दस्तक – अभिलाषा कक्कड़

हर रोज़ की तरह आज भी जब केतकी प्रात का स्नान करके जैसे ही बाथरूम से बाहर निकलने लगी अचानक से पैर अपने ही लापरवाही से गिराये एक छोटे से साबुन पर आ पड़ा । अचानक से शरीर का सन्तुलन बिगड़ गया, झटके से पैर फिसला और हादसे ने सम्भलने का मौक़ा भी नहीं दिया । टायलेट के साथ लगे नल पर जैसे ही जाकर सिर टकराया खून एक फ़व्वारे की तरह बह निकला । कूल्हे के दर्द ने बता दिया कि आज यह जिस्म नियन्त्रण से बाहर है । आँखों के आगे अन्धेरा छा गया । कौन कहता है कि हादसे सिर्फ़ सड़कों पर ही होते हैं । घर में भी ऐसा भयानक वक़्त उसके साथ आ सकता है ऐसा तो केतकी ने सपने में भी नहीं सोचा था ।

   बड़ी मुश्किल से उसने ख़ुद को सम्भाला आज अपनी मदद ख़ुद करनी थी इसलिए हिम्मत भी बहुत ज़रूरी थी । किसी तरह ख़ुद को घसीट कर बाथरूम से बाहर बेडरूम में लाई तो बेड के साथ वाले टेबल पर फ़ोन पड़ा था । यह टेबल बाथरूम से इतनी दूर है उसने आज तक कभी सोचा ही नहीं था । दर्द की चीख़ों ने एक झटके में ही आज उसे उसकी औक़ात दिखा दी। फ़र्श पर रेंगती रेंगती फ़ोन तक पहुँची । अपनी सहेली उमा को फ़ोन किया । कहते हैं ना जब दुख आता है तो ईश्वर समाधान का भी एक द्वार ज़रूर खोल कर रखते हैं । उमा फ़ोन को उस वक़्त हाथों में ही लिए बैठी थी । फ़ोन सुनते ही बेटा राहुल के साथ थोड़ी ही देर में केतकी के घर के बाहर थी । दरवाज़ा अन्दर से बंद था । उमा भागकर पीछे गई । राहुल दीवार पर चढ़ कर रसोई की खिड़की से अन्दर गया । खून से लथपथ केतकी ज़मीन पर पड़ी कराह रही थी ।माँ बेटे दोनों ने मिलकर उसे गाड़ी में बिठाया और तुरंत अस्पताल ले गये । थोड़ी देर में डाक्टर ने बताया कि माथे पर टाँके लगे हैं और कुल्ले की हड्डी भी टूट गई है । तक़रीबन एक से डेढ़ महीने तक चल फिर नहीं पायेगी ।

यह सब सुनते ही उमा बहुत दुखी हुई। राहुल ने उमा से पूछा कि अब क्या किया जाये माँ?? बेटा आलोक दिल्ली में रहता है । उसे ही ख़बर देनी होगी । क्या तुम जानती हो उसे ?? राहुल ने पूछा । आप दोनों की दोस्ती कैसे हुई माँ ??राहुल एक साथ माँ से केतकी के बारे में जानने को उत्सुक हुआ ।

नहीं एक बार ही मिली हूँ उससे जब केतकी की रिटायरमेंट की पार्टी थी । आलोक अपनी पत्नी साक्षी और दोनों बच्चों के साथ आया था । तभी केतकी ने मिलवाया था । बात करते करते उमा कई साल पीछे चली गई और एकदम से बातों के बहाव में बहने लगी ।




बहुत ही अलग वक़्त था । केतकी और मैं एक ही स्कूल में टीचर थी । केतकी एक बहुत ही मेहनती और कम बोलने वाली शख़्सियत के रूप में जानी जाती थी । अपने काम में ही ज़्यादा व्यस्त रहती थी ।स्कूल के दौरान अच्छा वक़्त हमने साथ बिताया ।रिटायरमेंट के बाद भी उन्होंने मुझे कभी कभार फ़ोन कर लेती थी ।आज देखो इस संकट की घड़ी में उन्होंने मुझे ही याद किया कहते कहते उमा भावुक हो गई ।

