बहु से बेटी बनने का दुख – सुषमा तिवारी

पानी सर से पार भी हो जाए तो शांत रहने की कला सिर्फ एक माँ, पत्नि, बेटी, बहू के रूप में कार्यरत स्त्री जानती है। मीना उठी तो आंखे हल्की सूजी थी, साफ दिख रहा था कि रात भर सोई नहीं ढंग से। काम बहुत था, अमित ने भी छुट्टी ली थी। आज मीना के सास ससुर आ रहे थे। हर साल छुट्टियों में वह खुद उनके पास चले आते थे, फिर सब मिलकर वहीँ से देश दुनिया का भ्रमण करते थे।

संवादों में भी मीना ने हमेशा बड़े छोटे का लिहाज रखा था और ससुर बड़े मान से कहते थे कि आज तक उन्होंने मीना की ऊंची आवाज तक नहीं सुनी। यहां तक कि बच्चों को भी मीना उनके दादा-दादी के सामने कम ही डांटती थी।

‘मीना बेटा’ ‘मीना बेटा’ ‘तू हमारी बेटी है’ यह कहकर दोनों बहुत लाड लुटाते। जितने दिन उसके पास रहते हैं खुश रहते। शिकायतें किस रिश्ते में नहीं होती है यह सोच मीना उनके किए कड़वे व्यवहारों को किनारे कर मीठी यादों को सहेज से चलती थी आखिर घर उसका ही तो है तो घरवाले भी उसी के होंगे ना!

शादी के दस साल होने को आए थे और मीना की समझदारी से गृहस्थी भी क्लेश रहित चल रही थी, वैसे भी उसका मानना था जहां अलग अलग तरह के बर्तन हो वहां आवाज तो होगी ही फिर वह कौन सा घर हो जहां छोटे-मोटे आपसी विवाद ना होते हैं? इसका मतलब रिश्तो में विषाद घोलना थोड़ी ना होता है। आज मीना को अपने यह सारी कोशिशें यह सारे सत्य भ्रम से लग रहे थे।

“मीना तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है?”

अमित के पूछने पर मीना अपने ख्यालों से बाहर आई।

अमित का पूछना लाजमी था क्योंकि सुबह सुबह अपने पैरों में चक्के बांधकर पूरे घर को सर पर उठाने वाली मीना अभी तक बिस्तर से नहीं उठ पाई थी।

मीना थोड़ी बहुत असहज हो गई ऐसा लगा जैसे वह किसी और ही शरीर में है वह किसी और ही के ही घर में है।

“नहीं अमित ऐसा कुछ नहीं है मैं ठीक हूं, कि क्या टाइम हो रहा है?”

“मीना तुमने अभी तक घड़ी भी नहीं देखी? इसका मतलब ठीक नहीं हो! एक काम करो तुम आराम कर लो नाश्ता और दोपहर का खाना मैं देख लेता हूं, जितना मुझसे हो सकेगा बना लूंगा बाकी बाहर से मंगा लूंगा..”

मीना ने अमित को ठीक है कह कर नहाने चली गई। अमित को भी थोड़ा आश्चर्य हुआ। वैसे तो वह ठीक ही लग रही थी पर शायद उसका मूड ठीक नहीं था क्योंकि अगर घर पर मेहमान आने वाले हो तो बाहर से खाना मंगाने पर मीना कभी राजी नहीं होती।

 

दोपहर तक अमित सास ससुर को स्टेशन से ले आए थे। बच्चों ने उत्साहित होकर दादा दादी को गले लगाया घर में परिवार के भरे पूरे होने की एक उमंग तरंग से दौड़ गई। अमित को थोड़ा आश्चर्य हुआ मम्मी पापा को प्रणाम करके मीना वापस अपने कमरे में चली गई थी। वह ऐसा कभी नहीं करती थी। आखिर उसे हुआ क्या है?




“मीना तुम मुझसे कुछ छुपा रही हो क्या?”

“मैं? तुमसे क्या छुपा लूंगी मैं? शादी के 10 साल बाद क्या तुम और मैं अलग अलग है?”

“यह तुम कह रही हो पर तुम्हारी आंखें कुछ और कह रही हैं… अगर तुम कुछ कहना चाहती हो तो कह दो!”

