“सुधा आज तो बहुत दिनो बाद मिलना हुआ…. कहां थे इतने दिन?
जब से वो मोहल्ला छोड़ा है आप तो ईद के चांद ही हो गए”
सुधा की पुरानी पड़ोसन मीना ने बोला जो उसके अग्रवाल समाज की अध्यक्ष भी है और आज शिवरात्रि के दिन मंदिर में अचानक टकरा गई
“अरे मीना जी …. बहुत खुशी हुई आज आपसे अचानक ऐसे मिलकर
और बताइए घर मे सब कैसे हैं ??निखिल क्या कर रहा है आजकल?”
“निखिल की नौकरी लग गई है…. सरकारी अफसर बन गया है आपके आशीर्वाद से ,बस अब एक सुशील कन्या की तलाश है जिसके साथ निखिल का शुभ विवाह करा हम अपनी जिम्मेदारी से मुक्त होकर चारो धाम की यात्रा पर निकल जाए…. “मीना बोली
“तो फिर हमारी नेहा को ही देख लीजिए। वो भी शादी लायक हो गई है और उसकी बीएससी तो पहले ही हो गई …..बीएड भी पूरी हो गई इस महीने
हमे भी एक जाना पहचाना घर चाहिए जहां हमारी बेटी अकेलापन महसूस नहीं करे और हमारे आस पास भी बनी रहे
तो कहिए क्या कहना है आपका…. “सुधा ने बड़ी उत्सुकता से पूछा
“अरे नेकी और पूछ पूछ…. मुझे तो नेहा हमेशा से ही पसंद है। अगर उसका और निखिल का शुभ विवाह हो जाए तो मुझसे ज्यादा खुश और कौन होगा भला …”कहकर दोनो एक दूसरे के गले लग गई
घर जाकर मीना ने सारी बातें अपने पति मोहन को बताई तो उन्हे भी ये रिश्ता अच्छा लगा
निखिल अगले हफ्ते घर आ ही रहा है तब उससे बात भी कर लेंगे और नेहा और निखिल को एक दूसरे से मिलवा भी देंगे यही सोचकर दोनो बहुत खुश थे
और अगले हफ्ते जब निखिल से नेहा के बारे में बात की गई तो पहले तो उसने एक दो साल किसी भी बंधन में बंधने और विवाह से मना कर दिया पर मम्मी पापा की जिद के आगे उसने नेहा से मिलने को जरूर हां भर दिया
निखिल शुरू से शहर में होस्टल में रहकर पढ़ाई कर रहा था तो उसका बोलने का लहजा, रहने का तौर तरीका नेहा से थोड़ा अलग था और नेहा छोटे कस्बे में पली बढ़ी पारिवारिक ,संस्कारी लड़की थी । रिश्तों की अच्छी खासी समझ थी उसे। पर गांव के परिवेश का थोड़ा असर तो था बाकी देखने में सुंदर सुशील लड़की थी। निखिल को पसंद आ गई
निखिल ने घर वालों के समझाने पर सगाई के लिए हां भर दी पर विवाह के गठबंधन में बंधने को वो तैयार नही था
दोनो के परिवार की रजामंदी से निखिल और नेहा की सगाई हो गई
धीरे धीरे फोन पर नेहा और निखिल की बाते होने लगी। पहले तो निखिल को नेहा का बोलना अखरता था पर धीरे धीरे नेहा के मधुर व्यवहार ने निखिल का मन जीत लिया। वो निखिल के साथ साथ उसके परिवार वालों से भी पूरी तरह जो जुड़ गई थी उसका मानना था कि शुभ विवाह केवल एक रीति नहीं बल्कि सफल विवाह के लिए दोनों पक्षों के बीच समझ और प्रेम आवश्यक है। यदि दोनों पक्ष एक दूसरे को समझते और सम्मान करते हैं तो वे अपने जीवन में आने वाली चुनौतियों का सामना अधिक आसानी से कर सकते हैं इसलिए वो और उसका परिवार निखिल के परिवार को काफी करीब से जानने समझने की कोशिश कर रहे थे पर निखिल बिलकुल इसके विपरीत था
वो कभी नेहा के घर के और किसी सदस्य से कोई मतलब नहीं रखता ना ही कभी उनके हाल चाल पूछता वो बस नेहा से घंटों बाते करता रहता
नेहा को लगता शायद हमारा विवाह होने के बाद गठबंधन हो जाए उसके बाद निखिल सबसे मिलेंगे तो सबसे संबंध बना पाएंगे।
निखिल अब शादी के लिए तैयार हो गया था क्योंकि नेहा को वो अच्छे से जान चुका था और उसे लग रहा था कि वो उसके घर परिवार को अच्छे से सम्हाल पाएगी।
जल्दी ही दोनों घरों में शुभ विवाह की तैयारियां होने लगी
कुछ महीनों बाद उनका वैवाहिक गठबंधन भी हो गया और नेहा निखिल की दुल्हन बनकर अपने ससुराल आ गई
निखिल, नेहा पर अपनी जान छिड़कता था और नेहा को बहुत खुश रखता । नेहा ऐसा पति पाकर अपने आपको बहुत भाग्यशाली समझती थी और अपने मायके में उसकी बहुत तारीफ करती
धीरे धीरे समय गुजरता गया और उनकी शादी को एक साल पूरा हो गया पर कभी निखिल नेहा के साथ उसके मायके नही रुका। कभी जाता भी तो सिर्फ नेहा को लेने और वो भी बस दो घंटे रुकता। नेहा के मम्मी पापा उसके लिए पलक पांवड़े बिछा देते पर वो इन सबसे बेखबर अपनी मस्ती में ही मस्त रहता।
