सपना – बालेश्वर गुप्ता

आज मनी बहुत ही प्रसन्न थी,आज उसका सपना पूरा हो रहा था।20 वर्ष हाँ पूरे 20 वर्ष उसके जीवन मे कैसे बीते वो सब चलचित्र की तरह उसकी आँखों के सामने तैर रहे थे।

        अभी शादी को दो वर्ष ही बीते थे गोद मे मुन्ना आ गया।पूरा संसार ही बदल गया, हर समय मुन्ना की फिक्र,उसकी हंसी,उसका रोना, उसका खेलना जीवन का अंग बन गया था।विक्रम भी मुन्ना को देखते ना अघाते थे।कभी कंधे पर बिठाते तो कभी उसे उछालते। मुन्ना की किलकारी ही दोनो की मानो जीवन रेखा हो गयी थी।उसके भविष्य के ताने बाने अभी से बनने प्रारम्भ कर दिये थे।विक्रम कहता था वो अपने बेटे को आईएएस बनायेगा।क्लर्क रहते हुए उसे आईएएस होने के महत्व और रुतबे का पता था।सो विक्रम की महत्वाकांक्षा मुन्ना को आईएएस देखने की थी।मनी ठहरी 12 वीं पास उसे आईएएस होने का मतलब तो पता नही था पर जब विक्रम अपने बच्चे के बारे में सोच रहा है तो जरूर उसको बड़ा आदमी बनाने का सपना ही संजो रहा होगा।

        और अचानक ही एक दुर्भाग्यपूर्ण दिन ऐसा आया जिसने सब सपने बिखेर दिये, ऑफिस से आते समय मार्ग में एक ट्रक ने विक्रम को ऐसी टक्कर मारी कि विक्रम के वहीं सड़क पर ही प्राण पखेरू उड़ गये।

      बदहवास सी मनी मुन्ना को गोद मे लिये तड़फती रही रोती रही,पर अनन्त यात्रा पर गया पंछी लौट कर वापस थोड़े ही आता है।रिश्तेदार भी जो गिने चुने थे सहानुभूति प्रदान कर चले गये थे,ऑफिस वाले साथियों ने कुछ राशि आपस में एकत्रित कर मनी को भेंट कर दी थी।

          ऑफिस के एक दो साथियों की सहायता से मनी को विक्रम की मौत के बाद उसके एवज में चपरासी की नौकरी मिली, क्योकि वो ग्रेजुएट नही थी।लेकिन मनी ने इसे स्वीकार किया।उसने दूसरा विवाह करने के स्थान पर जीवन की चुनौतियों का सामना करने का मानस बना लिया था।




         मनी ने ऑफिस जाना प्रारम्भ कर दिया,उसे ड्यूटी मिली थी स्टाफ को पानी ,चाय सर्व करने एवं फाइल्स को एक दूसरी टेबल पर पहुचाने की।मनी ने बिना संकोच इस ड्यूटी का निर्वहन करना प्रारंभ कर दिया था।आखिर उसे मुन्ना को पढ़ाना लिखाना था,वो चाहती थी विक्रम के सपने को पूरा करना।

         मनी ने अपने को पूरी तरह से मुन्ना की परवरिश में झोंक दिया था।पर दुनिया का क्या करे? एक नवयुवती भले ही वो विधवा हो,भले ही वो अपने बेटे के भविष्य के लिये संघर्षशील हो,वो उसमे भी सहज पा जाने वाली चीज लगती है।फ़ाइल देते समय सहकर्मीयो द्वारा जानबूझकर किया जाने वाले स्पर्श को वो भलीभांति पहचानती थी।निगाह झुकाकर वहां से हट अपने दूसरे काम मे लग जाना उसने नियम सा बना लिया था।लेकिन मनी को  विक्रम के बाद समझ आ रहा था कि आज भी अकेली महिला को सहज उपलब्धता मानने की पुरुष मानसिकता बदली नही है।

