एक रिश्ता ऐसा भी  –  उमा वर्मा 

मेरा बेटा बंटी आजकल कुछ खोया खोया सा रहता है ।एक दम चुप सा हो गया है ।मुझे बहुत चिंता हुई आखिर क्या बात है? बहुत पूछने पर बताया कि किंजल बहुत अच्छी है मम्मी ।मुझे उसकी बहुत चिंता होती है ।” कौन किंजल?” किसकी बात कर रहा है तू? मेरे आफिस में है।मेरी सीनियर है ।बंटी ने कहा ।मै अंदर से जलभुन गई ।देखो तो भला इस लड़के को, अभी नयी नयी नौकरी लगी है और यह उड़ने लगा है ।

बंटी अक्सर आफिस से देर से आता।आकर रोज उसके गुण के कसीदे काढ़ता और सुनकर मैं चिढ़ जाती ।मैंने भी तो सपना देखा था कि अच्छी नौकरी लग जाए तो एक अच्छी लड़की देख कर जोड़ी लगा  दूँ ।पर लगता कि यह सपना अधूरा ही रहेगा मेरा।पता नहीं क्या बात है ।ऐसे भी दिल्ली, मुम्बई की लड़की का क्या भरोसा ।अच्छा लड़का देखा नहीं कि अपने रूप जाल में फंसा लिया ।एक साल ही हुआ था बंटी को सर्विस करते हुए ।

अब यह नया गुल खिला रहा है ।उसे खाने की दिक्कत  होगी यही सोचकर मैं भी इसके पास आ गयी थी ।बाहर का तला भुना खायेगा तो सेहत भी खराब होगी ।अब तो वह और भी लेट आने लगा था ।सवाल पूछने पर कह देता,” वो आफिस में कुछ अधिक काम था तो किंजल मैडम ने रोक लिया था ।” ओह! ये किंजल- किंजल ?” न जाने कैसे पीछा छोड़ेगी यह लड़की ।अब तो घर में कुछ अच्छा बनता तो टिफ़िन भर के उसके लिए भी माँग लेता।” थोड़ा अधिक डाल देना मम्मी, किंजल के लिए भी ।” मै जितना चिढ़ती वह उतना ही निडर रहता ।,

” कुछ बात है तो बता?” आखिर उससे तेरा क्या नाता है? कुछ भी नहीं मम्मी ।बस वह बहुत अच्छी और नेक है ।क्या हुआ, अपनी मम्मी के हाथों का स्वाद उसे भी परोस दिया तो? ऐसे ही चलता रहा ।मै बहुत टेंशन में रहने लगी थी ।बहुत दिन के बाद मैंने एक दिन उससे कहा ” बेटा, उसे एक बार घर ले आ!” मैं भी मिलना चाहती हूं उससे ।मै डर रही थी कि कहीं पानी सर से उपर न आ जाए ।” आज ही शाम को ले आता हूँ ” मिलवाता हूँ ।

शाम को मैने नाशता और चाय की तैयारी कर ली ।मै भी तो उसकी पसंद देखना चाहती थी ।ठीक शाम को पाँच बजे ।दरवाजे की घंटी बजी ।दरवाजे पर बंटी के साथ वही थी।दिखने में ठीक ठाक ।पर लम्बी चौड़ी कद काठी ।” हे भगवान, कहाँ मेरा बेटा सुकोमल,प्यारा सा ।और कहाँ यह?  ” नहीं, नहीं, मैं ऐसा हरगिज़ नहीं होने दूँगी ।




चाहे बंटी नाराज हो जाये।मै मना कर दूँगी ।मै मना लूंगी उसे ।आखिर मेरा बेटा है ।मानेगा कैसे नहीं ।मैंने उसके सामने नाश्ते की ट्रे रखी।उसने कुछ नहीं लिया ।बस चाय सुड़कती रही ।” आपने चाय बहुत अच्छी बनाई है आंटी ।थैंक्स ।फिर एकाएक उसने बंटी के बिखरे हुए बालों को संवार दिया ।मुझे बहुत बुरा लगा ।देखो तो भला इस की हिम्मत ।

