इंकलाब – अरुण कुमार अविनाश

इंकलाब जिंदाबाद।

जिंदाबाद — जिंदाबाद।

आवाज़ दो – हम एक है।

शाम के पाँच बज रहें थे – विशाल मैदान में विशाल भीड़ को नेता जी सम्बोधित कर रहें थे – नारें लगवा रहें थे।

” प्यारे दोस्तों,  जिस तरह कम्पनी की नीतियां है – अधिकारियों का कर्मचारियों के प्रति रवईया है – काम बढ़ता जा रहा है और कर्मचारी कम होते जा रहें है – नयी भर्तियां बन्द कर दी गयी है – बहुत से पद वर्षो से रिक्त पड़े हुए है – काम का दबाव इतना है कि कर्मचारी बीमार हो जाते है पर उन्हें बीमारी में भी छुट्टी नहीं मिलती – अगर कर्मचारी बीमारी की हालत में काम पर नहीं आ पाता तो उनका उस दिन का वेतन काट लिया जाता है । ये कहाँ का इंसाफ है ? कोई लगातार आठ-दस घँटा काम कैसे कर सकता है ? – कर्मचारियों को भी भूख लगती है – प्राकृतिक पीड़ा सताती है – थोड़ी देर के विश्राम के बाद कर्मचारी नयी ऊर्जा के साथ – स्फुर्दगी के साथ अधिक और गुणवत्ता के काम कर पाता है । कर्मचारियों को सताने के पीछे प्रबंधन का एक ही उद्देश्य है – वह है कर्मचारियों की छंटनी करना और अत्याधुनिक मशीनों की सहायता से कम समय – कम लागत में – ज़्यादा से ज़्यादा उत्पादन करना ——-।”

पांडे जी माइक में बोल रहें थे और ध्वनि विस्तारक यंत्र (लाउडस्पीकर) फुटबॉल मैदान से दोगुने बड़े मैदान के कोने-कोने में उनकी आवाज़ पहुँचा रहा था।

पांडे जी स्टील मैन्युफेक्चरिंग कम्पनी के दो मान्यता प्राप्त ट्रेड यूनियनों में से एक के महत्वपूर्ण नेता थे। कम्पनी में उनकी तूती बोलती थी। कम्पनी के मालिकों एवम अधिकारियों पर उनका अच्छा प्रभाव था और कर्मचारी तो उनकी भेड़ थे । अगर नेता जी मंच से हड़ताल की घोषणा कर देतें तो भाषण सुन रहें पाँच हजार से ज़्यादा कर्मचारी अभी का अभी हड़ताल पर चलें जातें – कोई कर्मचारी हड़ताल पर न जाना चाहता तो पांडे जी के गुंडे और पांडे जी पर अटूट श्रद्धा रखने वाले कर्मचारी उसे काम पर जानें ही नहीं देतें।

महीनें में एक दो बार पांडे जी को जोश आ ही जाता था और कर्मचारियों पर अपनी पकड़ बनायें रखने के लिये –मालिकों और अधिकारियों को अपनी ताकत दिखाने के लिये – कुछ लंबित मांगों के लेकर पांडे जी मैदान में भीड़ जुटा लेते थे । खोमचे-रेहड़ी वालें भी इतनी भीड़ देख कर – चाय पानी – समोसे चौमिंग मूंगफली और पान बीड़ी सिगरेट की रेहड़ी लगा लेते थे।

” पाड़े बाबा बढ़िया भाषण देवते हवे ।” – गणेशी हथेली पर तम्बाकू मलता हुआ बोला ।

” भाषणे के ही तो राशन खात हवे।” – सरजू चाय की आखिरी घूट पी कर डिस्पोजल गिलास मचोड़ता हुआ बोला।

गणेशी और सरजू दिहाड़ी मजदूर थे – गणेशी पैतीस वर्ष का लगभग अनपढ़ व्यक्ति था जबकि सरजू बाइस साल का गबरू जवान था – दसवी पास था और आँखों मे ढेर सारे सपने ले कर शहर आया था – कहीं कोई काम न मिला तो आजीविका के लिये गणेशी के साथ हो लिया – भूखे मरने से अच्छा था कि मजदूरी कर ली जाये – बेलदारी करना भीख माँगने से बेहतर ही था।

इन दिनों पांडे जी के निजी मकान के चारों तरफ कंटीले तारों की फेन्सिंग के लिये – जरूरी पीलर गाड़े जानें थे – जिसके लिये ये दोनों गड्ढे खोद रहें थे।

