मैंने उसे दरवाजे से ही लोटा दिया।
अतीत की यादें, मस्तिष्क के हर कोने में मानो रमी हुई हैं, हर कोने ने बहुत हिफाजत से उन यादों को संजोया हुआ है।
‘किताब के पन्नों की तरह, पन्ना पलटता मेरा अतीत, मेरे सामने घूम रहा है ’
बस आज जरा सा मौका मिला नही, सब घूमड, घूमड के आँखों के सामने आ रहा है।
छुटियों में घर क्या जाना होता था, इतने दिन पहले ही जाने की तैयारी शुरू हो जाती।
और हम सब दोस्त एक तरफ घर जाने को लेकर जितने खुश होते, उतना ही दुख एक दूसरे से दूर जाने का होता।
लेकिन फिर भी घर जाने का मजा तोह सबसे अलग ही होता था।
घर पहुँचते ही, मम्मी से मेरी फरमाएशें शुरू हो गई, मेस का खाना खाते खाते उक्ता गई थी मैं, अब कुछ दिन मम्मी के हाथ का खाना खाउंगी।
शाम को उर्मि के कॉलेज से आते ही, मैं उर्मि के घर पहुँच गई।
और जो बातों का सिलसिला शुरू हुआ, वो देर रात ही जाकर थमा।
वोह भी अगले दिन फिर मिलने के वादे के साथ।
उर्मि से ही पता लगा, मोहल्ले में परसो माता रानी के जगराते का।
और हम दोनों ने शुरू कर दी अपनी तैयारी।
दोनों ने एक जैसे ही कपड़े पहनने का सोचा, और उसके लिए अगले दिन का ही शॉपिंग जाने का प्रोग्राम भी बना लिया।
काफी मशक्कत हो चुकी थी, लेकिन अभी भी कुछ खरीदा नही था।
कहीं रंग पसंद नहीं, तोह कही डिज़ाइन पसन्द नहीं, सब पसंद तोह उनके पास एक जैसे दो सूट नही मिल रहे थे।
आखिर शाम होते होते, हमें हमारी पसंद के कपड़े मिल गए।
आसमानी रंग की कुर्ती, गुलाबी सलवार और उसपर गुलाबी दुपट्टा।
पैरों में रंग बिरंगी पंजाबी जुती
और बालों के लिए परांधे हमारी ख़ुशी का ठिकाना ही नहीं था,
लौटते हुए बाबूराम के मशहूर छोले भठूरों से, पेट पूजा करते हुए अपने अपने घर पहुंचे।
मम्मी के लिए लाल साड़ी, अनिरुद्ध भईया और पापा के लिए पिले रंग के कुर्ते भी ले आई थी मैं।
पापा, भईया को अपना, अपना कुर्ता बहुत पसंद आया, बाकि मम्मी को जल्दी कहाँ कुछ पसंद आता था?
फिर भी मेरा दिल रखने को वोह बोलीं
“बहुत अच्छी साड़ी है“
पर मैं भी उनकी ही बेटी हूँ, उनके हाव भाव से पता लग हि गया।
रात में, साथ मैं खाना खाते हुए बहुत सी बातें की, आज बहुत दिनों बाद एक साथ बैठना नसीब हुआ था।
भईया की भी अगले दिन छुट्टी थी, तोह मैंने भईया से अगले दिन मुझे बाहर नाश्ता कराने का वादा ले ही लिया।
रात को उर्मि को भी मैंने सुबह के प्रोग्राम के बारे मैं बता दिया, और हमारे साथ चलने को बोला।
थोड़ा ना नुकुर करके, आखिर में वोह मान गई।
सुबह उर्मि तय समय पर हमारे घर आ गई, उसने काले रंग की जीन्स के साथ सफेद कुर्ती पहनी हुई थी,
बहुत अच्छी लग रही थी वोह।
सिर्फ वही नही, मैं भी अच्छी लग रही थी, अपने काले रंग की फ्रॉक में।
भईया उर्मि को देख कर चौंके, और मेरी तरफ शिकायत भरी नजर से देखा,
लेकिन मैंने उनसे बचने के लिए नजर दूसरी तरफ कर ली।
गाड़ी में भी मैं पहले ही पिछले सीट पर जाकर बैठ गई,
उर्मि मुझे कुछ कहती इससे पहले ही, मैं बोल पड़ी की मुझे आगे गर्मी लगती है मैं पीछे ही बैठूंगी ।
उर्मि थोड़ा हिचकिचाती हुई आगे वाली सीट पर बैठ गई ।
भईया ने उसे सीट बेल्ट लगाने का याद कराया, और हम चल पड़े अपने गणतंव्य पर
दुकान में भीड़ बहुत थी, जैसे तैसे हम बैठे ।
भईया ने कहा भी, कहीं और नाश्ता कर लेते हैं, पर मुझे उसी दुकान में ही नाश्ता करना था.