मेरे सामने ही यह सब ।अपने को कंट्रोल किया ।बातों बातों में मैंने उसका फोन नंबर माँगा ।बंटी ने पूछा ” ऐसा क्यों?” ” बस ऐसे ही ।हाल चाल पूछने के लिए ।मेरे मन में तो कुछ और ही चल रहा था ।सबकुछ पता करना चाहती थी उसके बारे में ।वह समझती क्या है अपने को ।लेकिन मन में डर भी था कि कहीं बेटा नाराज न हो जाये ।खैर जो भी हो, कमर तो कस ही लिया था ।अब मै उसे कभी कभी वाट्स एप से कुछ मेसेज कर देती।गुडमार्निग या समाचार पूछ लेती।वह भी तुरंत उत्तर देती।उसका ब्यवहार वैसा बुरा नहीं था ।चालू लड़की नहीं थी वह ।

मेरे अपने मन की धारणा को कैसे मिटा दूं कि बड़े शहरों में माँ बाप आज कल बेटियों को खुला छोड़ देते हैं ” जाओ,अच्छा लड़का देखकर अपने जाल में फंसा लो”। ऐसे ही महीने बीत गए ।बंटी को आफिस के तरफ से पूना जाना था ।अगले दिन वह चला गया ।अच्छा मौका था  मेरे लिए ।

मैंने उसे घर पर बुलाया ।वह बहुत खुश हो गई ।जरूर आऊंगी आंटी ।वह शाम को आ गयी ।” बढ़िया सी चाय पिलाइए न आंटी ” आपके हाथ की चाय बहुत बढिया होती है ।कितना अच्छा बनाती हैं आप ।” हाँ, वह तो ठीक है ।पर अपने परिवार के बारे में बताओ।और बंटी से तुम्हारा क्या रिश्ता है?” उसने कहना शुरू किया– आंटी, मेरा घर मुम्बई में है ।मेरे माता-पिता और छोटा भाई एक एक्सीडेंट में चल बसे थे ।

मै अपने भाई को बहुत प्यार करती थी ।वह बिलकुल बंटी जैसा था ।बंटी में मै अपने भाई को खोजने लगी थी ।मैंने इसके बिखरे बाल को आपके सामने संवार दिया था तो शायद आप को बुरा लगा हो।पर मै गलत नहीं हूँ आंटी ।वह भी मुझे अपनी बहन मानता है ।आप देखना मै उसे राखी बाधूगी ।मैंने अपने हाथ से बनाया है ।मेरे आखों से संदेह का परदा हट चुका था ।मैंने उसे गले लगा लिया ।” आज से तुम मेरी बेटी हो, मेरे पास रहोगी ।”

सच आंटी, “? वह रोने लगी ।” हाँ बेटा, मैं तुम्हारी माँ हूँ और बंटी तेरा भाई ” हाँ आंटी, देखना मै बंटी के लिए कितनी अच्छी दुलहन खोज कर दूँगी ।बड़े पापा ने पढ़ाया लिखाया।फिर वह भी कोरोना के चपेट में आ गये।मै अनाथ हो गई ।और मेरा भी ब्रेन ट्यूमर हो गया तो मैं शादी भी नहीं कर सकती।यही मेरी कहानी है ।फिर न जाने हम दोनों कितने देर तक एक दूसरे के गले लग कर रोते रहे ।दिल ने कहा, हाँ एक रिश्ता ऐसा भी होता है ।

निश्छल और निष्पाप ।हमारी आखें सिर्फ गलत ही क्यो  देखती है ।बंटी टूर से लौट आया था ।दरवाजे पर खड़ा था ।बोला ” हो गई न तसल्ली?” हमे देख कर मुस्कुराते  रहा।तुम भी न मम्मी बड़ी  वैसी हो।

किंजल ने आगे कहा वह थोड़े दिनों की मेहमान है ।मेरे पापा बहुत हसमुख इनसान थे।हमारे परिवार में उनकी हँसी गूँजती थी।शायद ईश्वर को यह अच्छा न लगा।मेरा परिवार उजाड़ हो गया ।मै सोचने लगी ” हे भगवान, ऐसी सजा किसी को न दे ” उसी दिन जाकर हम किंजल को अपने घर ले आए ।अब फिर से हमें हँसना खिलखिलाना है ।—- 

श्रृंखला-1

#5वां_जन्मोत्सव 

उमा वर्मा, नोएडा ।

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