हमसफर- पूजा शर्मा : Moral Stories in Hindi

आप दोनों भाई समझाइए ना पापा जी को डॉक्टर ने भी मम्मी जी को जवाब दे दिया है आखिर वेंटिलेटर पर कब तक रखेंगे उन्हें एक महीना हो गया है वह कोमा में है उन्हें अब घर ले आना चाहिए आखिरी सांस अपने घर पर ही निकल जाए तो अच्छा है पैसा पानी की तरह बहा रहे हैं । इस तरह तो हम बिल्कुल खाली हो जाएंगे हमारे भी बच्चे हैं सुरेंद्र जी की बड़ी बहू ने अपने पति से कहा तो छोटी बहू ने भी अपनी जेठानी की बातों में हां में हां मिलाई। शहर में जाने-माने अचार और पापड़ का व्यापार है सुरेंद्र जी का, जहां से अलग-अलग शहरों में भी अचार सप्लाई होता है। दोनों बेटे भी उन्हीं के साथ बिजनेस में लगे हैं। पैसे की कोई कमी नहीं है।

 लगभग डेढ़ महीना पहले से उनकी पत्नी की तबीयत खराब चल रही थी कभी शुगर अप डाउन हो रही थी और बीपी भी अप डाउन हो रहा था। कितने टेस्ट हो चुके थे।धीरे-धीरे उनका स्वास्थ्य काफी गिर गया था और उन्हें अस्पताल में भर्ती करना पड़ा। शांति जी को शायद लगने लगा था कि वह अब नहीं बचेंगी तभी तो अस्पताल में अपने पति से कहती रहती थी देखो जी जीवन में मेरी एक ही तमन्ना थी कि चाहे भगवान कैसे भी दिन दिखा ले लेकिन मुझे आपके कंधे पर ही दुनिया से विदा होना है। मुझे आप अच्छे से तैयार करके और मांग में खूब सारा सिंदूर भर के ही विदा करना। हमारे बच्चे बहुत अच्छे है उनके साथ आपका समय कट ही जाएगा। सुरेंद्र जी रोते हुए कहने लगे मैं तुम्हारे बिना एक दिन भी नहीं रह सकता तुम मुझे छोड़कर कभी नहीं जा सकती मैं दिन रात एक कर दूंगा। पैसा पानी की तरह बहा दूंगा लेकिन तुम्हें मेरे लिए ठीक होना पड़ेगा । जीवन के हर सुख दुख में तुम मेरी हमसफर रही हो कितने उतार चढ़ाव देखे हैं जीवन में। मैं तुम्हारे बिना जिंदगी का सफर नहीं काट सकता। उनकी बात सुनकर शांति जी की आंखों में भी आंसू आ गए थे और कहने लगी थी कौन हमेशा साथ रहा है जी? किसी एक को तो अकेले रहना ही पड़ता है उम्र के इस मोड़ पर? मौत पर किसका बस चला है कब किधर से आ जाए किसे पता? कहते कहते शांति जी भी रोने लगी थीऔर यूं हीधीरे-धीरे वो निढाल होती चली गई।एक महीने से वह कोमा में ही है। सुरेंद्र जी उन्हें एक पल को अकेला नहीं छोड़ते। शुरू में तो सब ने पूरी कोशिश की शांति जी जल्दी से ठीक होकर घर आ जाएं लेकिन अब उनके बेटों को भी उन पर लगने वाला पैसा दुखने लगा था। उधर सुरेंद्र जी का स्वास्थ्य भी अब धीरे-धीरे गिरने लगा था। आज जब थोड़ी देर के लिए शांति जी के पास अपनी बहन को छोड़कर घर आए तो हिम्मत करके उनके दोनों बेटों ने उनसे कह ही दिया ,पापा मां की बीमारी का हमें भी बहुत दुख है उनके बिना हमें भी अधूरा ही लगेगा लेकिन डॉक्टर ने भी हाथ खड़े कर दिए हैं अब उन्हें घर ले आना चाहिए शायद अपने घर में ही उनके प्राण अटके हो। खबरदार जो तुम दोनों ने एक और शब्द भी कहा अभी मैं जिंदा हू और अपनी पत्नी के लिए मैं अकेला ही काफी हूं। वह मेरी हमसफर है उसे मरने के लिए अकेला कैसे छोड़ दूं?

