गरीबी – मीना माहेश्वरी

   आज घर में बड़ी रौनक थी । गुप्ता जी के बड़े बेटे के सुपुत्र की प्रथम वर्ष गांठ थी। बड़ा अयोजन रखा गया था। सभी नाते रिश्तेदार आए थे। मानस का अखंड पाठ। चल रहा था।  गुप्ताजी की छोटी बेटी  कामिनी अपने दोनों बच्चों के साथ  आई थी।बड़ा बेटा हार्दिक 8साल का था और बेटी 5साल की थी। बच्चे बड़े समझदार और सलीके वाले थे,अब हम उम्र बच्चों की तरह  शरारती तो बिलकुल भी नही थे। इसीलिए कामिनी बेफ़िक्री से घर के कामों में  मां और  भाभी की मदद करवा रही थी। 

                 अचानक से कामिनी को बच्चों का ध्यान आया, बच्चे कही दिखाई नही दे रहे थे, कामिनी ने घबराकर  बच्चों को ढूंढना शुरू किया,सभी  लोग बच्चों को खोज रहे थे कि गुप्ता जी  ने आवाज़ लगाई,घबराने की बात नहीं है, बच्चे देखो यहां है। 

                  सब लोग दौड़कर वहां पहुंचे तो  क्या देखते है, दोनों बच्चे बड़े मज़े से बर्तन धो रहे थे। कामिनी ने तेज़ी  से दोनों बच्चों का हाथ पकड़ा,कहा “चलो जल्दी से यहां से  कपड़े गंदे हो गए है, ये काम तुम लोगों के करने का नही है, तुम अभी बहुत छोटे हो,क्यों आए यहां।” 


                        दोनों बच्चों हाथ छुड़ाने  की कोशिश करते हुए बोले, उसे देखो वो भी तो बर्तन धो रही है, वो भी तो छोटी है । उनका इशारा गुप्ताजी के यहां बर्तन साफ करनेवाली सहायिका की बच्ची की तरफ़ था।  गरीबी की मार झेलती सहायिका कमला अक्सर अपनी मदद के लिए अपनी आठ साल की बेटी  को अपने साथ  ले आया करती थी, कई घरों में काम ले रखा था । पति शराबी, जुआंरी था। मां बेटी मिलकर किसी तरह गुज़ारा चला रही थी। 

                    लेकिन कामिनी बच्चों को क्या जवाब देती, वो सच ही तो कह रहे थे। वो भी तो बहुत छोटी थी , उसे भी तो हमारे बच्चों की तरह प्यार और जीने का अधिकार मिलना चहिए। कामिनी के पास शब्द नही थे, बस वह  यही कह पाई, बेटा वो बहुत गरीब है ना इसीलिए उसे अपनी मम्मी के साथ ये सब काम करना पड़ता है। लेकिन बच्चों को ये बात कुछ समझ नहीं आ रही थी।  वो कभी अपनी मम्मी और कभी  उस छोटी बच्ची को देख रहे थे____

 

मीना माहेश्वरी स्वरचित

रीवा मध्य प्रदेश

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