*इम्तिहान* – *नम्रता सरन “सोना”*

*आशी-एक कोरोना योद्धा*

 

 “ट्रिंग ट्रिंग…”रात साढ़े तीन बजे मोबाईल की घंटी सुनकर आशी का दिल हिल गया।

“ह..ह..हेलो”

“मिस्टर चौधरी इज़ नो मोर, बॉडी आपको नही मिलेगी, इलेक्ट्रिक क्रिमिएशन के बाद एशेज़ कलेक्ट करने के लिए आप कल आ जाईए”

“पापा….” हाथ से मोबाइल छूट गया, आशी कटी पतंग की तरह निढाल बेड पर गिर पड़ी, घबराहट और बैचेनी मे एक झटके में बीता घटनाक्रम उसकी आँखों में घूम गया।

“बेटा , पापा का फीवर उतर नहीं रहा है, टाईफाइड का इलाज चल रहा है लेकिन सब कह रहें हैं कि कोविड टेस्ट भी करवा लो” नंदिता ने फोन पर आशी से कहा।

“मम्मी , करवाओ न, इतना वेट करने का क्या मतलब है”आशी बैचेनी से बोली।

“बेटा, अमित की कल की फ्लाइट है, वो कल रात तक ही यहाँ पहुंच पाएगा, मेरी तबीयत भी ऊपर नीचे हो रही है, अकेले कैसे मैनेज करुं, कुछ समझ नही आ रहा”नंदिता रुंआसी सी बोली।

“मम्मी, चिंता मत करो, मैं आ जाती हूँ, जतिन वर्क फ्रॉम होम के कारण घर पर ही हैं, बच्चों को देख लेंगे, मैं थोड़ी ही देर में पहुंचती हूँ”आशी ने कहा, फोन काटकर चलने की तैयारी करने लगी।

“जतिन, पापा की तबीयत ज़्यादा खराब है, उनका टेस्ट करवाना पड़ेगा, हो सकता है कि हॉस्पिटलाइज़ करना पड़े, मम्मी अकेले घबरा रहीं हैं, अमित कल रात तक आ जाएगा, लेकिन अभी उतना वेट नहीं कर सकते, इसलिए मैं मम्मी के पास जा रही हूँ, आप यहाँ मैनेज कर लेंगे न” आशी ने अपने पति जतिन से कहा।

“श्योर आशी, तुम जाओ, आई विल मैनेज, डोंट वरी” जतिन ने हौंसला देते हुए कहा।

“थैंक्स जतिन, मैं निकलती हूँ, ताकि जल्दी पहुंच कर पापा के चेकअप करवा लिए जाए”आशी ने कहा।

आशी अपनी कार से गुडग़ांव से गाज़ियाबाद के लिए निकल पड़ी।हालांकि लॉकडाउन के चलते कई जगह चेकिंग चल रही थी, आशी ने एमरजेंसी बता कर जैसै तैसे घर तक पहुंचने में कामयाबी हासिल की।

घर पहुंचते ही अपने पापा के पास पहुंची, हालांकि कोविड की सभी सावधानियों के साथ ही वो पापा से मिली।

“पापा, कैसे हैं आप”

“देख ले बेटा खुद ही, कैसा हूँ मैं, तूने कभी मुझे यूं बिस्तर पर लेटे हुए देखा है क्या” अरुण जी बहुत ही उदासीनता के साथ बोलें।

“पापा, यू आर माय सुपर स्टार, इतने में आप घबरा नहीं सकते, पापा, हम आज कोविड19 का टेस्ट भी करवा लेते हैं, ताकि अगर ऐसा कोई इंफेक्शन हो तो जल्द ही इलाज शुरू हो जाए और मेरे पापा जल्दी से अच्छे हो जाऐं” आशी ने पापा से कहा।

“बेटा , पता नहीं क्यों, पर मुझे लग रहा है कि अब मैं अच्छा नहीं हो पाऊंगा” अरुण जी की आँखों की कोर से आँसू लुढक गए।



“देख न आशी, ये कैसी कैसी बात कर रहें हैं, इससे मेरा दिल बैठा जाता है” तभी नंदिता रुंआसी होकर बोली।

