना बना कर गायब हम लोग खूब हंसे । घर आकर पतिदेव को बताया तो डांट तो पड़नी थी । इन्होंने कहा अब तुम एक बच्ची की मां हो तुम्हारी सब हरकते पता चलती हैं । ये था मेरा बचपन अब भी नहीं भूल पाती अब बेटियों के दोनों बच्चे एक बी टैक और एक सिविल सर्विस की तैयारी कर रहा है

जब उनकी मां कहती हैं कि पढ़ाई के अलावा थोड़ा बाहर की दुनिया भी देखो तो मै हमेशा कहती बच्चो जब मेरी उम्र में आओगे तो ये बचपन लौट कर नहीं आयेगा । नानी की तरह बिन्दास रहो ।

मै तो अब भी मोहल्ले के बच्चो के साथ बच्चा बन जाती हूँ ।

सोचती हूँ ” जाने कहां गये वो दिन “

बहुत किस्से फिर मिलेंगे अगले भाग में ।

स्व रचित

डा.मधु आंधीवाल

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