आयूष ओ आयूष देखो तो दरवाजे पर कौन है??
रमा ने रसोई से ही आवाज लगाई।
आयूष हाथ में मोबाइल पर वीडियो गेम खेलते हुए ही दरवाजे तक आया और बोला जी कहिए किससे मिलना है?
मैं राजेंद्र खत्री, पापा हैं घर पर ?
नहीं पापा तो नहीं है मम्मी हैं । अयूष यह कह ही रहा था कि रमा स्वयं भी गेट तक आ चुकी थी ।
राजेंद्र को देखते ही उसके चेहरे पर ये बड़ी मुस्कान आ गई अरे भैया आप ?आइये आइए यूं दरवाजे पर ही क्यों खड़े हैं?
अरे पहले बता दिया होता , ये लेने आ जाते स्टेशन पर ही।
राजेन्द्र को अपने स्वागत में कहे हुए शब्दों पर विश्वास करने में थोड़ा समय लगा।
भाभी जी मैं ट्रेन से नहीं गाड़ी से आया हूं ।
ओह अच्छा, और रमा ने चोर निगाहों से बाहर देखा कि आखिर टैक्सी है कि गाड़ी?
अरे ऑडी? ड्राइवर चला कर लाया है,वाह।
उसकी आंखें आश्चर्य से फ़ैल गईं।
खुद को सामान्य दिखाने की कोशिश कर रही रमा राजेन्द्र की आवभगत में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती थी।
अरे बेटा चाचा जी हैं ये, पैर छुओ।
आयूष ने खाने वाली नज़रों से मां को देखा और पैर छूने की औपचारिकता पूरी करके फिर से अपने रुम में चला गया ।
रमा ने उसे अपने ड्राइंग रूम में बिठाया और स्वयं अमित को फोन करने लगी ।
हैलो ! हां रमा क्या बात है यूं बेवक्त क्यों फोन किया पता है न जरुरी मीटिंग शुरू होने ही वाली है??
अरे सुनो वो राजेन्द्र जी आए हैं।
कौन राजेन्द्र?
अरे वो ही आपके गांव वाले याद नहीं जिनके कॉलेज की श्रंखला है पूरे प्रदेश में।
वो ? कब आया, मतलब कब आए ?
अभी अभी ही,आप आ जाइए ,मेल मुलाकात होगी तो आगे के लिए अच्छा रहेगा ।
हां, हां आता हूं , तुम पांच मिनट बाद कॉल करना कि घर पर इमरजेंसी है और मैं बॉस को बहाना बनाकर निकलता हूं।
ठीक है कहकर, रमा ने फोन रख दिया और ड्राइंग रूम में आ गई।
इधर राजेन्द्र देख रहा था कि ये वही ड्रांइग रुम है जिससे उसे लगभग बेइज्जत करके बाहर जाने को कह दिया गया था आज से पंद्रह साल पहले , वो बुद्धा का स्टेच्यू थोड़ा सा फेड हो गया था पर उसी जगह पर रखा था।
और वह झरने वाली पेंटिंग भी नहीं बदली थी । कुछ नए शो पीस भी रखे थे जो काफी मंहगे रहे होंगे जो उस समय नहीं थे।
वह कितने अपनेपन से मिलने आया था रमा और अमित से यह सोचकर कि अपने घर गांव के लोग तो भाई ही होते हैं । एक रात के लिए कहां यहां वहां होटल देखेगा और फिर बेवजह पैसा भी क्यों खर्च करना?
यहां अमित से मुलाकात भी हो जाएगी और पैसे भी बचेंगे ,इसलिए वह यहां आ गया था उस दिन।
शाम का समय था , अमित घर नहीं आया था। उसने कॉलबैल बजाई तो दरवाजा रमा ने ही खोला था।
उसने अपना परिचय दिया और आने का कारण बताया तो रमा ने उसे अंदर ड्राइंग रूम में बिठाया ये कहकर कि दस मिनट में अमित आ ही रहे होंगे।
अमित ने घर में प्रवेश करते ही जब राजेन्द्र को वहां बैठे देखा तो उसकी भवें तन गईं।
राजेंद्र ने औपचारिकता वश उठकर पैर छुए तो अमित पीछे हट गया,अरे बस बस , कैसे आना हुआ इधर?
