घर में तुम्हारा मन कहां लगता श्रीमती जी?? –   कनार शर्मा  

शिखा कहां है… मम्मी उससे बोलिए मेरे लिए एक कप अदरक वाली चाय बना दे बहुत सरदर्द हो रहा है… ऑफिस से थका हारा वैभव सोफे पर बैठ अपने जूते मोजे उतारते हुए बोला।

अरे बेटा!! बहू तो घर में नहीं है… उसका मन घर में लगता कहां है??!!

आज कहां गई है????

अब बेटा मुझे क्या पता कहां गई है… तू ही फोन करके पूछ अब मैंने अगर ज्यादा पूछताछ करनी शुरू की तो कहेगी सास खराब है इसलिए तू अपनी पत्नी को खुद ही संभाल बोल चाय बनाने चली गई।

तब वैभव ने शिखा को फोन लगाया मगर फोन पर्स में रखे होने के कारण उठा नहीं पाई।एक घंटे बाद घर पहुंची तो वैभव गुस्से से बोला यह क्या तरीका है?? कहां गई थी तुम?? बताकर तो जाना था।

कैसी बातें कर रहे है मैं मम्मी जी को बताकर गई थी।

बस जा रही हूं ऐसा बोल कर गई थी कहां जा रही हूं यह नहीं बताया… सुलोचना जी मासूम सा चेहरा बनाते हुए बोली..!!

मम्मी आप ही ने तो सुबह कहा था शाम को सब्जी बाजार जाकर ताजा सब्जी ले आना। मैं थैला लेकर निकली थी मुझे लगा आप समझ गई होंगी शिखा ने उदास स्वर में कहा।

अरे तो मम्मी को बोलकर चली जाती… तुम्हारा मन घर में लगता कहां है??? ऐसा बहाना बनाकर निकलती हो कि सामने वाला कुछ बोल ही नहीं पाए… गुस्से से बोल बड़बड़ाता हुआ वैभव अपने कमरे में चला गया।

अब वैभव को मनाना बहुत मुश्किल है क्योंकि उसका मूड एक बार बिगड़ गया तो वह किसी की नहीं सुनता शिखा पिछले 2 महीने से परेशान है और उसे समझ में नहीं आ रहा की वैभव उससे किस बात से चिढ़ जाता है।




असल में शिखा और वैभव के बीच में दूरियां पैदा करने का काम सुलोचना जी खुद कर रही है क्यों???? 

क्योंकि उन्होंने अपनी सहेलियों से सुन रखा था कि जिस दिन बेटे की शादी हो जाती है वह जोरू का गुलाम बन जाता है इसीलिए अगर तुझे अपने बेटे को कब्जे में रखना है तो अपना अधिकार जमाना मत छोड़ना साथ में बहू को अपनी उंगलियों पर इस तरह नचाना कि उसे अपने पति के नजदीक जाने का मौका ही ना मिले।

 कुछ दिन तो ठीक चला मगर जब उन्हें महसूस हुआ कि बेटा उनकी तरफ ध्यान नहीं दे रहा तो उन्होंने यह चाले चलना शुरू कर दी…क्योंकि वह नहीं चाहती कि बहु बेटा के बीच इतनी नजदीकी आए हैं कि बेटा अपनी मां को भूल जाए।

इसलिए वे शिखा को सुबह से शाम तक कामों में उलझाकर रखती हूं जो काम वैभव के ऑफिस टाइम में हो सकते हैं उन्हें में जानबूझकर शाम के समय पर करवाती… जिससे शिखा वैभव को कई बार घर पर नहीं मिलती, छुट्टी वाले दिन भी ज्यादातर अपने बेटे के साथ इधर-उधर की बातें करने के बहाने उसके कमरे में जा बैठी और अगर कभी दोनों घूमने जाने का प्लान बनाते तो अपनी बीमारी का बहाना बनाकर प्लान चौपट कर देती।

और किसी ना किसी बहाने वैभव के कान भरती रहती…अब क्या करें बहू सारा दिन कमरे में रहती है, अकेले खाना खाती है, मायके चली जाती है, बिना पूछे किटी कर ली, शॉपिंग पर जाती है, सहेलियों के साथ फिल्म देखने जाती है… उसका मन घर में लगता कहां है???… इतना कुछ कहने के बाद भी बड़े प्यार से वैभव को कहती बेटा बहू जैसी भी है बहुत अच्छी है तू उसे कुछ मत कहना तुझे मेरी कसम बोल हर बार वैभव को रोक लेती है।

अगर वो पूछता मां आप कुछ कहती क्यों नहीं???