पांडे जी का लड़का भूषण जो पच्चीस साल का था – रोज़ शाम को आता था और काम देख कर मजदूरी दे देता था – प्राप्त रकम से वे आटा-तेल ले कर घर जातें थे और मजदूरों के घर का चूल्हा जलता था।

आज भी वे मजदूरी ले कर अपनी बस्ती की ओर जा रहें थे – संयोग की बात है कि पांडे जी का नया बन रहा मकान और मजदूरों की बस्ती के बीच रास्ते में नेता जी का भाषण वाला मैदान पड़ता था – दोनों विशाल जनसभा की भीड़ देख कर और नेताजी का भाषण सुन कर थोड़ी देर के लिये ठहर गये थे।

जब नेता जी का भाषण समाप्त हुआ और दूसरे प्रतिनिधि माइक सम्भाल लिये तब गणेशी और सरजू भी अपनी बस्ती की राह लग गयें।

सभा के समापन के उपरांत नेताजी अपने ट्रेड यूनियन कार्यालय में गयें – चमचों से बधाईया ली – कार्यक्रम को कवर कर रहें कैमरा मैन से मुख्तसर-सी मुलाकात कर कुछ बातें समझायी – मीडिया के लोगों से चर्चा की – वहाँ अल्पाहार की व्यवस्था की गई थी – सबने चाय समोसे चिप्स नमकीन मिठाई का आनन्द लिया और प्रफुलित नेता जी को अच्छे भाषण के लिये ढेरों बधाईया दी।

अगली सभा बीस दिन बाद वहीं होगी – इस संकल्प के साथ सबने अपने-अपने नीड़ की ओर प्रस्थान किया।

रात के दस बज रहें थे – पांडे जी परिवार के साथ डायनिंग टेबल पर बैठे हुए थे। स्थानीय न्यूज़ चैनल पर उनकी सभा को महत्व दिया गया था । पांडे जी के जीवन परिचय के बाद उनकी संघर्ष गाथा फिर आज का भाषण – भविष्य की कर्मचारी हित की योजनायें – अगले आधा घँटा तक सब कुछ दिखाया गया – जब चैनल पर कार्यक्रम बदल गया तो पांडे जी ने भी चेनल बदल दिया।

कल के अखबारों में भी अच्छा कवरेज मिले तो बात बनें – नेता जी ने सोचा फिर भोजन की ओर आकर्षित हो गयें।

” तुम्हारा काम-काज कैसा चल रहा है ”  –पांडे जी एकाएक भूषण से पूछ बैठें।

” ठीक ठाक।” – भूषण जो ठेकेदारी का काम करता था बोला।

” और वो फेन्सिंग वाला काम ?”

” अभी गड्ढे खुद जाये फिर पीलर गड़वा कर कांक्रीट से जाम होने के बाद—-।”

” तीन दिन तो हो गये गड्ढे खोदते हुए – और कितने दिन लगेंगे गड्ढे खोदने में?” – पांडे जी का नाराज़ स्वर।

” पथरीली जमीन है —।”

” जमीन पथरीली है ! – ये तुम्हें अब जा कर पता चला ? अगर पहले से मालूम था तो मजदूर लगाने के बजाय मशीन क्यों नहीं लगाया ! वो दो घँटे में काम करके चला भी गया होता – वो अनपढ़ मजदूर तुम्हें वेवकूफ बना रहा है और तुम उसकी हिमायत में मुझसे बहस कर रहे हो।”

भूषण चुप हो गया पर – उसके चेहरे से असन्तोष का भाव स्पष्ट झलक रहा था।

” कल मुझें उस तरफ जाना भी है – मुझें दिखाना – मैं ठीक करूँगा कमीने कामचोरों को।” – नेता जी ने अपना फैसला सुनाया।

अगली सुबह चाय की चुस्कियों के दरम्यान नेता जी ने सभी स्थानीय अखबारों को देखा – हर अखबार की मुख्य पृष्ठ पर नेता जी छाये हुए थे। उनकी कर्मठता का बखान किया गया था – मज़दूरों का मसीहा – सच्चा हितैषी लिखा गया था।

नेता जी का ह्रदय आनन्द से भर गया।

नेता जी जब कार्य स्थल पर पहुँचे तब सुबह के आठ बज रहें थे। यहाँ वे नेता जी की निजी कार से आये थे जिसे भूषण ड्राइव कर रहा था।

