शिवन्या – मीनाक्षी सिंह

कहानी नंबर 1

गांव में चारों तरफ पापड़ ,गुजिया ,मठरी विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनना शुरू हो गए थे ! न्नही शिवन्या  का भी मन ललचा रहा था ! दौड़ती हुई अपनी अम्मा (माँ ) के पास आयी और बोली – अम्मा ,तुम पापड़ और गुजिया क्यूँ नहीं बनाती कभी ! ना ही नये कपड़े खरीदती हो कभी ! देखो ताई जी के घर कितनी सारी गुजिया बनी हैँ ! सुरभी दीदी  ,दीपक ,विशाल भईया ,सभी बड़े लोगों के लिए भी नए कपड़े लायें हैँ ताऊ ताई जी ! तुम भी चलो ना हाट ! पूर्वी उत्तर प्रदेश में होली  के त्योहार पर आठ दिनों तक मिलन होता हैँ ! दोपहर तक  होली खेली जाती हैं ,शाम को सभी लोग नए कपड़े पहनकर परिवार सहित एक दूसरे के घर ज़ाते हैँ ! सभी लोग नयी दुल्हन सा अपने घर को सजाते हैँ ! तरह तरह के व्यंजन मेहमानों के लिए बनाते हैँ ! खूब दिल से मेहमानों की आवभगत करते हैँ ! प्रतियोगिता सी होती हैँ कि फलाने के घर ज्यादा अच्छी सजावट थी ,उनके यहाँ ज्यादा स्वादिष्ट व्यंजन बने थे ! पर समय के साथ  ये मिलन अब औपचारिकता मात्र रह गया हैँ ! अब इक्का दुक्का लोग ही मिलने ज़ाते हैँ ,उसमें भी उनकी नजर दस बार घड़ी पर जाती हैँ कि कहीं ज्यादा टाइम तो वेस्ट नहीं हो गया हैँ ! शुक्र हैँ गांव अभी इस परम्परा को चला रहे हैँ ! नहीं तो ये कबकी खत्म हो जाती !

शिवन्या की माँ अपनी मासूम बेटी के  सवालों पर बोली -शिवू ,तेरी ताईजी ने तुझे नहीं दी गुजिया खाने को ! बड़ी खराब हैँ तेरी ताईजी !

शिवन्या – अम्मा,,दी थी वो भी पूरी  प्लेट भरकर ! पर मैं ही नहीं लायी क्यूंकी सुरभी दीदी मुझे मुंह चिढ़ाते हुए बोली – चाची ने फिर नहीं बनाये होंगे गुजिया पापड़ ,कुछ भी अच्छा नहीं बनाती कभी चाची त्योहार पर ! दे दो बेचारी को ! हमारे यहाँ से ही तो ले जाती हैँ हमेशा ! अम्मा मुझे गुस्सा आ गया मैं वहीं प्लेट पटककर आ गयी ! ताईजी आवाज भी लगा रही थी पर मैने नहीं सुना ! दौड़ती हुई घर आ गयी !  कुछ भी हो अबकी गुजिया तो मैं आपके हाथ की और अपने घर की बनी ही खाऊँगी !

अम्मा (शिवन्या की माँ ) – ये तो गलत बात हैँ ना शिवू ! तेरी सुरभी दीदी ऐसे ही मजाक करती हैँ तुझसे ,तू चिढ़ती हैँ इसलिये ! वो भी हमारा ही घर हैँ शिवू ,ताईजी तेरी बड़ी मम्मी हैँ ! अगर मेरे पास खोया ,मैदा चीनी गुजिया बनाने के  लिए ,पापड़ बनाने के लिये,नए कपड़े के लिये  पैसे होते तो क्या मैं बनाती नहीं ! रोज की दो बख्त की रोटी तो इतनी मुश्किल से जुटा पाती हूँ हम दोनों के लिये ! अब तू बच्ची नहीं हैँ ,9 साल की हो गयी हैँ ! समझती क्यूँ नहीं ! तेरे बापू कबका छोड़कर चले गये हमें ! किसी तरह तुझे सरकारी स्कूल में पढ़ा रही हूँ ,सरकारी राशन से दो बख्त की रोटी मिल रही हैँ ! कैसे त्योहार मनाऊँ ! त्योहार तो अमीर लोगों के लिए ही होते  हैँ ! इतना कहते हुए शिवन्या की अम्मा फफ़ककर रो पड़ी !

न्नही सी शिवन्या भी अपनी अम्मा को रोता देख उनके आंसू पोंछने लगी ! रोते हुए अम्मा  के सीने से लिपट गयी ! अम्मा ,मुझे नहीं खानी गुजिया ,पापड़ ! नुकसान करते हैँ ये ! मैने पढ़ा था ! ज्यादा तेल में सिकी चीजें नहीं खानी चाहिए नहीं तो दिल की बिमारी हो जाती हैँ !

तभी हाथ में गुजिया पापड़ लिए ताईजी आई ! क्या बोली शिवू तू ,नुकसान करते हैँ ये ! लगाऊँ तुझे एक ! बहुत बड़ी हो गयी हैँ ! अपनी बड़ी मम्मी से नहीं कह सकती तुझे क्या चाहिए ! मैं तो खुद ही अपनी शिवू को देने आ रही थी गुजिया ! तब तक तू ही आ गयी !पीछे से शिवन्या की सुरभी दीदी भी हाथ में गुजिया पापड़ का सामान लिए आ गयी ! अबकी बार शिवू उसके घर में चाची के हाथ की बनी गुजिया,पापड़  खायेगी ! हैँ ना शिवू !

शिवू अपनी सुरभी दीदी के गले लग गयी !

सभी मिलकर गुजिया बनाने लगे !

सभी पाठकों को होली की हार्दिक शुभकामनाएं

#5वां_जन्मोत्सव

स्वरचित

मौलिक अप्रकाशित

मीनाक्षी सिंह

आगरा

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