बात उस समय की है,,जब तक मंडीदीप इंडस्ट्रियल एरिया नहीं बना था,,जहाँ आज सैकड़ों चिमनियां धुँआ उगल रहीं हैं,,वहाँ सीताफल का जंगल हुआ करता था,,
दीपावली के समय जब सीताफल की आंखें खुल जातीं तो हम उन्हें तोड़ कर पेड़ों के झुरमुटों में छुपा देते,,दो-तीन दिन बाद जब वो पक जाते तो निकल कर खाते,,,
बचपन बड़ा मस्त होता है,,अरे हाँ,,आपको तो पता ही नहीं होगा कि सीताफल की आंखें कैसे खुलती हैं,,जब उसकी आँखों के बीच की दरारें गुलाबी होने लगती हैं तो कहते हैं कि आंखें खुल गईं,,मतलब अब वो पकने वाला है,,,
मंडी पहाड़ी के नीचे था और दीप पहाड़ी के ऊपर बसा हुआ था,,छोटा सा रेलवे स्टेशन था,,जहाँ केवल पैसेंजर ट्रेन ही रुकती थी,,कुछ भी लेना हो तो भोपाल ही जाना पड़ता था,,,
हम मंडी में रहते थे और स्कूल दीप में पहाड़ी पर था,,रोज पटरी पार करके स्कूल जाना होता था,,सभी बच्चों के घर वालों ने किसी भी दुर्घटना से बचने के लिए पटरी पार करने के सारे नियम समझा रखे थे,,मसलन सिगनल की जानकारी,,
सबको हिदायत थी कि न तो ट्रेन के नीचे से निकलना है और न ही उसमें घुस कर पार जाना है,,मालगाड़ी तो बहुत लम्बी होती है और कई बार तो आठ-दस दिन तक खड़ी ही रहती,,,
पर बालमन तो नियम तोड़ने के लिए ही होता है ,,हम कभी भी घूमकर जाने की जहमत नहीं उठाते थे,,हमेशा नीचे से ही निकलते,,हाँ सिगनल जरूर देख लेते थे,,
एक और कहानी भी सबके माता पिता ने सुना रखी थी कि एक लड़की ट्रेन के नीचे से निकल रही थी,,तभी ट्रेन चल पड़ी तो वो लड़की पटरी पर निश्चल लेटी रही,,पूरी ट्रेन गुजर गई और लड़की उठ कर घर आ गई,,उसे कुछ भी नहीं हुआ
अर्थात् खतरा इंजन से ही रहता है और पटरी से,,बीच में कोई दिक्कत नहीं है,,
उस समय 5-10 पैसे के सिक्के चलते थे,,ट्रेन आने के पहले सिक्के को पटरी पर रखना और गुजर जाने के बाद आकार में दुगने हो गये सिक्के को देखना,,,हमारा प्रिय खेल था,,
एक बार मैं और मेरा भाई दोनों स्कूल जा रहे थे,,सर्दियों के दिन थे,,बहुत घना कोहरा था,,सिगनल दिखाई नहीं दे रहा था,,
क्या करें,,सामने बड़ी लम्बी मालगाड़ी खड़ी थी,,हमने नीचे से निकल कर उसे पार किया ही था,,कि सामने से दनदनाती हुई जी टी एक्सप्रेस आ गई,,
स्पीड इतनी कि खींचे ही लिये जा रही,,वो एक पटरी आगे थी बस,,मैं उस समय 5th क्लास में और भाई 3rd में था,,
पीछे मालगाड़ी खड़ी थी,,सामने एक्सप्रेस आ रही थी,,लगा आज तो गये,,अब नहीं बचेंगे,,कुछ नहीं सूझा तो हम दोनों जमीन से चिपक कर लेट गये,,
आंखें डर के मारे बंद,,ट्रेन के गुजर जाने के बाद जान में जान आई,,दोनों लिपट कर खूब रोये,,
घर आ कर मम्मी को बताया तो भगवान के सामने हाथ जोड़ कर बोलीं,,जाको राखे साईंयां मार सके न कोय
कमलेश राणा
ग्वालियर