गणेशी और सरजू दोनों पूरी ईमानदारी से –तल्लीनता से – गड्ढे खोदने में लगे हुए थे – करीब डेढ़ बाई डेढ़ फुट के चार फुट गहरे – लगभग पचास गड्ढे खोदे जानें थे – एक गड्ढा खोदने में एक आदमी को दो से ढाई घँटा लग रहा था।

नेता जी ने खुदे हुए गड्ढे का अवलोकन किया – बुदबुदाते हुए गिनती की – तीन दिन में कुल अठ्ठाईस गड्ढे उनमें भी कुछ न कुछ कमी थी – कोई कम गहरा था – कोई कम या ज़्यादा चौड़ा था – कहीं दो गड्ढे के बीच के अंतराल में अंतर था – गलत जगह गड्ढा खोद दिया गया था।

नेता जी बरस पड़े – ” किन बेवकूफों को लगा लिया तुमनें – एक काम सही नहीं किया इन्होंने – भगाओं दोनों को और कुकरेजा कंस्ट्रक्शन से पाइलिंग मशीन मंगवा कर गड्ढे करवा लो।”

” ये काम पहले दिन ही करवातें तो फायदा था अब नादानी होगी।” – भूषण धीरे से बोला।

” नेताजी, हमारी आधे दिन की दहाड़ी दे दो और जिससे मर्ज़ी हो गड्ढे खुदवा लेना ।” – सरजू जो युवा था – गरम दिमाग का था – तुरन्त भड़कता था – बोल पड़ा।

” तेरी ये मजाल !” – नेता जी का चेहरा गुस्से से तमतमा उठा – लपक कर सरजू के पास पहुँचे – गुस्से में हाथ उठा ही था कि सरजू ने फावड़ा तान दिया – नेता जी , कल आप ही कह रहें थे कि मजदूर के पास खोने के लिये कुछ नहीं होता – मैं आपकी कम्पनी का कर्मचारी नहीं – मैं आपकी रियाया भी नहीं – भूषण भईया समझा लो अपने बप्पा को – एक थप्पड़ मारना भी भारी पड़ जायेगा – मेरे पास खोने को कुछ भी नहीं और तुम्हारें पास कुछ भी नहीं बचेगा।”

भूषण लपक कर पांडे जी और सरजू के बीच में आ गया।

” सरजू जाने दे इन्हें ।” – गणेशी घिघियाया।

” रोक कौन रहा है – बस मेरी दिहाड़ी दें दें – फिर शौक से जायें।”

” भूषण ने जेब से कुछ रुपये निकालें – गणेशी के हाथ में सौपें और अपने पिता को कार में बिठा कर पुनः सरजू के पास लौटा – कुछ देर तक सरजू को घूरता रहा फिर उसके चेहरे से कठोरता के भाव छंटे ।

” बहुत गर्मी है तेरे में ।”

” भूषण भईया, मैं तुम्हारी बहुत इज़्ज़त करता हूँ पर अपने मान-सम्मान का भी बहुत खयाल है मुझें ।”

” गणेशी , तेरे हाथ में इतने रुपये है कि तुम दोनों की दो रोज की मजदूरी हो जायेगी – दो दिन में काम कैसे पूरा करोगें वो तुम जानों – चाहें आदमी बढाओ या कुछ भी करो –और तुम! वह सरजू से बोला – ” अगर मान-सम्मान का इतना ही ख्याल है तो शाम को स्पोर्ट्स क्लब में मिलना – या तो तेरे ये तेवर नहीं रहेंगें या तुम्हारें ये दिन बदल जायेंगे।” – कह कर भूषण पलटा और जा कर कार की ड्राइविंग सीट पर बैठ गया।

दोनों कार को जातें हुए देखतें रहें फिर गणेशी ही पहले बोला –” अब क्या करेगा ?”

“अरे दद्दा , तुम्हारें साथ काम करूँगा और क्या !”

” अरे शाम को क्या करेगा ?”

