गोद लेने की सजा  –  के कामेश्वरी

मोहन और अपर्णा की शादी हुए दस साल हो गए थे लेकिन उनके बच्चे नहीं हुए थे। उन दोनों ने मिलकर कई डॉक्टरों के चक्कर काटे परंतु कोई फ़ायदा नहीं हुआ तब दोनों ने मिलकर यह फ़ैसला किया था कि वे एक बच्ची को गोद लेंगे । मोहन को लड़कियाँ पसंद थी इसलिए उनके घर एक छोटी सी नन्ही परी आ गई थी । बहुत ही धूमधाम से उसका नामकरण किया गया था और उसका नाम रख दिया किरण । मोहन अपर्णा के जीवन में आशा की किरण बनकर आई थी । 

मोहन तो उसे राजकुमारी बनाकर रखने लगा था । जिस स्कूल में अपर्णा नौकरी करती थी वहीं पर किरण का भी एडमिशन हो गया था । अपर्णा अपनी बच्ची को अपने साथ ले जाती थी और अपने साथ ही लेकर आती थी । 

किरण की हर ख़्वाहिश बिना माँगे ही पूरी हो जाती थी। किरण जब नवीं कक्षा में पढ़ती थी उसी समय एक सलाहकार ने बताया था कि अभी ही बच्ची को बता दीजिए कि उसे गोद लिया गया है बाद में किसी और के द्वारा पता चला तो उस पर बुरा असर पड़ सकता है । अगले साल बोर्ड की परीक्षा तक वह अपने आपको तैयार कर लेगी । इस बात को सुनकर मोहन ने उसे बता दिया था कि हमने उसे गोद लिया है किरण ने कुछ नहीं कहा इन लोगों को भी उसके व्यवहार से यह नहीं लगा कि वह परेशान है ।मोहन और अपर्णा के प्यार में कोई कमी नहीं थी । किरण ने भी इसी तरह प्यार से पलते हुए ही अपनी बारहवीं की पढ़ाई पूरी कर ली थी। 

मोहन ने कहा आगे क्या करना है तो उसने कहा कि वह केनडा जाकर जर्नलिज़्म की पढ़ाई करना चाहती है । मोहन बेटी को अकेले उतनी दूर नहीं भेजना चाहता था पर किरण अब जिद करने लगी थीकि उसे केनडा जाना ही है । मोहन के लाख मना करने पर भी अपर्णा ने उसे समझा बुझाकर किरण को केनडा भेजने के लिए तैयार कराया । किरण बहुत खुश थी उसने अपनी माँ को बहुत बार धन्यवाद कहा । 




मोहन ने बुझे दिल से उसके केनडा जाने की तैयारी करवाई। अब वह समय आ गया था जब किरण को एयरपोर्ट छोड़ने जाना था। मोहन और अपर्णा ने किरण को एयरपोर्ट में छोड़ दिया और बाहर कार में बैठे बैठे ही रोने से अपने आपको रोक नहीं सके । 

बच्चे तो बच्चे होते हैं अपनी जिद के आगे कुछ भी कर सकते हैं ।

 किरण को भी वहाँ के वातावरण में ढलने के लिए ज़्यादा समय नहीं लगा। वहाँ वह अपने दोस्तों को सबको यह बताने लगी थी कि उसके माता-पिता ने उसे गोद लिया है । वह इंडिपेंडेंट है उनके बारे मेंसोचने की ज़रूरत नहीं है । हाँ माता-पिता से उसकी बातचीत हो जाती थी । माँ से ज़्यादा वह पिता को अपना अच्छा दोस्त मानती थी उन्हें सब कुछ बताती थी।

किरण को इंडिया आए हुए दो साल हो गए थे। अपर्णा और मोहन को उसे देखने की इच्छा हो रही थी। इस बीच एक बार मोहन बेटी को देख कर आ गए थे। 

अपर्णा का मन भी किरण को देखने के लिए मचल रहा था । इसलिए उसने मोहन से कहा कि चलो हम केनडा चलते हैं उसे सरप्राइज़ देंगे । फिर क्या दोनों ने टिकट ख़रीद लिया था। वह दिन भी आ गया जब वे दोनों केनडा पहुँच गए थे। किरण इन दोनों को देख कर बहुत खुश हो गई थी । 

किरण ने उन्हें ख़ूब घुमाया फिराया भी था । एक दिन अपर्णा सो रही थी कि उसने सुना दूसरे कमरे से फुसफुसाहट की आवाज़ आ रही थी । वह धीरे से उठकर बैठक में बैठ गई थी। एक घंटे बाद वे दोनों हँसते हुए कमरे से बाहर आए । माँ को देख कर किरण थोड़ा सा झेंप गई फिर अपने आप को सँभाल लिया था । किरण ने माँ को बताया था कि यह मेरे कॉलेज में पढ़ता है मेरा सीनियर है इसका नाम अन्वय है । 

