जब वक्त ने सिखाया सबक – किरन विश्वकर्मा

कियारा बार- बार मॉल में जैम की शीशी को उठा कर देख रही थी और रख दे रही थी फिर थोड़ी देर बाद वह शीशी उठाकर कृतिका से बोली…..मम्मा मैं यह जैम ले लूं…….आप मुझे टिफिन में हमेशा पराठा सब्जी देती हो…मेरा भी कभी कभी मन करता है कि चाची के बच्चों के जैसे ब्रेड में जैम लगाकर टिफिन में ले जाऊँ। जैम की शीशी को दिखाते हुए कियारा ने अपनी मां कृतिका से पूछा।

 

कियारा के हाथ में जैम की शीशी देखकर कृतिका उसे टोकने ही वाली थी कि तभी उसे याद आया कि कियारा की फ्रेंड जिसे वह ट्यूशन पढ़ाती थी कल ही तो उसे ट्यूशन की फीस देख कर गई थी वह पर्स खोलकर पैसे देखने लगती है फिर उसे सुबह की घटना याद आने लगती है तो वह बोलती है कि…..हां बेटा ले लो कियारा खुश होकर जैम की शीशी को ट्रॉली में रख लेती है। कृतिका के पति एक कंपनी में वर्कर हैं बहुत ही मामूली सी तनख्वाह में घर को चलाने में कृतिका को बहुत ही मुश्किलों का सामना करना पड़ता था और जिस महीने कियारा की दो महीने की फीस जमा हो जाती तो उस महीने तो बजट बिल्कुल ही गड़बड़ा जाता था…..इसलिए कृतिका बहुत ही सोच-समझ कर पैसा खर्च करती थी। घर की आर्थिक दिक्कतों को देखते हुए कृतिका ने बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया था, जिससे उसे काफी आर्थिक मदद मिलने लगी थी, पास में रहने वाले देवर जो कि इंजीनियर थे तो उसकी देवरानी मीतिका को पैसे की कोई कमी नहीं थी और पैसो का घमंड मीतिका के स्वभाव में साफ-साफ दिखता था वह कृतिका के साथ तो बुरा व्यवहार करती थी उसकी बेटी कियारा के साथ भी वह दुर्व्यवहार करने से नहीं चूँकती थी पर कृतिका उसकी इन सब बातों को अनदेखा कर देती थी।

 

आज सुबह-सुबह की ही बात है….आज रविवार था तो कियारा सुबह-सुबह ही चाची के घर पहुंच गई, मीतिका बच्चों को नाश्ते में ड्राई फ्रूट और ब्रेड जैम दे रही थी। बाल मन यह भेदभाव नही जा सका क्यों कि उसकी मम्मा कभी भी कियारा और मीतिका के बच्चों में भेदभाव नही करती थी तो उसने भी चाची से अपने लिए भी नाश्ते की मांग कर दी।

 


मीतिका ने गुस्से में कहा…..यह नाश्ता तुम्हारे लिए नहीं मेरे बच्चों के लिए है…..अगर तुम्हें नाश्ता करना है तो अपनी मां से जाकर मांगो और यह कहते हुए वह रसोई में वापस चली गई। कियारा यह सब देखकर और उदास होकर अपने घर चली आई। कृतिका ने जब कियारा को उदास देखा तो पूँछ बैठी कि क्या हुआ है…….तब कियारा ने सारी बात बतायी और फिर पूछने लगी…..मां चाची ऐसा व्यवहार क्यों करती हैं आप तो चाची और उनके बच्चों के साथ बड़े ही प्यार से पेश आती हो…..अब से आप भी ऐसा ही व्यवहार उनके साथ करना वह आंखों में आंसू भर कर बोली।

नहीं बेटा….हमें ऐसा बनने की बात तो दिमाग में भी नहीं लाना चाहिए अगर हम भी उनकी तरह ही बन जाएंगे तो हममें और उनमें क्या फर्क रह जाएगा। हमें दूसरों की तरह नहीं बनना बल्कि अच्छा व्यवहार करके उन्हे बदलना है। हम अगर दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार करेंगे तो ईश्वर आगे चलकर हमारे साथ अच्छा ही करेगा….यह कहते हुए कृतिका ने कियारा को गले लगा लिया और खुश करने के लिए बोली चलो….हम पास के ही मॉल में घूमने चलते हैं….मॉल में आकर कियारा बहुत खुश हो गई वह अपने मतलब की चीजों को उठाकर देखती और फिर वापस रख देती। कृतिका बहुत देर से कियारा को ऐसा करते हुए देख रही थी आखिर में जब कियारा ने जैम लेने की इच्छा जाहिर की तो वह मना ना कर सकी फिर कृतिका ने कियारा की मनपसंद आइसक्रीम खिलाई और घर आ गई।

 

घर आई तो पति निखिल ने बताया की मीतिका को बुखार हो गया है और वह घर के कामों को करने में असमर्थ है उसकी मम्मी

तो आ जाती पर वह इस समय असमर्थ हैं…इसलिए वह भी उसकी मदद करने नहीं आ पाएंगी क्योंकि उनका हर्निया का ऑपरेशन हुआ है इसलिए तुम्हें मदद करने के लिए छोटे भाई ने बुलाया है। कृतिका यह सुनते ही मीतिका से मिलने उसके घर चली गई। मीतिका की हालत को देखकर उसने कहा कि……देवर जी मेरा यहां रहना तो मुमकिन नहीं है आप लोग मेरे घर रहने आ जाइए तो मैं मीतिका की देखभाल के साथ-साथ चूंकि मैं ट्यूशन पढ़ाती हूं तो मै बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ा लूँगी।

 

दूसरे दिन कृतिका सुबह-सुबह बच्चों को नाश्ते में पराठा और सब्जी देने के लिए जैसे ही सब्जी काटने बैठी वैसे ही कियारा ने कहा……मम्मा आप चाची के लिए और और सभी के लिए खाने की तैयारी करिए और हम सभी बच्चे ब्रेड और जैम टिफिन में ले जाएंगे……वैसे भी आप पर काम का भार बहुत ज्यादा हो गया है….यह कहते हुए कियारा ने अपना और अपनी चाची के बेटों का टिफिन पैक कर लिया….यह देखकर मीतिका को बहुत आत्मग्लानि हुई उसे कियारा और कृतिका के साथ किया गया गलत व्यवहार इस समय याद आ रहा था और उसे बहुत ही शर्मिंदगी महसूस हो रही थी। पंद्रह दिन बाद जब तबीयत में काफी सुधार हो गया तो मीतिका के व्यवहार में भी काफी परिवर्तन आ गया। शायद वक्त ने उसे ऐसा सबक सिखा दिया था कि पैसों के साथ-साथ रिश्ते भी बहुत जरूरी होते हैं पैसो के अहंकार में हम जिनका भी अपमान करते हैं या हम जिन लोगों की अवहेलना करते हैं कभी-कभी वही रिश्ते वही लोग हमारे बहुत काम आते हैं। आज जिन लोगों को वह कुछ नही समझ रही थी आज वही लोग पैसे वाले न होते हुए भी काम आ रहे थे।

#अहंकार 

किरन विश्वकर्मा

लखनऊ

 

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