“सही वक्त आने पर कहूंगी अमित!”

“ठीक है, तुम्हारी जैसी मर्जी… फिलहाल मम्मी पापा कब से आकर बैठे हैं उन्हें पानी तो दे दो! “

” अमित मुझे नहीं लगता कि वह यहां पानी पिएंगे और उन्हें पीना भी नहीं चाहिए! आखिर वह मुझे अपनी बेटी जो कहते हैं! “

” क्या बकवास कर रही हो मीना? “

अमित जो कभी इस तरह से बात नहीं करता था अचानक अपना आपा खो बैठे।

” यह किस तरह की वाहियात बातें कर रही हो तुम? कोई डेली सोप देख लिया क्या? “

मीना वहां से उठी लिविंग रूम में सास ससुर के पास आकर बैठ गई।

” देखिए ना मम्मी जी! यह मुझसे कैसे तेज आवाज में बात कर रहे हैं?”

आंखें डबडबा के मीना ने कहा।

सास ससुर दोनों आश्चर्य से पति-पत्नी की ओर देख रहे थे। यह लोग छोटे बच्चों की तरह हरकतें क्यों कर रहे हैं?

 

“अमित यह कौन सा तरीका है बहू से बात करने का? तुम्हारी आवाज बाहर तक आ रही है! “

ससुर ने डपट कर कहा।

” मीना क्या हुआ बेटा? खुल कर बताओ बेटी? क्या हमारे यहां आने से तुम दोनों को कोई तकलीफ हुई है? बताओ?”

सास आवाज में शहद भरकर बोली।

“मां आप कैसी बातें कर रही हैं? पता नहीं इसे क्या हुआ है बहकी बहकी बातें कर रही है। कल तक तो इतनी उत्साहित ही तरह-तरह के नमकीन और मिठाई बनाकर पूरे घर को भर रखा है आप लोगों के स्वागत में और आज इस तरह से व्यवहार कर रही है। “




” बेटा इसके पीछे जरूर कोई कारण होगा,” ससुर ने आवाज में गंभीरता लाकर कहा

” मैं मीना को अच्छी तरह जानता हूं, कहो बेटी क्या बात है? “

” कोई बात नहीं है मम्मी जी , कोई बात नहीं है पापा जी ! अमित ने मुझसे कहा कि मम्मी पापा को पानी दे दो फिर मैं इनको यही समझाने की कोशिश कर रही हूं कि आप यहां पानी नहीं पिएंगे, कैसे पी सकते हैं मैं आपकी बेटी जो हूं? “

ससुरा आश्चर्य से मीना को देखने लगे और अमित के चेहरे पर गुस्सा और तेज चढ़ने लगा। सास का चेहरा सफेद पड़ चुका था जैसे उनकी चोरी पकड़ी गई हो।

” है ना मम्मी जी? मैं सही कह रही हूं? “

” मीना! मैं अब भी कह रहा हूं जो भी बातें सीधे-सीधे कहो तुम क्यों बातों के गोल गोल घुमा रही हो?”

“तो सीधी बात यह है अमित कि मेरे साथ इतना बड़ा धोखा हुआ है इस गृहस्थी में मैं जब से आई, हर तरह से एडजस्ट करने की कोशिश करती रही, मैंने हर नेगेटिव बात को किनारे किया क्योंकि यह घर वाले मेरे अपने थे, मैं एक घर छोड़ कर आई थी दूसरे घर जहां मुझे नए माता-पिता मिले जिन्होंने मुझे बेटी का दर्जा दिया और अब पता चल रहा है कि वह सिर्फ कहने भर को था! “

 

” यह तुम क्या कह रही हो मीना? क्या मां ने तुम्हें कुछ कहा? “

” काश कि मुझसे कहा होता अमित तो मुझे कभी ऐसा बुरा नहीं लगता, यह रिवाज है कि सास है तो मैं बहू रहूंगी और मुझे निभाना भी पड़ेगा, मैं उससे पीछे भी नहीं हटूंगी पर इस तरह से मुंह पर को कुछ और और पीठ पीछे कुछ और कितना बुरा लगता है ना! मुझसे क्या कमी रह गई निभाने में अमित? “

मीना ने फिर वह पूरी बात बताई जिस कारण उसका भरोसा टूटा था।

कल रात ही मीना को उसकी मां का फोन आया था। मां की आवाज में दर्द साफ झलक रहा था।

” मां क्या हुआ? सब ठीक तो है? “

” नहीं बेटा कुछ ठीक नहीं है और मेरा भी दिल अब भर गया है तुझसे कहे बिना मैं रह नहीं सकती!”

