हाँ मेरी माँ अनपढ़ है, लेकिन… स्मिता सिंह चौहान 

“मैंने अपनी स्पीच अच्छे से याद कर ली है। रोहन आज जब स्टेज पर अवार्ड लेगा मुझे पता है मेरा नाम जरूर लेगा। क्या खुशी होगी? वो जब वो कहेगा कि मेरी इस जीत के हकदार मेरे पापा है जिन्होंने मुझे यहाँ तक पहुंचाने के लिए अपनी कमाई को बेहिचक खर्च कर दिया।” सुरेश जी टाई को ऊपर की तरफ खीचते हुए इठलाते हुए बोले। दमयंती जी वही अपनी चिर परिचित मुस्कुराहट से उनकी तरफ देखती है। 

“आप लोग तैयार हो गये। माँ आपने वो साड़ी क्यो नहीं पहनी? जो मैं लाया था।” रोहन जल्दी से कमरे की तरफ आते हुए बोला। 

 

 

“ये भी तो अच्छी लग रही है। मेरी साड़ी कौन देख रहा है? आज तो सबकी नजर तो मेरे लाडले को निहार रही होंगी।” दमयंती जी ने रोहन पर अपना प्यार लुटाते हुए कहा। 

“ठीक तो लग रही है। अब लेट हो जायेगा, इन सब चक्करों  में। इन्हें कौन सा वहां स्टेज पर जाकर बोलना है? जरा अपना मुंह कम खोलना बोलते ही पता चल जायेगा कि मिस्टर रोहन की माँ अनपढ़ है।” हँसते हुए सुरेशजी ने अपना तकियाकलाम वाला तंज कसा जो वो कभी भी बोलते थे, रोहन और दमयंती जी को ये वाला डायलाॅग अक्सर सुनकर इग्नोर  मारने की जैसे आदत हो गयी थी।” अच्छा बताओ मैं कैसा लग रहा हूँ?”

 

 

“माँ पांच मिनट लगेंगे, आप जाओ ना वो साड़ी पहनो। मैं बाहर खड़ा हूँ। जल्दी आओ।” रोहन अपने पिता की उपेक्षा करते हुए बोला। 




सुरेश जी दमयंती जी रोहन जैसे ही उस हाॅल में पहुंचे तो हाॅल तालियों की गड़गडाहट से गूँज उठा। सुरेशजी इठलाते हुए सबसे हाथ मिला रहे थे दमयंती जी सकुचाते हुए सबसे हाथ जोड़ते हुए सामने वाली सीट पर बैठ गयी। 

रोहन और सुरेश जी  भी उनके पास बैठे ही थे कि रोहन को स्टेज पर आमंत्रित करते हुए उसे अवार्ड से सम्मानित किया गया। दमयंती जी और सुरेश जी की खुशी देखते ही बन रही थी। रोहन को वहां पर बैठे आगन्तुकों को संबोधित करने के लिये कहा गया। “शुक्रिया आप सभी का जिन्होंने मुझे इस अवार्ड के लायक समझा। तहेदिल से आभार। 

मेरी इस सफलता में मेरे माता-पिता का योगदान सराहनीय है। मेरे पिता ने मुझे यहाँ तक पहुंचाने के लिए जो आर्थिक योगदान दिया वो अतुलनीय है। लेकिन मेरी माँ ने अपने जीवन को ही मेरी सफलता के लिए समर्पित कर दिया। मेरे पिता मुझे डाक्टर बनाना चाहते थे और मैं सिविल सर्विस में जाना चाहता था। वो मेरी इच्छा को पूरा करने के लिए मेरे पिता से लड़ती थी उन्हें मनाती थी। और एक दिन पापा मान गये। जब मैं तैयारी करता था तो रात रात भर, मेरे साथ जगती थी कभी चाय देती, कभी मेरे सर पर तेल लगाती।

कभी मैं पढ़ते-पढ़ते सो जाता तो मेरी किताबों को समेट कर फिर सुबह मेरे उठने से पहले उठ जाती। पूरा घर संभालने के साथ जब कभी मैं किसी वक्त निराश हो जाता तो मुझे अपनी हिम्मत भरी बातों से संभालती। उनके जीवन की दैनिक उथल पुथल को अपनी मुस्कान से ढक लेती।

 मुझसे ज्यादा विश्वास वो मुझ पर रखती। मुझसे कहती तू बस अपने खवाबों का सफर पूरा कर बाकी मैं संभाल लूंगी। उनकी यह बात मेरे आगे जाने की रफ्तार को और आगे बढ़ा देती।” रोहन बोले जा रहा था और दमयंती जी अपने आंसुओं को पल्ले की ओट में छुपाने की कोशिश कर रही थी। सुरेश जी का ध्यान आज भी दमयंती जी पर नहीं था वो रोहन के मुंह से अपनी तारीफ सुनने का इंतजार कर रहे थे। तभी रोहन बोला “मां, आप जैसी माँ सबको मिले। 




ये सच है कि एक पिता महीने में एक बार अपनी कमाई से आपकी फीस और जरूरत की चीजों पर खर्च करता है क्योंकि वो गिना जा सकता है, तो सब उसकी तारीफ करते है लेकिन एक माँ महीन में एक बार नहीं, बल्कि पूरे महीने के हर दिन हर पल अपनी संतान पर खर्च करती है जो कोई नहीं देखता। 

इस पुरस्कार की असली हकदार मेरी माँ है जिसने मुझे यह सिखाया कि करियर, कमाई सब अपनी जगह है। ये सब सिर्फ अपने लिये नहीं मिला जरूरतमंद लोगों की सेवा करना भी हमारा कर्म है। आज जिस N.G.O की उपलब्धियों के लिये यह अवार्ड मुझे मिला है वो मेरी माँ की सीख के बिना मुमकिन नहीं था। माँ पढ़ी लिखी हो या अनपढ़ लेकिन उसकी परवरिश का मुकाबला दुनिया की कोई दौलत नहीं कर सकती

। हाँ मेरी माँ अनपढ़ है लेकिन इस जिंदगी की पहली श्वास से लेकर एक सफल और खुबसूरत जिंदगी जीने का हुनर एक माँ के अलावा आपको कोई नहीं सिखा सकता। कहते हुए रोहन स्टेज से उतरकर अपनी माँ को लेने जाता है कि सभी खड़े होकर ताली बजाने लगते है रोहन की बातों का असर था या अपनी सोच पर शर्मिंदगी की सुरेशजी भी खड़े होकर ताली बजा रहे थे। दमयंती जी ने रोहन के साथ आगे बढ़ते हुए सुरेशजी का हाथ पकड़कर मुस्कुराते हुए आगे बढ़ती चली गयी। 

 

 

दोस्तों, कहते हैं कि एक गुरू एक पिता और एक माता कभी भी साधारण नहीं होते। लेकिन हमारे समाज में औरत को कमतर आकने की ऐसी आदत पढ़ी हुई है कि हम ये भूल जाते है कि एक माँ की परवरिश पर ही बच्चे का भविष्य निर्भर करता है। पिता का आर्थिक योगदान जरूरत है, साधन है लेकिन माँ का योगदान जरूरी और साध्य है। आपका इस बारे में क्या विचार है? अवश्य बतायें। 

आपकी दोस्त

स्मिता सिंह चौहान

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