“क्या पापा, इतनी सी बीमारी मे, इतना डिप्रेशन! ये ठीक नहीं है पापा, थिंक पॉजिटिव एंड बी हेप्पी, आप जल्दी ही बिल्कुल ठीक हो जाएंगे , चलो..चलो…अब मैं पैथालॉजिस्ट को कॉल करके उसे बुला रही हूँ, ताकि टेस्ट जल्दी हो सके” आशी ने मोबाइल निकालते हुए कहा।

 

 *कुछ* ही देर में पैथालॉजिस्ट अरुण जी के सैंपल ले गया और बता गया कि रिपोर्ट छत्तीस घंटों में आएगी।अब इंतजार करने के अलावा अन्य दूसरा कोई रास्ता नहीं था।

“मम्मी, आप थोड़ा आराम कर लो, पापा को मैं देख रही हूँ, भैय्या का फोन आया था, मैने उन्हें बता दिया है कि पापा का टेस्ट हो गया है, रिपोर्ट छत्तीस घंटे बाद आएगी।वे बता रहे थे कि उन्होंने भाभी और आर्यन को कानपुर ,उनके मायके भेज दिया है, क्योंकि यहाँ लाना भी सेफ नही था, वे खुद कल रात तक यहाँ पहुंच जाएंगे, चलिए मम्मी, अब आप थोड़ा सो जाओ, कहीं आपकी तबीयत न बिगड़ जाए” आशी ने नंदिता को आराम करने का ज़ोर देते हुए कहा।

“तू कहती है तो लेट जाती हूँ, पर नींद कहाँ आने वाली, दिमाग में यही सब चल रहा है, क्या माहौल चल रहा है, हर कोई दहशत मे है, क्या होगा पता नहीं, अरे सुन तू डबल मास्क लगाकर रखना और बार बार सेनेटाइजर से हाथ साफ करती रहना, बेटा पूरी सावधानी बरतना, क्योंकि जब तक पापा की रिपोर्ट न आ जाए, हमें सावधान ही रहना चाहिए” नंदिता आशी को हिदायत देते हुए बोली।

आशी ड्राईंग रूम में बैठ गई, बीच बीच में उसे पापा की खाँसी की आवाज़ सुनाई दे रही थी, वो बैचेन हो उठती, मन मे यही डर समाया हुआ था कि कहीं पापा की कोरोना रिपोर्ट पॉज़िटिव न आ जाए, ईश्वर से प्रार्थना करने के अलावा अन्य कोई दूसरा रास्ता नहीं था।तभी मोबाइल बजा।आशी ने देखा जतिन का कॉल है.

“हेलो, हाँ सॉरी जतिन, मैं यहाँ पहुंचकर आपको इंफॉर्म करना भूल गई, पापा का टेस्ट हो गया है, रिपोर्ट परसों सुबह तक आएगी” आशी फोन रिसीव करते ही बोली।

“ओके आशी, टेक केयर यूअर सेल्फ, ईश्वर सब ठीक ही करेंगे, तुम यहाँ की चिंता मत करना ओके” जतिन ने संबल बढाया।

“थैंक्यू सो मच जतिन, आप लोग भी अपना ध्यान रखना, ओके”आशी ने कहा।

“ओके डियर, बाय ,टेक केयर”

“बाय..” आशी ने फोन डिस्कनेक्ट किया।

आशी सोफे पर सिर टिका कर बैठ गई, अनगिनत विचार मन मस्तिष्क में विचरण करने लगे।”ये कैसा समय चल रहा है”, “हे ईश्वर इस महामारी से देश दुनिया को कब निजात मिलेगी”, “कितनी ज़िंदगियां और लीलेगा, ये वाईरस, “ज़िंदगी कब पटरी पर आएगी” ,”बच्चों के स्कूल, ऑफिस, सभी कुछ कब तक सामान्य हो पाएगा और तब तक कितना नुकसान हो जाएगा, घर की व्यवस्थाएं और देश की अर्थव्यवस्था सभी चरमरा गई हैं, ” उफ्, ईश्वर सब जल्दी ठीक कीजिए” इसी प्रार्थना के साथ आशी उठकर पापा को चैक करने गई, वे सो रहे थे, इधर नंदिता की भी नींद लग गई थी।