अपर्णा ने मोहन से कहा कि-देखिए मुझे इन दोनों का कुछ चक्कर है लगता है आपकी लाड़ली है पूछिए ना । 

मोहन ने कहा— अपर्णा तुम किस ज़माने में जी रही हो अपर्णा आजकल तो यह आम बात हो गई है ।तुम भी!!! अपने विचारों को सुधारने का प्रयास करो। 




दूसरे दिन फिर अन्वय घर आ गया था । ये लोग जहाँ भी आते उनके साथ अन्वय भी आने लगा । 

एक दिन मौक़ा देखकर अपर्णा ने किरण को पकड़ लिया और पूछा क्या बात है किरण आप दोनों के बीच क्या चल रहा है । 

किरण ने कहा- कुछ नहीं है माँ सिर्फ़ वह मेरा दोस्त है । अपर्णा ने कहा देखो किरण अगर तुम लोगों के बीच कुछ चक्कर चल रहा है तो मुझे बता देना तुम्हारी पढ़ाई पूरी हो जाने के बाद हम तुम दोनों की शादी धूमधाम से करा देंगे परंतु तुम अभी जिस काम के लिए यहाँ आई हो उसे पूरा कर लेना । अपर्णा ने उसे यह भी समझाया कि बेटा तुम्हारी पढ़ाई होने तक का इंतज़ार कर लो हमें कोई आपत्ति है । 

किरण ने माँ की बातों को सुन लिया था बस। अपर्णा और मोहन ने एक महीने तक किरण के साथ बिताए और वापस इंडिया आ गए थे । 

 किरण के लिए सोच सोच कर अपर्णा का दिल घबरा रहा था। अपर्णा स्कूल में काम करती थी धीरे-धीरे उसने अपने आप को सँभाल लिया था । 

गणेश चतुर्थी का समय था। अपर्णा नीचे फ़्लैट में पूजा के लिए गई हुई थी कि मोहन ने उसे फ़ोन किया कि जल्दी से घर आ जाओ । बात क्या है सोचते हुए वह घर पहुँची तो देखा मोहन उसका ही इंतज़ार कर रहा था । 

दोनों ने मिलकर खाना खाया फिर मोहन ने कहा कि मैं तुम्हें कुछ बताना चाहता हूँ उसे सुनकर तुम्हें अपने आप को सँभाल लेना पड़ेगा । 

अपर्णा का दिल ज़ोर ज़ोर से धड़क रहा था कुछ अनहोनी की आशंका से डर रहा था । 

मोहन ने कहा कि— अपर्णा किरण ने अन्वय से शादी कर ली है । जब हम वहाँ गए थे उस समय वह तीन महीने की प्रेगनेंट थी । यानी कि उनकी शादी पहले ही हो गई थी । अन्वय के माता-पिता ने ही उनकी शादी करवाई थी । 

अपर्णा के मुँह से आवाज़ नहीं निकली वह चुपचाप बैठी रही उसे सँभालने के लिए मोहन को बहुतसमय लगा था क्योंकि वह रोती ही जा रही थी। उन दोनों को यह समझ में नहीं आ रहा था कि आख़िर हमारी परवरिश में क्या कमी रह गई है । 

अपर्णा ने तो घर से निकलना ही बंद कर दिया था।  किरण की डिलीवरी का समय नज़दीक आ रहा था और उसको पैसों की बहुत ज़रूरत थी इसलिए वह अपने पिता से फ़ोन पर बात कर रही थी ।अन्वय की अभी अभी नौकरी लगी है इसलिए उसे कम तनख़्वाह मिलती थी फिर भी वह अपनी पत्नी माँ सबका ख़याल रख लेता था ।




 किरण के शरीर में खून की कमी हो गई थी तो डिलीवरी के समय कुछ भी हो सकता था इसलिए मोहन वहाँ उसकी मदद के लिए पहुँच गए थे । वहीं पर एक होटल में कमरा बुक कराया और बच्ची की देखभाल करने लगे थे । 

किरण ने एक बच्ची को जन्म दिया।  मोहन अपनी बेटी और नातिन दोनों की देखभाल करने लगे।अपर्णा और किरण दोनों ने एक-दूसरे से बात नहीं की थी । 

केनडा में बीस दिन रहकर किरण को अस्पताल से डिस्चार्ज कराकर उसे घर पहुँचाकर मोहन वापस इंडिया आ गए थे । 