 तो कहती अरे बेटा अगर मैंने कुछ कह दिया तो बहू तुझे छोड़कर चली गई तू सोच क्या होगा??? मेरा तो उम्र का तकाजा है जवान लोग कभी बुड्ढों को समझ नहीं सकते इसीलिए हम बूढ़े लोगों को माता-पिता को दर-दर की ठोकरें खानी पड़ती हैं तू तो जानता ही है ज्यादा विवाद बढ़ा तो कहीं बहू हमें वृद्धआश्रम ना भेज दे…

 सुनते ही वैभव गुस्से से तमतमा गया शिखा की इतनी हिम्मत कि वह मेरे मां बाबा को घर से निकाले… कभी नहीं आने दो उसे अच्छे से समझा दूंगा इस घर में तौर तरीके से रहना हो तो रहो वरना मैं खुद उसे मायके छोड़ आऊंगा।

अपने ससुर जी को फोन करने लगा आपकी बेटी को बिल्कुल अक्ल नहीं ससुराल में कैसे रहना है???? उसकी उसे कुछ समझ ही नहीं आता हमेशा अपनी मनमानी का किया वह तो मेरी मां है जो चुपचाप उसकी हरकतें सहन करती आई है वरना उनकी जगह कोई और होता तो कब का सीधाकर दिया होता।

इन सब बातों में उलझकर शिखा रह जाती जबकि उसे अच्छे से पता था के यह सब किया धरा सासू मां का है। जब भी वह अपना पक्ष रखने जाती वैभव उसे ही उल्टा चार बातें सुना देता कि तुम मेरी मां पिताजी की सेवा नहीं करना चाहती,,,, तुम अकेली रहना चाहती हो,,,,, तुम चाहे जो करो मैं मेरे मां-बाप को कभी नहीं छोडूंगा तो मैं यहां से जाना हो तो जाओ…. इस तरीके की बातों से शिखा बहुत दुखी हो जाती आखिर करे तो क्या करें… उसे कैसे समझाएं??? वैभव को जो दिखाया जाता बस उसे ही सच मानता आखिर कोई बच्चा अपनी मां को झूठ समझ ही नहीं सकता।




दोनों का रिश्ता इसी टेंशन में चल रहा था कि 1 दिन अचानक सुलोचना जी बोली “बेटा तेरी छोटी मौसी अनीता का फोन आया था। वे लड़की देखने बनारस जा रहे हैं…असल में लड़के ने लड़की पहले से ही पसंद कर रखी है तेरी मौसी के देखने भर की फॉर्मेलिटी होते ही सगाई भी लगे हाथ कर देगी मुझे 10 दिनों के लिए उसके साथ जाना होगा… तू टिकट करवा दे सब कुछ ठीक रहा तो तुम लोग भी सगाई में आ जाना।

सुलोचना जी के जाने के बाद जब वैभव ऑफिस से आया तो देखा शिखा घर में ही थी दो दिन के बाद वैभव से रहा नहीं गया और बोला क्या बात है?? आजकल अपनी किटी, सहेलियों के साथ घूमने फिरने नहीं जाती… आखिर घर में तुम्हारा मन लगता कहां है श्रीमती जी??

फिर वही बात सुन शिखा को गुस्सा आ गया और वह बोली “जी किट्टी तो महीने में एक ही बार होती है, मुझे तो मम्मी जी हर दूसरे तीसरे दिन सब्जी बाजार भेजती हैं। मैं कहती हूं दोपहर में ही ले आऊंगी मगर वो मुझे जानबूझकर शाम को भेजती हैं, राशन किराने का सामान लेने जाना पड़ता है जबकि मैंने उन्हें कई बार कहा ऑनलाइन मंगा लेती हूं”। मगर वे कहती हैं खराब सामान आता है इसीलिए हमेशा की तरह पंसारी की दुकान से लेकर आओ और आपको बता दूं सहेलियां भी मेरी तरह शादीशुदा है उन्हें भी महीने में एकाध बार ही समय मिलता है। तब हम लोग मॉल, मूवी जाकर मजा कर लेते हैं क्योंकि पतियों को ऑफिस और गलतफमियों से फुर्सत नहीं होती… शिखा को पता था आज पति पत्नी के बीच में कोई तीसरा नहीं है इसीलिए उसने अपनी बात सीधे तौर पर रख दी… वरना सुलोचना जी बीच में बोलकर सब गुड गोबर कर देती थी अपने आपको महान और अपनी बहू को बुरा बताकर रोना चालू कर देती थी!!

