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मुनिया – मीनाक्षी सिंह

हे प्रभु ,ये क्या अनर्थ कर दिया ,मेरी फूल सी आठ साल की बच्ची  से उसकी माँ को छीन लिया ! मुझे ले लेता ,मेरी तो इस दुनिया में कोई ज़रूरत नहीं थी ! अपनी प्रिया पर भी जीते जी बोझ ही था ! बेचारी उस दिन बारिश में मुझ अपाहिज के लिए ही तो दवाई लेने गयी थी ! साथ में मुनिया को भी ले गयी थी कि उसके बिना रोने लगेगी ! रास्ते में दलदल में उसकी वो टूटी फूटी स्कूटी फिसल गयी ! पीछे से आ रहे ट्रक को देखकर घबरा गयी ,मुनिया को झटका दे किनारे मिट्टी में ठकेल दिया ! खुद को नहीं संभाल पायी ! ट्रक की चपेट में आ गयी ! जीने की बहुत आस थी बापू उसे तभी तो तीन दिन तक बस यहीं कहती रही ,मुझे ठीक कर दो डॉक्टर साहब ! मुनिया के लिए ,उसके बापू के लिए जीना हैँ मुझे ! पर ऊपर वाला भी बहुत अन्यायी हैँ ,ले गया मेरी प्रिया को ! मैं खुद अपाहिज हूँ ,एक वही तो आस जगाती थी की तुम्हारी दिन रात सेवा करके पैरों पर खड़ा करना हैँ !

कितनी खूबसूरत लग रही हैँ देखना बापू !मैने कई बार कहा – मुझे छोड़ दो ,दूसरा ब्याह कर लो ! मैं तेरे लायक नहीं ,पर वो तो मुझे ही अपना सब कुछ मान चुकी थी !

बापू – सही कह रहा है भीरेनवा ,मेरी बहू बहुत ही खूबसूरत थी ! जब ब्याह के आयी गांव में ,पूरा गांव कहता ,तुमाये घर में अब बत्ती जलाने की ज़रूरत नहीं ,तुमायी बहू ही इतनो ऊजालो कर दैगी ! जैसी सूरत ,वैसी ही सीरत थी ! जब मशीन में तेरे दोनों पांव घायल हो गए तो भी हौंसला नहीं हारी ! जब उसे तेरा पेशाब ,मल ऊठाता देखता तो गुस्से में मैं भी कह देता ,इस से अच्छा को मर ही जाता तू ! पर वो तुरंत मेरे मुंह पर ऊंगली रख देती ! खबरदार बापू ,ऐसा कहा तो ! मैं जी ही इनके लिए रही हूँ ! मुनिया को खुद पढ़ाती ,पूरी कक्षा में प्रथम आती थी ! मास्टर भी तारीफ करता ना थकता ! ईश्वर तूने क्या कर दिया ! कहते हैँ भगवान सब अच्छे के लिए करता है ,पर ये काहे का अच्छा ! बेचारे बापू अपनी धोती से अपने आंसू पोंछते हुए सिस्कते रहे !




और बेचारी मुनिया माँ की अर्थी से चिपकी रही ! पूरी रात हो गयी ,वो बस एकटक अपनी माँ को निहारती रही ! ना रोयी ,ना चिल्लायी ! भीरेनवा ने उसे अपनी माँ से अलग करना चाहा ,प्रिया के पार्थिव शरीर को ले जाने का समय हो गया था ! पता नहीं कहा से मुनिया में इतनी हिम्मत आ गयी ! उठी अपने बापू से बोली – मेरी माँ को वो लाल वाली साड़ी पहनाना बापू जो उनने अपने ब्याह पर पहनी थी ! उनकी मांग भी पूरी भरना बापू लाल सिन्दूर से ! भरभर कर चुड़िय़ां पहनाना वो रंग बिरंगी ,जो माँ के बकस में रखी हैँ ! और हाँ ,चुनरी भी उड़ा देना !माँ को संजने संवरने का बहुत शौक था ! मेरी ,तुमायी देखभाल में बाल भी ठीक से नहीं काढ़ पाती थी ! छोटी सी मुनिया इतना बोलते हुए सिस्कियां भरते हुए बापू के गले से चिपक गयी ! फिर दौड़कर अपनी माँ के सिंगार का सारा सामान कमरे से ले आयी !

देखो बाबा ,बापू ,मेरी माँ कितनी प्यारी लग रही हैं ,जैसी पिक्चर में होती हैँ हीरोईन!! माँ देखो ना शीशे में तुम कितनी सुन्दर लग रही हो ,खुद की ही नजर ना लग जाए तुम्हे ! उठो ना एक बार ,बापू बुला रहे हैँ ! मैं तो रह भी लूँ शायद तेरे बिना ,पर बापू तो मर ज़ायेंगे !

अंतिम य़ात्रा के समय मुनिया ने अपनी माँ के पैर छूये ! सभी बोले –  ,हाय राम ,ये क्या कर रही हैँ छोरी ,माँ पर पाप चढ़ा रही ! मुनिया – मेरी माँ ने मेरे लिए इतना कुछ किया क्या मैं अपनी माँ के पैर छूकर आशिर्वाद भी नहीं ले सकती !

अपने बापू के साथ माँ की चिता में मुनिया ने भी हाथ लगाया ! मुनिया ने अपने बापू की दिन रात सेवा की ! खेतों में भी काम करती ,पढ़ने भी जाती ! आज मुनिया सिपाही के पद पर हैँ ! उसका बापू पैरों पर खड़ा हैँ ,रिक्शा चलाता हैँ ! बाबा दुनिया से विदा हो गए हैँ ! अपनी माँ प्रिया की तरह ही मुनिया ने अपने घर की ज़िम्मेदारी अच्छे से संभाल ली ! कौन कहता हैँ लड़कियां ,कमज़ोर होती हैँ ! परिस्थिती ,हालात सब सीखा देते हैँ ! मुनिया मेरे गांव में ही रहती हैँ ! बहुत ही प्यारी लड़की हैँ !

स्वरचित

मौलिक अप्रकाशित

मीनाक्षी सिंह

आगरा

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