नेहा ने कई बार नोटिस भी किया कि निखिल उसके पापा मम्मी को पापा मम्मी कहकर भी संबोधित नही करता बस ऐसे ही बात कर लेता वैसे वो बात ज्यादा करता भी नही था। नेहा को कभी कभी बहुत अखरता कि वो तो उसके परिवार वालों को इतना मान सम्मान देती है और वो उसके मम्मी पापा को थर्ड पर्सन की तरह ट्रीट करता है पर वो सोचती शायद अभी घुला मिला कम है तो बोलने में झिझकता है ।
बात आई गई हो गई पर समय के साथ साथ निखिल का अब भी अपने ससुराल पक्ष की तरफ रुझान जैसे के तैसे ही था। जहां नेहा उसके सास ससुर, ननद या और कोई भी परिवार का सदस्य किसी को भी कुछ भी परेशानी होती तो हमेशा सहायता के लिए तत्पर रहती , उनके हाल चाल समय से पूछती रहती , उनके जन्मदिन, शादी की सालगिरह सब समय से याद कर उनको विश करती
और छोटी छोटी खुशियों से सबको खुश रखती वहीं नेहा के घर में किसी के बीमार होने पर मिलने जाना तो दूर , फोन कर उनके हाल चाल पूछने तक का टाइम निखिल को नही होता और कभी नेहा कहती कि पापा की तबियत खराब है
उनसे फोन ही करके पूछ लो तो निखिल बोलता तुम पूछ तो लेती हो सुबह शाम। रोज़ बिना नागा के अपने पापा मम्मी से घंटो बात करती हो फिर भी मेरी कसर रह गई क्या …. और मैं पूछता नही पर मन में उनके बारे में भगवान से विश जरूर करता हूं। मुझे दिखावा पसंद नही। मेरा मन साफ हैं ना बस ये ही काफी है मेरे लिए।
निखिल का ऐसा बोलना नेहा को बिल्कुल अच्छा नहीं लगता पर वो कहती भी क्या बस रो लेती और अपना मन हल्का कर लेती।
वो कभी कभी गुस्से में बोलती भी थी निखिल क्या विवाह मेरा ही हुआ है ? तुम्हारा नही हुआ क्या जो तुम कभी मेरे परिवार वालों की खोज खबर नहीं लेते, पापा मम्मी से मिलने नही जाते, मिलना तो छोड़ कभी फोन तक नही करते।
निखिल बोलता कि तुम जाओ मैने मना थोड़े ना किया है पर मुझसे ये सब करने को मत बोलो प्लीज।
अरे कई बार तो नेहा किसी काम में लगी रहती और इसके घर से फोन आता तो निखिल बोलता नेहा तुम्हारी मम्मी का फोन है , कर लेना बाद में पर मजाल है कि कभी उनका फोन तक उठा ले । दोनों का शुभ विवाह हुआ ज़रूर था पर उसका मतलब केवल नेहा ने ही समझा और निखिल के परिवार को पूरे तन ,मन से अपनाया जबकि निखिल के लिए शुभ विवाह मतलब अपनी जीवन संगिनी का साथ था
नेहा मन ही मन बोलती मेरी मम्मी है तो तुम्हारी भी तो कुछ लगती है पर ….. क्या ही करती बेचारी कह कह कर हार मान चुकी थी वो
उसके मायके में सब पूछते निखिल जी को यहां आना पसंद नही या हमारी आवभगत या हमारा स्वभाव पसंद नही कि वो कभी आते ही नहीं या हमसे कोई गलती हो गई नेहा बेटा ……
नेहा बोलती नही ऐसा कुछ नही , उनका स्वभाव कम बोलने का है बस । वो अपने घर वालों को ही कभी फोन नही करते । और आपकी बेटी हाजिर हैं ना आप जब चाहो तो फिर दामाद से क्या लेना ( नेहा अपनी तरफ से सफाई देने की पूरी कोशिश करती पर उसकी झुकी आंखे सब कुछ कह जाती )
नेहा की शादी को पूरे दस साल हो गए और अब नेहा ने भी निखिल को रोकना टोकना , पूछना सब बंद कर दिया।
निखिल तो कभी पूछता ही नही उसके घर वालों के बारे में और अब नेहा ने भी बंद कर दिया उसको बताना। जब उसे कोई मतलब नहीं तो क्यों कुछ बताना
और आदतन कभी नेहा अकेलापन महसूस करती और निखिल से अपने दुख दर्द बांटना चाहती तो बोलती भी थी पर निखिल कुछ ध्यान देता नही उसकी बातों पर……
नेहा मन ही मन सोचती
” जब ये ससुर बनेंगे और इनको ऐसा दामाद मिलेगा तब इनको पता लगेगा कि जब दामाद अपने ससुराल से कोई लेना देना नही रखना चाहता तो उन लोगों को कैसा लगता है। अरे इकलौती बेटी हूं मैं उनकी । उनकी भी इच्छा होती है कि उनका दामाद उनके हर सुख , दुख में उनके साथ शामिल हो पर निखिल तो मेरे यहां किसी की शादी हो या शोक कभी जाना पसंद ही नही करते बस कुछ न कुछ बहाना बना देते हैं और जब इनके परिवार में कोई कार्यक्रम हो तब एक हफ्ते की छुट्टी लेकर सारे परिवार के साथ शामिल होते हैं। ये क्या अच्छी बात है?”