“मां 10 दिन बाद आप आने वाले हो, आप और हमारा पूरा परिवार हम सब मिलकर तीर्थ यात्रा पर जाने वाले हैं, कितना मजा आने वाला है और आप ऐसी गमगीन बातें कर रहे हो, हुआ क्या है घर में सब ठीक है? “

” फिलहाल तो सब ठीक है बेटा पर मुझे लगता नहीं कि सब ठीक रहेगा। तेरे भाई की प्रमोशन अटक गई है, अच्छी भली सुबह तक गुड न्यूज़ आने वाली थी पर जाने जैसे किसी का श्राप लग गया हो! “

मां की बातें सुनकर मीना चकित रह गई।

” 21वीं सदी में आप कौन से जमाने की बात कर रहे हो? श्राप लग गया, काम रुक गया, अगर प्रमोशन रुका है तो कोई रीज़न होगा और हो जाएगा मुझे भाई के गुणों पर पूरा भरोसा है, आप आओ मैं आपका मूड ठीक कर दूंगी! “

 

” नहीं बेटा मैं तेरे यहां नहीं आऊंगी…”

“नहीं आऊंगी से क्या मतलब है? टिकट हो चुकी है मां! “

” बात ऐसी है मीना जो मैंने तुझसे इतने सालों से छुपा कर रखी है असल में समधन जी को हमारा तुम्हारे यहां यू आना-जाना बिल्कुल पसंद नहीं है, हाँ मैं जानती हूं मैं कि हमने बेटी का कन्यादान कर दिया है पर मेरा भी तो मां का दिल है और तेरे पापा तो बेटा बेटी में कोई फर्क भी नहीं करते हैं। उन्हें कितना समझा लो यूं डगर डगर साल में दो-तीन बार बेटी के यहां नहीं जाया जाता है पर वह मानते ही नहीं है! मुझे यह दकियानूसी करार देते हैं कहते हैं तुम्हें संबंध निभाने नहीं आते। “

” हां तो पापा सही कहते हैं और आपको ऐसा क्यों लगता है कि मेरे सास को आपका आना पसंद नहीं, उन्होंने कुछ कहा क्या ? “

” बेटा एक बार नहीं हजारों बार कहा होगा… जितने बार मैं तुम्हारे घर पर उनसे मिली इतनी बार कहा, जितनी बार फोन पर उन्होंने मुझसे बात की इतनी बार कहा, मेरा हृदय छलनी हो चुका है बेटा अब मुझसे यूं नकली निर्वहन नहीं होता, “




” किसने कहा आपको सहने के लिए? मैं इस घर की बहू हूं मुझे सहना पड़ता है क्योंकि यह मेरा परिवार है मुझे निभाना है आपको क्यों किसी की बातें सुननी है? और आप मुझसे साफ-साफ बताइए उन्होंने क्या कहा? “

” नहीं बेटा उन्होंने हर बार ही अपनी दिल की सारी भड़ास मुझ पर निकाल कर फिर यह हिदायत दी कि मैं तुमसे कुछ ना कहूं अब तुमसे कुछ भी कहना चुगली ही होता पर इस बार अब मैं नहीं रखूंगी क्योंकि बात मेरे घर की सुख शांति पर भी आ रही है अगर उनके हृदय में इतनी कड़वाहट है कि वह बदुआएं दे रही हैं तो बस! मायका है बेटा तेरा ही घर है तू जब चाहे आ जा, मैं अब नहीं आऊंगी! “

 

मीना की आवाज भर आई थी। मां का ऐसा टूटा हुआ स्वर उसने अपने जीवन में कभी नहीं सुना था।