अमित ने सीधा ही प्रश्न उछाल दिया।
हालांकि किसी मतलब से राजेन्द्र नहीं आया था।
पर उस समय उसका आने का अर्थ अमित ने यही लगाया था कि वह जरूर कुछ रुपए पैसे उधार लेने आया होगा।
उसकी धारणा यही थी कि गांव के लोग सीधे होने का अभिनय कर यूं ही दूसरों के आगे हाथ फैलाते रहते हैं, खासकर शहरों में रहने वाले अपने जानने वालों से।
जब रमा ने अंदर आकर कहा कि भैया यूं ही मिलने आए हैं और रात को यहीं रुकेंगे तो अमित उस पर ही बरस पड़ा।
रमा तुम कुछ ध्यान क्यों नहीं रखतीं.
आज तो बॉस के यहां पार्टी है न? तो हम राजेन्द्र को यहां अकेले कैसे छोड़ कर जा सकते हैं??
रमा ने प्रश्नवाचक निगाहों से उसे देखा तो आंखों में ही उसे इशारा कर दिया।
राजेंद्र सब कुछ समझ चुका था अभी तक उसे एक गिलास पानी भी किसी ने नहीं पूछा था और लगभग जाने के लिए के कह दिया गया था।
राजेंद्र उठते हुए बोला कोई बात नहीं भैया मैं तो यूं ही मिलने आ गया था आप अपने काम करिए मैं चलता हूं।
और हाथ जोड़कर वह बाहर निकल गया।
उस दिन का एक एक दृश्य आंखों के आगे चलचित्र की तरह घूमने लगा।
वह यह सब सोच ही रहा था कि
रमा ने आकर पानी दिया और हाल-चाल पूछने लगी।
भाभी जी सब बढ़िया चल रहा है, खबरें तो आपको मिलती ही रहतीं होंगी?
प्रश्नवाचक गहरी निगाहों से राजेन्द्र ने रमा की तरफ देखा।
जी भैया सही कह रहे हैं , खूब तरक्की की है आपने, परिवार और गांव का नाम रोशन कर दिया। हर जगह सिर्फ आपके ही इंस्टीट्यूट्स के चर्चे होते हैं।
आपने तो शिक्षा के क्षेत्र में झंड़े गाड़ दिए हैं।
हमें भी गर्व है आप पर कि हमारे देवर ने यूं नाम कमाया है और अब तक रमा आर्डर किया हुआ मैंगो शेक सर्व कर चुकी थी। जिसे पीने से राजेन्द्र ने यह कहकर मना कर दिया कि भाभी जी मैं बाहर का कुछ नहीं खाता।
रमा भी पुरानी बातें भूलीं नहीं थी पर वह कर भी क्या सकती थी? अमित के अभिमान से तो वह स्वयं भी त्रस्त थी।
इतने में ही अमित भी आ गया।
आते ही बड़ी गर्मजोशी दिखाते हुए बोला अरे भाई राजेन्द्र तुम कब आए?
बड़ा अच्छा किया जो मिलने चले आए।
राजेन्द्र ने ठंडेपन से कहा अभी अभी आया हूं और जल्दी ही निकल रहा हूं, मैं आपको यह बताने आया था कि आपकी जो जमीन दो साल पहले बिकी थी उस पर आई टी एम की बिल्डिंग तैयार हो गई है। अगले हफ्ते शिलान्यास है जो मुख्यमंत्री जी के हाथों होगा,समय हो तो आ जाना आखिर आपके पुरखों की जमीन थी, इसलिए आपका वहां होना अच्छा रहेगा।
अमित को यह खबर झन्नाटेदार चमाट की तरह लगी पर संयत रहते हुए बस यह ही कह सका कि जी राजेन्द्र भाई हम सभी अवश्य ही आएंगे आप बुलाएं और हम न आएं यह तो हो ही नहीं सकता आखिर हम तो भाई भाई ही हैं गांव के नाते से?
हां जी , बिल्कुल कहकर राजेन्द्र उठ कर खड़े हो गए यह कहते हुए कि अभी और लोगों को भी व्यक्तिगत रूप से आमंत्रित करना है।
मन ही मन राजेन्द्र सोच रहा था कि इस ज़माने में इज्जत इंसान की नहीं पैसे की होती और पदवी की होती है।
यही सच है और आगे भी रहेगा।
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रचना:- पूनम सारस्वत