बेटी हूँ पर बेटे से कम तो नहीं – रश्मि प्रकाश

माँ माँ चलो बारात आ गई …. पापा तुम्हें बाहर बुला रहे हैं ।” कामाक्षी ने अपनी माँ से कहा जो अंदर पूजा का सामान सहेजने में व्यस्त थी…. कौशल्या जी जल्दी से सिर पर रखी चुनरी सहेज दरवाज़े पर दूल्हे को परिछने आ गई ।

शादी की रस्में चल ही रही थी कि लड़के की तरफ़ से जो औरतें आई थी उनमें से एक कामाक्षी की दादी से बोलने लगी,“ आपके घर की बिटिया को हमें देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद……ऐसी सुशील पढ़ी लिखी लड़की हमें नहीं मिलती…. फिर हमारे कुणाल को आपकी पोती कौशांबी इतनी पसंद आ गई कि हम भी ना नहीं कर पाए।”

“ हाँ हाँ ये तो है मेरी दोनों पोतियों ने नाम बड़ा किया हमारा….. अब तो कामाक्षी के लिए भी कोई लड़का मिल जाए फिर इसके हाथ भी पीले कर दे।” दादी ने कहा

“ मुझे अभी शादी वादी नहीं करनी…. वैसे भी दादी तुम तो जानती ही हो मुझे अभी बहुत काम करने बाकी है…. पापा का बेटा जो हूँ…।” धीरे से दादी को कह कामाक्षी शादी देखने में व्यस्त हो गई

शादी के बाद कौशांबी विदा हो कर चली गई…इधर घर में कामाक्षी के साथ दादी ,पापा और मम्मी रह गए


एक दिन दादी फिर शुरू हो गई अब कामाक्षी के भी हाथ पीले कर दो…

“ दादी तुम फिर शुरू हो गई….. मैंने कहा ना मुझे अभी शादी नहीं करनी और जब करूँगी तो लड़के के घर बिलकुल नहीं जाऊँगी….. मुझे तुम्हारी हर बात याद है दादी …. प्लीज़ तुम बार बार मेरी शादी की बात कर मम्मी पापा को दुखी करने की कोशिश मत किया करो।” कहती हुई कामाक्षी अपने कमरे में जा दरवाज़ा बंद कर रोने लगी

बाहर पापा मम्मी की आवाज़ सुनाई दे रही थी… आजकल ये ज़्यादा बोलने लगी है…

“ हाँ तो और सिर चढ़ाओ…. यही तो करेंगी….एक बेटा जन लेते तो कम से कम बुढ़ापे का सहारा तो होता…कहती रह गई एक और बच्चा होने दो पर दोनों ने मेरी एक ना सुनी अब अपनी बेटी के नखरे झेलो।”उपर से दादी बोल रही थी

तभी पापा की आवाज़ सुनाई दी,“ देखो माँ मैं पहले भी कह चुका हूँ तुम ये ताना मत दिया करो….. क्या ही हो जाता तीसरा बच्चा ला कर… ज़रूरी है वो बेटा ही होता… अरे देखा है ना रामदेव भैया को चार बेटों के बाप है… चारों को पढ़ाने में ज़मीन जायदाद सब बेच दिए… मनोरमा भाभी के गहने तक गिरवी रखने पड़े…. बन गए सब काबिल…. कर रहे हैं ना माँ बाप की सेवा…. (दंज कसते पापा का स्वर तीव्र हो चुका था )… माँ देख रही हो ना तुम दोनों की हालत….

रोज तो आते हैं हमारे पास रोते रहते हैं…. चारों बेटे छोड़ गए माँ बाप को पूछने तक ना आते….मैं नहीं कहता सब बेटे ऐसे होते …. होता तो तुम भी कहाँ मेरे साथ रहती पर माँ हाथ जोड़कर कह रहा हूँ… मेरी बेटी मेरा स्वाभिमान है….उनके ख़िलाफ़ कुछ कहती हो तो मेरा दिल छलनी हो जाता…. दोनों पोतियों ने कभी तुम्हें मान सम्मान ना दिया हो तो बोलो…. जब हर परीक्षा में अव्वल आती तो बधाई लेते तुम ना थकती…

देखा कौशांबी के लिए इतना अच्छा रिश्ता आया….कोई माँग नही की….रही बात कामाक्षी की वो भी अब नौकरी करना चाहती…. उसे भी करने दो मन का।” पापा की बात सुन कामाक्षी आँसू पोंछ बाहर आ पापा के सीने से लग गई

दादी कुछ ना बोली बस मुँह बिचका कर बैठ गई ।


समय के साथ कामाक्षी भी नौकरी करने लगी उसी ऑफिस में एक लड़का समय भी नया नया आया था…. कामाक्षी उसे चोर नज़रों से देखती रहती … एक बार उसे एक ही प्रोजेक्ट पर काम करने के सिलसिले में बात करने का अवसर मिला… कामाक्षी ने महसूस किया वो भी उसे पसंद करता है पर कहने से डरता है…. बातों बातों में पता चला इसके माता-पिता बहुत पहले गुज़र चुके हैं….