” सुन मीना मैं तुझे बताती हूं, तेरी सास मानती है कि बेटी के घर का पानी पीने से बहुत पाप लगता है, उन्होंने कल ही मुझे फोन करके हालचाल लिया मैं भी खुश हो गई कि समधन समय-समय पर फोन करती रहती है। फिर उन्होंने बताया कि वह तेरे घर पहुंचने वाले हैं मैंने भी उत्साहित होकर कहा कि हां जल्दी हम मिलेंगे, हमने भी तैयारियां शुरू कर दी हैं तो उन्होंने कहा कि आपके तो मजे हैं बेटा बेटी सबके घर घूमने को मिलता है। हमारे यहां तो हमारे पतिदेव कहीं हिलते डूलते तक नहीं है। बमुश्किल साल में एक बार बेटे  के यहां जाने को मिलता है, बच्चों के साथ रहने को मिलता है भगवान ने एक ही बेटा तो दिया है। मैंने उनसे कहा कि क्या कर सकते हैं औरतें पति की आज्ञा के आगे मजबूर होती है देखिए ना मैं भी कहां इतना घूमना चाहती हूं? अब तो घर में सुकून से रहने का मन करता है पर आपके समधी जी तो चलो बेटी क्या हो तो आते हैं चलो समधी समधन से मिलकर आते हैं कहकर घूमते ही रहते हैं । “अरे कहिए समधी जी से घूमने फिरने से ज्यादा थोड़ा सत्संग पर ध्यान दें, पता है कल ही हमने टीवी पर सुना यह मैं नहीं कह रही यह तो गुरु जी कह रहे थे कि दुनिया में सारे पाप एक तरफ और बेटी के घर का खाना एक तरफ, बेटी के घर की कमाई खाने वाले नर्क में भी स्थान नहीं पाते और खाना तो दूर अगर पानी भी पी लिया तो उसे कई जन्म तक उसका कर्ज चुकाना पड़ता है, उसके घर में कई वर्ष तक सर्वनाश होता है कुछ भी फलता फूलता नहीं है। अब जब दान कर दिया तो दान की चीज पर कैसा अधिकार? सत्संग सुनती हूं तभी तो इतनी बढ़िया-बढ़िया बातें सुनने मिलती है, मैं तो भगवान से शुक्र करती हूं कि मुझे बेटी नहीं दी वरना समधी जी की तरह कहीं मेरे पति भी मेरा धर्म भ्रष्ट कर देते तो क्या होता? चलिए ठीक है मिलते हैं जल्दी! “

 

इतना कहकर बेटा उन्होंने तो फोन रख दिया पर कुछ ही देर में तेरे भाई का कॉल आया और उसने उदास आवाज में अपने प्रमोशन रुकने की खबर सुनाई। मैं सच कह रही हूं बेटा तब से मेरा दिल टूटा हुआ है। ना जाने कितने ही बार उन्होंने यह बेटी के घर का पानी तक नहीं पीते हैं वाली बात कही होगी पर मैंने उनकी इस छोटी सोच को किनारे किया, कभी-कभी मेरा दिल भी कहने लगता कि शायद वह सही कह रही हैं तो बेटा मैं नहीं चाहती कि उनके मन में कोई कड़वाहट रहे और तेरे घर में कि सुख शांति में भी आग लगे तो अच्छा यही होगा कि मैं तेरे पापा की चार बातें सुन लो पर यूं किसी और की बातें मेरे कलेजे पर आग सी लगती है। मैं नहीं चाहती उनकी और हमारे रिश्ते में और कड़वाहट घुले। “

पूरी बात सुनकर लिविंग रूम में सन्नाटा था। मीना की आंखों से आंसुओं की धार निकल रही थी, आंखें लाल हुई पड़ी थी।

हालांकि उसने ख्याल रखा था कि बच्चे अंदर कमरे में गिफ्ट खोलने में व्यस्त रहे ताकि रिश्तों के समीकरण के इस झंझावात में वह ना पड़े।

मीना की पूरी बात सुनकर ससुर ने अपनी पत्नी को आग्नेय दृष्टि से देखा। अमित जो कि अब तक गुस्से में था उसकी आंखें शर्म से झुकी हुई थी। उससे कुछ कहा ही नहीं जा रहा था।




“देखिए मेरा इरादा आप लोगों को नीचा दिखाना नहीं था। मैं जानती हूं या घर आपके बेटे का है और आपका उस पर शत-प्रतिशत अधिकार है, मैं पूरे दिल से आप लोगों की सेवा भी करूंगी पर आज से यह बेटी होने का नाटक अब बंद होगा। मैं बहू और इस सत्य को स्वीकारती हूं!”