केतकी ने अपने जीवन का काफ़ी बड़ा हिस्सा अकेले ही बिताया है । पति आर्मी में थे । साल में तीन चार बार आते थे । बेटे आलोक की परवरिश की सारी ज़िम्मेदारी केतकी पर ही थी । केतकी एक अच्छी गुरू ही नहीं बल्कि माँ भी बहुत अच्छी थी । बेटे को आत्मविश्वासी संस्कारी बनाने में उसने अपना पूरा वात्सल्य और विवेक लगा दिया । उसे अपने जीवन के फ़ैसले लेने का अधिकार दिया  । पति जब भी आते ज़्यादा समय पत्नी के साथ ही बिताते । बेटे की ओर ज़्यादा तवज्जो कभी दिया ही नहीं ।इसलिए आलोक माँ के ही ज़्यादा क़रीब रहा ।दिल्ली में किसी बड़ी कम्पनी में बतौर इंजीनियर काम करता है । किसी पार्टी में साक्षी मिली तो शादी का मन भी उसी से बना लिया । सात साल हो गये हैं उनकी शादी को ,

पाँच साल पहले विराज जी केतकी के पति रिटायरमेंट लेकर आ गये थे । पति पत्नी बहुत खुश थे । खूब सैर सपाटे किये । तीन साल पहले केतकी स्कूल से जब रिटायर्ड हुई तो विराज जी ने बहुत बड़ी पार्टी की थी । केतकी बताती थी कि उसके बाद से उनका स्वास्थ्य गिरने लगा । मदिरा और धूम्रपान की आदत से उनकी पहले एक फिर दूसरी किडनी ने काम करना बंद कर दिया । पति को अच्छे से अच्छे डाक्टर के पास लेकर गई । लेकिन कुछ फ़र्क़ नहीं पड़ा ।सारी जमा पूँजी इलाज में चली गई । बेटे की अपनी ज़िम्मेदारियाँ थी इसलिए उसे कुछ नहीं कहा । पति ज़्यादा समय तक बीमारी से नहीं लड़ पाये और एक दिन पत्नी को अकेला छोड़कर हमेशा के लिये इस संसार से विदा हो गए । केतकी की टूटी हालत मैंने देखी थी ।

आलोक और साक्षी ने माँ को उनके साथ चलकर रहने की बहुत मिन्नतें की.. पर केतकी नहीं मानी । बेटे पर बोझ नहीं बनना चाहती थी ।अपना आत्मसम्मान उसे बहुत प्रिय था कि कहीं आज नहीं कल उसे कुछ कह ना दे । इसी सोच में उसने अकेले रहने का फ़ैसला किया । लेकिन आज देखो हालात ने लाकर वहीं खड़ा कर दिया जहां से वो सदा बचती रही ।

    थोड़ी देर में नर्स ने आकर बताया कि केतकी आपसे बात करना चाहती है । दोनों भाग कर अन्दर गये  । केतकी की आँखों में आँसू थे । हाथ जोड़कर उमा का धन्यवाद करने लगी तो उमा ने हाथ पकड़ लिये और केतकी के हाथ में उसका फ़ोन देते हुए कहा कि मुझे नम्बर मिला दो मैं आलोक को फ़ोन कर देती हूँ । केतकी ने नम्बर मिला कर दिया तो उमा फ़ोन लेकर बाहर चलीं गई ।

   आलोक उस वक़्त आफिस में था । फ़ोन उसके डेस्क पर पड़ा बज रहा था । उसके अग़ल बग़ल में बैठने वाले कर्मचारी रोहित और अमित आज लंच कहाँ से मँगवाया जाये इस बात पर बहस कर रहे थे ।

अमित- अरे भई एक तो तुम चुप नहीं कर रहे उपर से यह फ़ोन बजे जा रहा है ये आलोक है कहाँ ??

रोहित – आलोक बॉस के कमरे में है । आलोक की अच्छाई और क़ाबिलियत का हम सब ही नहीं बॉस भी फ़ायदा उठाता है । जब देखो आलोक पर एक के बाद एक ज़िम्मेदारी डालता रहता है ।

अमित – बिलकुल सही कह रहा है । अच्छे लोगों में बस यही बात बुरी होती है कि किसी को ना नहीं कर सकते । हमारा आलोक बेचारा भी बस ऐसा ही है सबकी मदद करता है ।अरे वो देखो सामने से आलोक आ भी गया .. आलोक यार तेरा फ़ोन बजे जा रहा है !!