“अभी सोचा नहीं।”

उधर कार में नेता जी गुस्से में लड़के को फटकार रहें थे –  ” तू खामख्वाह बीच में आ गया मैं उसकी सारी हेकड़ी भुला देता।”

” जैसे उसके तेवर थे अगर उसे और उकसाते तो आप और मैं अभी अस्पताल जा रहें होते ।”– भूषण स्थिर स्वर में बोला – ” शाम का इंतज़ार करते है – अगर स्पोर्ट्स क्लब आ गया तो ये मेरे तलवे चूमेगा और अगर नहीं आया तो कल से इस शहर में नही दिखेगा।”

शाम को सरजू थोड़ा जल्दी घर लौटा – शेव किया और नहा धो-कर कपड़े बदला और स्पोर्ट्स क्लब पहुँच गया।

वहाँ जैसे उसी का इंतज़ार हो रहा था – गलियारें से गुज़र कर वह ज्यों ही आगे बढ़ा – दो पहलवान टाइप के छोकरे जिनके हाथ में बेस-बॉल का बल्ला था – उसका रास्ता रोक कर खड़े थे – उसे घेर कर अंधेरे कोने में एक ओर ले जाया गया।

सरजू ने अंधेरे का फायदा उठाया – बायें तरफ के पहलवान के बल्ले पर झपट्टा मारा और दायें तरफ के पहलवान की कमर पर जोर से लात मारी – पलक झपकते ही – सरजू के हाथ में बेस बॉल का बल्ला था और इससे पहले कि दूसरे बल्ले वाला सम्भल कर वार करता सरजू ने उसके सिर का निशाना साध कर बल्ला घुमा दिया – पहलवान की किस्मत अच्छी थी कि बल्ला सिर पर न पड़ कर कंधे पर पड़ा – स्तब्ध वातावरण में ऐसी चीख गूंजी मानों भैसा डकराया हो – अब सरजू को कई लोगों ने घेर लिया – सरजू हवा में चारों तरफ बल्ला ऐसे घुमा रहा था जैसे लट्ठ घुमा रहा हो – पांच मिनट तक वैसी ही स्थिति बनी रही – किसी की हिम्मत नहीं हो रही कि सरजू को रोक सकें और सरजू थकता हुआ तो दिख ही नहीं रहा था – जिम के पहलवानों पर जमीन का मजदूर हावी था –नकली प्रोटीन से बनायी बॉडी असली दाल-रोटी से हार रहा था – तभी भूषण वहाँ प्रकट हुआ और चीखा –” स्टॉप।”

तीखी आवाज़ सुनकर सभी चौकें – सरजू पर झपटने की तैयारी कर रही टीम ठहर गयी। अगला आदेश भी भूषण ने ही दिया  –” तुम सब इसे अस्पताल ले कर जाओं और सरजू लट्ठ भांजना बंद कर और मेरी गाड़ी में आ।”

सरजू भूषण के पीछे-पीछे गाड़ी तक पहुँचा – बल्ला अभी भी उसके हाथ में था।

” मुझपर हमला क्यों करवाया ?” – सरजू का आक्रोश भरा स्वर।

” कोई तुम्हें नोकरी देगा – काम देगा – तो तेरा इम्तहान न लेगा कि तुम उस काम के लायक भी हो या नहीं हो।”

”  मुझें करना क्या होगा ?”

” ड्राइविंग आती है ? – कार चला लेगा ?”

” गाँव में ट्रैक्टर चला लेता था।”

” मैं तुम्हें दस हज़ार रुपये दे रहा हूँ – कल ही किसी ड्राइविंग स्कूल में भर्ती हो जाना – दस दिन में वो गाड़ी चलाना सीखा देगा – ट्रैफिक रूल्स समझा देगा –बीस दिन मेरी गाड़ी से और प्रेक्टिस कर लेना – कुछ ढंग के कपड़े बनवाना – अगले महीनें से तुम मेरे ड्राइवर कम जनरल हेंडी मैन।”

भूषण ने कार के ग्लोव कम्पार्टमेंट से सौ रुपये की एक गड्डी निकाली और सरजू को सौप कर कार स्टार्ट किया और वहाँ से चला गया।

पीछे सरजू कुछ देर तक वहीं खड़ा रहा – जेब में रुपये रखने लगा तो हाथ जेब में रखे उस्तरे को छू गया।

ये उस्तरा अपनी हिफाज़त के लिये उसने – शेव करने के बाद – अपनी जेब में रख लिया था।

कितनी अजीब है दुनियां – बाप मजदूरों की हित की बात करता है और खुद के काम के लिये मशीनों की अनुशंसा करता है।

बेटा शरीफ बिजनेसमैन ठेकेदार कहलाता है और गुण्डे पालता है – आज की रात सरजू को तय करना है कि उसे मेहनत- मशक्कत करने वाला मजदूर बनना है या आराम करने वाला गुंडा हराम खोर।

उधर गणेशी सोच रहा था कि अब – जबकि सरजू साथ में काम नहीं करेगा तो – वह सहायता के लिये किसे अपने साथ लगायेगा?

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