समय के साथ कामाक्षी को वक़्त बीताना अच्छा लगने लगा था….. अपने जीवनसाथी के रूप में समय को ही देखने लगी थी …. एक तो उसको पसंद था फिर अनाथ था जिसके साथ वो अपने माता-पिता का बख़ूबी ध्यान रख सकती थी …उसे उन्हें कही छोड़ कर जाना नहीं पड़ेगा…..

एक दिन समय को अपने घर ले गई… सब से मिलवाया… सबने बहुत प्यार दिया… समय भावुक हो गया था….

कामाक्षी ने अकेले में यूँ ही टोह लेने के लिए पूछा,“ अब तो नौकरी करने लगे हो शादी कब करने का सोच रहे हो…?”

“ बस ऐसी लड़की मिल जाए जिसके परिवार को अपना कह सकूँ…. वैसे तुम्हारा इस बारे में क्या ख़याल है..?” समय ने पूछा

कामाक्षी के गाल सुनते ही सुर्ख़ लाल हो गए… वो कुछ कह ना सकी बस नज़रें झुका ली।

समय कामाक्षी की मौन सहमति समझ चुका था ….. उसने चुप्पी तोड़ते हुए कहा “ कामाक्षी मेरे परिवार में कोई नहीं है क्या तुम्हारे माता-पिता मुझे तुम्हारे योग्य समझ स्वीकार कर पाएँगे….?”

“ पता नहीं समय पर मैं हमेशा से ऐसे लड़के को जीवनसाथी से रूप में चुनना चाहती थी जो मेरे माता-पिता को अपनी समझ स्वीकार करें…. तुम्हें पता है मेरी दादी पापा को हमेशा हम दोनों बहनों को लेकर बहुत सुनाया करती है….

पर पापा हमेशा कहते मेरी बेटी मेरा स्वाभिमान है…. ऐसे माता-पिता को मैं वैसे ही अपने पास रखना चाहती हूँ जैसे एक योग्य बेटा रखता है….. मैं उन्हें छोड़ कर नहीं जाना चाहतीं….. क्या तुम इसमें मेरा साथ दोगे..?” कामाक्षी ने कहा

“ क्या बात कह रही हो कामाक्षी….. मुझे पत्नी के साथ माता-पिता भी मिल जाएँगे…. इसके साथ दादी भी …. अब बताओ ना कहने का सवाल ही पैदा नहीं होता….. बचपन से तरसा हूँ माता-पिता के प्यार को अब मिलने वाला तो इंकार का सवाल ही नहीं…।” समय ने कहा


“ फिर चलो ना हम उनसे बात करते हैं….।” कामाक्षी ने कहा

दोनों जाकर जब माता-पिता से बात किए वो कुछ देर को सोच में डूब गए….

“ इसमें इतना क्या सोच रहा है बेटा….. कामाक्षी ने अपनी बात पूरी की…. लड़का भी अच्छा कमाता खाता है….. और क्या चाहिए दोनों की ख़ुशी देख…।” अचानक से दादी ने कहा

दोनों की शादी हो गई….. कामाक्षी ने अपनी तरफ़ से माता-पिता की हर ज़िम्मेदारी पूरी की …. कौशांबी भी अब निश्चित हो गई थी माता-पिता को छोड़ कर जाने के दुख से उबर चुकी थी….. उसकी कामाक्षी जो माता-पिता के साथ थी।

आजकल का समय बहुत बदल रहा है…. बेटी के माता-पिता होने पर उनकी चिंता करना बेटी अपना फ़र्ज़ समझती है और अब उनकी ज़िम्मेदारी उठाने में सक्षम भी हो रही है…..

इसलिए तो कहते हैं बेटी को पढ़ाओ…..

जो संवारे आपका कल….. ।

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#बेटी _हमारा_स्वाभिमान

धन्यवाद

रश्मि प्रकाश

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