गुरुवे नम:  – गुरुवे नम: -किरण  केशरे

सूरज मेडिकल से डा. के लिखे दवा और इंजेक्शन लेकर आया और नर्स के हाथों में थमा दिये। नर्स तेजी से ओटी में चली गई,,,, कुछ घण्टों के पश्चात रामनाथ जी को रूम में शिफ्ट कर दिया गया था  । 

रामनाथ जी होश में आए तो पत्नी गीता जी पास में बैठी दिखी। और सामने एक लड़का खड़ा था जिसे रामनाथ जी पहचानने की कोशिश कर रहे थे,,,, सूरज… धीमे स्वर में उनके शब्द फूटे थे  ! 

हाँ,,सर मैं ही आपका नालायक छात्र सूरज हूँ,,, जिसे आपने ग्यारहवीं तक शिक्षा दी थी,, लेकिन मैं अपनी आर्थिक स्थिति और प्राइवेट स्कूल के खर्च कारण आगे नही पढ़ पाया था,,,तब मेरी आगे की शिक्षा की जिम्मेदारी आप लेने के लिए आगे आए थे,, लेकिन उस वक्त मुझे शिक्षा से ज्यादा आय की जरूरत थी,,, घर पर दो बड़ी बहनें, माँ और बीमार पिता के कारण मुझे पढाई छोड़कर चाय और समोसे का ठेला लगाना पड़ा था,,, जो आपकी मदद से ही संभव हुआ था,,, अच्छी नीयत और उत्तम स्वाद की वजह से मेरी आय का स्तोत्र बढ़ने लगा अस्पताल के बाहर ही अपना रोजगार लगा लिया,, जो चल निकला,,, आज मेरा अपना कैंटिन है,,,उस दिन मैने कैंटिन में आपकी और आंटीजी की बात सुन ली थी ,,आप कह रहे थे की बाईपास में खर्च ज्यादा आ रहा है इसलिए आप आपरेशन टालने की बात कह रहे थे ! आप मुझे इतने वर्षो और अपनी परेशानी के कारण उस दिन पहचान नही सके थे लेकिन मैं अपने गुरु को कैसे भूल सकता था,,,, 

गीता जी रामनाथ जी के पास आई और बड़े ही स्नेह से बोली,,, मैं भी नही पहचान पाई लेकिन सूरज ने डॉ. से बात कर मुझे कहा मैं भी आपका बेटा ही हूँ,,, आज सर ने मुझे सहारा नही दिया होता तो मैं कुछ नही कर पाता,,,, इसलिए मेरे पिता समान गुरु के लिए कुछ कर पाऊँ ये मेरे लिए भाग्य की बात होगी,,, आप सर को ऑपरेशन के लिए मना लीजिये,,,,मैंने अपने थोड़े से जेवर जो बेटी की शादी के लिए रखे थे वह भी बेचने का कहा,,लेकिन सूरज नही माना,कहने लगा मेरी जिंदगी को सँवारने में पितृतुल्य सर का ही योगदान है,,अगर मैं उनके किसी काम आ पाऊँ ये तो मेरा अहोभाग्य होगा  गीता जी का स्वर भावुक हो गया था,,और रामनाथ जी अपने प्यारे से नालायक छात्र को सजल नेत्रों से देख रहे थे ! ! 

 

 

 

किरण  केशरे

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