  आलोक के फ़ोन सुनते ही चेहरे का रंग उड़ गया । भागकर बॉस के आफिस में गया और दोस्तों को यह कहकर कि दो दिन के बाद मिलते हैं ,निकलने ही वाला था कि अमित ने पकड़ लिया । क्या हुआ यार सब ठीक तो है ??

नहीं सब ठीक नहीं है । मेरठ से मेरी माँ कीं दोस्त का फ़ोन था मेरी माँ के साथ हादसा हुआ है । गिर गई है काफ़ी चोटें आई है । अस्पताल में है मुझे जल्दी मेरठ पहुँचना है कहकर आलोक जल्दी से निकल गया।

    आलोक ने घर आते ही पत्नी साक्षी को बताया कि वो माँ को लेने जा रहा है उनका कमरा तैयार कर देना और एक सहायिका का इन्तज़ाम भी कहकर जल्दी से निकल गया । साक्षी चुपचाप एक तरफ़ बैठी पति की चिन्ता हड़बड़ाहट और उसके मन की व्यवस्था को बिगाड़ने वालीं ख़बर सुनाने को चुपचाप देखती रही । अभी दो साल पहले ही उसने नौकरी शुरू की, घर की थोड़ी आर्थिक व्यवस्था संभलने लगी । बैंक की नौकरी मिली । बच्चों के साथ अब कभी कभार शापिंग या बाहर अच्छे रेस्तराँ में खाने के लिए सोचना नहीं पड़ता था । इस नई दैनिक चर्या के साथ साक्षी ने अपना अच्छा तालमेल बिठा लिया था । लेकिन अब माँ के आने से फिर से एक नई शुरुआत मन से वो इस आगमन के लिए बिलकुल तैयार नहीं थी । लेकिन ज़िम्मेदारी से पीछे हटना इन परिस्थितियों में बिलकुल ग़लत और असभ्य था । साक्षी ने जल्दी ही ख़ुद को इन सबसे बाहर निकाला और बच्चों के स्कूल पी टी ऐ के लिए जाने तैयार होने लगी जिसके लिए आज उसने छुट्टी ली थी ।

   तीन दिन के बाद आलोक मेरठ के घर की ज़िम्मेदारी पड़ोसी को देकर माँ को लेकर दिल्ली चला आया । साक्षी ने दिखावे के भाव से सासु माँ का अच्छा स्वागत किया । शुरू शुरू के कुछ दिनों तक साक्षी चुप रही । उसके लौटते ही माँ के लिए रखी सहायिका घर चली जाती । साक्षी शाम को घर आते ही व्यस्त हो जाती । बच्चों का होमवर्क रात का खाना सुबह के खाने की तैयारी उसकी कुछ ही दिनों में बस होने लगी । आलोक से मदद की ना पहले उम्मीद थी ना अब !!पहले कभी कभार वो एक दो दिन यूँही निकाल लेती थी, बच्चों के लिए सैंडविच बना दिये अपने दोनों के लिए फ़्रीज़ में बचा कूचा निकाल लिया लेकिन अब हर रोज़ उसे आकर पुरा काम करना पड़ता था । खर्चा दिन प्रतिदिन बढ़ने लगा । माँ कीं दवाई खुराक सहायिका का वेतन साक्षी पहले कम फिर ज़्यादा बड़बड़ाने लगी ।




पति काम से आता तो पत्नी का फूला शिकायतों से भरा चेहरा देखता । बच्चों पर घर की नकारात्मक गतिविधियों का असर ना हो इसलिए आलोक हर बात को बंद कमरे में सुलझाने की कोशिश करता । और कभी थका मादा होकर भी पत्नी और बच्चों को खाना खिलाने बाहर ले जाता । केतकी साथ तो नहीं जाती लेकिन शुक्र मनाती कि थोड़ी देर के लिए चिक चिक से निजात मिलेगी ।धीरे-धीरे केतकी ठीक हुई तो सहायिका की सबसे पहले साक्षी ने छुट्टी की फिर धीरे-धीरे सास की तरफ़ घर के काम खिसकाने लगी । केतकी अभी पुरी तरह से ख़ुद को स्वस्थ नहीं महसूस कर रही थी । लेकिन चुपचाप वक़्त को धक्का दे रही थी कि एक दिन सब ठीक हो जायेगा और ना हुआ उसका अपना घर तो है ।