आशी ने किचन मे जाकर खुद के लिए कॉफी बनाई ताकि कुछ एनर्जी मिले।

थोड़ी देर में नंदिता भी उठकर आ गई, दोनों बैठकर बातें करती रहीं।वक्त तो जैसे थम गया था, पल पल आगे बढने मे सदियां लग रही थी, लेकिन इंतज़ार के अलावा अन्य दूसरा कोई रास्ता न था।

अगले दिन तक पापा की स्थिति और बिगड़ चुकी थी, खाँसी भी बढ़ चुकी थी ,तेज़ बुखार और साँस लेने में बहुत दिक्कत हो रही थी।नंदिता और आशी घरेलू उपचार भी करती रहीं।मन तो हो रहा था कि अभी हॉस्पिटलाइज़ करवा दें, लेकिन लोगों से, न्यूज चैनलों से अस्पताल में भर्ती मरीजों की छिछालेदर सुन सुनकर वे दोनों कोई फ़ैसला नहीं कर पा रही थीं।जैसे तैसे रात के नौ बजे , और अमित आ गया।पापा की ऐसी स्थिति देखकर वो भी घबरा गया।फिर अपने कुछ दोस्तों, परिचितों से बात करके यही निर्णय लिया कि पापा को फ़ौरन हॉस्पिटलाइज़ किया जाए, अब सारे टेस्ट वहीं होते रहेंगे।


“मम्मी ,आप और आशी ,घर पर ही रुकें, मैं पापा को वेदांता मे एडमिट करवाता हूँ” अमित बोला।

“लेकिन बेटा..” नंदिता ने कूछ बोलना चाहा।

“मम्मी, टेंशन मत कीजिए, ये सब अफ़वाहें हैं कि हॉस्पिटलाइज़ होने के बाद बचना मुश्किल हो जाता है, हॉस्पिटल में सही इलाज मिलेगा, पापा जल्दी ही अच्छे होकर आ जाऐंगे, विश्वास रखो आप” अमित ने नंदिता को आश्वासन दिया।

“बेटा, यहाँ नज़दीक के किसी हॉस्पिटल में करवा दो न, वेदांता तो बहुत दूर पड़ेगा” नंदिता बोली।

“मम्मी, वेदांता बेस्ट है, नजदीक दूर से कोई फ़र्क नहीं पड़ता, क्योंकि एक बार एडमिट करवाने के बाद उनसे मिलने, बात करने की परमिशन तो कहीं भी नही मिलेगा, आप फ़िक्र न करें, मैने सब जानने समझने के बाद ही यह डिसाइड किया है” अमित बोला।

“ठीक है बेटा, जैसा तू ठीक समझे” नंदिता बोली।

“भैय्या आप अपनी गाड़ी से ही ले जा रहे हो न , या एंबुलेंस बुलवाएं” आशी ने पूछा।

“हाँ , मैं पापा की गाड़ी से ही जाऊंगा, क्योंकि आते समय मुझे ज़रूरत होगी” अमित ने कहा।

“आईए पापा, हम आपको हॉस्पिटल ले जा रहे हैं ताकि आप जल्दी से ठीक होकर घर आएं” अमित ने पापा को सहारा देकर उठाते हुए कहा।

“बेटा, मुझे नहीं लगता कि अब मैं घर वापिस आ पाऊँगा” पापा हताशा भरे स्वर से बोले।

“क्यों नहीं आएंगे, बिल्कुल आएंगे, प्रॉपर इलाज होगा और आप झट से अच्छे हो जाएंगे, बी पॉज़िटिव, ओके पापा”कहकर अमित ने उन्हें उठाया, फिर आशी और अमित ने मिलकर पापा को गाड़ी में पीछे सीट पर लिटाया, अमित हॉस्पिटल के लिए निकल पड़ा।

हॉस्पिटल में एडमिशन की सारी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद अमित को वहाँ से निकलना पड़ा, क्योंकि मरीज़ के पास किसी के रुकने या मिलने की सख़्त मनाही थी, डॉक्टर्स ने बता दिया था कि आगे की अपडेट अब फ़ोन पर ही पता करते रहिए, अमित भारी मन से घर लौट आया।घर पहुंच कर नंदिता और आशी को भी सारी स्थिति से अवगत करवाया।