वैभव उसकी बात सुन सोच ही रहा था कि शिखा आगे बोली

“शादीशुदा बेटे की मां को हमेशा यही टेंशन लगी रहती है कहीं शादी होते ही कहीं बेटा बहू के पल्लू से बन गया तो मेरा क्या होगा”… मेरे बुढ़ापे के सहारे का क्या होगा????

आखिर मेरी मां यह सब क्यों करेगी??? वह तो खुद तुम्हें मेरे लिए पसंद कर लाई थी और हमेशा तुम्हारी तारीफ करती है मगर तुम ही उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं करती… वैभव तिलमिलाते हुए बोला।

असुरक्षा की भावना… के चलते कि कहीं मेरा बेटा जोरू का गुलाम ना बन जाए मेरे ऊपर ध्यान देना बंद ना कर दे..!! मैंने तो कई बार आपकी गलतफहमी को दूर करने की कोशिश की मगर मैं तो पराए घर से आई हूं आप मुझ पर विश्वास कैसे करते हैं??

अगर आपको अभी भी लगता है कि मैं गलत हूं तो आप खुद ही देख लीजिए तीन दिन हो गए हैं ना ही हमारी बीच कोई लड़ाई, झगड़ा हुआ है ना ही कोई बहस और ना ही मैं घर से बाहर बेवजह निकली हूं….!!




शिखा की सारी बात समझ वैभव चुपचाप घर से बाहर निकल गया शायद अकेले में कुछ आत्ममंथन करना चाहता हो…??

मगर शिखा का मन बहुत घबरा रहा था उसने तीन चार बार वैभव को फोन कर पूछना चाहा कि अचानक क्यों चले गए??? और सोचा माफी मांग कर मना लूंगी…. हो सकता है अपनी मां के बारे में सुन उन्हें बुरा लगा हो..!!

थोड़ी देर बाद वैभव उसके लिए एक बड़ा सा गुलाबों का गुलदस्ता लेकर उसके पास आया और बोला शिखा कहीं ना कहीं गलती मेरी भी है मैं ही मां पत्नी के बीच में तालमेल नहीं बना पाया अगर मां को इनसिक्योरिटी फील होती है तो यह गलत है उन्हें समझना होगा कि ऐसा कुछ नहीं है… और तुम्हें समझ नहीं पाया कि तुम खुद इस घर में सामंजस बैठाने में किन परेशानियों का सामना कर रही हो मुझे तुम्हारा भी साथ देना चाहिए था..!!

शिखा को लगा आज मौका मिला है तो मैं भी थोड़े नखरे दिखा लूं… वैभव की तरफ से मुंह फेरती बोली “रहने दो पतिदेव आज मम्मी जी नहीं है तो रोमांटिक हो रहे हो कल मम्मी होंगी तो मुझ पर बेवजह चिल्लाओगे और कहोगे घर में तुम्हारा मन कहां लगता है श्रीमती जी….!! लगे भी क्यों??? आखिर किसी को मेरी कदर ही कहा है…!!

मुझे पता था मेरी नादानी में मैंने तुम्हें बहुत दुख पहुंचाया है इसीलिए तुम्हारी फेवरेट मूवी के दो टिकट लाया हूं चलोगी मेरे साथ आज पॉपकॉर्न खिलाकर तुम्हारी सारी नाराजगी दूर कर दूंगा…देख लो मन करे तो चलो वरना किसी और को ले जाऊंगा..!!

शिखा तुरंत गुलदस्ता छुड़ाते हुए बोली “ऐसे कैसे किसी को ले जाएंगे”… 2 मिनट रुको मैं 10 मिनट में तैयार होकर आई?? 

शिखा की बात सुन वैभव हंस पड़ा और ये सोचने लगा यह पत्नियां कितनी आसानी से मान जाती हैं… फिर दूसरे ही पल मन में ठान चुका था कि मां के मन में पल रहे हर संशय को भी दूर कर देगा।

आशा करती हूं मेरी रचना आपको जरूर पसंद आएगी साथ में आप like Share n comment ज़रूर करे धन्यवाद!!

 आपकी सखी 

  कनार शर्मा 

(मौलिक रचना सर्वाधिकार सुरक्षित)

 

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