केतकी की चचेरी बहन कनाडा रहती थी । उसने एक दिन आलोक को फ़ोन पर एक छोटा सा काम दिया कि उसने ज्वैलर के यहाँ कुछ गहने आर्डर किए है और वो उसे पाँच लाख रूपये भेज रही है । वो ज्वैलरी वहाँ से उठाकर निर्धारित जगह पर पहुँचानी है । आलोक ने घर आकर साक्षी के साथ तीन दिन बाद चलने का प्लान किया । साक्षी बहुत ख़ुशी से तैयार हो गई आख़िर गहने ना भी लेने हो देखने का भी मौक़ा बढ़िया है ।

       आये दिन साक्षी केतकी के लिए जब काफ़ी काम छोड़ कर जाने लगी तो केतकी ने साक्षी से खुलकर इस विषय पर बात करने का मन बनाया ।साक्षी ने तो जैसे शिकायतों की झड़ी लगा दी … हम तो बहुत मज़े से रह रहे थे । ये ख़र्चा यह काम सब आप के आने के बाद बड़ा है । आपका दिल करे ना करें माँ जी काम तो करवाना पड़ेगा !! मैं काम के लिए नहीं इनकार करती लेकिन तुम धीरे-धीरे करके मेरे लिए काफ़ी काम छोड़ जाती हो । मैं थक जाती हूँ उपर से तुमने बच्चों की आया भी हटा दी है उन्हें भी मुझे देखना पड़ता है ।

अभी दोनों में बहस चल ही रही थी कि आलोक हाथ में मिठाई का डिब्बा लेकर आफिस से आया लेकिन दोनों ने डिब्बे की तरफ़ देखा ही नहीं एक दूसरे पर दोषारोपण करती रही । आलोक चुपचाप जाकर सो गया ।

अगले दिन आलोक ने साक्षी को फ़ोन किया कि वो ज्वैलर के पास नहीं जा सकता उसे ज़रूरी काम है । तुम माँ को साथ ले आओ और आफिस से आकर मुझसे पैसे ले जाओ । मैं बैंक से निकलवा रखूँगा । साक्षी केतकी को ले जाना तो नहीं चाहती थी लेकिन इतने पैसे और गहनों के साथ अकेले होने का जोखिम भी नहीं लेना चाहती थी । इसलिए माँ को ले जाना ज़रूरी था ।

दोनों आलोक के आफिस में बारह बजे तक पहुँच गई । आलोक बहुत व्यस्त था । शीशे की दीवारों में से नज़र आ रहा था कि बहुत सारे लोगों को बंद कमरे में किसी विषय पर संबोधित कर रहा था । दोनों सास बहू बड़ा गर्व महसूस कर रही थी । तभी रोहित हाथ में दो कप काफ़ी के लेकर आया । और आते ही उसने कहा कि आप दोनों को बहुत बहुत बधाई हो !! दोनों हैरानी से उसकी तरफ़ देखने लगी ।

  वो उनके चेहरों की भाषा समझे बिना ही बोलता रहा.. कल आलोक का प्रमोशन हुआ अब वो वाइस चेयरमैन है । आलोक की मेहनत लगन और स्वभाव ने उसे यह मुक़ाम दिलाया है ।

भाभी मिठाई कैसी लगी ?? मैं बड़ी ख़ास दुकान से लाया था ।। कल आलोक ने आफिस में पार्टी दी तो घर के लिए भी मिठाई मँगवाई थी । सब इन्तज़ाम का ज़िम्मा मेरा था । वो इतनी हैरानी ख़ुशी वाली ख़बर एक पल में सुनाकर चला गया । साक्षी और केतकी वहीं बैठे बैठे जैसे जड़ सी हो गई ।

