हस्ताक्षर – सारिका चौरसिया : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : जिज्जी अम्माजी अब नहीं रहीं….हां!हां! हैं ना आपके छोटे भैया ! जी….जी,अरे वही कर रहे सब तैयारी….तब और कौन करेगा जिज्जी?,….आप तो सब जानती ही हो,, सारी जिम्मेदारियां इन्हीं पर तो रहती है। और अम्मा को ये प्यार भी तो कितना ज्यादा करते हैं। हम लोगों को भी तो उनसे कितना लगाव था।

जिज्जी! वह केवल आप की ही मां थोड़ी न थीं! हमारे इनकी तो जान बसती थी अपनी अम्मा में।और हम भी तो उनको अपनी मां से भी बढ़ कर माने,….अब अपने मुंह से क्या बताए दिन रात एक करके सेवा किया हमनें। अरे…अरे अब इतना नहीं रो..इय्ये जिज्जी! अम्मा जी की आत्मा को दुख पहुंचेगा….जाना तो सबको ही पड़ता है।

चाशनी घुली आवाज में छोटी बहू दुनिया का सारा दर्द समेटे आवाज सर्द किये ननद को सांत्वना दे रही थी। अम्मा यानी घर की मुखिया सासु माँ परलोक सिधार गयीं हैं, रिश्तेदारों में समाचार देने का यह जिम्मा छोटी बहु ने अपने माथे ले लिया था। वैसे भी फोनवार्ता उसका प्रिय शगल था। और बदलते जमाने के साथ नए जमाने से कदम मिलाती यह बहुरिया सारा दिन कान में ईयरफोन और हाथ में मोबाईल लिए फिरती। सुबह उठते ही यों थाम लेती मानों यही उसकी पहचान ही थी।

रिश्तेदारी में से छाँट कर लायी गयी गोरी चमड़ी की इस दमकती बहु की जीवन शैली भी दो सौ वर्षों तक शासन करने वाली अंग्रेजों की फुट डालो राज करो नीति पर आधारित थी।

अपने गौरवर्ण छोटे लाडले के साथ सुंदर जोड़ी पा कर अम्मा भी फूली न समाती, और पति द्वारा पसन्द कर लायी गयी जरा दबे रंग की बड़ी बहू अब सिर्फ काम काज तक ही सीमित रह गयी। समय अंतराल पर घर के मुखिया के गुजरने के बाद अम्मा जी ही घर की मुखिया थी, लेकिन उनके खुद के निर्णयों और विचारों की चाभी लाडले छोटे बेटे और ब्याही गयी बिटिया इन्हीं दोनों के हाथों में थी।

बड़ा बेटा वैसे भी निर्लिप्त स्वभाव का ठहरा उसे बस अपनी जरूरतों से मतलब रहता। चिड़चिड़ा और गुस्सैल वह घर पर कम ही टिकता। पिता के व्यवसाय के दोनों भाई साझेदार थे और चुस्त दुरुस्त बुद्धि चातुर्य से सम्पन्न छोटा भाई हावी रहता। अतः दुकान में भी अक्सर बड़े भाई से मातहतों जैसा बर्ताव कर जाता।जिसका क्षोभ बड़ा गाहे बगाहे अपनी पत्नी पर उतारता।गृहस्थी की जिम्मेदारियां भी बस घरेलू पूर्ति तक थीं। और बचे समय में मंदिरों फकीरों दरगाहों पर ही उसकी हाजिरी ज्यादा रहती, मानों जीवन की रह गयी हर कमी इन्हीं दरवाजों पर मत्थे टेकने से पूरी होगी।

बड़ी बहू भी रहते-रहते जरा तीक्ष्ण जबान वाली हो गयी थी, पर दिल से साफ़ वह अब भी पारिवारिक चालबाजियां न समझ पाती। जल्दी ही चूल्हे अलग हुए और अम्मा जी बड़ी के जिम्में पडीं।

बड़ी बहु मनोयोग से यह दायित्व भी उठा रही थी, की छोटी को लगा,कहीं ऐसा न हो कि रिश्तेदारों में जेठानी की ही तारीफ होने लगे, सो वह एक दिन मुखमुद्रा बना पति के साथ अम्मा को रिझाने पहुंची और चरण दबा-दबा कहने लगी….

