हम मिलकर इस मुश्किल वक्त को पार कर लेंगे – संगीता अग्रवाल 

“राधिका कल से एक ही सब्जी बनाया करो!”खाना खाने बैठा मनन प्लेट में दो सब्जी देख बोला।

“अरे रोज ही तो दो बनती हैं एक आपकी पसंद की एक बच्चों कि पसंद की आज कौन सा बड़ी बात है!”मनन की पत्नी मुस्कुरा के बोली।

“वो राधिका मेरी नौकरी चली गई और जो थोड़ी सेविंग हैं उन्हें बहुत संभाल कर खर्च करना होगा पता नहीं ऐसे में दूसरी नौकरी कब मिले तुम बच्चों की पसंद का खाना ही बनाया करो अब से बस!”मनन सिर झुका के बोला।

“ओह!”राधिका के मुंह से बस इतना ही निकला।

“तुम चिंता मत करो राधिका मैं तुम सबको ज्यादा दिन तंगी में नहीं रहने दूंगा जल्द ही नौकरी मिल जाएगी मुझे बस तब तक थोड़ा हाथ खींच कर चलना होगा!”मनन बोला।

“कोई बात नहीं मनन नौकरी ही तो गई है दूसरी मिल जाएगी आप चिंता मत कीजिए और खाना खाईये!”राधिका मुस्कुराते हुए बोली।

मनन का एक प्यारा सा परिवार है राधिका जैसी सुंदर सुशील पत्नी है और टिन्नी , मिनी नाम की दो प्यारी प्यारी बेटियां है।

“पापा पापा हमारी फीस जमा होनी है टीचर ने कहा था ऑनलाइन क्लास में!”तभी आठ साल की टिन्नी आकर बोली।

“ठीक है बेटा पापा करवा देंगे आप चिंता मत करो जाओ पढ़ाई करो!”राधिका बोली।




“राधिका जैसा सोचा था परेशानी उससे बड़ी है तीस हजार रुपए तो बच्चों की फीस चली जाएगी और आगे भी फीस तो जुड़ती रहेगी ऐसे तो सेविंग भी खत्म हो जाएगी सारी!”मनन निराश होकर बोला।

“आप चिंता मत कीजिए हम मिलकर इस मुश्किल वक्त को पार कर लेंगे सेविंग्स से आप फीस जमा कर दीजिए कल। बाकी सोचते हैं क्या करना है। आप अभी कल की चिंता में खुद को मत घुलाईए। क्या पता आने वाला कल कोई आशा की किरण लेकर आए!” राधिका मनन के हाथ पर हाथ रख उसे दिलासा देती हुई बोली।

तीन महीने बीत गए पर मनन को नौकरी नहीं मिली इस बीच राधिका ने बहुत अच्छे से कम से कम पैसों में घर चलाया। लेकिन जुड़ा हुआ पैसा कभी तो खत्म होना ही था।

“राधिका बच्चों के स्कूल से फीस के लिए मेसेज आया है और बैंक में सिर्फ दस हजार रुपए हैं अब क्या होगा!”एक दिन मनन चिंतित हो बोला।

“लीजिए पैसे आप इन्हे बैंक में जमा कर दीजिए और फीस भर देना फिर!”राधिका 500 के नोट की गड्डी देते हुए बोली।

“इतने पैसे तुम्हारे पास कहां से आए?” पैसे देख मनन आश्चर्य से बोला।

“मैंने अपनी चैन बेच दी थी कल ही क्योंकि जानती थी बैंक में पैसे नहीं और फीस का नोटिस आने वाला होगा!”राधिका मुस्कुरा कर बोली।

“किसी काम का नहीं हूं मैं तुम्हें अपने जेवर बेच घर खर्च चलना पड़ रहा है अब!”मनन निराश होते हुए बोला।

“अरे आप और मैं अलग हैं क्या मुश्किल वक़्त आया है इस पर जीत हासिल कर लें फिर जेवर का क्या है और बन जाएंगे वैसे भी मेरा असली गहना आपका प्यार और अपने बच्चों की बाहों का हार है बाकी सब इस गहने के आगे फीके हैं!”राधिका मनन के गले में बाहें डालती हुई बोली।

“बहुत खुशकिस्मत हूं मैं जो तुम्हारे जैसी बीवी मिली मुझे सच वरना मैं हार ही जाता!”राधिका को प्यार से देखते हुए नम आंखों से नमन बोला।




“हम आपको हारने नहीं देंगे जी हर मुश्किल पर जीत पा जाएंगे हम एक दूसरे के साथ से!”राधिका बोली।

“हां राधिका बस नौकरी लग जाए फिर मैं तुम्हे इससे अच्छे गहने दिलवाऊंगा हम जबतक साथ है हारेंगे नहीं हर मुश्किल में जीत जाएंगे!”मनन राधिका को गले लगाता हुआ बोला।

“ओल हम!”तभी तीन साल की नन्ही मिनी टिन्नी के साथ वहां आ अपनी तोतली ज़बान में बोली।

“हम चारों जब तक साथ हैं।”मनन मिनी को गोद में उठा बोला तभी टिन्नी भी मेज पर चढ़ कर अपने पापा के गले में झूल गई।

कुछ महीने यूहीं बीत गए राधिका को अपनी कान की बालियां भी बेचनी पड़ी पर कहते हैं ना सब्र करने वाली पत्नी हो तो पति के भाग्य का सितारा ज्यादा दिन डूबा नहीं रहता आखिरकार आठ महीने के मुश्किल संघर्ष के बाद मनन को नौकरी मिल ही गई।

दोस्तों घर में प्यार और एक दूसरे का सम्मान हो तो कोई मुश्किल इतनी बड़ी नहीं होती जिससे पार ना पाया जा सके। राह मुश्किल जरूर हो सकती है पर मंजिल जरूर मिलती है।

आपकी क्या राय है मेरी लिखी कहानी को ले? मुझे बताइएगा जरूर।

आपकी दोस्त

संगीता अग्रवाल 

 

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