  कुछ देर ख़ामोश रहने के बाद केतकी ने बोलना शुरू किया ।आज इतनी बड़ी ख़ुशी की ख़बर आलोक आकर हमसे बाँट ही नहीं पाया । मिठाई भी लेकर आया और मैंने एक पल के लिए उस डिब्बे की तरफ़ देखा भी नहीं । उसे इस दिन का पता नहीं कब से इन्तज़ार था । हर छोटी बड़ी अपनी कामयाबी आकर मुझसे आकर बाँटता था ।आज अन्दर ही अन्दर घोंट लिया उसने ख़ुद को.. ख़ुशियाँ पीछे रह गई घटिया बातें ख़ास हो गई । कैसी परिस्थितियाँ पैदा कर दी है मैंने अपने ही बेटे के घर की , सोचा था कभी बहु बेटे की गृहस्थी की ख़ुशियों के आड़े नहीं आऊँगी । आपसी प्रेम प्यार समझ कभी कम नहीं होने दूँगी ।लेकिन कहाँ कर पाई , अपनी ही शिकायतें हर रोज़ कभी नहीं पूछा कि तू बता बेटा तेरा दिन कैसा गया !!  थका हुआ आ रहा है , सबको खुश रखना चाहता है , बाहर लेकर जा रहा है । मैं इस बात से प्रसन्न हूँ कि थोड़ी देर के लिए मैं शांति में बैठूँगी । उसका नहीं सोच रही कि उसके शरीर को भी आराम चाहिए । माना कि काम में मदद नहीं कर पा रही लेकिन पैसों से तो मदद कर सकती थी । मेरठ में होती वहाँ भी तो अपना खर्चा करती लेकिन नहीं यहाँ भी मैं स्वार्थी बन गई ।

  जानती हो साक्षी ये जो घर के मर्दों को जो अचानक से बीमारियाँ लग जाती हैं । ये शुगर ब्लड प्रेशर दिल की बीमारी इसकी बहुत वजह तो ये घर के तनाव जो कारण अकारण हम ही पैदा कर देती हैं । मैंने फ़ैसला ले लिया मैं वापिस मेरठ चली जाऊँगी । मेरे लिए तुम सब की ख़ुशी पहले हैं बाक़ी सब बाद में ।

 साक्षी हैरान थी कि माँ कैसे बड़ी सहजता से हर झगड़े तनाव का इलज़ाम अपने उपर ले रहीं हैं । इतना बड़ा दिल सच में एक माँ का ही हो सकता है । सच तो यह है कि वो ही अपनी सास को अपने घर में अपना नहीं पा रही थी । इसलिए हर छोटी बात को बड़ा बनाकर घर का माहौल ख़राब कर रही थी । आलोक का स्वास्थ्य बच्चों की एक सही माहौल में परवरिश माँ के प्रति फ़र्ज़ इन सब में उसकी भूमिका भी उतनी ही ज़रूरी है जितनी आलोक की !!  वहीं बैठे बैठे सारा मन के विषाद का अंधेरा जैसे छटने लगा । एक सुन्दर कल की तस्वीर नज़र आने लगी । माँ कीं आँखों में जो उसके लिए प्रेम था वो नज़र आने लगा … सासु माँ का हाथ में पकड़ कर बोली नहीं माँ आप कहीं नही जायेगी ।आप हमेशा हमारे साथ रहेगी ।हमें आपकी ज़रूरत है ।आज दिल पर जो प्रेम की दस्तक हुई है । उसे जीवन के भीतर लाना है । मुझे अपनी हर गलती दिखाई भी दे रही है और उसे सुधारने का रास्ता भी , मेरठ जब भी जायेगें सब साथ मिलकर जायेंगे । केतकी ने प्यार से साक्षी को देखा और उसके हाथ को अपने हाथ में लेकर भावुक होकर मुस्कुरा कर सहमति में सिर हिलाने लगी ।

  तभी आलोक पैसे हाथ में लेकर आ गया । माँ पत्नी को साथ में हंसते देखकर बोला अरे वाह !! आज कहीं सूरज पश्चिम से तो नहीं निकला ??साक्षी हंसते हुए बोली .. नहीं जनाब सूरज तो पूरब से ही निकला है लेकिन एक सूरज आज और भी उगा उसकी ख़ुशी हम आज रात बाहर किसी अच्छे से रेस्तराँ में चलकर मनायेंगे । आलोक निशब्द से इस लम्हे की ख़ुशी में डूब गया सोचने लगा ईश्वर के घर में देर है अंधेर नहीं सच में आज उसे छप्पर फाड़ कर ही दिया है

स्वरचित कहानी

अभिलाषा कक्कड़

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