 

“ऐसा मत कहो मीना बेटा मैं शर्मिंदा हूं तेरी सास के इस कृत्य पर और दिल से कहना चाहूंगा कि मैंने कभी ऐसा सोचा तक नहीं”

” मैं जानती हूं पापा जी पर मैं यह भी चाहती हूं कि हम रिश्तो में कड़वाहट ना घुले। क्यों मिलने जुलने का नाटक क्यों करें? हां मैं यह भी बता देना चाहती हूं आप सबके सामने कि ऐसा नहीं है कि इतना सब कुछ जानने के बाद मैं यह स्वीकार कर लूं कि बेटी के घर का पानी पीना मेरे माता पिता के लिए पाप है! मैं उनकी संतान हूं और जितना हक आपका अपने बेटे पर बनता है उनका अपने बेटे पर बनता है उतना ही उनका हक मुझ पर भी बनता है तो वह मेरे यहां आएंगे, खाएंगे और पानी भी पियेंगे, हां पर अभी उस तरह मिलना जुलना शायद हमें कम करना चाहिए, इससे शायद मम्मी जी के मन में गुस्सा कम हो क्योंकि आंखों देखी ज्यादा चुभती है। मैं एक समझदार बहू की तरह उन लोगों का आना जाना आप लोगों से छुपाया करूंगी ताकि आप लोगों को भी कम दुख पहुंचे। हां मैं इतना जरूर कहना चाहूंगी सा मम्मी जी से कि आइंदा उन्हें जो भी तकलीफ हो वह सीधे मुझसे कह सकती हैं किसी का आना जाना पसंद नापसंद जो भी तो की हर समस्या का समाधान है। हम बीच का रास्ता निकाल लेंगे। क्यों अपने घर की बातें बाहर इस तरह से कहने का कोई अर्थ नहीं बनता। “

मीना की बातें सुनकर अमित बोल पड़ा

 

” मीना मैं भी शर्मिंदा हूं मुझे नहीं पता था मम्मी के दिल में इतना कुछ चल रहा है, तुम्हारे मम्मी पापा मेरे लिए उतने ही बराबर है जिसने कि मेरे मम्मी पापा! शादी के सात फेरे मैंने भी तुम्हारे साथ लिये है जब तुमने मेरे परिवार को अपनाया है तो मैंने भी तुम्हारे परिवार को अपनाया है इसीलिए ऐसा कुछ भी नहीं होगा जैसा तुम कह रही हो। सब कुछ पहले के समान ही चलेगा और मम्मी को तुम्हारी मां से माफी मांगने होंगी, अपनी हर एक बात के लिए! “

मीना ने देखा साथ की आंखों में आंसू थे।

” माफ कर दे बेटा! मैं सचमुच शर्मिंदा हूं, हां मैंने समधन जी का दिल बहुत दुखाया है और शायद इन सब चीज के पीछे मेरी छोटी सोच होगी पर मैं इन्हीं सोच के साथ पली-बढ़ी हूं वह कोई कुंठा ही होगी मेरे अंदर जो यह बातें करती हैं । आज तक मेरे माता पिता ने मेरे घर पर कदम नहीं रखा, मैं भी तरसती रह गई, जाने अनजाने मैं तुझ से जलने लगी थी… मीना मुझे माफ कर दे! “

” नहीं मां जी मैं आपको सोच बदलने के लिए नहीं कह रही हर, किसी की अपनी सोच अपने उसूल हो सकते हैं बस मैं यह कहना चाहती हूं कि कोई उन्हें मुझ पर रोक नहीं लगा सकता है, इन सब बातों को छोड़िए आइए चलिए खाना खाते हैं। “

उदास आंखों से ससुर ने अपने पत्नी की ओर देखा । आज उनकी वजह से उन्होंने अपनी बेटी खो दी थी हां बहू जरूर बची हुई थी।

 

-सुषमा तिवारी

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