अम्मा,आपकी ये बहु इतनी भी गयी बीती नहीं की एक समय आपको खिला न सके।

बड़ी तक बात पहुंची तो उसने सीधा ही इनकार कर दिया…. मैं सम्भाल रही,तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं।

छोटी जो जरा-जरा सी बात दिल से लगा लेती थी, उसे इस इनकार में अपनी हेठी दिखी और उसने अपनी शान पर ले लिया।

अब तो एक समय का भोजन अम्मा जी आप मेरी रसोई से ही लेंगी।

और बहुत विचार कर उसने संध्याकालीन भोजन का जिम्मा ले ही लिया।

 बड़ी बहू बस मुस्कुरा दी।

अम्मा जी शाम को एक ग्लास दूध लेती थीं और रात के भोजन में मात्र एक रोटी और स्वाद के लिये ही एक चमची भर बस सब्जी लेती थीं। और यह भोजन परोसना निश्चय ही कोई भारी काज न था।

अम्मा जो समय के साथ कमजोर हो रही थी, का फायदा छोटे पुत्र ने बखूभी उठाया और अम्मा की तिजोरियां लाड़ में खाली होती गयीं।

बड़ी बहू सब देखती सास के साथ एक ही मंझिल पर रहती थी अतः उससे कुछ अनदेखा न था। परंतु अपने मातृभक्त पति के क्रोधी स्वभाववश क्लेश से बचने को वह चुप ही रहती।

पर अनुभव से वह जानती थी कि सास के साथ रहने की दुआ मिले न मिले, किन्तु तिजोरियां खाली मिलने के इल्जाम उसके ही सर आने ही वाले हैं। छोटे बेटे बहु के शासनात्मक रवैये से अब तक वह अच्छी तरह वाकिफ हो चुकी थी। विवाद में जीतना असम्भव था।

अम्मा जब मृत्युशय्या पर पड़ी अंतिम दिन काट रहीं थी, तब बस नम आंखों से बड़ी बहू को सेवा करते देखती, किसी मिलने-जुलने वाले के घर आगमन के साथ ही छोटी बहू भी सास की तीमारदारी में जुट जाती और प्रस्थान के साथ ही खुद भी प्रस्थान कर जाती। अब दोनों बहुओं में लगभग अबोला था, बस घर की मर्यादा ढकने को ही एका रह गया था।

अंतिम दिनों में अम्मा ने बड़ी बहू से कुछ कहना भी चाहा था, शायद प्रायश्चित! बिना उससे पूछे उसके सारे जेवर छोटे के सुपुर्द कर देने का परायश्चित! या फिर हमेशा छोटी के रूप सौंदर्य के आगे बड़ी को कमतर आंकने का प्रायश्चित।

लेकिन बड़ी बहू के मौन ने उनके स्वयं के भी होठ सील दिए, मानो बड़ी बहू कहना चाहती हो…

अम्मा अब बहुत देर हो चुकी। अब सांवले रंग की चमड़ी और मोटी हो चुकी, जिस पर अपमान और धोखे के चाबुक असर नहीं करते।

 

बिस्तर से लगी अम्मा को आज बड़ी बहू ने नहला धुला कर मनपसन्द कचौड़ी जब उनके सामने रखी तब सास की आंखे डबडबा आयी थी, दोनों हाथ जोड़ दिए उन्होंने।

कुछ देना चाहती हैं मुझे?बड़ी बहू ने शांत भाव से पूछा। अम्मा ने बेबसी से तिजोरी की तरफ देखते हुए गर्दन हिलायी थी, माफ़ी की मुद्रा में धीरे अस्पस्ट फुसफुसाई….सब तो ले गया।