“मम्मी आप बिल्कुल टेंशन मत लीजिए, वहाँ सभी व्यवस्थाएं बढिया थीं, अभी पापा को आईसीयू में रखा है, कल सारे टेस्ट हो जाऐ,उसके बाद स्थिति क्लीयर होगी, अब आप भी आराम कीजिए, रात काफ़ी हो गई है” अमित ने नंदिता से कहा।

“ठीक है बेटा, मेरे भी हाथ-पैरों में बहुत दर्द है, हरारत सी महसूस हो रही है, एक पेनकिलर खाकर सो जाती हूँ, चलो बेटा आशी तुम भी आराम कर लो” नंदिता ने उठते हुए कहा।

*सुबह* साढ़े दस बजे के करीब पैथालॉजिस्ट ने पापा की रिपोर्ट वॉट्सऐप पर भेज दी।रिपोर्ट पॉज़िटिव ही थी।अब ज़रूरी था कि ये तीनों भी टेस्ट करवाएं, क्योंकि तीनों ही पापा के संपर्क में आए थे।सो तीनों का भी टेस्ट हुआ।

तीनों ही पॉज़िटिव आए, हालांकि 6% आया था सो तीनों को होम क्वारंटाइन होना पड़ा। उधर हॉस्पिटल में पापा को वेंटिलेटर पर शिफ्ट कर दिया गया और घर मे तीनों का इलाज शुरू हो गया।

तीन चार दिन घरेलू इलाज भी करते रहे।

“भैय्या मम्मी की हालत तो बिगड़ रही है” आशी बोली।

“हाँ आशी, साँस लेने में मुझे अनईज़ी फ़ील हो रहा है, ऐसा लग रहा है कि मम्मी और मुझे हॉस्पिटलाइज़ होना पड़ेगा” अमित कुछ चिंता में बोला।

“भैय्या ऐसा है तो देर क्यों करें, आप और मम्मी यहीं गाज़ियाबाद के किसी हॉस्पिटल में एडमिट हो जाईए, जितना जल्दी ये कदम उठाएंगे, उतना ही अच्छा” आशी बोली।

“तुम अकेले रह लोगी?”अमित ने पूछा।

“हाँ भैय्या, डोंट वरी, मैं रह लूंगी, वैसे भी मेरी तबियत अभी थोड़ी ठीक है”आशी ने कहा।

“ठीक है, मैं मम्मी से बात करता हूँ” अमित बोला।

आखिरकार नंदिता और अमित हॉस्पिटलाइज़ हो गए, आशी घर पर ही आईसोलेट थी।

उधर आशी के घर जतिन बच्चों की देखभाल कर रहा था, अमित की पत्नी और बच्चा कानपुर में थे, पूरा परिवार जैसे एक जंग लड़ रहा था।इतनी बैचेनी ज़िंदगी में कभी महसूस नहीं की थी, आशी ने टीवी ऑन किया, उसपर चारों तरफ मचा कोहराम,, ऑक्सीजन की कमी, दवाईयों की कालाबाजारी, इंजेक्शन की कालाबाजारी, लाशों के ढेर…ये सब देखकर घबरा कर आशी ने अगले पल ही टीवी बंद भी कर दिया, सोफ़े से सिर टिका दिया, दोनों हाथ ईश्वर की अरदास मे जुड़ गए और आँखों की कोर से अश्रुधार बह निकले, उसने मन ही मन कहा- “हे प्रभु सबकी रक्षा करो, आप ही सबके तारणहार हो”।


अब फोन पर ही पापा, मम्मी और अमित के हाल पता चलते रहते, कभी बुखार बढ़ जाता, कभी ऑक्सीजन लेवल कम हो जाता, तबीयत स्थिर ही बनी हुई थी, पापा की रिकवरी तो बिल्कुल न के बराबर थी।

पापा को एडमिट हुए करीब बीस दिन हो गए थे और मम्मी और अमित को भी चौदह पंद्रह दिन, लेकिन हॉस्पिटल से कोई रिलेक्सिंग खबर नहीं मिल पा रही थी, आशी ने दुबारा टेस्ट करवाया था, उसकी रिपोर्ट दो दिन बाद आनी थी।आज की रात आशी को बहुत बैचेनी हो रही थी, वह बेड पर बैठे बैठे ईश्वर से प्रार्थना कर रही थी, उसे नींद नहीं आ रही थी, मन किसी अनहोनी की आशंका से पल पल सिहर जाता था।रात साढ़े तीन बजे मोबाइल बजा, और खबर सुनकर आशी का दिल बैठ गया।