मैं और उर्मि एक तरफ और भईया हमारे सामने वाली सीट पर बैठ गए।
उर्मि बीच बीच में भईया की तरफ देख लेती,
आखिर उसके पास चारा भी क्या था, भईया उसके बिल्कुल सामने बेठे थे वोह देखती भी तोह कहा।
ओर जैसे ही नज़र टकराती, वोह झेंपती सी नजरे नीचे कर लेती, भईया की आँखों में भी आज उसकी खूबसूरती का एहसास नजर आ रहा था ।
अनिरुद्ध भईया ने खाने के लिए तीन प्लेट पूरी चना बोला, साथ में 3 मिठी लस्सी, तोह उर्मि धीरे से बोली
की मैं, लस्सी नहीं लुंगी तोह भईया ने अधिकार से कहा,
“पूरा नहीं पी पाओगी तोह मैं पीलूँगा”,
तोह उर्मि भईया को देख कर चुप हो गई, मुझे हंसी आने लगी पर मैने जैसे तैसे अपने पर कण्ट्रोल किया|
वापसी मे उर्मि से भईया उसके आगे के भविष्य के लिए क्या सोचा है पूछने लगे,
“बीएससी के बाद क्या सोचा है?
आगे पड़ोगी या नोकरी करने का इरादा है?
या कुछ ओर करने का विचार है ?
उर्मि को अचानक से आये, ऐसे सवालों की उम्मीद नहीं थी|
कुछ अटकते हुई वोह बोली, आगे एमएससी का सोचा है ओर b.ed भी करूंगी|
भईया कुछ और पूछते, उससे पहले ही मैंने बातचीत दूसरी और मोड़ दी, और भईया से शाम के प्रोग्राम की तयारी के बारे में पूछने लगी |
और बातें करते करते हम घर की पास वाली गली में पहुँच गए|
भइया ने हमें वहीं उतारते हुए खुद कुछ देर में आने का बोला और चले गए|
मैं और उर्मि, उर्मि के घर आ गए,
वहां कुछ देर रुकने के बाद मैंने आंटी से उर्मि को आज के लिए अपने घर ले जाने की अनुमति मांगी,
आंटी से अनुमति लेकर हम हमारे घर आ गए|
मम्मी भी उर्मि को देख कर खुश हुई और बोली बेटा कभी तपु के पीछे से भी आ जाया करो, मेरा भी कुछ मन बहल जाएगा,
उर्मि ने हाँ में सर हिलाते हुए कहा “जी आंटी जी”|
कुछ देर मम्मी के साथ बातें करने के बाद हम लोग मेरे कमरे में आ गए,
मैंनेन नाईट सूट डाल लिआ और उर्मि को भी कपड़े बदलने को कहा, उर्मि ने मना किआ तोह मैने ही उसे कहा की, अभी शाम में तोह बहुत समय है ऐसे परेशान होने का क्या फ़ायदाओर उसे भी अपना कपड़े दे दिये बदलने केलिए|
मैं रसोई में जूस लेने चले गई|
यहां कमरे में भईया मुझे ढूंढ़ते हुए आये, उर्मि की भईया की तरफ पीठ थी भईया उसके बालो को खींचते हुए बोलतें हैं
“तपु की बच्ची किसने कहा था तुझे उर्मि को साथ लाने को?
बताना नही होता क्या ?”
और बोलते बोलते उर्मि को अपनी तरफ खींचते है,
उर्मि का चेहरा देख कर भईया एकदम हैरान रह जाते हैं, उसे झटके से छोड़ते है और सॉरी बोलते हुये कमरे से बाहर निकल जाते हैं|
भईया का चेहरा देखने लायक था, भईया ने मुझे आते देखा और वोह नजर बचा कर कमरे से बाहर निकल गए,
उर्मि मुझे डांटने लग गई की जब अनिरुद्ध नहीं चाहते थे, तोह मुझे क्यों बुलाया, तोह मैने उसे हंसते हुए कहा की भईया को तुम्हारे आने से तकलीफ नई थी, पगली बस उनको मैने बताया नहीं था तोह वोह वही बोल रहे होंगे|
और उसको थोड़ा शांत करके हम दोनों जूस पिने लगे|
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लेखिका : अंबिका सहगल