अब बड़ी बहू एक कलम और कुछ एक कागज लिए खड़ी थी। सास ने कागज पर लिखे पत्र को चश्मा लगा कर पढा और हैरत से बड़ी बहू की तरफ देखा। बड़ी बहू ने आंखों के इशारे से ही मनुहार जताया और हस्ताक्षर करने का निवेदन किया।

अम्मा ने दो शब्द अपने कांपते हाथों से और लिखें और हस्ताक्षर कर दिया।स्नेह से उठा हाथ बड़ी बहू के माथे पर प्रेम का स्पर्श अंकित कर गया। वह अंतिम कुछ दिन थे और फिर अम्मा नहीं रहीं चिरनिंद्रा में सोई हुई अम्मा के मुख पर सुकून देख बड़ी बहू की आंखे भर आयी थी।

अंतिम क्रिया के बाद ननद ने तिजोरियां खोली थी और खाली तिजोरियों ने कई जोड़ी सवालिया निगाह बड़ी बहू की तरफ उछाल दिए। छोटी बहु ने माहौल  में सरगर्मी लायी, हाय जिज्जी…अम्मा की तिजोरियों में कुछ नहीं!देखो तो एक दम खाली!…, चाभियाँ तो यहीं सामने तकिए के नीचे ही रहती थीं और बड़ी भाभी और उनका परिवार ही अम्मा के साथ ही शुरू से रहता रहा है।

एक पासा फेंक ही दिया पहली चाल का।

 

और कई जोड़ी नजरें बड़े बहू-बेटे की तरफ उठ गई, बड़ा बेटा अम्मा के दुख से उबर भी न पाया था कि यह इल्जाम!

बड़ी बहू अपने स्थान से उठी, धीमे कदमों से तिजोरी के पास पहुंची,,सधे हाथों से तिजोरी के दरवाज़े बन्द किये।और पलट कर पूरे आत्मविश्वास के साथ चाभी वापस अम्मा के खाली पलंग के सिरहाने यथास्थान रखा, गद्दे के नीचे से पत्र निकाला और ननद के हाथों में थमाती हुई मुख़ातिब हो कर बोली अम्मा ने दिन रात की मेरी सेवा से प्रसन्न हो कर तिजोरियों की सारी दौलत मुझे उपहार में दे दी है।यह पत्र सबूत है अम्मा की लिखावट और हस्ताक्षर के साथ। हां आप सब चाहें तो इन दोनों खाली तिजोरियों को बेच कर आपस में पैसे बांट सकते हैं।

 

फिर जरा ठहर कर सबकी तरफ एक नज़र देखती हुई ठंडे स्वर में ननद से बोली…मुझे लगा प्रतिदिन की एक-एक छोटी से छोटी जानकारी आप को फोन पर पहुंचा कर एक-एक छोटी से छोटी बात पर भी आपकी राय से चलने वाली अम्मा ने आपसे यह बात तो जरूर बताई ही होगी। 

ओह्ह! अफ़सोस है अम्मा आप से भी दगा कर गयीं।

और पलट कर एक गहरी नजर अम्मा के लाडले छोटे बेटे बहु पर डालती मुस्कुराती हुई कमरे से बाहर निकल गयी,कभी अपनी पत्नी का साथ न देने वाला उसका पति भी हतप्रभ सा उसके पीछे-पीछे चला गया।

हैरान से छोटे दम्पति अपना वार खाली जाते देखते रह गए। बड़ी बहू ने हमेशा की तरह अपने ऊपर लगते इल्जामों का खंडन या प्रतिवाद करने के प्रयास की बजाय यह अब तक का सबसे बड़ा इल्ज़ाम अपने सर ले कर विवादों के सारे प्रयास विफल कर दिए थे।।

सारिका चौरसिया

मिर्ज़ापुर उत्तर प्रदेश।

# इल्जाम #

 


 

 

 

2 thoughts on “हस्ताक्षर – सारिका चौरसिया : Moral Stories in Hindi”

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!