“मिस्टर चौधरी इज़ नो मोर, बॉडी आपको नही मिलेगी, इलेक्ट्रिक क्रिमिएशन के बाद एशेज़ कलेक्ट करने के लिए आप कल आ जाईए”

“पापा….” हाथ से मोबाइल छूट गया, आशी कटी पतंग की तरह निढाल बेड पर गिर पड़ी,क्या करती, कोई कंधा नही था जिसपर सिर रख कर वो रोती, कोई साथ नही, कोई हाथ नही,जो सिर पर हाथ रख कर दिलासा दे सके।समझ मे नहीं आ रहा था कि क्या करे।मम्मी और अमित तो खुद ज़िंदगी और मौत के बीच झूल रहें हैं, उन तक तो यह खबर का पहुंचना भी उनके लिए कितना घातक हो सकता है ये सोचकर वो काँप गई।उसने खुद को संयत किया, कुछ निर्णय कर उसने जतिन को फोन मिलाया।

“हेलो, आशी…क्या बात है, इतनी रात गए…”जतिन बोला।

“जतिन, पापा…..”बोलकर आशी रुलाई फूट पड़ी।

“आशी….आशी….कम ऑन..प्लीज़ रिलेक्स..”जतिन बात की गंभीरता को समझते हुए आशी को रिलेक्स्ड करने की कोशिश करने लगा।

“सुनो, जतिन ,मुझमे न जाने कहाँ से इतनी हिम्मत आ गई है कि इस भयावह स्थिति को किस तरह समझदारी से फेस करना है ये मैने सोच लिया है।कल मैं अकेली पीपीई किट पहनकर वेदांता जाऊंगी, वहाँ जो फॉर्मेलिटी करना होगी वो करके , पापा के अंतिम संस्कार के बाद उनकी अस्थियां ,या जो भी वो देंगे वो लेकर आऊंगी, उसमे से कुछ राख मैं बीच में पड़ने वाली हिंडन नदी मे प्रवाहित कर दूंगी, और बाकी मम्मी और अमित के अच्छे हो जाने के बाद विधिवत विसर्जन कर देंगे।जतिन इस बात की किसी को भी खबर मत देना, क्योंकि बात बहुत जल्दी फैलती है और मैं नहीं चाहती कि किसी भी तरह ये खबर मम्मी और अमित तक पहुंचे।यहाँ तक कि ये बात मैं भाभी को भी नहीं बता रही हूं, इसलिए आप भी अपने तक ही रखना।” आशी एक साँस मे सबकुछ बोल गई।

“लेकिन आशी, तुम अकेली…. मैं आ जाता हूँ न, मैं भी पीपीई किट पहन लूंगा” जतिन बैचेनी से बोला।

“नहीं जतिन, ये भावनाओं में बहने से ज़्यादा समझदारी से काम लेने का समय है, आप और बच्चे घर मे ही सुरक्षित रहें, आपको मुझपर विश्वास है न”आशी ने पूछा।

“हाँ आशी पूरा विश्वास है और गर्व भी है, मैं जानता हूँ कि तुम इस विकट स्थिति को कैसे संभाल लोगी, लेकिन जहाँ मेरी ज़रूरत हो, तुरंत फोन कर देना, लव यू डियर, टेक केयर प्लीज़” जतिन ने आशी को हौंसला दिया।

“बस आपका साथ है न, अब मैं सब मैनेज कर लूंगी, बाय , टेक केयर “आशी ने कहा और फोन रख दिया।