उन्होंने किरण के बारे में अपर्णा को सब बताया था कि उसने वहाँ अपने फ़्रेंड्स और सबको बता दिया है कि उसे गोद लिया गया है। उसके खुद के माता-पिता नहीं हैं । शायद उसे लगने लगा था कि मुझे इनसे डरने की ज़रूरत नहीं है और ना ही वे मुझे कुछ कह सकते हैं । वह यह भूल गई थी कि उन्होंने कितने प्यार से उसका पालन पोषण किया है उसकी हर जिद वे पूरी करते थे । आज वे दोनों निशब्द हो गए थे कि उनसे कहाँ गलती हुई है । 

मोहन ने कहा—  अपर्णा गोद लेना पाप है क्या हमने उसकी कितनी अच्छी परवरिश की थी फिर भी यह लड़की ऐसी क्यों हो गई है । 

किरण की बच्ची को सास देख लेती थी तो किरण कॉलेज चली जाती थी । उसी बीच उसने पिता कोअपनी शादी की तसवीरें भी दिखाई थी । उन्होंने शादी साधारण रूप से किया था । उन फ़ोटोस को देख कर अपर्णा सोचने लगी थी कि इसके ब्याह के लिए मेरे कितने अरमान थे ।अपर्णा ने दान दहेज भी सहेज कर रख लिया था । कहते हैं न सब अपनी क़िस्मत खुद लिखा कर लाते हैं । 

किरण का माता-पिता से काम ख़त्म हो गया था अब फिर से वह खुश थी। इसलिए अब वह अपने माता-पिता को बीस दिन या पच्चीस दिनों में कॉल करने लगी थी । 

अपर्णा से मोहन ने कहा एक बार अपनी नातिन को देख आ वह कितना भी हमारे बारे में न सोचे है तो भी हमारी ही बेटी है हमने ही उसकी परवरिश की है । अपर्णा दिल पर पत्थर रखकर ना चाहते हुए भी गरमी की छुट्टियों में केनडा पहुँच गई थी।  नातिन बहुत ही सुंदर थी। उसे देखते ही अपर्णा को किरण का बचपन याद आया था । अपर्णा ही उसे खिलाना पिलाना नहलाने जैसे काम करने लगी उसे अपने पास ही सुलाती थी । कहते हैं न कि असल से सूद प्यारा होता है । 

अपर्णा को इस बात का दुख था कि एक महीने वह वहीं रही परंतु एक बार भी किरण ने नहीं कहा कि माँ सॉरी मुझे माफ़ कर दो । वह चुपचाप अपना काम से काम रखती थी । अपर्णा ने भी सोच लिया था कि जब तक वह नहीं बताएगी मैं भी नहीं पूछूँगी । उसने कुछ नहीं कहा अपर्णा ने न कुछ पूछा वह वापस इंडिया आ गई थी । किसी को भी उसने नहीं बताया था कि उसकी बेटी ने शादी कर ली है और एक नातिन भी है । 

किरण अपने पति और बच्ची के साथ खुश थी । दो साल बाद एक दिन अचानक उसने पिता को फ़ोन किया और कहा कि मैंने और अन्वय ने तलाक़ ले लिया है। मोहन को समझ में नहीं आ रहा था कि यह लड़की आख़िर क्या करना चाहती है। अन्वय ने बच्ची को अपनी देख रेख में रख लिया क्योंकि किरण की नौकरी नहीं थी । माता-पिता ने बहुत पूछा कि आख़िर बात क्या है क्यों तुम लोगों ने तलाक़ लिया है परंतु किरण ने कुछ नहीं बताया है । वह अपनी बेटी से वीकेंड में जाकर मिल आती है। इस बीच उसे एक अच्छी कंपनी में नौकरी मिल गई थी । वहीं पर रहने वाली अपनी कज़िन के साथ मिलकर रहने लगी । पिता कहते हैं कि उसकी फिर से शादी करा देते हैं क्योंकि वह अकेली रहती है परंतु माँ का कहना है कि वह एक बार बता दें कि उसने तलाक़ क्यों लिया है फिर हम शादी कराएँगे । 

उनकी यह गुत्थी कब सुलझेगी मालूम नहीं है । हमें भी इंतज़ार करना पड़ेगा । 

दोस्तों बच्चों को लगता है कि शादी ब्याह मज़ाक़ है । मन चाहे तो शादी कर लो ना चाहे तो अलग हो जाओ। रिश्तों का मज़ाक़ बना दिया है। अपने घर में माता-पिता, दादा दादी या नाना नानी को देख कर भी इनमें बदलाव नहीं आ रहा है। इनमें परिवर्तन की आशा करते हुए मैं आप सभी की राय जाननाचाहती हूँ कि मेरी कहानी आप सभी को कैसी लगी कमेंट्स ज़रूर कीजिए । 

# 5वां _जन्मोत्सव 

स्वरचित मौलिक 

के कामेश्वरी

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