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सीख – अभिलाषा कक्कड़

बच्चे जैसे ही सात आठ साल की उम्र में पहुँचते हैं तो बहुत ही जिज्ञासु प्रकृति के बन जाते हैं, ख़ासकर लड़के ..लड़कियाँ थोड़ी ठहरी स्वभाव की होती है । वो अपनी गुड़िया या फिर छोटे से टेडी बीअर में ही ख़ुश रहती है । मेरा बेटा जब आठ बरस का हुआ तो हमारे दोस्त काफ़ी बन गये । हम एक दूसरे के घर अक्सर अपने बच्चों की दोस्ती के मक़सद से बहुत आने जाने लगे । कभी-कभी मैं देखती थी कि बच्चे ज़िद कर रहे हैं । ऊटपटाँग हरकतें कर रहे हैं ।लेकिन माँ कुछ नहीं कह रही । कभी मैं देखती बच्चा मेरे घर में फ्रिज पर लटका खड़ा है और माँ सामने देख रही है । ख़ुश हो रही है कि मेरा बच्चा तय कर रहा है कि उसे क्या खाना है !! मैं भी बेबस सी खड़ी साथ देख रही हूँ कि इसे क्या चाहिए ??देखते देखते कभी दही का डिब्बा नीचे तो कभी कोई दाल सब्ज़ी धड़ाम से फ़र्श पर उपर से जो साफ़ सफ़ाई अलग.. मुझे ग़ुस्सा तो बहुत आता था कि ऐसे लाड़ तो इन्हें अपने घर पर ही करने चाहिए । मना करने की बजाय बच्चे का साथ देना सीधा बच्चों को मनमर्ज़ी का ग़लत संस्कार देना था ।

ख़ैर हम तो अपने बच्चों को ही समझा सकते है । दूसरों को कहो तो ख़ासकर माँओं को बहुत बुरा लग जाता है । बच्चे अपने घर में अपने माता-पिता के डर से जो काम नहीं करते दूसरे के घर जाते ही अपने स्वभाव अनुसार शरारतों पर उतर आते हैं । ख़ासकर जब माँ बाप साथ ना हो ।




   हर माँ कीं तरह मैं भी यही सोचती थी कि मेरे बच्चों में बहुत तमीज़ है दूसरे के घर में जाकर बहुत अच्छा व्यवहार करते हैं । लेकिन एक दिन मैं हैरान हुईं सुनकर कि मेरा बेटा भी जब खेलने दोस्तों के घर जाता है ,वो भी वही शरारतें करता है जो सब बच्चे करते हैं । फ्रिज खोलना खाने की चीज ख़ुद उठा लेना, ख़ुद ही खिलौने विडियो गेम उठाकर खेलने लग जाना । मेरी पाँच साल की बेटी ने एक दिन आकर बताया कि आज इसकी लड़ाई हो गई थी क्योंकि यह उनकी चीजें इधर-उधर कर रहा था । उसकी बातें सुनकर मैं दंग रह गई । मेरे पति जो साथ बैठे थे बोले .. ले सुन ले तू दूसरे में कमी निकाल रही थी तेरा बेटा भी कम नहीं है ।

 मैंने दोनों को सामने बिठाया और बड़े प्यार से समझाना शुरू किया.. आज ममा तुम दोनों को जो बात कहेगी उसे ध्यान से सुनना है और फिर उस पर अम्ल भी करना है ।जब ममा पापा साथ नहीं है और दोस्त के घर खेलने जा रहे हो तो बिना इजाज़त के किसी चीज़ को हाथ नहीं लगाना । यहाँ तक कि पानी पीना है तो गिलास भी बिना पुछे नहीं उठाना,ये बहुत बुरी चीज़ है अगर उनकी चीज़ खो गई तो चोरी का इलज़ाम भी लग सकता है , और हमारे दोनों बच्चे तो बहुत अच्छे हैं ,है ना अच्छे ?? ग़लत बात कभी नहीं करते । दोनों बड़े अच्छे से सुन रहे थे और सिर भी खूब हिला रहे थे । मैंने दोनों से पूछा आज के बाद ममा की बात मानोगे । दोनों ने पूरे विश्वास के साथ कहा हाँ !!




उनके पापा भी साथ बैठे सुन रहे थे और मुसकरा रहे थे कि बहुत ही अच्छे तरीक़े से बच्चों को सीखा रही है । जिसमें ग़ुस्सा डाँट फटकार बिलकुल नहीं थी बस प्यार ही प्यार था । फिर बोले चलो आज दोनों ने अच्छी बात सीखी है आज इन्हें इनकी पसन्द की जगह पर खेलने के लिए लेकर चलते हैं और इनका मन पसंद खाना भी खिलाते हैं ।

दोनों नाचने लगे कि अच्छी बात सीखने का अच्छा ईनाम मिला । उसके बाद जब उन्हें ऐसे ईनामों की चाह में उन्होंने बहुत कुछ सीखा और एक सुन्दर संस्कार बनकर सदा उनके साथ रहा ❤️

स्वरचित रचना

अभिलाषा कक्कड़

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