अगले दिन सुबह आशी की परीक्षा शुरू हो चुकी थी, गाज़ियाबाद से वेदांता हॉस्पिटल लगभग चालीस पैंतालीस किमी दूर के लिए आशी निकल पड़ी, आँखें सुर्ख हो रही थी, लॉकडाउन भी था, सो रास्ते में पुलिस वालों को भी जवाब देना पड़ेगा, कारण बताना पड़ेगा, ख़ैर आशी मजबूत इरादों से आगे बढ़ रही थी।सारी रुकावटों को पार कर आखिर वेदांता पहुंची, वहाँ उतरकर सबसे पहले पीपीई किट पहनी, वहाँ रिसेप्शन पर सारी बात कही, उन्होंने रैप की हुई पापा की डेड बॉडी दिखाई, पापा को देखा, उनके चेहरे पर दर्द साफ़ नज़र आ गया, आशी का कलेजा हिल गया, हॉस्पिटल वालों ने इलेक्ट्रॉनिक अंतिम संस्कार कर लगभग चार घंटे के बाद पापा की अस्थियां आशी को सौंप दी।पेमेंट तो कोई ड्यू नहीं था, क्योंकि सभी कुछ ऑनलाइन चल रहा था सो आशी अस्थियां लेकर वहाँ से निकल पड़ी।उसने कुछ राख हिंडन नदी मे प्रवाहित कर दी, बाकी सुरक्षित रख ली।आशी पसीने मे नहा रही थी, उसने पीपीई किट उतारकर उसे आग के हवाले कर दिया।आशी खुद नहीं जानती थी कि आज उसने कितना बड़ा काम किया है, बहुत ही हिम्मत का काम था ,ये सब करना, लेकिन उसे अब सिर्फ़ मम्मी और अमित के प्राणों की चिंता थी, बस उन्हीं को बचाने के लिए आशी कमर कस चुकी थी।

घर आकर नहाने के बाद आशी ने सबसे पहले जतिन को फोन किया।

“हेलो आशी..एवरीथिंग इज़ ऑलराइट न..”जतिन ने फोन उठाते ही कहा।

“हाँ जतिन सब ठीक से हो गया, सुनो कल मेरी रिपोर्ट भी आ जाऐगी, आय होप कि अब नेगेटिव ही होगी, तो कल शाम तक मैं अपने घर आ जाऊंगी, ओके..”आशी बोली।

“हंड्रेड परसेंट नेगेटिव ही होगी, जल्दी घर आ जाओ, यहाँ तुम्हारी भी देखभाल अच्छे से हो जाएगी और हम मम्मी और अमित को डिस्चार्ज करवा के यहीं ले आएंगे” जतिन बोला।

“हाँ जतिन, पर पता नहीं कब वे डिस्चार्ज होंगे लेकिन तब तक पापा की न्यूज़ बिल्कुल सीक्रेट ही रहे” आशी बोली।

“बिल्कुल सही, तुम चिंता मत करो, बस कल आने की तैयारी करो” जतिन बोला।

“ओके, बाय जतिन”

“ओके, टेक केयर आशी”

अगले दिन आशी की रिपोर्ट आ गई।नेगेटिव ही थी, आशी ने राहत की साँस ली, अपनी पेकिंग की, मम्मी के घर अच्छे से सेनेटाइज़ करके फिर दोपहर करीब तीन बजे अपने घर को निकल पड़ी।लॉकडाउन की वज़ह से कई दिक्कतों का सामना करते हुए रात करीब सात बजे गुरुग्राम अपने घर पहुंची।घर पहुंचकर सबसे पहले नहाई , बच्चों को जतिन को हिदायत दी कि अभी कुछ दिन उससे दूरी बनाकर ही रहें और मास्क भी लगाकर रखें।

अमित और मम्मी के डिस्चार्ज के इंतज़ार में दिन कटने लगे।

बीच मे मम्मी से एक दो बार विडिओ कॉल पर बात हुई, उन्होंने पापा के हालचाल जानने चाहे, आशी ने बताया कि रिकवरी स्लो है, पर आप चिंता मत करो सब ठीक हो जाएगा।

करीब आठ दिनों के बाद अमित को डिस्चार्ज मिल गया, काफ़ी कमज़ोरी थी, सो आशी ने फैसला किया कि अभी उसे पापा के बारे मे कुछ नहीं बताएगी, उसे वो अपने घर ही ले आई, पहले उसकी हालत ये सदमा सहने के लायक हो जाऐ, उसके बाद ही ये बात बताई जाए, यही सोचकर आशी उसकी देखभाल करने लगी।