      एक दिन तो किशन बाबू ने हद ही कर दी,मनी का हाथ पकड़ कर उसे अपनी ओर खींचने लगा।एक झन्नाटेदार रहपट किशन बाबू के मुँह पर पड़ा, कुछ समझ मे आता कि बिफरी मनी किशन को खींच कर आफिस के स्टाफ के बीच ले आयी और चीख कर बोली मेरा पति नही है तो क्या मैं इंसान भी नही रही,क्या मैं वेश्या हो गयी,मेहनत कर कमाती हूँ अपना और अपने बच्चे का पेट भरती हूँ,मैं कोठे पर नही बैठी तो आप ऑफिस को ही कोठा बनाने पर तुल गये।जरा भी मानवता,शर्म लिहाज नही बची आप लोगो में।थूकती हूँ मैं किशन जैसे पुरुषो पर।

     मनी का यह रूप तो किसी ने कभी देखा ही नही था, साक्षात दुर्गा लग रही थी।सब सहम गये।इस घटना के बाद तो ऑफिस का नजारा ही बदल गया।अब ऑफिस में सभी का मनी के बारे में नजरिया बदल गया था।अधिकतर सहकर्मी धीरे धीरे मनी को भाभी जी या बहन मनी का सम्बोधन देने लगे थे।उनको समझ आ गया था कि मनी सहज प्राप्त हो जाने वाली चीज नही है।मनी का पूरा ध्यान मुन्ना की पढ़ाई की ओर था।इसी बीच मनी ने कॉरेस्पोंडेंस से ग्रेजुएट की पढ़ाई भी प्रारंभ कर दी।मनी की मेहनत रंग लायी मनी ने ग्रेजुएशन कर लिया।

        ग्रेजुएट मनी ने अब अपने विभाग द्वारा समय समय पर आयोजित परीक्षाओं  में भाग लेना शुरू कर दिया।दो प्रयासों के बाद मनी ने डिपार्टमेंटल एग्जाम को पास कर ही लिया।उसे अब चपरासी की नौकरी से छुटकारा मिल गया था,मनी अब क्लर्क हो गयी थी। सम्मान के साथ आमदनी भी बढ़ गयी थी।मुन्ना को बताती रहती कि उसके पिता मुन्ना को आईएएस बनता देखना चाहते थे।लक्ष्य सामने हो और याद भी हो तो फिर उसे पूरा करने का मानस भी बनता है और संकल्प भी।

      समय की गति कहाँ रुकती है, मुन्ना ने भी ग्रेजुएट कर लिया,अब वह आईएएस की प्रतियोगिता की तैयारी करने लगा था।मनी ने मुन्ना के कोचिंग की व्यवस्था भी कर दी।मुन्ना एक प्रतिभाशाली मेधावी छात्र के रुप मे उभर कर आया था,उसने रात दिन इस कॉम्पिटिशन की तैयारी की।मुन्ना की मेहनत,मनी के प्रयास और प्रार्थना तथा स्वर्ग से मुन्ना को अपने पिता विक्रम के आशीर्वाद से प्रथम प्रयास में ही सफलता प्राप्त हो गयी।मनी खुशी से रो पड़ी,भावावेश में मुन्ना का हाथ पकड़ वो विक्रम हाथ पकड़ विक्रम के फोटो के समक्ष ले गयी और आंसू पोछते बोली लो अपने बेटे को निहार लो,सुनते हो हमारा बेटा आईएएस हो गया है।तुम ये ही सपना देखते थे ना,आज पूरा हो गया है।

        मनी को अहसास था उसका विक्रम उसके आस पास ही है,20 वर्षो के इसी अहसास ने तो उसे जीवन संघर्ष की हिम्मत दी है।इसी संघर्ष से ही तो उनका सपना पूरा हुआ है।मनी सोच रही थी और मुन्ना देख रहा था अपनी माँ का मासूम सा स्नेह भरा चेहरा।तभी मुन्ना ने अपना सिर मनी के कंधे पर रख दिया और मनी चौक कर बोली चल रे मुन्ना खाना बना पड़ा है, क्या आज खाना नही खाना है—-?

#संघर्ष 

          बालेश्वर गुप्ता, पुणे 

स्वरचित,अप्रकाशित

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!