 जब से ब्याहकर इस घर में आई है उसने हर कदम पर मेरा साथ दिया है। तुम्हारी दादी के जल्दी स्वर्ग सिधार जाने पर तुम्हारी बुआ की शादी में भी अपने सारे जेवर मेरे हाथ पर थमाते हुए उसने यही कहा था मेरा गहना तो आप हो ,आप यह सारे जेवर अपनी बहन को दे दो। मेरे लाख मना करने पर भी।सिवाय एक मंगलसूत्र के उसने कुछ अपने पास नहीं रखा था। तुम्हें पढ़ाने की खातिर जब हम गांव से शहर आए थे तो छोटी सी प्राइवेट नौकरी थी मेरी। थोड़ा बहुत पैसा कमाने के लिए उसने अपने हाथों से अचार डालकर घर-घर देना शुरू किया था धीरे-धीरे कितने ऑर्डर मिलने लगे थे उसे। मैं भी अपनी नौकरी छोड़कर इसी काम में लग गया था। यूं ही दुकान पर दो-चार नौकर भी रख लिए थे। व्यापार अच्छा चल निकला। यह सब कुछ उसके समर्पण और मेहनत का ही फल है। अपने लिए कभी किसी चीज की इच्छा नहीं जताई उसने मुझसे कभी कुछ नहीं मांगा और तुम कहते हो मैं उसे मरने के लिए अकेला छोड़ दूं। क्या कमी रह गई तुम्हारी परवरिश में उससे जो तुम अपनी मां के लिए ही ऐसे शब्दों का इस्तेमाल कर रहे हो? अरे लोग तो दूसरों से उधार ले लेकर बीमार आदमी पर पैसा लगाते हैं भगवान का दिया हुआ मेरे पास सब कुछ है तो मैं उस पर क्यों ना लगाऊं? अपने पिता की बात सुनकर दोनों बेटे बहुत शर्मिंदा हुए और चुप हो गए। दोनों बहुएं भी एक दूसरे का मुंह देखने लगी थी। अस्पताल में जाकर सुरेंद्र जी अपनी पत्नी का हाथ दोनों हाथ में लेकर बहुत रोए और अपनी पत्नी से कहने लगे सब रिश्ते स्वार्थ के हैं शांति। जिंदगी भर जिन बच्चों के लिए हम मरते रहे आज उन्हें तुम्हारी कोई जरूरत नहीं है। सच ही है मतलबी दुनिया मैं जरूरत के हिसाब से ही रिश्ते निभाए जाते हैं चाहे वो हमारे मां-बाप ही क्यों ना हो? अपने बच्चों की बात से वह बहुत आहत हो चुके थे आज उन्हें अपनी सारी संपत्ति बच्चे सब कुछ बेकार लग रहा था। जैसे सभी का वजूद उनके हमसफर के उनके साथ होने से ही हो। रोते-रोते ही शायद सो गए थे। थोड़ी देर के बाद जब उनकी पत्नी के रुटीन चेकअप के लिए डॉक्टर आया और उन्हें उठाया तो उनकी गर्दन एक तरफ लुढ़क गई। उनके शरीर में अब प्राण नहीं थे। उधर शांति जी की आत्मा भी उनके प्राणों से निकल चुकी थी। सारे माहौल में एक चुप्पी सी छा गई थी। ऐसी मौत शायद किसी को नसीब नहीं होती कि दोनों पति पत्नी एक साथ ही दुनिया से विदा हो, मगर ये तो ऐसे हमसफर थे जिनका अंतिम सफर भी एक साथ ही होना था।

 शांति जी को आज उनकी दोनों बहूओ ने खूब सजाया था। दोनोंउस दुनिया में जा चुके थे जहां से शायद उन्हें कोई जुदा ना कर पाए।

  जाने कैसा रिश्ता होता है हमसफ़र का दो अजनबी लोग एक ही मंजिल के मुसाफिर हो जाते हैं। और दो शरीर और एक जान हो जाते हैं। किसी एक के न रहने पर दूसरा जिंदा लाश ही हो जाता है।

 तू है तो दुनिया कितनी हंसी है जो तू नहीं तो कुछ भी नहीं है।

 पूजा शर्मा स्वरचित।

#हमसफर

4 thoughts on “हमसफर- पूजा शर्मा : Moral Stories in Hindi”

  1. अंतस्तल को छूने वाली कहानी… आंखें नम हो गई 😢

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