अब चिंता मम्मी की थी।

आशी बहुत ही कड़े इम्तिहान से गुज़र रही थी लेकिन एक अनजान शक्ति ने उसे बुलंद कर दिया था कि वो बिल्कुल सामान्य रहकर यह सब कर पा रही थी।

आखिरकार हॉस्पिटल से कॉल आया कि आप कल नंदिता जी को डिस्चार्ज करवा सकतें हैं।आशी ने राहत की साँस ली, लेकिन कशमकश ऊहापोह की स्थिति तो विद्यमान थी ही, कि मम्मी को पापा के बारे में क्या बताए, कैसे बताए, लेकिन सच्चाई तो ज़ाहिर होनी ही है, सो आशी ने खुद को और हिम्मत दी।

अगले दिन मम्मी घर आ गई, बहुत ही कमज़ोर हो गई थी, फ़िलहाल तो चुप्पी ही बेहतर है यही सोचकर आशी सामान्य होने का उपक्रम ही करती रही।

नंदिता नहा धोकर बेड पर बैठी और आशी से बोली-

“आशी ,पापा से बात नहीं हो सकती क्या? और सुन एक बिंदी तो दे, महीना भर से बिंदी नही लाई है”

“मम्मी ,पापा से बात नही हो पाएगी, आप आराम करो, बाद मे कोशिश करेंगे”

“ठीक है, चल अच्छा बिंदी तो दे” नंदिता लेटते हुए बोली।

आशी का कलेजा मुँह को आ गया, उसने काँपते हाथों से नंदिता को बिंदी दी।

“देख बिंदी के बिना चेहरा कितना बुरा लग रहा था, जैसे बरसों की बीमार हूँ” नंदिता बिंदी चिपकाते हुए बोली।

आशी बस देखती रही, कुछ बोल न सकी।

बहुत मुश्किल हो रहा था मम्मी और अमित के प्रश्नों के उत्तर देना।दिन प्रतिदिन उन लोगों की हालत मे सुधार हो रहा था और वे दोनों पापा के बारे मे पूछते थे।

एक दिन अमित बोला-

“मम्मी आज मैं वेदांता फोन लगाकर पता करता हूँ, आखिर पापा की रिकवरी इतनी स्लो क्यों हो रही है”

“हाँ बेटा, ज़रा पता तो कर” नंदिता बोली।

“आशी, वेदांता का नंबर तो दो ज़रा, आज पापा के बारे मे मैं डिटेल मे बात करता हूँ” अमित बोला।

आशी बाहर आई, उसके हाथ मे लाल कपड़े में लिपटा एक कलश था।जिसे देखकर अमित और नंदिता स्तब्ध रह गए।

“ये क्या है” नंदिता का दिल धड़का।

“पापा….” आशी भरी हुई आँखों से बोली।

“बदतमीज़…”नंदिता ने उठकर आशी के गाल पर एक थप्पड़ रसीद कर दिया।

“मम्मी….” आशी फ़फ़क पड़ी।

“कब आशी?”अमित ने पूछा।

“बीस दिन पहले पाँच तारीख को” आशी सिसकते हुए बोली।

“क्या….?और तू अब तक हमसे झूठ बोलती रही” नंदिता बदहवास सी आशी को झंझोड़ते हुए बोली।

“मम्मी, पापा तो जा चुके थे, लेकिन मुझे तो उन लोगों को सहेजना था न जो ज़िंदा थे, बस इसीलिए….”कहते हुए आशी फूटफूटकर रोने लगी।

अचानक नंदिता ने आशी की भींच कर सीने से लगा लिया।

“मेरी बच्ची माफ कर दे मुझे, कितने सख़्त इम्तिहान से गुज़री तू, कितना धीरज, कितना साहस ,कितना संघर्ष करना पड़ा होगा तुझे….सच मे ये कोविड19 बहुत कुछ ले गया, लेकिन बहुत कुछ दे भी गया, हौंसला , एक दूसरे की परवाह और कई सबक।

नंदिता ने आशी और अमित को गले से लगा लिया।

लाल कपड़े से लिपटे कलश मे जैसे पापा मुस्कुराते हुए कह रहे थे-

“शाबाश मेरी बेटी”

 

*नम्रता सरन “सोना”*

भोपाल मध्यप्रदेश 

 

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