शुभ विवाह सिर्फ दो लोगों का ही नहीं बल्कि दो परिवारों का भी गठबंधन है जो एक दूसरे से जुड़ते हैं। जब आप सम्मान नही दे सकते तो लेने की अपेक्षा भी नही रखनी चाहिए ।
और समय के साथ निखिल की छवि एक घमंडी इंसान की बन चुकी थी नेहा के मायके में। इसलिए अब किसी को ज्यादा फर्क नहीं पड़ता निखिल आए या ना आए।
पर समय के साथ नेहा और निखिल के बच्चे भी बड़े हो रहे थे और बेटी पीहू की शादी की उम्र हो चली थी।
निखिल ने एक अच्छा घर वर देखकर पीहू का शुभ विवाह विकास के साथ करवा दिया।
अब वो एक ससुर बन चुका था और अपनी बेटी दामाद की आने की राह देखता था।
“अरे पीहू कब आ रही है बिटिया, दामाद जी के साथ अपने पापा से मिलने…. “निखिल ने अपनी बेटी पीहू से पूछा जिसकी शादी को एक साल हो चुका था।
“पापा मैं कल आऊंगी पर विकास अभी नही आ पाएंगे , ऑफिस में बहुत काम है और फिर मेरे ससुराल में भी बुआजी के यहां शादी है तब छुट्टी लेनी पड़ेगी…..” पीहू ने जवाब दिया
नेहा ने पूछा “क्या हुआ निखिल ,कब आ रहे हैं विकास जी?”
“वो नही आ रहे नेहा… मैने सोचा इस बार आयेंगे तो अपने पुश्तैनी घर को देखने चलेंगे और लगे हाथों उन दोनो को अपने कुलदेवता पर ढोक भी लगवा आयेंगे पर विकास जी तो आना चाहते ही नही।
अरे मेरा भी तो मन होता है अपने जवाई का लाड़ चाव करने का पर उनको तो इससे मतलब ही नहीं ” निखिल उदास होते हुए बोला
“निखिल अब आपको पता लगा कैसा लगता है जब बेटी अकेली आती है और जवाई बाबू नही आते। पर मुझे तो आदत है क्योंकि पिछले इतने सालों में मैं अकेली ही गई हूं अपने मायके । एक आध बार आप गए हों शायद…..”
निखिल को पिछली पुरानी बाते दिमाग में घूम गई जब वो भी नया नया दामाद बना था और ऐसा ही व्यवहार था उसका।
पर अब बहुत देर हो चुकी थी रिश्ते सुधारने के लिए क्योंकि निखिल के ससुर जी और सासू मां अब इस दुनिया में नही रहे।
पर उसने नेहा से जरूर माफी मांग ली थी
और बोला पीहू और दामाद जी से मिलने वो खुद जायेगा इस बार ताकि रिश्ते मजबूत बने और विकास को भी जानने का मौका मिले।
शायद ये गलती नेहा के मम्मी पापा ने की थी कि निखिल के नही आने पर उन्होंने उससे मिलने की पहल नही करके निखिल को समझना ही नही चाहा। क्या पता तब बात कुछ और होती…..
दोस्तों जब रिश्ते बनने के लिए शुभ विवाह के जरिये दो लोगों का गठबंधन होता है तो साथ में दो परिवारों का भी गठबंधन होता है इसलिए परिवार से संबंध निभाने चाहिए न कि सिर्फ दो लोगों से ही। रिश्तों की खूबसूरती का यही राज होता है जो शायद हमे पता नही….या पता होते हुए भी हम अनजान बने रहते हैं , आपकी क्या राय है?
अपनी प्रतिक्रिया देना नहीं भूले
धन्यवाद
निशा जैन
# शुभ विवाह